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विदेश मंत्री द्वारा दुशान्बे में भारतीय समुदाय को सम्बोधन

अक्तूबर 12, 2018

मैंने नहीं सोचा था कि यहाँ आकर आज शाम ही भारत से मुलाकात हो जाएगी। मैं पिछली बार आई थी 2014 में ताजीकिस्तान लेकिन भारतीय समुदाय के साथ मीटिंग नहीं हो पाई थी तो मुझे अपने यात्रा अधूरी लग रही थी। इसलिए इस बार जब मैं आई तो हालाँकि यात्रा कि अवधि बहुत छोटी थी, मैं आज आई हूँ कल चली जाऊँगी लेकिन मैंने सोमनाथ जी से कहा कि छोटी यात्रा सही लेकिन आप एक कार्यक्रम भारतीय समुदाय के साथ जरूर करवा दीजिये। और मुझे ख़ुशी हुई यहाँ आकर जब भारत की पूरी झलक जब इस सभागार में देखी।

हम तो मंच संचालिका कि हिंदी से ही बहुत खुश हो रहे थे लेकिन जब विद्या अमृत ने जब धाराप्रवाह संस्कृत मी जब स्वागत किया तो हम सब अचंभित हो गए। इतना शुद्ध उच्चारण, इतनी मधुर आवाज़। मुझे लगता है सभागार में बैठा हुआ हर व्यक्ति अभिभूत था।

पुत्री विद्या अमृत, अहम् त्वां मम् आशीर्वादम अति शुभेच्छामि ददामि।


और उसके बाद जो ‘वैष्णव जन’ की प्रस्तुति थी, उससे पहले स्वागत गान हुआ था, ये भारत का सबसे लोकप्रिय स्वागत गान है।

अथ स्वागतम, शुभ स्वागतम, आनंद मंगल मंगलम।

पर इतनी खूबसूरत प्रस्तुति, इतने शुद्ध उच्चारण के साथ, उसी धुन के साथ यहाँ प्रस्तुत की गई और ‘वैष्णव जन’ ने तो कमाल कर दिया।

मैं आपको एक जानकारी देना चाहूँगी कि इस वर्ष से हमने महात्मा गांधी के 150वीं जन्मजयन्ती मनाने का कार्यक्रम प्रारम्भ किया है और उसमें प्रधानमंत्री जी के इच्छा थी कि विश्व के सभी देश ‘वैष्णव जन ते’ उसी भाषा में और उसी धुन में गाएं।

124 देशों से हमें ये गायन प्राप्त हो चुका है, इसमें ताजीकिस्तान का भी गायन है। लेकिन हमारे अधिकृत प्रवक्ता यहाँ बैठे हैं, मैं उनसे ये कहना चाहूँगी कि आज के इस गायन को आप उसमें जोड़ लीजिए और जब दूरदर्शन से प्रसारण हो तो आज अमीना के द्वारा गया गया ये ‘वैष्णव जन ते’ दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किया जाना चाहिए।

और उसके बाद गा तो ताजिक बच्चे रहे थे, ‘दिल दिया है जाँ भी देंगें ऐ वतन तेरे लिए’ लेकिन हम सब लोगों को goosebumps हो रहे थे। हम सबको अपना वतन याद आ रहा था, वो सबके अपने-अपने वतन के लिए था।

ताजिकिस्तान के बच्चे ताजिकिस्तान के लिए गा रहे थे, भारतीय बच्चे बैठ करके अपने लिए गुनगुना रहे थे।

हर व्यक्ति में, हर बच्चे में यदि ये लगन राष्ट्र के प्रति हो जाए कि ‘दिल दिया है जाँ भी देंगें ऐ वतन तेरे लिए’ उसकी प्रस्तुति ने पूरे सभागार को एक बार प्रफुल्लित कर दिया। और फिर दो नित्य रचनाएं आई हैं हमारे सामने, दो प्रस्तुतियां, एक रवींद्र संगीत पर आधारित और एक कृष्ण रास पर कथक की प्रस्तुति। वाकई में कह सकती हूँ कि अभूतपूर्व की श्रेणी में उनको रखा जा सकता है।

हम लोग जब भी मध्य एशिया की बात करते हैं तो ये कहते हैं कि हमारे सम्बन्ध मध्य एशियाई देशों से बहुत सदियों पुराने हैं, सांस्कृतिक भी और ऐतिहासिक भी। लेकिन मैं आज ये कहना चाहूँगीं कि वो सम्बन्ध चिर-पुरातन तो हैं, नित्य-नूतन भी हैं।

चिर-पुरातन सदियों से चले आ रहे ये सम्बन्ध आज इन बच्चों ने बता दिया कि कए नित्य नई उर्जा लेकर के ये सम्बन्ध बढ़ रहे हैं। और इसका बहुत बड़ा उदाहरण पेश किया था प्रधानमंत्री मोदी जी ने। वो अकेले प्रधानमंत्री हैं भारत के जिन्होंने एक ही यात्रा में मध्य एशिया के पाँचों देशों की यात्रा की, एक साथ। ताजिकिस्तान भी वो आए, कीर्गीस्तान भी आए, उज्बेकिस्तान भी आए, तुर्कमेनिस्तान भी आए, कज़ाकिस्तान भी आए। एक यात्रा में पाँचों मध्य एशियाई देशों की यात्रा करनेवाले वो पहले प्रधानमंत्री हैं।

मैं भी पाँचों देशों की यात्रा कर चुकी हूँ और हर जगह, ये जो सोवियत संघ का हिस्सा थे पहले, हर जगह भारत के प्रति, भारतीयों के प्रति जो प्यार, गौरव, जो आदर दिखाई देता है उससे मन अभिभूत हो जाता है।

जो बच्चे यहाँ पढ़ने के लिए आए हैं, जो पहले से पढ़ रहे हैं, जो इस बार आए हैं वो ये महसूस कर रहे होंगें। और राजनेताओं के द्वारा ही नहीं, बॉलीवुड की बहुत बड़ी भूमिका है इसमें।

मुझे एक घटना कभी भूलती नहीं है, बहुत वर्षों पहले के ये बात है। मैं स्पीकर साहब के प्रतिनिधि मंडल में मास्को आई थी। हम लोग सड़क पर चल रहे थे। मैंने साड़ी पहनी थी, बिंदी लगाई थी तो मेरे पास एक महिला चल कर आई, इंडिया-इंडिया, मैंने कहा, एस इंडिया। मैं आवारा हूँ, सीधे उन्होंने राज कपूर का गाना गाना शुरू कर दिया।

अभी-अभी एक घटना घटी, ये तो बहुत पुरानी बात बता रही थी, बीस वर्ष पहले की। लेकिन अभी पिछले महीने की, मैं उज्बेकिस्तान आई थी, तो उज्बेकिस्तान मिएँ ताशकंद में लाल बहादुर जी का स्मारक है वहाँ पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए गई तो एक बहुत बूढ़ी महिला, बाद में पता चला कि वो 83 साल की महिला थी, तो वो आकर मेरे पास बोली, इंडिया, भारत-भारत। तो मैंने कहा, हाँ। तो पहले तो उन्होंने भी गया मैं आवारा हू, फिर शुरू हो गईं इचक दाना, बिचक दाना, दाने ऊपर दाना।

मैं बुलाकर कहा अपने एम्बेसडर को, वो चली गईं थीं कि उनके घर का पता करो कि वो कहाँ रहती हैं, उन्हें मेरी ओर से ये उपहार देकर आओ, फिर वो उपहार उनके घर भिजवाया था।

मध्य एशिया में भारत के प्रति जो एक प्यार, एक प्रेम कि भावना है वो यूँही नहीं बन गई। वो इसलिए बनी कि हमारे पारिवारिक मूल्य, हमारी संस्कृति एक दूसरे से मिलती हैं।

उन पारिवारिक मूल्यों के कारण इन देशों को भारत अपना लगता है और भारत को ये देश अपने लगते हैं।

यहाँ जो बच्चे आए हैं, जो छात्र पढ़ रहे हैं वो तो ये महसूस कर ही रहे होंगें लेकिन जो बरसों-बरस से यहाँ व्यापार के लिए आए हैं, पढ़ाने के लिए आए हैं वो भी इस प्यार को महसूस कर रहे होंगें।

मैं ये कहना चाहूँगीं कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इन देशों के साथ हमारा रिश्ता जितना ऊँचा हुआ है वो आगे और ऊँचा होता जाएगा।

अगर आप देखें तो इतने कम समय में इतनी बड़ी यात्राएं हो गईं। प्रधानमंत्री जी यहाँ आए, अभी एक दिन पहले राष्ट्रपति जी यहाँ होकर गए, मेरी ये स्वयं कि दूसरी यात्रा है। इसके अलावा हमारे बाकी अन्य मंत्रालयों के मंत्री यहाँ आए हैं।

ये बताता है कि मध्य एशियाई देश जिसमें ताजीकिस्तान भी शामिल है, ये ताजीकिस्तान हमारे लिए क्या महत्त्व रखता है, ये देश हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण देश है। और इसलिए आज यहाँ आकर जो प्रसन्नता मन में हुई है, मेरे पास शब्द नहीं हैं उसको बयान करने के लिए। मैं केवल उस एहसास को अपने साथ लेकर जा रही हूँ, क्योंकि उस एह्सास को केवल महसूस किया जा सकता है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

सोमनाथ जी, आपके प्रति बहुत-बहुत आभार। जिन बच्चों ने ये सारी प्रस्तुतियां यहाँ की हैं, उनको मेरी बहुत-बहुत बधाई, बहुत शुभकामनाएं।

एक फोटो हम जरूर इन सभी कालाकारों के साथ करना चाहेंगें। मुझे मालूम है कि सभागार में जो लोग बैठे हैं वो भी बजाए बाद में सेल्फी के लिए उमड़ें, बेहतर ये होगा कि हम लोग यहाँ बैठे हैं, एक-एक कतार के लोगों को आप बुला लें मंच पर और यहीं हम उनके साथ फोटोग्राफ ले लेंगें ताकि एक व्यवस्थित तरीके से उनको फोटो मिल जाएगी जो उनके लिए भी एक यादगार होगी।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

नमस्कार!


दुशान्बे
अक्तूबर 11, 2018


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