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रेकजाविक में आइसलैण्ड विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति का सम्बोधन

सितम्बर 10, 2019

1. आइसलैण्ड आकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है। यह आतिथ्यप्रेमी लोगों तथा विशिष्ट भूदृश्यों का देश है। इस देश में समाज प्रकृति के सामंजस्य में रहता है। और यह ऐसा देश है जिसके साथ भारत की विशेष मैत्री है।

2. हम दोनों देश अनेक पहलुओं को साझा करते हैं। हम दोनों को अपने लोकतन्त्र और अपनी प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराओं पर गर्व है। आपके यहाँ के लावा के मैदान और हमारे यहाँ के बेसाल्टयुक्त दकन का पठार की संरचना एक जैसी है। अत: हमारा भौगोलिक परिवार भी एक जैसा ही है!

3. बोलने के लिए आमन्त्रित करने हेतु मैं इस विश्वविद्यालय के रेक्टर का धन्यवाद करता हूँ। इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ने आपकी लोकतान्त्रित राजनीति के लिए नेतृत्व तथा प्रबुद्ध निर्देशन प्रदान किया है। आपके राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री यहाँ अध्ययन कर चुके हैं और अन्य अनेक नेता भी यहाँ अध्ययन कर चुके हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत के घनिष्ठ मित्र श्री ओलेफर ग्रिमसन ने इस विश्वविद्यालय में अध्यापन किया है। विद्यार्थी के रूप में आप लोग वास्तव में इस समृद्ध विरासत के स्वाभिमानी विरासती हैं। और मुझे विश्वास है कि आप इसे और भी अधिक समृद्ध करेंगे।

भाइयो और बहनों,

4. आइसलैण्ड को प्रकृति ने भरपूर सँवारा है। इसने प्रकृति के प्रति अपनी अतुलनीय सद्भावना व्यक्त की है। अत: आपकी प्रतिबद्धता के लिए श्रद्धांजलि के रूप में मैंने बोलने के लिए " हरित ग्रह के लिए भारत-आइसलैण्ड" विषय को चुना है। धरती माता वर्तमान में तनाव से परिपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरणीय ह्रास से जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है। इस आश्चर्यजनक भूमि को प्लावित करने वाले सुन्दर ग्लेशियर समाप्त हो रहे हैं। मुझे बताया गया कि आइसलैण्ड से प्रतिवर्ष 40 वर्ग किलोमीटर ग्लेशियल कवर समाप्त हो रहा है। स्वयं अपने देश में हम हिमालय की चोटियों को तेजी से पिघलते हुए देख रहे हैं। यह न केवल हमारे पारितन्त्र के लिए बल्कि हमारे समग्र जीवन के लिए खतरा है। मैं अपनी जन्मभूमि कानपुर में गंगा के तट पर पला-बढ़ा। हम नदियों को पवित्र मानते हैं। वे हमारी संस्कृति, हमारे धर्म और हमारे सामाजिक जीवन से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हैं। अत: मेरे लिए यह स्वाभाविक है कि भारत तथा कहीं अन्य भी नदियों के प्रति मेरी वैसी ही गहन श्रद्धा और आदर बना रहे।

5. वर्ष 1972 में मुझे विश्वविद्यालय छोड़े केवल एक वर्ष ही हुआ था। इसी समय स्टॉकहोम में मानवीय पर्यावरण पर उल्लेखनीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसके द्वारा पर्यावरणीय मुद्दा चिन्तन का केन्द्र बना। इसी समय हमारे यहाँ भारत में चिपका आन्दोलन नाम का एक जन आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिसका लक्ष्य अपने वृक्षों को बचाना तथा अपने पर्वतीय पारितन्त्र को संरक्षित करना था। इस आन्दोलन में लोग वृक्षों को कटने से बचाने के लिए दिन-रात विरोध के रूप में वृक्षों को आलिंगन में भर लेते थे और वहीं बैठे रहते थे। यह प्रकृति के प्रति प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति थी। एक दशक पूर्व रैचेल कार्सन की पर्यावरण पर लिखी पुस्तक 'साइलैंट स्प्रिंग' ने प्रकृति के अन्धाधुन्ध शोषण के प्रति हमें सचेत किया था।

6. उस समय जलवायु परिवर्तन को सर्वाधिक विकट समस्या के रूप में नहीं देखा जाता था। किन्तु तबसे हम काफी आगे आ चुके हैं। आज हमारे पास अनेक वैश्विक मंच हैं जहाँ हम पर्यावरण सुरक्षा, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन सिंक तथा हरितक्षेत्र के विकास पर चर्चा कर रहे हैं। और अब तक इस विषय का गहन ज्ञान होने के बावजूद हम ग्लेशियरों तथा बर्फ की चोटियों का तेजी से पिघलना, विषम मौसमी घटनाएँ, सामुद्रिक संसाधनों की समाप्ति, वनों के घटते क्षेत्र तथा जैव-विविधता में कमी आदि देख रहे हैं। हम विशेष रूप से निर्धनों के लिए जलवायु परिवर्तन के असंख्य सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों के प्रति भी समान रूप से जागरूक हैं। स्पष्टत: ज्ञान में वृद्धि तथा वैज्ञानिक उपकरणों की उपलब्धता के बावजूद जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरणीय क्षति से निपटने में पर्याप्त व्यावहारिक कार्यवाही नहीं हो पायी है।

7. किन्तु हम इस दिशा में कार्यरत हैं। और आइसलैण्ड हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। देश के रूप में आपने विद्युत उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का आयात बन्द कर दिया है और आप नवीकरणीय संसाधनों से 100 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं। इससे हमें क्या सबक मिलता है? प्रभावी रूप से यह स्पष्ट है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों साथ-साथ सम्भव हैं। प्रतिबद्धता तथा सहानुभूति के माध्यम से; तकनीक तथा समयबद्ध कार्यवाही से; तथा स्वच्छ ऊर्जा एवं उपभोग विन्यास में परिवर्तन के माध्यम से हम कुछ विशिष्ट कर सकते हैं।

भाइयो और बहनो,


8. आइसलैण्ड का हरित विकास एक उल्लेखनीय गाथा है। आप ऊर्जा तथा संसाधन द्षता में अग्रणी हैं। आपकी जनता ने उपलब्ध संसाधनों के साथ कार्य करने के लिए नवीन मार्ग ढूँढ लिए हैं और साथ ही उन्हें नवाचारी मापन भी प्रदान किया है। मुझे बताया गया कि 1907 में एक किसान ने अपने घर में भाप पहुँचाने के लिए एक गर्म झरने से एक पाइप अपने खेत तक बिछाया। आज उस विचार ने भूतापीय ऊर्जा क्रान्ति को गति दी है जिससे आइसलैण्ड में 90 प्रतिशत घरों को ताप मिल रहा है।

9. आइसलैण्ड ने 1970 में अपने मत्स्य भण्डार में भारी गिरावट के पश्चात अपने मत्स्य पालन क्षेत्र में इस ढंग से प्रगति की है वह अनुकरणीय है। भारत और विश्व स्थायी मत्स्य पालन तथा मछली पकड़ने की नौकाओं के निर्माण में आइसलैण्ड की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं। मछली की त्वचा को चमड़े और सौन्दर्य प्रसाधन में परिवर्तित करने की वेस्ट-टू-वेल्थ (कूड़े से सम्पदा) व्यवस्था भी अवसरों का एक नवीन विश्व भी तैयार करती है।

भाइयो और बहनो,

10. पृथ्वी को हरा-भरा बनाये रखना एक वैश्विक चुनौती है; इसके लिए वैश्विक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। विकास का कोई भी ऐसा मार्ग नहीं हो सकता है जो पर्यावरणीय चिन्ताओं का कारक न हो। हम इसके प्रति अत्यन्त सचेत हैं। भारत अब विश्व का सबसे तेजी से उभरती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था बन रहा है और हमें अपने ऊर्जा उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि करने की आवश्यकता है। किन्तु इसके लिए हम एक स्थायी ढंग से कार्य कर रहे हैं। हम जैसे-जैसे विकास करेंगे हम पेरिस समझौते की अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति करते रहेंगे।

11. 2030 तक भारत की अपनी जीडीपी की हरित गैस उत्सर्जन की तीव्रता में 2005 के मुकाबले में 33 से 35 प्रतिशत की कमी हो जायेगी। हम 2030 तक अतिरिक्त वन तथा वृक्ष क्षेत्र के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य का एक अतिरिक्त कार्बन सिंक तैयार करेंगे। इस सम्बन्ध में हमें आइसलैण्ड के साथ कार्य करने की उत्सुकता है।

12. भारत ने 2022 तक सिंगल-यूज प्लास्टिक समाप्त करने की प्रतिबद्धता दर्शाई है। 2020 तक सड़कों पर 6 से 7 मिलियन हाइब्रिड तथा इलेक्ट्रिक वाहन लाने की हमारी महत्त्वाकांक्षी योजना है। अपनी राष्ट्रीय योजना उजाला के तहत हमने 358 मिलियन एलईडी बल्ब वितरित किये जिससे वातावरण में अब 37 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड पहुँचने से रोका गया। हमारी उज्ज्वला योजना से महिलाओं तथा निर्धन परिवारों को 79 मिलियन स्वच्छ रसोई गैस उपलब्ध कराया गया। इससे ग्रामीण महिलाओं को विषैले धुएँ के कष्ट से मुक्ति मिली और लकड़ी पर उनकी निर्भरता समाप्त हो गयी। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि इससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। हमने अपने वन्य क्षेत्र तथा वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाये हैं। गत पाँच वर्षों में भारत के वन्य क्षेत्र में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गत चार वर्षों में बाघों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिनकी संख्या अब 2967 है। हमारा स्वच्छ भारत अभियान भी पर्यावरण के लिए सकारात्मक परिणाम दे रहा है। देश में जल संरक्षण तथा पाइप-जल की उपलब्धित सुनिश्चित करने के लिए हमने एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जल कार्यक्रम प्रारम्भ किया है। इससे हमारे पारितन्त्र तथा अधिवास का पोषण होगा और साथ ही लाखों लोगों की प्यास भी बुझेगी।

13. गत कुछ वर्षों में भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ कार्य करने हेतु अनेक कदम उठाये हैं। और जैसा कि मैं कहता हूँ, हम 2-13 सितम्बर, 2019 को हम भारत में मरुस्थलीकरण के विरुद्ध 14वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की मेजबानी कर रहे हैं। भारत ने जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्यवाही में वृद्धि के लिए पेरिस सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय सौर संगठन की पहल की। हम शीघ्र ही आइसलैण्ड के इस गुट में शामिल होने की आशा करते हैं।

भाइयो और बहनो,

14. वेदों से लेकर उपनिषद तक भारत के प्राचीन ग्रन्थों ने हमारे लिए ज्ञान और विवेक की अपार सम्पदा छोड़ी है। वे हमें प्रकृति के सामंजस्य के साथ रहने के लिए निर्देशित करती हैं। प्रतिवर्ष हम अपनी राष्ट्रपति सम्पदा में समुदाय तथा विद्यार्थियों को शामिल करके वृक्षारोपण अभियान चलाकर हरित उत्सव मनाते हैं। मेरे विदेशी दौरों के समय भी मैंने पर्यावरण के प्रति अपनी सदिच्छा तथा प्रेम को साझा करने के कारण तथा अपनी विरासत और अधिवास के संरक्षण में योगदान करने हेतु मेडागास्कर से लेकर म्यांमार तक तथा सूरीनाम से लेकर वियतनाम तक वृक्षारोपण किये हैं।

15. इस वर्ष हम महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती मना रहे हैं। वह आत्मा से एक पर्यावरणवादी थे। उनके लिए पानी की एक-एक बूँद कीमती थी। व्यावहारिक रूप से वे हमेशा एक बार में आधा गिलास पानी ही लेते थे और आवश्यकता पड़ने पर दुबारा ले लेते थे। उनकी आदतें साधारण थीं किन्तु उनका संदेश गहरा था। आशा है इससे हमें अपने जीवन को अधिक स्थायी बनाने का प्रोत्साहन प्राप्त होगा।

प्रिय विद्यार्थियो,

16. आप इस धरती के भावी नेता हैं। आपके पास हरियाली को बढ़ाने के लिए नवीन विधियों के सृजन हेतु ज्ञान और अभियान दोनों हैं। जिस प्रचुरता ने प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय औद्योगिक क्रान्तियों को शक्ति प्रदान की, चौथी क्रान्ति के लिए उसके उपभोग की आवश्यकता है। यह कार्य हरित तकनीकियों, ऊर्जा के स्वच्छ साधनों तथा वर्तुल अर्थव्यवस्था से प्रेरित होगा। और आप सभी इन प्रयासों के अग्रिम मोर्चे पर होंगे। हम चाहते हैं कि हमारी भावी पीढ़ियों बर्फीले भूक्षेत्र को देखें जिसने इस सुन्दर देश को यह नाम प्रदान किया है। हमारे लिए इस गर्म होते हुए ग्रह पर ओकजोकुल अन्तिम पिघलने वाला ग्लेशियर होना चाहिए, और इस भावना से मैं न केवल आइसलैण्ड और भारत की बल्कि इस सम्पूर्ण ग्रह को हरित बनाने में सहायता करने का आह्वान करता हूँ। मैं आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।

तकफिरिर!
धन्यवाद!

रेकजाविक
सितम्बर 10, 2019


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