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टोरंटो में विदेश सचिव, वित्त सचिव और सचिव (पश्चिम) की प्रेस वार्ता

जून 27, 2010

सरकारी प्रवक्ताः आप सबको नमस्कार और इंतजार करने के लिए धन्यवाद।

जैसा कि आप सब जानते हैं, यहां प्रधान मंत्री जी का अत्यंत ही व्यस्त कार्यक्रम रहा। विदेश सचिव श्रीमती निरुपमा राव राष्ट्रपति श्री ओबामा के साथ हमारे प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह की बैठक के संबंध में आप सबको संक्षिप्त जानकारी देने के लिए यहां उपस्थित हैं। वित्त सचिव श्री अशोक चावला जी-20 शिखर सम्मेलन, प्रधान मंत्री जी के हस्तक्षेप और जी-20 शिखर सम्मेलन के संबंध में उनके विजन की जानकारी आप सबको देंगे।

सचिव (पश्चिम) श्री विवेक काटजू आप सबको प्रधान मंत्री जी की द्विपक्षीय बैठकों और कनाडाई समकक्ष के साथ उनकी बातचीत के बारे में जानकारी देंगे। यहां मैं आप सबका परिचय डा. हरीश खरे से भी करवाना चाहूंगा जो वित्त सचिव जी के बायीं ओर बैठे हैं। वे प्रधान मंत्री जी के मीडिया सलाहकार हैं। अब मैं विदेश सचिव महोदया को उनकी टिप्पणियों के लिए आमंत्रित करता हूं।

विदेश सचिव (श्रीमती निरुपमा राव): धन्यवाद विष्णु।

सर्वप्रथम मैं आप सबको संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा के साथ प्रधान मंत्री जी की बैठक के संबंध में जानकारी देना चाहती हूं। यह बैठक आज शाम हुई और आधे घंटे से कुछ अधिक समय तक चली। दोनों नेताओं के बीच यह बैठक अत्यंत ही सौहार्द, सद्भाव और गर्मजोशी के माहौल में हुई। बैठक में भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच विद्यमान सामरिक भागीदारी के नए क्षेत्रों पर विशेष बल दिया गया। दोनों नेताओं ने वर्तमान में संबंधों के विकास की गति पर अपना संतोष व्यक्त किया। उन्होंने दोनों देशों की सरकारों के बीच हाल में वाशिंगटन में आयोजित सामरिक वार्ता,

हाल में आयोजित भारत-अमरीका मुख्य कार्यकारी अधिकारी मंच की बैठक और संबंधों के विकास के लिए भविष्य में उपलब्ध होने वाले असीम अवसरों पर चर्चा की।

उन्होंने निर्यात नियंत्रण जैसे क्षेत्रों पर विशेष बल दिया जबकि राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि दोनों पक्षों को आगे बढ़ने के तौर-तरीकों का पता लगाने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। उन्होंने विशेषकर हाल में आयोजित मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के मंच की बैठक के आलोक में दोनों देशों के बीच व्यावसायिक संबंधों का विकास किए जाने पर बल दिया

जिसमें अनेक रोचक विचार सामने आए थे। उन्होंने इस क्षेत्र की स्थिति तथा आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रति अपने साझे संकल्प और समर्पण पर बात की और दोनों देशों को प्रभावित करने वाले आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग पर अपनी सहमति व्यक्त की।

राष्ट्रपति श्री ओबामा ने कहा कि उन्हें नवम्बर माह में होने वाली उनकी भारत यात्रा की प्रतीक्षा है। प्रधान मंत्री श्री सिंह ने कहा कि उनकी इस यात्रा के लिए व्यापक तैयारियां की जा रहीं हैं और वे इस यात्रा को अत्यंत सफल बनाना चाहते हैं। राष्ट्रपति ओबामा, श्रीमती ओबामा और उनके बच्चों का भारत में शानदार स्वागत किया जाएगा। आगे उन्होंने कहा कि उन्हें नवम्बर माह में होने वाली श्री ओबामा की भारत यात्रा की उत्सुकता से प्रतीक्षा है। धन्यवाद।

सरकारी प्रवक्ताः अब मैं वित्त सचिव महोदय को उनकी आरंभिक टिप्पणियों के लिए आमंत्रित करता हूं।

वित्त सचिव (श्री अशोक चावला): धन्यवाद। जैसा कि आप जानते हैं यह शिखर सम्मेलन जी-20 के नेताओं का चौथा शिखर सम्मेलन था। जी-20 के पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन नवम्बर 2008 में वाशिंगटन में किया गया था जब वित्तीय संकट का दौर शुरू ही हो रहा था। इस शिखर सम्मेलन में मुख्यतः वित्तीय क्षेत्र की तात्कालिक समस्याओं का समाधान करने पर विशेष बल दिया गया। अप्रैल 2009 में लंदन में आयोजित दूसरे जी-20 शिखर सम्मेलन को अरबों डालर का शिखर सम्मेलन कहा जा सकता है।

इस सम्मेलन में मुख्यतः इस तथ्य पर बल दिया गया था कि यदि निजी क्षेत्र निवेश करने से परहेज कर रहा है अथवा उसके पास संसाधनों की कमी है तो व्यय की जाने वाली राशि के लिए विभिन्न सरकारों को जोरदार तरीके से सामने आना चाहिए जिससे कि विकास की गति कायम रह सके।

सितम्बर 2009 में पिट्सबर्ग में आयोजित तीसरे शिखर सम्मेलन में उनमें से अनेक बातों को सामान्य स्थिति में लाया गया और घोषणा की गई कि जी-20 ही अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का सर्वप्रमुख मंच होगा। इसका उल्लेख मैं सिर्फ इस बात का संकेत देने के लिए कर रहा हूं

कि ऐसा न लगे कि इस प्रकार की सभी कार्यवाईयां टोरंटो शिखर सम्मेलन से ही अपेक्षित थीं। विश्व के प्रमुख नेताओं ने पूर्व में जो निर्णय लिए थे, अपने-अपने वित्त मंत्रियों और तकनीकी सलाहकारों के लिए उन्होंने जो अनुसंशाएं की थीं, यह सम्मेलन उसी के क्रम में है। इस शिखर सम्मेलन की पृष्ठभूमि के संबंध में मुख्य बातें यही हैं। इसीलिए कनाडा ने इस शिखर सम्मेलन को एक ऐसा शिखर सम्मेलन बताया है जिसमें अब तक की गई कार्यवाईयों का जायजा लिया जाएगा और आगे के उपायों की पहचान की जाएगी।

मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आपने इस अवसर पर जारी नेताओं के वक्तव्य अथवा विज्ञप्ति को देखा होगा। शीघ्र ही यह बेवसाइट पर होगी। आप इसे देख सकते हैं। फिलहाल मैं कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर संक्षेप में चर्चा करुंगा। आप समझ सकते हैं कि राजकोषीय मजबूती के साथ-साथ विकास को बढ़ावा देना ही इसका सार तत्व है। हर कोई इस तथ्य के प्रति जागरूक है कि अभी विश्व में आर्थिक सुधार के जो संकेत मिलने आरंभ हो रहे हैं उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही जी-20 के नेता इस तथ्य के प्रति भी सजग हैं कि ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता और आपको राजकोषीय मजबूती की प्रक्रिया आरंभ करनी होगी और जब तक ऐसा नहीं किया जाता तब तक विकास दर बनाए रखना एक चुनौती होगी।

कहा जा सकता है कि सदन में अधिकांश नेताओं का यही विचार था कि अभी भी विकास की प्रक्रिया अधिक महत्वपूर्ण है और इसे नजर अंदाज करना उचित नहीं होगा। आज सुबह प्रधान मंत्री जी ने जो संबोधन दिया उसमें भी मुख्यतः इसी विषय पर बल दिया गया। अपनी घोषणा में जी-20 ने सतत और संतुलित विकास के लिए रूपरेखाओं का निर्माण किए जाने की बात कही है। अगले कुछ माह के दौरान वे इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे और सियोल में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान इसमें हुई प्रगति और अलग-अलग देशों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की समीक्षा की जाएगी।

परंतु आमतौर पर जी-20 ने घोषणा की है कि उन्हें वर्ष 2013 के अंत तक अपने राजकोषीय घाटे में आधे की कमी लानी चाहिए। अधिकांश देशों ने इस तथ्य के प्रति अपनी वचनबद्धता व्यक्त की है और हम इस बात के प्रति आशस्त हैं कि वे ऐसा कर पाने में समर्थ होंगे। स्वतंत्र रूप से और यहां तक कि जी-20 द्वारा इस सर्वसम्मति पर पहूंचने से पूर्व ही हमने एक रोडमैप बना लिया था जिसमें वर्ष 2013-14 तक राजकोषीय घाटे में 50 प्रतिशत की कमी लाने की परिकल्पना की गई है।

जहां तक वित्तीय क्षेत्र में सुधारों का प्रश्न है, इस संबंध में कार्य प्रगति पर है। वित्तीय स्थिरता बोर्ड और बैकिंग पर्यवेक्षण से संबद्ध बेसल समिति इसके विनियमन, पर्यवेक्षण को और प्रभावी बनाने तथा समान रूप से महत्वपूर्ण संस्थाओं के साथ उपयुक्त कार्यकलाप करने की दिशा में कार्य कर रही है। वित्तीय संस्थानों और बैंकों पर एक प्रकार का कर लगाए जाने के प्रस्ताव ने भी जी-20 के नेताओं और वित्तीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। इसका उद्देश्य यह है कि यदि भविष्य में ऐसे वित्तीय संकट की पुनरावृत्ति होती है तो इसके समाधान पर होने वाले व्यय का वहन सिर्फ सरकारों अथवा करदाताओं द्वारा ही नहीं किया जाए।

शिखर सम्मेलन के शुभारंभ से पूर्व भी इस संबंध में विभिन्न देशों के अलग-अलग विचार थे। शिखर सम्मेलन से यह विचार सामने आया कि कुछ देश इस प्रकार की कार्रवाई कर सकते हैं जबकि कुछ देश उन्हीं कार्यवाईयों को जारी रखना चाहते हैं जिनके तहत विशेष कर लगाने की आवश्यकता नहीं होगी। नेताओं के घोषणा पत्र में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस विषय पर कोई सर्वसम्मति नहीं बन सकी। वस्तुतः इस प्रकार की सर्वसम्मति की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि विभिन्न देश की वित्तीय संरचना और उनके विनियम अलग-अलग हैं।

जहां तक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार का प्रश्न है, आप सबको जानकारी होगी कि पहले ही विश्व बैंक ने कोटे को विकासशील देशों के पक्ष में लाते हुए इस संदर्भ में कतिपय परिवर्तन किए हैं। सियोल शिखर सम्मेलन तक अंतरर्रष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा भी इस प्रकार का परिवर्तन किया जाना निर्धारित है। इसलिए कहा जा सकता है कि कार्य प्रगति पर है। हम इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि इन कार्यों को निश्चित रूप से आगे बढ़ाया जाएगा। जी-20 ने इस बात की पुष्टि भी की है।

जी-20 द्वारा एक विशेष हस्तक्षेप भी किया गया है और मेजबान राष्ट्र कनाडा ने इसे जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया है। यह हस्तक्षेप लघु एवं मझोले उपक्रमों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करने के पश्चात इस क्षेत्र के लिए एक कोष की स्थापना करने से संबंधित है। एसएमई फाइनेंसिएल चेलेंज नामक यह कोष एक स्वैक्षिक कोष होगा और इसमें विभिन्न देश और बहुपक्षीय विकास बैंक अपना अंशदान कर सकते हैं। परंतु बुनियादी तौर पर इसका अर्थ यह है कि एसएमईपी क्षेत्र से उत्पन्न सर्वोत्तम और नए विचारों के कार्यान्वयन का वित्त पोषण इस कोष के जरिए किया जाएगा।

विश्व समुदाय और जी-20 का मानना है कि इन कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए व्यापार और दोहा दौर की वार्ताओं को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना अत्यंत अनिवार्य है। बहरहाल विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं का एक अलग ट्रैक है। इस बीच जी-20 के नेताओं ने घोषणा की है कि तीन वर्षों, अर्थात वर्ष 2013 तक व्यापार के समक्ष नई बाधाओं का निर्माण नहीं किया जाएगा जिससे कि संरक्षणवादी प्रवृत्तियों को हतोत्साहित किया जा सके। उन्हें दोहा दौर के यथासंभव शीघ्र समापन की भी प्रतीक्षा है।

नेताओं के घोषणा पत्र में एक या दो नए पहलु भी थे जिसका उल्लेख मैं आपके समक्ष करना चाहूंगा। पहली बात यह है कि भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र चार्टर, इसके अनुसमर्थन और इसके पूर्ण कार्यान्वयन पर विशेष बल दिया गया है। इसके लिए नेताओं द्वारा आह्वान भी किया गया है। कुछ देशों ने यह भी महसूस किया कि अब जब जी-20 वित्तीय क्षेत्र एवं वित्तीय संकट से संबद्ध मुद्दों से आगे बढ़ रहा है तो विकास संबंधी उन मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जो न सिर्फ जी-20 के सदस्य के रूप में उदीयमान बाजार अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित हैं बल्कि जो संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से संबद्ध हैं। इसलिए जी-20 ने विकास पर एक कार्यकारी दल की स्थापना करने का निर्णय लिया है।

व्यापक तौर पर जी-20 शिखर सम्मेलन में हुए विचार विमर्शों और प्रधान मंत्री द्वारा किए गए हस्तक्षेप का सारांश यही है। धन्यवाद।

सरकारी प्रवक्ताः धन्यवाद महोदय अब मैं सचिव (पश्चिम) को उनकी आरंभिक टिप्पणियों के लिए आमंत्रित करता हूं।

सचिव (पश्चिम)(श्री विवेक काटजू): धन्यवाद विष्णु। देवियो और सज्जनो नमस्कार। काफी देर हो चुकी है। इसलिए मैं बहुत संक्षेप में बात करुंगा।

प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता के उपरांत हमारे प्रधान मंत्री ने कनाडा के प्रधान मंत्री श्री स्टीफन हार्पर के साथ अलग से मुलाकात की।

जैसा कि आप जानते हैं, वार्ता के पश्चात दोनों प्रधान मंत्रियों की उपस्थिति में कतिपय करारों पर हस्ताक्षर किए गए और तदुपरांत उन्होंने आप लोगों के साथ बातचीत की। उसके पश्चात प्रधान मंत्री जी ने कनाडा के प्रधान मंत्री श्री स्टीफन हार्पर द्वारा आयोजित रात्रिभोज में भाग लिया। वस्तुतः रात्रिभोज की मेजबानी कनाडा के प्रधान मंत्री श्री स्टीफन हार्पर और श्रीमती हार्पर द्वारा हमारे प्रधान मंत्री जी और श्रीमती गुरशरण कौर के लिए ही की गई थी।

इस सम्मेलन में प्रधान मंत्री जी ने अपना उद्घाटन वक्तव्य दिया जो निश्चित रूप से आपके पास होगा अथवा शीघ्र ही आपको उपलब्ध करा दिया जाएगा।

इसे कल परिचालित किया गया था। एक संयुक्त वक्तव्य भी जारी किया गया है जो आपके पास होगा। प्रधान मंत्री जी ने रात्रिभोज के अवसर पर भी अपना संबोधन दिया था। इस संबोधन का पाठ भी आपको उपलब्ध करा दिया गया है। अतः कुल मिला कर आपके पास जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री जी की भागीदारी के उपरांत उनकी संक्षिप्त सरकारी यात्रा के बारे में आपके पास काफी जानकारियां है। मीडिया नोट्स भी आपको उपलब्ध कराए गए हैं। इसलिए मैं इस पर और अधिक बात नहीं करना चाहूंगा।

मैं सिर्फ दो बातों को रेखांकित करना चाहूंगा। पहली बात यह है कि दोनों ही नेता दोनों देशों के संबंधों में बदलाव लाने और वार्ता प्रक्रिया को गहन बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं। प्रेस सम्मेलन के दौरान प्रधान मंत्री श्री हार्पर द्वारा की गई टिप्पणियों में आपको इसकी झलक मिली होगी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि 1970 का दशक बीत चुका है और अब हम दूसरे युग में हैं। यह एक ऐसा युग है जिसमें दोनों ही देश एक-दूसरे के लिए बेहतर तरीके से योगदान दे सकते हैं और विश्व की शांति एवं विकास में भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

चर्चा के दौरान इस संबंध में इच्छा व्यक्त की गई कि संवाद प्रक्रिया में क्षेत्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों, खासकर अफगानिस्तान को भी शामिल किया जाए जिसके संबंध में न सिर्फ भारत के अपने महत्वपूर्ण हित हैं बल्कि पिछले अनेक वर्षों से वहां कनाडा के सैनिकों की महत्वपूर्ण उपस्थिति भी है। इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि ऊर्जा क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसमें दोनों ही देश एक दूसरे के लिए योगदान दे सकते हैं। अंततः कनाडा के प्रधान मंत्री ने दोनों देशों के बीच प्रसिद्ध व्यक्तियों के समूह की स्थापना किए जाने का भी प्रस्ताव रखा।

हमारे प्रधान मंत्री जी ने इस प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि इस प्रकार के समूह की स्थापना से सभ्य समाज के बीच सार्थक संवाद को बढ़ावा दिया जा सकेगा। दोनों नेताओं ने निर्णय लिया कि दोनों देशों के अधिकारी प्रसिद्ध व्यक्तियों के इस समूह की स्थापना किए जाने के तौर-तरीकों पर चर्चा करेंगे।

मैं समझता हूं कि मुझे यहां रुकना चाहिए। यदि कोई प्रश्न है तो पूछ सकते हैं।

प्रश्नः सर्वप्रथम मैं आप सबको, खासकर मीडिया के मित्रों को इस बात के लिए मुबारकवाद दूंगा कि जी-20 का यह शिखर सम्मेलन काफी सफल रहा है और भारत वैश्विक ताकतों के और निकट आया है।

महोदया, भारत हमेशा से ही मानवाधिकारों का समर्थक रहा है परंतु क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि आजादी के लिए बलिदान देने वाले लोगों को आज अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है। मैंने पूरी सूची को देखा है। ऐसे अनेक लोग हैं जिनके विरुद्ध एक भी मामला नहीं है। आपकी सूची भी मेरे पास है। बच्चों के साथ-साथ कुछ बुजुर्ग भी हैं जो मृत्यु से पहले अपनी पैतिृक भूमि की यात्रा करना चाहते हैं। क्या आप बताएंगी कि उनकी वास्तविक मांगों को पिछली सरकारों द्वारा इतने लंबे समय तक लंबित क्यों रखा गया? भारत का नजरिया अत्यंत सकारात्मक है और हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।

इस कार्य में हमें सफलता भी मिली है। क्या आप हमें बताएंगी कि मानवाधिकारों के इस उल्लंघन पर कब रोक लगेगी और लोगों को कब न्याय मिलेगा?

विदेश सचिवः मैं बताना चाहूंगी कि इस मामले पर हमारी सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है। मुझे इस बात की जानकारी है कि लोगों के कुछ अन्य समूहों ने भी इस मामले को उठाया है। विदेश मंत्रालय ने इस मामले को गृह मंत्रालय के साथ उठाया है। फिलहाल पूरे मामले की समीक्षा की जा रही है। हम इन लोगों द्वारा किए गए अनुरोध पर विचार करने के लिए बैठकें भी कर रहे हैं। मैं इस बात के प्रति आश्वस्त हूं कि शीघ्र ही हमें इस मुद्दे का समाधान प्राप्त होगा जिसके आधार पर लोगों के इस समूह द्वारा उठाए गए मुद्दों का उत्तर दिया जा सकेगा।

प्रश्नः सर्वप्रथम मैं विदेश सचिव महोदया से एक स्पष्टीकरण चाहूंगा। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि अमरीका के साथ होने वाली द्विपक्षीय बैठकों के दौरान भारत वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण से जुड़े मामले को उठा सकता है। क्या इस विषय को कार्यसूची में शामिल किया गया था? महोदया, क्या वार्ता के दौरान इस मुद्दे को उठाया गया?

विदेश सचिवः जी नहीं, वार्ता में इस मुद्दे को नहीं उठाया गया।

प्रश्नः मैं जी-20 के संबंध में दो प्रश्न पूछना चाहता हूं। खंड संख्या 30 से अनिवार्यतः इस बात का संकेत मिलता है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों के चयन में और भी पारदर्शी प्रक्रिया अपनायी जाएगी।

दूसरा प्रश्न यह है कि इससे हमें क्या उपलब्धि प्राप्त हुई है? क्या आप संक्षेप में बता सकती हैं कि इस शिखर सम्मेलन में भागीदारी से भारत को क्या लाभ हुए हैं क्योंकि हम लोगों में से कुछ को ऐसा महसूस होता है कि जब संकट के दौरान पूरा विश्व एक था तो हमने अलग तरीका अपनाने का निर्णय लिया था।

विदेश सचिवः अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों के चयन से संबंधित प्रश्न के उत्तर में मैं बताना चाहूंगी कि पूरे विश्व से यह मांग उठ रही थी कि इन संस्थाओं के प्रमुखों और वरिष्ठ प्रबंधकों की चयन प्रक्रिया को और भी पारदर्शी बनाया जाना चाहिए, यह योग्यता पर आधारित होना चाहिए और जैसा कि पूर्व में होता रहा है,

इसका प्रतिनिधत्व किसी विशेष देश अथवा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं होना चाहिए इसलिए एक मायने में जी-20 देशों द्वारा स्वीकृत नजरिए की ही पुष्टि की गयी है जो इन संस्थानों में प्रमुख भागीदार हैं। अतः चयन प्रक्रिया से भारत सहित अन्य सभी देशों को सहायता मिलेगी।

जी-20 की दिशा और इससे भारत को प्राप्त उपलब्धियों से संबंधित दूसरे प्रश्न के उत्तर में मैं बताना चाहूंगी कि जी-20 के देश निश्चित रूप से आर्थिक विकास, क्षेत्रीय पृष्ठभूमि इत्यादि के संबंध में भिन्न हैं। इसलिए जी-20 समूह में विभिन्न देशों के विचारों में अंतर आना स्वाभाविक है। मैं यह भी बताना चाहूंगी कि आर्थिक संकट के

बाद से जी-20 की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि इसने विभिन्न देशों, इनके नेताओं, इनके वित्त मंत्रियों, इनके तकनीकीविदों, सरकारी अथवा केंद्रीय बैंको के प्रमुखों को एक मंच पर लाने में सफलता प्राप्त की है जो आपस में बातचीत करके समन्वित नीतिगत रणनीतियों का निर्माण कर सकते हैं। मेलमिलाप की इस प्रक्रिया से काफी मदद मिली है। परंतु अभी यह कार्य समाप्त नहीं हुआ है और विभिन्न देशों द्वारा अलग-अलग की जाने वाली कार्यवाईयों को जारी रखा जाना चाहिए। स्वाभाविक है कि प्रत्येक देश के लिए उसका आर्थिक हित सबसे महत्वपूर्ण होता है। सहयोग की भावना का अर्थ यह नहीं है कि विभिन्न देश अपनी-अपनी नीतियों को अन्य देशों की नीतियों के साथ समेकित कर दें।

जी-20 के भीतर समन्वय की भावना अवश्य बनी रहेगी। राजकोषीय मजबूती के लिए आवश्यक है कि विभिन्न देश इस प्रयोजनार्थ अपेक्षित उपाय करें। जिन देशों में निर्यात की बहुतायत है उन्हें ऐसी नीतियां अपनाने की आवश्यकता है जिससे घरेलू मांग में वृद्धि हो। इसके साथ ही जिन देशों का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ गया है उन्हें भी स्थानीय स्तर पर मांग में वृद्धि करनी चाहिए जिससे कि यथासंभव सर्वोत्तम संतुलन स्थापित हो सके।

पिछले कुछ शिखर सम्मेलनों में लिए गए निर्णयों के अनुसार जी-20 विनियमन के क्षेत्र में भी कार्य कर रहा है। कतिपय अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और विनियमों की परिकल्पना की गयी है

परंतु इनका प्रवर्तन, कार्यान्वयन और पर्यवेक्षण राष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा। अतः जी-20 की व्यापक रूपरेखा अपना कार्य कर रही है। मैं समझती हूं कि जी-20 ने जिस मुद्दे को उठाया है और वित्तीय समुदाय तथा बाजारों को जो संकेत दिया है वह अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।

प्रश्नः मेरा पहला प्रश्न विदेश सचिव महोदया को संबोधित है। महोदया, आपने बताया कि राष्ट्रपति श्री ओबामा और प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह के बीच हुई चर्चाओं के दौरान आतंकवाद का मुकाबला करने पर भी चर्चा हुई। क्या दोनों नेताओं के बीच सहयोग के किसी अन्य क्षेत्र पर भी चर्चा हुई? दूसरा प्रश्न श्री काटजू को संबोधित है।

क्या प्रधान मंत्री जी ने कनाडा में कार्यरत खालिस्तान समर्थक तत्वों से जुड़े मुद्दे को भी उठाया और क्या प्रधान मंत्री श्री हार्पर ने इस आशय का कोई विशिष्ट आश्वासन दिया कि कनाडाई जमीन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए किए जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी?

विदेश सचिवः आतंकवाद का मुकाबला किए जाने से संबंधित आपके पहले प्रश्न के उत्तर में मैं बताना चाहती हूं कि अपने उद्घाटन संबोधन में मैंने कहा था कि दोनों नेताओं ने इस क्षेत्र की स्थिति पर चर्चा की। इसी संदर्भ में अफगानिस्तान में स्थिरता लाने की आवश्यकता सहित अफगानिस्तान की समग्र स्थिति पर चर्चा हुई।

पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों पर भी बात हुई। हमने थिम्पु में दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों के बीच हुई मुलाकात के बाद पाकिस्तान के साथ वार्ता आरंभ करने और बातचीत को ही समाधान का सर्वोत्तम तरीका मानने की जो पहल की है उसके संबंध में श्री ओबामा का रुख अत्यंत ही सकारात्मक था। इस संदर्भ में प्रधान मंत्री जी ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है और पड़ोसियों के बीच विद्यमान अनसुलझे मुद्दों का समाधान वस्तुतः वार्ता के जरिए ही किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध निर्देशित आतंकवाद में लिप्त तत्वों द्वारा पाकिस्तानी

भू क्षेत्र का दुरुपयोग नहीं करने देने संबंधी अपनी वचनबद्धता का पालन करना चाहिए। यदि इस वचनबद्धता का पालन किया जाता है तो भविष्य में इससे भारत और पाकिस्तान के संबंध सुदृढ़ होंगे। तदुपरांत उन्होंने डेविड कोल्मेन हेडली की गतिविधियों पर चल रही जांच के बारे में भी बात की। यह सुनिश्चित करने में भारत और संयुक्त राज्य अमरीका दोनों का साझा हित है कि हेडली की पूछताछ से प्राप्त सूचनाओं को पाकिस्तान गंभीरता से ले और इनके आधार पर अपने भू क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों का उन्मूलन करने के उपाय करे। इससे संपूर्ण क्षेत्र में स्थिरता आएगी। चर्चा में मुख्यतः इन्हीं मुद्दों को उठाया गया।

सचिव (पश्चिम): आपने कनिष्क के संबंध में जो प्रश्न पूछा उसके संदर्भ में मैं आपका ध्यान प्रेस सम्मेलन में प्रधान मंत्री द्वारा दिए गए वक्तव्य की ओर आकर्षित करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात कही है। आप उसका संदर्भ ले सकते हैं।

अपने प्रेस सम्मेलन में प्रधान मंत्री जी ने खालिस्तान मुद्दे के संबंध में भी विस्तार से चर्चा की थी और उन्हीं बातों को यहां दोहराना उपयुक्त नहीं होगा। ये बातें रिकार्ड में उपलब्ध हैं।

प्रश्नः क्या कनाडा पक्ष ने कोई विशेष आश्वासन दिया है?

सचिव (पश्चिम): मैं समझता हूं कि उन्होंने ऐसा किया है। यदि मैं सही-सही स्मरण कर पा रहा हूं तो, प्रधान मंत्री जी ने कहा था कि इस संबंध में कनाडा के प्रधान मंत्री ने उनके साथ कनाडाई कानूनों के बारे में चर्चा की। प्रतिनिधिमंडल स्तरीय बातचीत के दौरान भी इस मुद्दे को उठाया गया था। यही महसूस किया गया कि कानून और अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान किया जाना चाहिए परंतु यदि यही अभिव्यक्ति उग्रवादी गतिविधियों का कारण बनने लगे तो, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी और उग्रवाद के बीच हल्का सा एक अंतर है जिस पर हमेशा नजर रखी जानी चाहिए।

प्रश्नः महोदया, आपने अभी पाकिस्तान की बात की। अभी-अभी पाकिस्तान के आतंरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक का बयान आया है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान में कुछ ऐसे लोग हैं जो हफीज सईद को लेकर कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। भारत में ऐसे लोग हैं जो पाकिस्तान के बारे में बोलते हैं और पाकिस्तान के लोग भारत के बारे में बोलते हैं। ऐसे लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता। चूंकि आजादी और अभिव्यक्ति की बात हो रही है इसलिए लोकतंत्र में इस पर रोक नहीं लगायी जा सकती।

विदेश सचिवः इसके प्रत्युत्तर में मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि हमारे गृह मंत्री ने अभी-अभी पाकिस्तान का दौरा किया है और पाकिस्तान सरकार को हफीज सईद से संबंधित हमारी चिंताओं के बारे में प्रभावी तरीके से बताया है। हमारी आशा है कि पाकिस्तान हफीज सईद जैसे व्यक्तियों के संबंध में हमारे द्वारा दी गई सूचनाओं पर पर्याप्त ध्यान देगा। पाकिस्तान का कहना है कि पाकिस्तानी कानून के तहत ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करना कठिन है फिर भी हमारा मानना है कि पाकिस्तान इनकी गतिविधियों पर कुछ न कुछ नियंत्रण तो लगा ही सकता है क्योंकि उनकी गतिविधियां दोनों देशों की मैत्री के हित में नहीं है।

प्रश्नः महोदय, एक स्पष्टीकरण चाहता हूं। क्या नई पूंजी रूपरेखा को समाप्त किया जा रहा है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र नए पूंजी ढ़ाचों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के संबंध में निर्णय लेने के लिए मुक्त होगा?

वित्त सचिवः जहां तक मुझे स्मरण है, विज्ञप्ति में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि पूंजी मानदण्डों को नियत बनाया जाएगा, पूंजी मानदण्डों में इस बात का संकेत होगा कि पूंजी के रूप में किन-किन बातों को शामिल किया जा सकता है और कुछ संक्रमण काल उपलब्ध कराते हुए वर्ष 2012 के अंत तक इसे कार्यान्वित किया जाएगा। इसका बुनियादी उद्देश्य यह है

कि वित्तीय संकट के दौरान पूंजी की बहुतायत की समस्या का समाधान किया जाए और भविष्य में इसे किसी प्रकार की समस्या बनने से रोका जाए। इस संबंध में वित्तीय स्थिरता बोर्ड के जरिए विनियमन प्रक्रिया स्थापित करने हेतु कार्रवाई की जा रही है।

प्रश्नः महोदय मैं दो प्रश्न पूछना चाहता हूं । जी-20 की अंतिम घोषणा के अतिरिक्त विश्व के लिए आर्थिक नीतियों पर प्रधान मंत्री जी के दृष्टिकोण को किस सीमा तक परिलक्षित किया गया है? घोषणा के पैराग्राफ 28...(अस्पष्ट)... में उल्लेख किया गया है कि विकासशील देशों को 5 प्रतिशत की अतिरिक्त हिस्सेदारी दी जानी है।

यह कार्य अभी तक क्यों रुका हुआ है? मुझे स्मरण है कि पिछले वर्ष पिट्सबर्ग में इस बात पर सहमति हुई थी कि अगले शिखर सम्मेलन में 5 प्रतिशत की अतिरिक्त हिस्सेदारी विकासशील देशों को प्रदान की जाएगी। अब आप कह रहे हैं कि इस संबंध में अभी और कार्य किए जाने हैं। यह कार्य किस कारण से रुका हुआ है? क्या अभी यूरोपीय संघ की सहमति प्राप्त नहीं की जा सकी है?....(अस्पष्ट)...

वित्त सचिवः जहां तक भारत का संबंध है और जहां तक हमारे प्रधान मंत्री जी का संबंध है, हम न सिर्फ इस शिखर सम्मेलन में बल्कि इससे पूर्व होने वाली चर्चाओं में और इससे पहले के शिखर सम्मेलनों में तीन मुख्य मुद्दों पर विशेष बल देते रहे हैं।

पहला मुद्दा यह है कि विकास की गति को रोकी नहीं जानी चाहिए क्योंकि यह अभी भी नाजुक बनी हुई है। ऐसा संकेत नहीं जाना चाहिए कि अब विश्व आर्थिक संकट के चंगुल से बाहर आ गया है और प्रोत्साहन पैकेजों को वापिस ले लिया जाए। यदि ऐसा किया जाता है तो यह आमतौर पर सभी देशों के लिए और खासकर विकासशील देशों के लिए उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए इस मुद्दे पर विशेष बल दिया गया और इसे विज्ञप्ति में परिलक्षित भी किया गया। विकास और राजकोषीय मजबूती के बीच तुलना की जाए तो विकास को ही अधिमानता दी जानी चाहिए।

दूसरी बात यह है कि भारत और

अन्य उदीयमान अर्थव्यवस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार पर विशेष बल दे रहीं हैं। विश्व बैंक से संबंधित एक कार्य पूरा कर लिया गया है। अगले पांच से छह महीनों में दूसरे भाग को भी पूरा कर लिया जाएगा। मैं आपको बिल्कुल ईमानदारी से और स्पष्ट तरीके से बताना चाहता हूं कि यह एक ऐसा कार्य है जिसकी हम सभी प्रशंसा करेंगे। जब आप कहते हैं कि पांच प्रतिशत का कोटा एक पक्ष से दूसरे पक्ष को स्थानांतरित किया जा रहा है तो इस प्रक्रिया में कुछ ऐसे देश भी होंगे जिन्हें नुकसान होगा। कुछ देशों के मताधिकार में कमी आएगी। इसलिए स्पष्ट है कि कुछ देश इसका विरोध भी करेंगे।

इस प्रक्रिया में विलंब करने के प्रयास भी किए जा सकते हैं। ये देश कुछ बाहरी एवं अन्य मुद्दों को उठाकर एक समग्र पैकेज की मांग करते हुए यह भी कह सकते हैं कि यदि आप कोटे का स्थानांतरण चाहते हैं तो हमें भी अमुक चीजें चाहिए। इसके फलस्वरूप शासन में सुधार अथवा वित्त पोषण के तौर-तरीकों में बदलाव इत्यादि की भी मांग की जा सकती है। इसलिए कहा जा सकता है कि इस संबंध में बातचीत का दौर जारी है। परंतु नेताओं का अधिदेश बिल्कुल स्पष्ट है।

इससे पूर्व जनवरी 2011 की समय सीमा निर्धारित की गयी थी। अब इसे आगे बढ़ाकर नवम्बर 2011 कर दिया गया है जिससे कि सियोल शिखर सम्मेलन तक ठोस डेलिवरेवल तैयार हो सके। हमें आशा है कि ऐसा होगा।

तीसरी बात, जो हमारे विचार में और अधिकांश देशों के विचार में अत्यंत महत्वपूर्ण भी है, यह है कि हमें व्यापार से संबद्ध एक बहुपक्षीय करार संपन्न करना होगा क्योंकि प्रभावी व्यापार व्यवस्था से अनेक आर्थिक एवं वित्तीय समस्याओं को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था कुछ समय से कार्य भी कर रही है।

आप जानते होंगे कि इसे दोहा विकास दौर कहा जाता है। इसे और भी न्याय संगत तथा विकासशील देशों के पक्ष में माना जाता है। स्पष्ट है कि जी-20 इन कार्यकलापों के लिए प्रमुख मंच नहीं है। परंतु यदि जी-20 इसके लिए दबाव डाले तो ऐसा संभव हो सकता है। यही तीन बातें हैं जिन पर प्रधान मंत्री जी और हम लोग विशेष ध्यान दे रहे हैं। इन क्षेत्रों में कुछ प्रगति भी हुई है। आगामी महीनों में और प्रगति होगी।

सरकारी प्रवक्ताः सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

(समाप्त)

टोरंटो
27 जून, 2010



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