टाइम्स आँफ इण्डिया के माध्यम से आई ए एन एस
यह एक पोर्टल के लिए था जिसकी तुलना विभिन्न ई-वाणिज्यिक वेबसाइट से की गयी थी परन्तु तुलना किये जाने के लिए वे पर्याप्त नहीं थीं। अत: फिलिपकार्ट की उत्पत्ति हुई जिसने यह सुनिश्चित किया कि ऑनलाइन खरीददारी भारत में पुन: पहले जैसी कभी नहीं होगी।
एक दो भ्रूणीय सदस्य से एक 4,500 सदस्य कंपनियों तक की फिलिपकार्ट कहानी मात्र एक विलक्षण सफलता की कहानी नहीं है बल्कि यह मस्तिष्क को जड़वत बना देने वाली एक संख्या है। उससे कहीं अधिक यह उपभोक्ताओं के अनुभवों को पुनर्परिभाषित करने और ऑंनलाइन खरीददारी के आलस्य
को भंग करने के बारे में है।
वर्ष 2007 में सचिन और बिन्नी बंसल द्वारा इसका शुभारम्भ किया गया था जो दोनों ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (आई आई टी-दिल्ली) से हैं और जिनका बंगलूरू में आधारित अमेजाँन के साथ पूर्व का अनुभव है, जो एक ऐसी कंपनी है जहां से प्रतिदिन 30,000 वस्तुओं
को जहाजों द्वारा भेजा जाता है।
अथवा अन्य शब्दों में प्रति मिनट 20 उत्पाद भेजे जाते हैं।
‘‘हम प्रतिदिन 2.5 करोड़ रुपयों (5 मिलियन अमरीकी डॉंलर) की बिक्री का समायोजन करते हैं। हमारा वृद्धि दर तिमाही दर तिमाही 100 प्रतिशत का है'' फिलिपकार्ट के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री सचिन बंसल ने कहा था।
परन्तु इसका दिलचस्प पक्ष यह है कि फिलिपकार्ट का लगभग 60 प्रतिशत आदेश का वितरण नकद अथवा कार्ड पर होता है।
‘‘भारतीय उपभोक्ता पश्चिम की तुलना में ऑंनलाइन खरीददारी के बारे में अत्यधिक सतर्कता बरतते हैं। वे क्रेडिट कार्ड के विवरण प्रकट करने में अनिच्छुक रहते हैं। वितरण पर नकद भुगतान की सेवा, परम्परागत उपभोक्ताओं की एक बहुत बड़ी संख्या को ऑंनलाइन खरीददारी करने
की ओर मोड़ने में सहायक सिद्ध हुई है'' उन्होंने आगे कहा था।
इस मानक ने नये उपभोक्ताओं के संपूर्ण आधार के तालों को खोल दिया है जो अभी तक प्लास्टिक धन के लाभों से अवगत नहीं थे अथवा वे लोग जो प्रौद्योगिकीय चूक से असहाय थे।
‘‘मैं कभी भी नहीं समझ पाया था कि ऑंनलाइन कार्ड द्वारा भुगतान कैसे किया जाता है। मैं अधिकतम ए टी एम का उपयोग कर सकता हूँ। मैं कामना करता हूँ कि और अधिक वेब साइट वितरण पर नकद भुगतान के विकल्प को अपनायेगी'' एक स्कूल अध्यापिका स्नेहा आनंद कहती हैं।
टेकनोपाक की वरिष्ठ उपाध्यक्षा (फुटकर) सुश्री सोनल नागिया, फिलिपकार्ड की सफलता का श्रेय ‘‘इसके द्वारा प्रदान किये जा रहे उच्च कोटि के उपभोक्ता अनुभव'' को जाता है।
‘‘ठीक ब्राउजिंग से लेकर वितरण तक आप अपने आदेश का पीछा कर सकते हैं, आप किसी पुस्तक के लोकार्पण से पूर्व भी उसका क्रय आदेश दे सकते हैं, अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं, यहां तक कि उपभोक्ता सेवा भी बहुत सशक्त है कोई भी मुद्दा उठायें उसका दक्षतापूर्ण समाधान
किया जाता है'' सुश्री नागिया ने कहा था।
श्री सचिन आगे जोड़ते हुए कहते है कि ‘‘जब हमने शुरुआत की थी तब ई-वाणिज्यिक वेबसाइटों द्वारों प्रदान किये गये उपभोक्ता अनुभव औसत से बहुत नीचे थे। हमारा उद्देश्य इसका समाधान निकालने का था। हम अनुभव करते हैं कि ये उपभोक्ताओं की संतुष्टि पर इसका ध्यान केन्द्रित
है और उपभोक्ताओं के अनुभव का स्वामित्व हमारे पक्ष में कार्य कर रहा है''।
उच्च कोटि के उपभोक्ता सेवा बावजूद भी फिलिपकार्ड का सबसे बड़ा ड्रा संभवत: इसकी मूल्यों में प्रदान की जा रही बहुत बड़ी छूट है जिसके कारण अधिकॉंश ऑंनलाइन स्टोर जलते हैं।
‘‘मैं हारुकी मूराकामी की नयी पुस्तक ‘आई क्यू 84' पर हाथ रखने की प्रतिक्षा कर रहा था परन्तु यह बहुत अधिक महंगी 1000 रुपये की थी। फिलिपकार्ड ने इस पर सीधा 30 प्रतिशत का छूट दिया और मुझे यह 700 रुपये में मिल गयी थी'' दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा मधुरा
विश्वकर्मा कहती हैं।
यद्यपि सभी पुस्तक विक्रेताओं को प्रकाशकों से ऊपरी खर्च से संबंधित 50 से 60 प्रतिशत तक छूट मिलती है, ऑंनलाइन स्टोरों के अनगिनत नैतिक गुण फिलिपकार्ट को छूट के रूप में बचत पर आगे निकलने के लिए सक्षम बनाता है।
फिलिपकार्ट ने पुस्तकों के साथ शुरुआत की थी परन्तु अब यह 12 उत्पादों की श्रेणियों में व्यापार करता है।
कंपनी के पास लगभग 11.5 मिलियन शीर्षक हैं जो ‘‘हमें भारत में पुस्तकों का विशालतम् फुटकर व्यापारी बनाता है। ऑंकड़ों के अनुसार ऑंनलाइन पुस्तक बाजार का 80 प्रतिशत भाग हमारे पास है'' श्री सचिन बंसल कहते हैं।
अत: क्या इस रुख का अर्थ आँफलाइन पुस्तक विक्रेताओं का विनाश है ? "नहीं," बहरीसन्स के श्री अनुज बहरी का मत है।
‘‘सह अस्तित्व बनाये रखने के लिए हरेक के पास एक बड़ा बाजार है। फिलिपकार्ट के बावजूद भी बाजार संपूर्ण रूप से भिन्न है 20 से 25 आयु वर्ग के युवा लोगों का समूह अपने लिए पुस्तकें उनसे क्रय करता है। उनके व्यवसाय का कुछ 80 प्रतिशत टीप-टाप साहित्य है। अधिक संवेदनशील
और परिपक्व पाठकगण सदैव ही पुस्तक भण्डारों पर जाते हैं'' श्री बहरी ने कहा था।
गुड़गॉंव में आधारित टेक्नोपैक की सुश्री नागिया का इस पर मतभेद है। ‘‘परम्परागत पुस्तक भण्डारों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पीड़ित होना पड़ेगा और इसी प्रकार का रुख व्याप्त है''।
उनका मत है कि ‘‘इंटरनेट तक बढ़ती पहुँच, आईपैड की बहुतायत, स्मार्ट फोन और परिष्कृत प्रौद्योगिकी जो उत्पादों के 3डी दृश्य प्रदान करता है आदि की वृद्धि को देखते हुए समय आ गया है जब निर्धन उपभोक्ता परिसम्पत्तियों के मूल्यों में वृद्धि कर रहे हैं जिसके कारण
सभी का रुख डिजिटल वाणिज्य की ओर बदलेगा''।
अमेजॉंन ऑंनलाइन फुटकर व्यापार को इस क्षेत्र का एक बहुत बड़ा शार्क माना जा रहा है जो पहले से ही भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है क्या वह फिलिपकार्ट के सिकुड़ते भाग्य में कुछ परिणाम लायेगा ?
‘‘नहीं भारत एक बहुत बड़ा बाजार है यहां पर और अधिक ई-फुटकर विक्रेताओं के लिए बहुत अधिक अवसर है'' सुश्री सोनल कहती हैं। यद्यपि, सुश्री बहरीएक धड़कते खतरे का अनुभव करती हैं। ‘‘फिलिपकार्ट का जादू इसलिए चल रहा है क्योंकि वह छूट देता है। अमेजॉंन व्यापक छूट प्रदान
कर सकता है क्योंकि वह बड़ी कंपनी होने के नाते बड़े घाटे झेल सकता है। वह उसकी प्रगतिशीलता को परिवर्तित कर देगा'' उन्होंने कहा था।
बाजार में पहले से ही इनफीबीम, नापतोल और लेट्सबाय जैसे खिलाड़ी विद्यमान हैं। भारत के एसोसियेटेड चेम्बर्स आँफ कॉंमर्स एण्ड इण्डस्ट्री (एसोचैम) द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में ऑंनलाइन फुटकर व्यापार में वृद्धि वर्ष, 2011 के 20 बिलियन रुपयों
की तुलना में वर्ष 2015 तक 70 बिलियन रुपयों (1.3 बिलियन अमरीकी डाँलर से अधिक) की हो सकती है, क्योंकि इंटरनेट तक पहुँच में सुधार हो रहा है।
(व्यक्त किये गये उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)