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चेन्नई अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान विदेश सचिव द्वारा मीडिया ब्रीफिंग का प्रतिलेख (11अक्तूबर, 2019)

अक्तूबर 12, 2019

आधिकारिक प्रवक्ता, श्री रवीश कुमार : मित्रों, नमस्कार और चेन्नई में द्वितीय भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के बारे में इस विशेष ब्रीफिंग में आपका स्वागत है। हमें विलंब हुआ है, जो हमारे कारण से नहीं है, बल्कि आप जानते हैं कि रात के भोज पर चर्चा निर्धारित समय के बाद तक चलने के कारण हमें विलंब हुआ है और हम उसके लिए माफी मांगते हैं।

मेरे साथ भारत के विदेश सचिव श्री विजय गोखले हैं। मेरे साथ संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया), श्री नवीन श्रीवास्तव भी हैं। विदेश सचिव प्रारंभिक टिप्पणी देंगे लेकिन कृपया यह समझने का प्रयास करें कि यह बातचीत अभी चल रही है, इसलिए आज हम किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे। हम वार्ता समाप्त होने के बाद कल प्रश्नों के उत्तर देंगे।

विदेश सचिव, श्री विजय गोखले : रवीश आपका धन्यवाद और देवियों और सज्जनों एक बार पुनः विलंब के लिए मैं माफी माँगता हूँ। प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चर्चा की है और उन्होंने लगभग पांच घंटे का समय एक साथ बिताया है। अधिकांश समय उनकी बातचीत एक-दूसरे से होती रही, सिवाय आधे घंटे के सांस्कृतिक कार्यक्रम के। मुझे विश्वास है कि आप सभी ने उस दौरे के दृश्य देखे हैं जिसमे प्रधानमंत्री उन्हें मैमल्लापुरम में विश्व विरासत स्थल पर लेकर गए थे और इसके लिए मैं तमिलनाडु की राज्य सरकार की प्रशंसा करना चाहता हूं। प्रधानमंत्री ने स्वयं राज्य सरकार की उसके उत्कृष्ट प्रबंधों के लिए प्रशंसा की है।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने स्वयं यह भी कहा है कि वे हवाई अड्डे पर उनके स्वागत और चेन्नई में प्रवास के दौरान उनके लिए की गई व्यवस्थाओं से अभिभूत हैं।

जैसाकि आपने देखा है, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मैमल्लापुरम में तीन अलग-अलग स्थलों का भ्रमण किया था और यह दोनों राजनेताओं द्वारा आयोजित दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों में बनाए गए व्यक्तिगत संबंध को दर्शाते हैं जो पिछले साल अप्रैल में और दूसरा, जो अभी चल रहा है और 2014 में प्रधानमंत्री के सत्ता में जाने के बाद से उनकी 17 अन्य बैठकों में हुए हैं।

स्मारकों के उस दौरे के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ने भारत के दक्षिणी भाग में ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंधों की बात की, विशेषकर पल्लव और चोल राजवंशों के अंतर्गत तमिलनाडु और चीन के पूर्वी तट विशेष रूप से फ़ुज़ियान प्रांत के बीच ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंधों की बात की। उन दोनों ने फ़ुज़ियान में क्वांज़ोउ बंदरगाह शहर का उल्लेख किया, जहां हाल ही में तमिल शिलालेख और वास्तुकला के अवशेष 12 वीं सदी में तमिल व्यापारियों द्वारा संभावित एक मंदिर का निर्माण दर्शाते है, की खोज की गई है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी है। दोनों नेताओं ने चर्चा की है कि हम अपने द्विपक्षीय संबंधों के इस पहलू में वास्तव में ज्ञान को कैसे बढ़ा सकते हैं। बोधि-धर्म का उल्लेख था जो भारत का तमिलनाडु तट छोड़कर समुद्र के रस्ते चला गया था और चीन और जापान में जेन बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

प्रधानमंत्री ने विश्व विरासत स्थल के महत्व के बारे में भी बताया। उन्होंने अर्जुन की तपस्या के बारे में बताया जो हमारे राष्ट्रीय खजाने में से एक है। प्रधानमंत्री ने रेखांकित दार्शनिक लोकाचार को समझाया जो यह था कि मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे के साथ सद्भाव में रहते हैं और इस विशेष स्मारक पर नक्काशियां मनुष्य और प्रकृति के बीच सद्भाव को प्रतिबिंबित करती हैं और इसी तरह वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग को गणेश रथ के पास ले गए। उन्होंने बताया कि यह एक मंदिर है जहां पल्लव राजवंश के तहत इसके निर्माण के 1300 साल बाद भी यह हमारी जीवित संस्कृति का हिस्सा है और हमारी जीवित सभ्यता, पूजा आज भी इस मंदिर में होती है। चीन की तरह भारत की एक दीर्घ और सतत इतिहास की एक सभ्यता है।

देवियों और सज्जनों, मुझे विश्वास है कि आपने सांस्कृतिक कार्यक्रम को जीवंत देखा होगा। हम कलाक्षेत्र द्वारा किए गए काम की अत्यंत सराहना करते हैं जिसमे सभी कलाकारों ने नृत्य और संगीत में अपनी प्रस्तुतियां दी। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस प्रस्तुति से अत्यंत प्रसन्न थे और उन्होंने फोटो खेंची, कलाकारों से बात की और उन्हें बधाई दी।

भोजन के समय वास्तव में 150 मिनट अर्थात मोटे तौर पर ढाई घंटे से अधिक समय तक बातचीत हुई और यह चर्चा के लिए निर्धारित समय से अधिक था। चर्चा बहुत मुक्त खुली और सौहार्दपूर्ण परिवेश में हुई। इस समय दोनों नेताओं ने एक साथ बातचीत की। दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल वास्तव में एक अलग स्थान पर खाना खा रहे थे।

दोनों राजनेताओं ने अपने-अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोणों की प्राथमिकताओं पर विस्तार से चर्चा की। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनके दूसरे कार्यकाल के लिए पुनः निर्वाचित होने पर उन्हें आर्थिक विकास का जनादेश मिला है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह स्वीकार करते हुए कि प्रधानमंत्री को जनादेश मिला है, कहा कि वे अगले साढ़े चार वर्षों के दौरान सभी मुद्दों पर प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करेंगें।

उन्होंने अन्य विकासात्मक प्राथमिकताओं के बारे में भी बात की। विशेष रूप से व्यापार से संबंधित मुद्दों पर, आर्थिक मुद्दों पर, निवेश के क्षेत्रों को चिन्हित करने का प्रयास करने पर कुछ चर्चा हुई थी जिसे दोनों देश प्रोत्साहित कर सकते हैं और साथ ही व्यापार की मात्रा और व्यापार मूल्य को कैसे बढ़ा सकते हैं, पर भी चर्चा हुई। स्पष्ट रूप से, विद्यमान व्यापार घाटे का और असंतुलित व्यापार का मुद्दा शामिल है।

कुछ अन्य विषयों में आतंकवाद के कारण दोनों देशों के सामने चुनौतियां शामिल थीं। एक अभिस्वीकृति थी कि दोनों देश बहुत जटिल हैं, वे बहुत विविध हैं। दोनों राजनेताओं ने कहा कि ये बड़े देश हैं और कट्टरवाद दोनों के लिए चिंता का विषय है और दोनों देश एक साथ मिलकर इस दिशा में काम करेंगे कि कट्टरवाद और आतंकवाद हमारे बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय, बहु-धार्मिक समाज के हमारे तने-बाने को प्रभावित न कर सकें। दोनों राजनेताओं की एक सामान्य भावना थी कि यह एक आम चुनौती है कि इसका हमें सामना करना है और इसके लिए हम एक साथ काम करने करेंगे और इसे दूर करेंगे।

मुख्य तौर पर आज की चर्चा राष्ट्रीय दृष्टिकोण और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के तरीके पर केंद्रित थी। कल की चर्चा वे एक दूसरे के साथ करेंगें जिसमे वे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर, क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, हालांकि निश्चित रूप से दोनों राजनेता अन्य सभी मुद्दों पर भी चर्चा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

देवियों और सज्जनों, मेरे पास आपके साथ साझा करने के लिए आज इतना ही है क्योंकि वार्ता अभी भी चल रही है और मैं दोनों पक्षों की गोपनीयता का सम्मान किया है और मुझे आशा है कि अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के अंत में कल मैं दोनों राजनेताओं ने किन मुद्दों पर चर्चा की है उसके बारे में अधिक से अधिक विस्तार में साझा करने में सक्षम हो जाउगां।

धन्यवाद।

आधिकारिक प्रवक्ता, श्री रवीश कुमार : आप सभी का धन्यवाद।
(समापन)



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