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ताजिकिस्तान दौरे के समय ताजिक नेशनल यूनिर्वसिटी में राष्ट्रपति का सम्बोधन

अक्तूबर 08, 2018

माननीय प्रो. नूरिद्दीन सैद,
शिक्षा एवं विज्ञान मन्त्री, ताजिकिस्तान
माननीय श्री निजोमिद्दीन जोहिदी,
प्रथम उपविदेश मन्त्री
डॉ. इमोमजोदा सैदाली, ताजिक नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित अधिशिक्षक,
माननीय प्रोफेसर गण तथा विद्यार्थियो,

भाइयो और बहनो,
सलोम और सुप्रभात!


मुझे ताजिक नेशनल यूनिवर्सिटी के इस परिसर में उपस्थित होने पर प्रसन्नता हो रही है। ज्ञान के इस परिसर ने ताजिकिस्तान के निर्माण में अहं भूमिका निभाई है और अपने दृष्टिकोण तथा प्रगति को प्रकाशित करने और निर्देशित करने की प्रक्रिया में रत है। आपका यह देश तथा मध्य एशिया, ज्ञान तथा संस्कृति के महान केन्द्र समरकन्द तथा खुजांद ने शताब्दियों से सृजनात्मकता तथा जिज्ञासा की भावना को पोषित किया है। आप उस प्रबुद्ध प्रतिभाशाली परम्परा रुड़ाकी तथा बेदिल की आवाज के सम्मानित ध्वज वाहक हैं जिससे न केवल इस क्षेत्र को बल्कि सम्पूर्ण विश्व को स्थायित्व तथा प्रेरणा प्राप्त होती है।

मैंने दो कारणों से "उग्रवाद का दमन : आधुनिक समाज के सम्मुख चुनौतियाँ" विषय पर बोलने का निर्णय लिया है। प्रथम आपके देश ने इस वैश्विक अराजकता से निबटने में सराहनीय कार्य किया है और सबके लिए शान्ति का प्रयास किया है। और विश्व को यह बात समझनी चाहिए। दूसरे, उन लोगों के मस्तिष्क में जो शान्ति, प्रेम तथा मानवता में विश्वास रखते हैं और जो घृणा, मृत्यु तथा विनाश के पोषक हैं, सर्वप्रथम आतंकवाद, अतिवाद तथा उग्रवाद के विरुद्ध संघर्ष अवश्य किया जाना चाहिए। यह एक ओर विरोधी विचारों, मानवता के विरुद्ध संघर्ष है और दूसरी ओर विश्व को विश्वास में लेने का। युवाओं से बात करना, हमारा भविष्य; तथा विद्वान, हमारे निर्देशक और पथप्रदर्शक इसीलिए आवश्यक हो जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति के रूप में मैंने 160 विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों का दौरा किया है। इससे मुझे अपने देश के युवाओं से प्राय: बातचीत करने का अवसर मिल जाता है।

मेरे प्रिय विद्यार्थियो,

हमारे दोनों देश अनेक बातों में साम्यता रखते हैं। हमारा इतिहास समावेशी तथा सहिष्णुता के मूल्यों पर आधारित है। पामीर तथा हिमालय की गोद में सभी धर्म तथा विचार पुष्पित और पल्लवित हुए। आज हमें ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो हमारी धारणाओं और हमारी एकता के ढाँचे को ध्वस्त करना चाहते हैं।

इस देश के निवासियों ने अपने मूल केन्द्र से कट्टरवाद तथा धारणा आधारित प्रतिगामी विचारों के समाप्त करने तथा दबाने के लिए अनेक बलिदान दिये हैं। इससे 1990 में न केवल आपके नवस्थापित गणराज्य के बचाया जा सका बल्कि इसने पड़ोसी मध्य एशियाई गणराज्यों की भी सुरक्षा की। हमें दृढ़ आशा है कि यहाँ ताजिक गृह युद्ध के भू-राजनैतिक महत्त्व की पर्याप्त समझ है।

भाइयो और बहनो,

आज आप अपने आस-पास जैसा देख सकते हैं कि शान्तिपूर्ण समाज पर विकासरोधी विचारों को थोपने का नवीन प्रयास किया जा रहा है। यह मानव सभ्यता की नींव के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उनके लक्ष्य जनता तथा समाज हैं जो प्रगतिशील जीवन को महत्त्व देते हैं और धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हैं।

आपके ऐतिहासिक संघर्ष और गृहयुद्ध में विजय होने के बावजूद लम्बा चलने वाला संघर्ष अब समाप्त हो चुका है। यह रोज-रोज होने वाली नृशंस हत्याओं और उन्मादी हिंसा से स्पष्ट है। इस पाप के अपराधी धर्मग्रन्थों का सहारा लेते हैं जहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। कोई भी धर्म चाहे वह हिन्दू, इस्लाम, सिख अथवा यहूदी धर्म ही क्यों न हो, एक मनुष्य द्वारा दूसरे की हत्या को उचित नहीं ठहराता है। उन सबकी एक ही भाषा है और वह है शान्ति, समरसता, दया तथा ममता की भाषा। आतंक तथा कट्टरता के विरुद्ध युद्ध किसी धर्म के विरुद्ध संघर्ष न तो माना जाना चाहिए और न हो सकता है। इसके ठीक विपरीत यह संघर्ष उनके विरुद्ध है जो ईश्वर की रचना को नष्ट करने में विश्वास रखते हैं।

हम आतंकवाद तथा कट्टरवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए राष्ट्रपति रहमान के नेतृत्व की प्रशंसा करते हैं। आप आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में कभी पीछे नहीं रहे और विश्व आपके साहस की प्रशंसा और सम्मान करता है। आपको आतंकवादियों और कट्टरपंथी विचारों से ओतप्रोत लोगों के विरुद्ध संघर्ष करना है। मृत्यु तथा विनाश की कंटीली सेज आपसे दूर नहीं है। आपको युवा शक्ति के विद्रोही बनने का प्रतिरोध करना है जो अधिकतर इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित होती है।

भाइयो और बहनो

हम भारतीय जिस विश्व में रहते हैं वह आपसे बहुत भिन्न नहीं है। आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती है! ताजिकिस्तान की तरह भारत भी आतंकवाद तथा कट्टरवाद का सामना कर रहा है। हम भी कट्टरवाद की समस्या का सामना कर रहे हैं लेकिन हमें इससे निबटने में सफलता मिली है। प्रश्न यह नहीं है कि हमने इसका सामना कैसे किया बल्कि प्रश्न यह है कि हम ऐसा करने में समर्थ क्यों हुए। मैं अपने कुछ अनुभव आपके साथ साझा करना चाहूँगा।

हमारा समावेशी समाज जहाँ सामाजिक-आर्थिक साझेदारी तथा साझा राजनीति प्रत्येक व्यक्ति को देश से जोड़ने की निहित भावना प्रदान करती है, कट्टरवाद के विरुद्ध सर्वाधिक प्रभावी उपकरण रहा है। बहुवाद, लोकतन्त्र तथा पंथनिरपेक्षता में हमारा विश्वास घृणा तथा विभाजनकारी विचारधारा पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा है। फिल्म उद्योग से लेकर क्रिकेट टीम तक तथा पेशेवर क्षेत्र से लेकर राजनीति तक भारत सभी के लिए समान अवसर तथा समान आदर की भूमि रहा है। उभरती अर्थव्यवस्था सभी की प्रगति के लिए है जो समावेशी विकास की ओर अग्रसर करती है।

हमारा समाज प्रारम्भ से ही अपने इतिहास, सभ्यता तथा संस्कृति से उपजे विचारों की शक्ति में विश्वास रखता है। सूफीवाद, मानवतावाद की हमारी पुरातन मान्यताओं ने अन्धकार तथा विकृति से हमारी रक्षा की है। आदरणीय सूफी सन्त हजरत निजामुद्दीन औलिया का आह्वान, "ईश्वर उन्हें प्रेम करता है जो मानव मात्र के लिए उससे प्रेम करते हैं और जो सर्वशक्तिमान के लिए मानव मात्र से प्रेम करते हैं।" यही विचार हमारे सामाजिक ढांचे को बाँधे रखता है।

हमें बचपन से ही एकता, सम्प्रदाय के रूप में इंसानियत, "वसुधैव कुटुम्बकम्" अर्थात विश्व एक परिवार है का पाठ पढ़ाया गया है। तब यह स्वाभाविक है कि आकर्षक होते हुए भी समस्त असत्यों के साथ विनाश की कल्पना भारतीयों के मस्तिष्क को आकर्षित नहीं करती है। हमारे जैसे विशाल देश के लिए मैं कहना चाहूँगा कि जो लोग घातक विषाणुयुक्त विचारों के साथ अपना अधिकतम समय हमें संक्रमित करने में लगा रहे हैं वे कभी सफल नहीं हो सकेंगे।

मैं अपने देश के युवाओं को कट्टरपन्थी बनने से रोकने और उसका प्रतिरोध करने में परिवार तथा शिक्षा की सकारात्मक भूमिका पर भी बल देना चाहता हूँ। आपकी भाँति ही परिवार-आधारित हमारा सामाजिक ढाँचा अतिवादी विचारों के विरुद्ध गारंटी है। हमने अपने परिवार में अत्यधिक लचीलेपन को संस्था के रूप में देखा है जिसने युवाओं को कट्टरपन्थ तथा आतंकवाद की ओर उन्मुख होने से रोका है। ऐसे अनेक मामले सामने आये हैं जिसमें अभिभावकों तथा रिश्तेदारों ने युवाओं को कट्टरपन्थ की ओर जाने पर शासन को सूचित करके उन्हें बचाया है। अपने पारिवारिक तथा सामुदायिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ करते हुए हमारे धर्मगुरुओं ने भी घृणा तथा आतंक को नकारने, निन्दा करने तथा विरोध करने में केन्द्रीय भूमिका निभाई है।

लेकिन हमें हमेशा विरक्ति के प्रति सतर्क रहना होगा। हमें अपने उपागम में निष्पक्षता तथा ईमानदारी सुनिश्चित करनी होगी। और हमें भटकने से बचाने के लिए साइबर दुनिया के प्रति सतर्क रहना होगा। निस्सन्देह यह एक चुनौती है लेकिन तकनीकी, डिजिटल फिंगर-प्रिंटिंग तथा कलनों की सहायता से हम इसमें सफल हो सकते हैं।

समाज को अस्थिर करने के लिए आतंक तथा कट्टरपन्थ की राजनीति राजद्रोहियों की सम्प्रभुता नहीं है। भारत सीमापार आतंकवाद से लम्बे समय से संघर्ष कर रहा है। यदि आपको गृहयुद्ध के दिनों की याद हो तो मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि आपको इनमें समानता दिखाई देगी। आपने अवांछित बाधाओं का सफलतापूर्वक दमन करके उन दिनों को पीछे छोड़ दिया है। हमारा घनिष्ठ मित्र अफगानिस्तान इतना सौभाग्यशाली नहीं है। भारत तथा ताजिकिस्तान दोनों को अफगानिस्तान तथा उस क्षेत्र में शान्ति तथा स्थिरता के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए।

भारत का सम्पूर्ण मध्य एशियाई गणतन्त्रों के साथ गहरा तथा विशेष ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा है। इनमें से प्रत्येक के साथ हमारे सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं। हमारी साझी विरासत तथा हमारी साझी आकांक्षाओं ने हमें एक साथ खड़ा किया है। हम अपने सुरक्षा सहयोग कार्यक्रमों को मजबूत कर रहे हैं। हमने अभी हाल में समरकन्द में भारत-मध्य एशिया संवाद का आयोजन किया है। हम शंघाई सहयोग संगठन जैसे क्षेत्रीय प्लेटफार्म के माध्यम से आतंकवाद तथा अतिवाद से निपटने के लिए एक-दूसरे से सहयोग कर रहे हैं। भारत आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष को सशक्त करने के लिए द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा बहुपक्षीय सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है।

मेरे प्रिय विद्यार्थियो,

आज प्रात: मैं राष्ट्रपति रहमान से मिला। हमने अपने आसपास की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर अपनी चिन्ताओं को साझा किया। हमने कट्टरवाद को दूर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से ताजिकिस्तान द्वारा उठाये गये कदमों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। हमने इन शक्तियों को पराजित करने की प्रतिबद्धता भी दिखाई। इस प्रयास में एक-दूसरे से काफी कुछ सीख सकते हैं, चाहे यह युवाओं की गतिशीलता हो, प्रभावी सामाजिक संवाद हो, शिक्षा प्रदान करने की बात हो या परस्पर संवाद तथा वार्ता की बात हो। हमें आतंकवादियों तथा उनके चहेतों के वित्तपोषण संजाल को समाप्त करने में परस्पर सहयोग करना चाहिए। और हमें सुरक्षा सहयोग को सशक्त करना चाहिए तथा कट्टरपन्थ को समाप्त करने के विकल्पों को साझा करना चाहिए।

व्यापार तथा आर्थिक विकास दीर्घकालीन आधार हैं जिस पर शान्तिप्रिय समाज फलता-फूलता है। आर्थिक प्रगति तथा समानता कट्टरपन्थी विचारों के प्रसार के विरुद्ध एक अवरोधक का कार्य करता है। हम ताजिकिस्तान तथा मध्य एशिया के साथ अपने सम्पर्क की कमियों को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि हमारे आर्थिक सम्बन्धों में वृद्धि हो तथा तेजी आये। वास्तव में हम आपकी प्रगति तथा समृद्धि में सहयोग करना चाहते हैं।

भाइयो और बहनो,

यहाँ आने से पूर्व मुझे भारत के दो महान सपूतों-महात्मा गांधी तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर को पुष्पांजिल अर्पित करने का गौरव प्राप्त हुआ। महात्मा गांधी ने हमें 'अहिंसा' का मार्ग दिखाया और रवीन्द्रनाथ के शब्दों ने क्षेत्रवाद को समाप्त करने की प्रेरणा दी। ये सनातन मूल्य हैं जिसे हमें अवश्य साझा करना चाहिए और इसे जीना चाहिए।

हम अपनी साझा मानवीय विरासत की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हुए अपना वक्तव्य समाप्त करना चाहूँगा। महान भारतीय कवि मिर्जा अब्दुल कादिर बेदिल जिन्हें अमू तथा सिरदारिया निवासियों द्वारा हमेशा याद किया जाता है, ने लिखा है : चिस्त इंसान कमाले कुदरते इश्क मानिये काएनातो सूरते इश्क।

अर्थात, मनुष्य क्या है? प्रेम की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति। वह ब्रह्माण्ड तथा प्रेम के चेहरे का वास्तविक अर्थ है। यदि हम स्वयं में मानवता के प्रति इस प्यार को आत्मसात करते हैं और इसे दूसरों तक पहुँचाते हैं तो शान्ति तथा प्रेम हमारे दिलों, हमारे दिमाग तथा हमारे विश्व में स्थान प्राप्त करेंगे। मैं आपके सुखद भविष्य की कामना करता हूँ।

धन्यवाद और ईश्वर आपकी रक्षा करे।

तशक्कुर व सलोमत बोशीद.

दुशांबे,
08 अक्टूबर, 2018



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