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वियतनाम में वेसाक के 16वें संयुक्त राष्ट्र दिवस पर उपराष्ट्रपति का मुख्य संबोधन

मई 12, 2019

महामहिम न्गुयेन जुआनफुक, प्रधानमंत्री, वियतनाम
महामहिम विन मिंट, राष्ट्रपति, म्यांमार
महामहिम के पी शर्मा, प्रधानमंत्री, नेपाल
महामहिम न्गुयेन थी किम नगन, अध्यक्ष, नेशनल असेंबली, वियतनाम
महामहिम ताशी दोरजी, चेयरमैन, राष्ट्रीय परिषद, भूटान
अति सम्मानित डॉ. थिक थिएन न्होंन, अध्यक्ष, राष्ट्रीय वियतनाम बौद्ध संघ एवं वेसाक समारोह, 2019 के संयुक्त राष्ट्र दिवस के अध्यक्ष
अत्यंत सम्मानित प्रोफेसर डॉ फ्रा ब्रम्ह्पंडित, वेसाक दिवस के लिए अंतरराष्ट्रीय परिषद् के अध्यक्ष
गणमान्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक नेतागण
महानुभावों, सम्मानित प्रतिनिधिमंडल
मीडिया के मित्रों
बहनों एवं भाइयों

नमस्कार


मैं वेसाक के शुभ अवसर पर आज के इस पवित्र दिन बुद्ध की धरती से आप सब के लिए शुभकामनाएं लेकर आया हूँ। हा नाम प्रान्त में चल रहे वेसाक समारोह के 16वें संयुक्त राष्ट्र दिवस पर मुझे आमंत्रित किए जाने पर मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूँ।

यह दिन भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और परिनिर्वाण की आराधना करने का है। आनंद प्राप्त करने और उत्सव मनाने का दिन। भगवान बुद्ध के विचारों और उनकी शिक्षाओं को प्रतिबिंबित करने का दिन जो 2500 वर्ष बाद आज भी पूरी दुनिया में लोगों के दिल और दिमाग में गूंज रहे हैं।

वेसाक हमें युद्ध और शांति तथा हिंसक संघर्ष एवं शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के बीच के स्थायी द्वंद्व को पुनः स्मरण करने का अवसर देता है।

सम्पूर्ण मानव इतिहास में अनियंत्रित महत्वकांक्षाओं की काली ताकतें एवं अविवेकपूर्ण घृणा तथा क्रोध की अनंत कुण्डलियाँ अपना सिर उठाती रही हैं और रक्त एवं आंसू की अनगिनत कथाओं को जन्म देती रही हैं।

हालाँकि, ये राहत की बात है कि हमेशा ही रोशनी की एक किरण मौजूद रही है जो इन डरावने काले बादलों के बीच भी चमकती रहती है। ऐसी आवाजें हैं जो शांति देती हैं, ऐसी दृष्टि हैं जो उपचार करती हैं। ऐसे दूत रहे हैं जो दुखी मानवता के लिए शांति को पुनर्बहाल करते हैं। भारत ऐसे कई संतों का घर रहा है जिन्होंने अच्छाई की ताकत में विश्वास किया और अंततः इस अंतहीन संघर्ष में विजय हासिल की।

भारत की दृष्टि में पूरा विश्व एक विशाल परिवार है तथा इसका सपना शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के ताने-बाने से बुना है। भगवान बुद्ध अग्रणी विचारकों की उस समृद्ध विरासत से आते हैं जो वास्तव में बुद्धिमता और ज्ञान के उल्लेखनीय श्रोत हैं।

धम्म के बारे में उनका कालातीत सन्देश, "महान गुरु की अद्भुत मानवीय शक्ति" जैसा कि, स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो के विश्व धर्म संसद में अपने संबोधन में कहा था कि आज यह पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।

हा नाम प्रांत के टैम चुग पगोडा की निर्मल छाया में हम यहां "वैश्विक नेतृत्व में बौद्ध दृष्टिकोण एवं स्थायी समाज के लिए साझा दायित्वों” के विषय पर वेसाक के 16वें संयुक्त राष्ट्र दिवस के उत्सव के लिए एकत्रित हुए हैं।

विभिन्न स्तरों पर अच्छे नेतृत्व के गुण क्या हैं और हम एक स्थायी विश्व का निर्माण कैसे करते हैं? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका बौद्ध दृष्टिकोण उपयोगी उत्तर प्रदान कर सकता है।

वास्तव में, जैसा कि 1945 के संयुक्त राष्ट्र चार्टर से संकेत मिलता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व समुदाय एक साथ आया और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की, "आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के श्राप से बचाने के लिए, जो हमारे जीवनकाल में मानव जाति के लिए दो बार अनकहा दुख लेकर आया है।”

70 साल बाद, संयुक्त राष्ट्र ने न केवल शांति बनाए रखने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया, बल्कि एक स्थायी ग्रह के निर्माण के लिए आगे बढ़ा, जैसा कि सतत विकास राज्यों के 2030 के एजेंडा में कहा गया है, "वृहत स्वतंत्रता में सार्वभौमिक शांति को सुदृढ़ बनाना।" एक स्पष्ट मान्यता है कि "शांति के बिना कोई स्थायी विकास नहीं हो सकता है और स्थायी विकास के बिना शांति नहीं हो सकती है।" इसलिए, आज यदि हम संयुक्त राष्ट्र वेसाक दिवस मनाते हुए वैश्विक नेतृत्व और सतत विकास पर चर्चा कर रहे हैं तो यह सर्वथा उपयुक्त है।

धम्म का बौद्ध दृष्टिकोण (सत्य व्यवहार) तथा प्रज्ञा (ज्ञान), करुणा (दया) और मैत्री (सौहाद्र) पर बल देने के साथ-साथ तृष्णा (लालच) को कम करने की शिक्षा एक नई विश्व व्यवस्था के निर्माण का मंच प्रदान करती है जहां हिंसा और संघर्ष को कम से कम किया जाता है तथा प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किए बिना विकास आगे बढ़ता है।

इस संदर्भ में, यह महान भारतीय सम्राट अशोक की उस पीड़ा को पुनः याद दिलाता है जिसके कारण उन्होंने कलिंग युद्ध जीतने के बाद दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया था। उन्होंने एक कठिन लड़ाई जीत ली थी लेकिन जब उन्होंने उस विनाश और अत्यधिक मानवीय दुखों को देखा जो युद्ध अपने पीछे छोड़ गया था, तो उन्होंने फैसला किया कि वह जीवन में फिर कभी युद्ध में शामिल नहीं होंगे। बौद्ध धर्म ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।

वे क्रूर अशोक (चंडशोका) से धर्मी अशोक (धर्मशोका) में बदल चुके थे। उन्होंने दशविधाराजधम्म (दस सद्गुण) का पालन किया, जिसके बारे में भगवान बुद्ध ने माना था कि प्रत्येक धर्मी नेता को इसका पालन अवश्य करना चाहिए। ये सद्गुण हैं;

दान- उदारता; शिला- चरित्र; परित्याग- त्याग; अज्जवा- अखंडता; मद्दवा- दया; तप- आत्मसंयम; अकोढ़ा – कृतज्ञता; अहिंसा - अहिंसा; खंती - धैर्य; और अविरोधन- शुचिता।

अशोक ने यह समझ लिया था कि सबमें खुशियाँ बांटना ही बौद्ध दर्शन का केंद्र है। इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं था। यह सामंजस्यपूर्ण, समावेशी, सतत विकास की दृष्टि थी।

बौद्ध धर्म का संतुलित दृष्टिकोण इसका महान योगदान है। चरम की स्थिति से बचते हुए और इस बात की सराहना करते हुए कि सत्य हमेशा कहीं न कहीं मध्य में मौजूद रहता है, भगवान बुद्ध का संदेश हमें उस ‘मध्य मार्ग’ का पता लगाने के लिए प्रेरित करता है। उनके पवित्र आठ पथों में सही समझ, सही विचार, सही भाषण, सही कार्य, सही आजीविका, सही प्रयास, सही विचारशीलता और सही एकाग्रता शामिल हैं।

यदि वैश्विक नेतृत्व इस दृष्टिकोण को अपना सके, तो संघर्ष से बचना, विभिन्न दृष्टिकोणों को समेटना और सर्वसम्मति प्राप्त करना संभव है। यह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए आवश्यक जीवन के अधिक संतुलित दृष्टिकोण के लिए लोगों को कट्टरता, धर्मान्धता और दुराग्रह से दूर कर सकता है। इस दृष्टिकोण को समझना एक समावेशी परिप्रेक्ष्य है जो प्रत्येक व्यक्ति और विचारों की विविधता का सम्मान करता है। यह कट्टरता और धार्मिक कट्टरवाद के समकालीन संकट का प्रतिकारक है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो समानता और समभाव को बढ़ावा देता है जिसमें प्रत्येक दृष्टिकोण को समान महत्व दिया जाता है तथा कोई जल्दबाजी में या तर्कहीन निर्णय नहीं लिया जाता है।

यह परावर्तन को प्रोत्साहित करता है, जिसे भगवान बुद्ध "सचेतनता" कहते हैं। यह आत्म-मूल्यांकन और निरंतर सुधार की संस्कृति का निर्माण करता है।

गणमान्य प्रतिनिधियों,

सामाजिक न्याय के माध्यम से स्थायी समाज का निर्माण संभव है, जो खुद के भीतर के संघर्ष तथा दुनिया में बड़े पैमाने पर हो रहे संघर्ष को प्रबंधित करने से जुड़ा हुआ है।

स्थायी उपभोग और उत्पादन के माध्यम से सतत समाज संभव है। सतत समाज तभी संभव है जब हम वर्तमान की जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य के प्रति सचेत हों। बुद्ध 'तृष्णा' यानि प्यास पर अंकुश लगाने की बात करते हैं, जो लालच से उपजती है। लालच ने मानव जाति को प्राकृतिक संपदा पर हावी होने और उसका दोहन करने के लिए प्रेरित किया है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध कथन में इस चिंता को जाहिर किया था कि "माँ प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है लेकिन मनुष्य के लालच के लिए नहीं"।

समकालीन वैश्विक नेतृत्व शांति और सद्भाव के साथ स्थायी समाजों के निर्माण में बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। राष्ट्रों के बीच संघर्ष की उत्पत्ति की जड़ें घृणा और हिंसा के उस विचार में निहित हैं जो एक व्यक्ति के मष्तिस्क से उपजती हैं। दुनिया में आतंकवाद का बढ़ता खतरा इस विनाशकारी भावना की अभिव्यक्ति है। घृणा की विचारधाराओं के समर्थकों को नासमझ मृत्यु और विनाश से बचने के लिए रचनात्मक रूप से संलग्न होने की आवश्यकता है। जैसा कि बुद्ध ने कहा, ‘नास्तिसन्तिपरमसुखम्', 'शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं है।‘ शांति और करुणा का बुद्ध का संदेश पूरे विश्व में संप्रदाय और विचारधारा से प्रेरित हिंसा पर काबू पाने के लिए एक विचारधारा और प्रभावी उत्तर प्रदान करता है।

करुणा और ज्ञान पर आधारित संवाद, सौहार्द और न्याय को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक नेतृत्व को पहले से कहीं अधिक एक साथ काम करने की आवश्यकता है। हमें भगवान बुद्ध के आदर्शों को बनाए रखने और वैश्विक समुदाय की नीतियों और आचरण में शांति, सुविधा, समावेश और करुणा के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक साथ काम करने के लिए सहमत होकर शांति का और अधिक सकारात्मक वातावरण बनाने की आवश्यकता है।

वेसाक बौद्ध धर्म की इस अटूट साझा विरासत को मनाने का एक अवसर है। एक विरासत जो सदियों से हमारे समाजों को पीढ़ी दर पीढ़ी जोड़ती जाती है।

दो सहस्राब्दी पहले, भारतीय नाविकों और व्यापारियों की यात्राओं के बाद, जो भगवान बुद्ध की मूर्तियों को अपने साथ ले गए थे, भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने वियतनाम सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के तटों की व्यापक यात्रा की। विद्वान नागार्जुन के माध्यमिका विद्यालय और प्रज्ञा विचारधारा का वियतनामी बौद्ध धर्म पर गहरा प्रभाव था। इतिहासकारों का मानना है कि महायान प्रज्ञा को इंडोनेशिया और चम्पा राज्यों के माध्यम से दक्षिण भारत से सीधे वियतनाम स्थानांतरित किया गया था। महाजीवका, कालकार्य, धर्मदेव और विनितारुसी जैसे कई भारतीय भिक्षुओं ने वियतनाम में बौद्ध धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

हम भगवान बुद्ध के शांति, करुणा, सद्भाव और सर्वकल्याण के सार्वभौमिक संदेश के माध्यम से सभ्यतापूर्वक जुड़े हुए हैं। गहरे स्तर पर, हमारे साझा सांस्कृतिक स्थान, धर्म और दर्शन बुद्ध के संदेश से प्रभावित और निर्मित हैं।

आदरणीय भिक्षुओं, महानुभावों, और दोस्तों!

वेसाक के इस पवित्र दिन को, हम स्वयं को उस महान निधि की याद दिला रहे हैं जिसे भगवान बुद्ध ने मानवता के लिए न्योछावर किया था।

धम्म का मार्ग जो उन्होंने हमें दिखाया एक ऐसा मार्ग है जो हमें स्थायी शांतिपूर्ण विश्व की खोज करने के लिए प्रेरित कर सकता है, एक ऐसी दुनिया जहां सभी मनुष्य गरिमा का जीवन जी सकते हैं और अपनी क्षमता को पूरा कर सकते हैं, एक ऐसी दुनिया जहां आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण एक साथ चलते हैं।

इसके लिए, केवल शब्दों से बात नहीं बनेगी। जैसा कि भगवान बुद्ध धम्मपद में कहते हैं, "जिन शब्दों पर काम नहीं किया जाता है वे बिना सुगंध वाले सुन्दर फूलों या बिना फल वाले पेड़ों की तरह होते हैं। जब शब्दों का पालन किया जाता है केवल तभी वे सुगंध प्राप्त करते हैं या पेड़ फल पाते हैं।"

हमारे इस अशांत समकालीन विश्व में, हमें विचारों के अधिक सुगंध और कार्यों के अधिक फल की आवश्यकता है जो जीवन की गुणवत्ता को बदल देंगे। हमें एक प्रबुद्ध विश्व नेतृत्व और एक न्यायपूर्ण और उत्तरदायी विश्व व्यवस्था की आवश्यकता है। जैसा कि भगवान बुद्ध ने कहा था, हमें उन पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है जिनके पास प्रज्ञा या विचारधर्म या सही विचार तथा सिला या आचार धम्म या सही कार्रवाई है। हमें इन दोनों धाराओं के संगम की आवश्यकता है।

भगवान बुद्ध के सभी के लिए प्रेम और मैत्री के इस संदेश के साथ मैं समाप्त करता हूं: "मैत्री हमेशा प्रवाहित होती रहनी चाहिए। अपने मन को पृथ्वी की तरह दृढ, हवा की तरह स्वच्छ और गंगा की तरह गहरा बनाए रखने का स्वयं को पवित्र दायित्व दें। हमारी मैत्री के दायरे को दुनिया की तरह असीम होने दें और अपने विचारों को विशाल और हर उस परिमाप से परे होने दें जिसमें किसी भी घृणा का कोई स्थान नहीं है।"

हा नाम, वियतनाम
12 मई, 2019


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