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जी-20 शिखर सम्‍मेलन में प्रधान मंत्री जी की टिप्‍पणी

जून 27, 2010

अध्‍यक्ष महोदय,

आज हमारे समक्ष सबसे बड़ी समस्‍या यह सुनिश्‍चित करने की है कि विशेषकर यूरो क्षेत्र के कुछ देशों के बाजारों में ऋण निरन्‍तरता में विद्यमान उलझन की स्‍थिति के बावजूद वैश्‍विक विकास की दर को किस प्रकार संरक्षित रखा जाए। ऋण निरन्‍तरता से संबंधित चिन्‍ता आम तौर पर राजकोषीय संकुचन की स्‍थिति का द्योतक होती है। परन्‍तु अभी स्‍थिति सामान्‍य नहीं है। आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया अभी भी नाजुक बनी हुई है और औद्योगिक देशों में निजी मांग के कमजोर बने रहने की संभावना है। यदि अनेक औद्योगिक देशों द्वारा एक साथ विरोधाभासी नीतियों का अनुपालन किया जाता है,

तो इससे दोबारा मंदी की संभावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता। इसका विकासशील देशों पर और सहस्‍त्राब्‍दि विकास लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने की संभावना पर अत्‍यंत ही नकारात्‍मक प्रभाव पड़ सकता है।

मैं इस बात को स्‍वीकार करता हूँ कि कई प्रकार की अनिश्‍चितताएं अभी भी मौजूद हैं और संतुलन की स्‍थापना करना वास्‍तव में कठिन है। परन्‍तु समग्र रूप से मेरा मानना है कि आर्थिक सुधारों की इस प्रक्रिया में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अभी हमारे समक्ष मुद्रास्‍फीति से मुद्रा अवस्‍फीति का खतरा ज्‍यादा बड़ा है।

इसलिए सबसे पहले हमें आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को मजबूत बनाने के कार्य को प्राथमिकता देनी होगी जबकि अलग-अलग देशों की ऋण समस्‍याओं का समाधान करने के लिए सोच-समझकर कदम भी उठाने होंगे।

इसके लिए जी-20 देशों के बीच नीतियों के सजग समन्‍वय की आवश्‍यकता होगी। इसी प्रयोजनार्थ हमने पिट्सबर्ग में आयोजित शिखर सम्‍मेलन में एक ऐसी रूपरेखा की स्‍थापना करने पर अपनी सहमति व्‍यक्‍त की थी जिसके आधार पर ठोस और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके। इस प्रक्रिया के पहले चरण के परिणाम, जो अब हमारे सामने हैं, से देशों के विभिन्‍न समूहों के लिए आवश्‍यक प्रत्‍युत्‍तरों के संबंध में महत्‍वपूर्ण जानकारी मिलती है।

स्‍पष्‍ट है कि जिन देशों का राजकोषीय घाटा बहुत अधिक हो गया है और जहां बाजार ने इस संबंध में अपनी गंभीर चिन्‍ता का संकेत दे दिया है, उन देशों के लिए राजकोषीय मजबूती उच्‍च प्राथमिकता का विषय होना चाहिए। अन्‍य विकसित देशों को अपने प्रोत्‍साहन पैकेजों को यथोचित विचार-विमर्श के उपरान्‍त ही समाप्‍त करने के लिए कदम उठाना चाहिए। हमें भिन्‍न देशों के लिए सावधानीपूर्वक अलग-अलग दृष्‍टिकोण अपना होगा, जो अलग-अलग देशों की विशिष्‍ट परिस्‍थितियों का प्रतिनिधित्‍व कर सके।

राजकोषीय कार्रवाइयों को चरणबद्ध तरीके से समाप्‍त करना भी समान रूप से महत्‍वपूर्ण है। बाजारों को बड़े औद्योगिक देशों द्वारा उठाए गए उन विश्‍वसनीय कदमों से आश्‍वासन अवश्‍य मिला है जिनसे राजकोषीय घाटे पर उल्‍लेखनीय प्रभाव पड़ता है। हालांकि इसके तात्‍कालिक प्रभाव सीमित हैं।

विकासशील देशों को इस प्रकार की रणनीति बनानी चाहिए जिसके तहत निर्यात पर उनकी निर्भरता कम हो और घरेलू मांग में वृद्धि करने पर अधिक ध्‍यान दिया जाए। अनेक विकासशील देशों में यह कार्य अवसंरचना क्षेत्र में संवर्धित निवेश के जरिए किया जा रहा है।

इससे सीमित निर्यातों के विरोधाभासी प्रभावों को दूर करते हुए तत्‍काल विकास की दर को कायम रखने में मदद मिलेगी। इससे मध्‍यम अवधि में भी आपूर्ति पक्ष की कमियों का समाधान करते हुए विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा।

सीमित निर्यात विकास के बावजूद निवेश के उच्‍च स्‍तरों के लिए प्रयास करने से चालू खाते में बड़े घाटे की संभावना है। इससे वैश्‍विक विकास को संतुलित करने में मदद मिलेगी। परन्‍तु इसके लिए एक ऐसे परिवेश की आवश्‍यकता होगी जिसमें विकासशील देशों के चालू खाते के बड़े घाटों की प्रतिपूर्ति की जा सके।

इसके लिए बहुपक्षीय एवं निजी पूंजी प्रवाहों में विस्‍तार की आवश्‍यकता होगी।

यदि औद्योगिक देशों में नए संरक्षणवादी उपायों पर प्रभावी प्रतिबंध लगाया जाता है और विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली व्‍यापार की वर्तमान बाधाओं को समाप्‍त किया जाता है, तो इससे विकासशील देशों की विकास संभावनाओं को महत्‍वपूर्ण बढ़ावा मिलेगा। इस संदर्भ में दोहा विकास दौर का सफल समापन अत्‍यंत ही आवश्‍यक है।

अध्‍यक्ष महोदय, अंत में मैं संक्षेप में बताना चाहूंगा कि भारत इस स्‍थिति से किस प्रकार निपटने का प्रयास कर रहा है। प्रभावी राजकोषीय एवं मौद्रिक प्रोत्‍साहन पैकेजों के आधार पर हम अपनी अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ने वाले वैश्‍विक संकट के प्रभावों को नियंत्रित करने में समर्थ रहे हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान 9 प्रतिशत की दर से विकास करने के उपरान्‍त पिछले दो वर्षों के दौरान हमारी अर्थव्‍यवस्‍था की विकास दर लगभग 7 प्रतिशत हो गई। आशा है कि यह विकास दर वर्ष 2010-11 में 8.5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और वर्ष 2011-12 तक हम वापस 9 प्रतिशत की विकास दर प्राप्‍त कर लेंगे।

यह एक महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य है और हम इस बात को स्‍वीकार करते हैं कि इसे प्राप्‍त करने के लिए हमें काफी कुछ करना होगा। हमने इस वैश्‍विक आर्थिक संकट से निपटने के लिए जिन राजकोषीय प्रोत्‍साहन पैकेजों की घोषणा की थी, हम उन्‍हें वापस लेने के लिए कदम उठा रहे हैं। इस प्रयोजनार्थ हमने वर्ष 2013-14 तक राजकोषीय घाटे में 50 प्रतिशत की कमी लाने के लिए मध्‍यम अवधि की एक योजना की रूपरेखा बनाई है। हम अवसंरचना क्षेत्र में निवेश को विशेष रूप से बढ़ावा देते हुए यथासंभव सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर दे रहे हैं जिससे कि सार्वजनिक संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके।

हमारे देश में सुदृढ़ और सुव्‍यवस्‍थित वित्‍तीय क्षेत्र है जिस पर इस संकट का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। हम वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था में तीव्र एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने और वित्‍तीय क्षेत्र में क्रमिक स्‍थिरता लाने के लिए वित्‍तीय क्षेत्र से संबंधित सुधारों को कार्यान्‍वित करना जारी रखेंगे।

धन्‍यवाद।

टोरंटो
27 जून, 2010



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