बिजनेस स्टैण्डर्ड : वर्दा भट
विदेशी फिल्मों के शूटिंग दलों के द्वारा वर्ष 2009-10 की अवधि में भारत में फिल्मांकन करने हेतु किये गये अनुरोधों की संख्या 10 से बढ़कर वर्ष 2010-11 में बढ़कर 28 हो गयी है।
इथान हंट (टाम क्रूज द्वारा अभिनीति) अपनी आई-8 बी एम डब्ल्यू गाड़ी में मुम्बई की गलियों में अपनी आने वाली फिल्म मिशन इम्पासबल 4 के लिए परिभ्रमण करते हुए प्रेत का प्रोटोकॉंल कर रहे थे। गत सप्ताहंत में अभिकर्ता किसी हत्या के मिशन पर नहीं था बल्कि वह एक उभरती
अर्थ व्यवस्था में तेजी से बढ़ते दर्शकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए आया था।
अंतिम गणना के 22 फिल्मों में जेम्स बाण्ड, क्रिस्टोफर नोलन, डार्क नाइट राइजेज (बैट्समैन की अगली फिल्म), अंग ली की 3 डी फिल्म लाइफ ऑंफ पाइ, सिंगुलर्टीएण्ड जॉंन माडेन की द बेस्ट इक्जोटिक मैरीगोल्ड हाँटेल आदि सम्मिलित हैं जिन्हें सरकार ने यहां फिल्मांकन
किये जाने की अनुमति प्रदान की है।
‘‘भारत में फिल्मांकन करने के बहुत सारे निर्णय पटकथा पर आधारित हैं परन्तु अनेकों फिल्म निर्माता घरानों ने भारत में इसलिए फिल्माकंन को प्राथमिकता दी है क्योंकि यह वैश्विक अर्थ व्यवस्था में एक उल्लेखनीय भूमिका के खिलाड़ी के रूप में तथा साथ ही साथ एक
मनोरंजन उद्योग के रूप में उभर रहा है, मोशन पिक्चर एसोसियेशन जो भारत में 6 हाँलीवुड स्टुडियों का एक छत्र संगठन है'', के प्रबंध निदेशक श्री उदय सिंह ने कहा था।
तत्पश्चात भारत में फिल्मांकन के लिए विदेशी फिल्मों के दल से वर्ष, 2008-10 की अवधि में प्राप्त किये गये 10 अनुरोधों की संख्या बढ़कर 2010-11 में 28 हो गयी थी, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा था जिसे अभी भी वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए
ऑंकड़े का संग्रह करना है क्योंकि सरकार के पास एक दर्जन प्रस्ताव लम्बित हैं।
यहां पर आधारित जिन फिल्मों को ऑंस्कर पुरस्कार प्राप्त हुआ था उसमें डैनी बोयल की स्लमडॉंग मिल्यनेर, जूलिया रॉंबर्ट द्वारा अभिनीत ईट प्रे लव तथा वाल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर डैनियल पर्ल जिसका करॉंची में अपहरण हुआ था, पर आधारित फिल्म द माइटी हार्ट आदि
सम्मिलित हैं।
उद्योग के अधिकारियों के अनुसार भारत में हॉंलीवुड के बाजार का आकार लगभग 850 से 900 करोड़ रुपयों का है जो बाक्स आँफिस के संपूर्ण राजस्व में 10 से 12 प्रतिशत का योगदान करता है।
बिजनेस स्टैण्डर्ड को दिये गये हालिया साक्षात्कार में पैरामाउण्ट पिक्चर के अध्यक्ष श्री एण्ड्रू क्रिप्स ने कहा था कि 60 प्रतिशत राजस्व संयुक्त राज्य के बाहर से आता है यही प्रमुख कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में जो कुछ घटित हो रहा है उस पर
व्यापक मात्रा में ध्यान दिया जा रहा है।
यह मात्र रिलीज के दिन और उसकी तिथि नहीं है (विश्व व्यापी रिलीज एक साथ होता है) और न ही प्रिन्ट की और अधिक संख्या बढ़ायी जाती है। बढ़ते बाजार का लाभ उठाने के लिए उत्तरी अमेरिका में फिल्म के प्रथम प्रदर्शन से कुछ सप्ताह पहले स्टुडियो फिल्मों को रिलीज
करते हैं। इस वर्ष में भी यहां पर तीन पिक्चरें रिलीज की गयीं थी जिसमें प्रथम फिल्म सोनी पिक्चर्स के ‘एडवेंचर आँफ टिनटिन' और पैरामाउण्ट पिक्चर्स की ‘ट्रांसफार्मर्स III' डार्क आँफ द मून तथा ‘मिशन इम्पासबुल 4 : घोस्ट प्रोटोकॉंल' आदि सम्मिलित हैं।
‘‘हमारे अनुसंधान दर्शाते हैं कि वर्ष 2010 की अवधि में भारत में 75 विदेशी फिल्में रिलीज की गयी थीं जिसके संग्रह में गत वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी'' एक मल्टीप्लेक्स के कर्मी ने बताया था।
कुछ वर्षों पूर्व उभरे ब्राजील, रूस, चीन जैसे बाजार सर्वोच्च दस में से नहीं थे। आज चीन विदेशी फिल्मों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार बन गया है यद्यपि यहां के वितरण पर कुछ निश्चित प्रतिबंध हैं। चीन में ट्रांसफार्मर्स 2 ने बाक्स ऑंफिस पर 65 मिलियन अमरीकी डॉंलर का
संग्रह किया था।
इसकी झलक चीन और रूस जैसे देशों में हॉंलीवुड फिल्मों की बढ़ रही फिल्मांकन की संख्या से भी मिलता है। वर्ष, 2006 में मिशन इम्पासबुल 3 जिसका फिल्मांकन व्यापक रूप से चीन में किया गया था और इसका वैश्विक प्रीमियर शंघाई में हुआ था यहां तक कि चौथी किस्त का
फिल्मांकन रूस, भारत और यू ए ई में भी किया गया था।
‘‘हम इस बाजार की तुलना कुछ वर्ष पूर्व रूस, चीन, ब्राजील से किया करते थे। हमने उन बाजारों को एक छोटी सी अवधि में विस्तार लेते हुए देखा था। अब रूस हमारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 6वां सबसे बड़ा क्षेत्र है'' क्रिप्स ने आगे कहा था।
यद्यपि, प्रत्येक व्यक्ति भारत में अचानक हॉंलीवुड फिल्मों के बढ़ते प्रिन्ट के बारे में उत्साह से भरा हुआ है परन्तु जिसकी गणना नहीं की गयी है वे मात्र बड़े बैनरों की फिल्में हैं जिन्हें भारत मे व्यापक रूप से रिलीज किया गया था। अन्य सभी सफल फिल्मों में
यहां तक कि ऑंस्कर टैग वाली ‘किंग्स स्पीच और ब्लैक स्वान' जैसी फिल्में भी 70 से 100 प्रिन्ट्स के आस-पास तक सीमित थीं।
देश के जनसंख्या के स्तर को देखते हुए यह स्पष्ट हैं कि खपत में वृद्धि हो रही है और भारत को पश्चिमी मनोरंजन की सफलता के लिए एक परिपक्व बाजार बनाने की चाहत बढ़ रही है।
(व्यक्त किये गये उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)