आई ए एन एस
32 वर्षीया इराकी महिला अमीरा हुसैन का जीवन बिस्तर तक सीमित था जिसके शरीर की अधिकॉंश संधियों का गंभीर गठिया रोग के कारण ह्रास हो गया था परन्तु भारत की राष्ट्रीय राजधानी में दो सप्ताहों के अंदर चार संधियों को शल्य क्रिया के द्वारा परिवर्तित किये जाने के
बाद अब उसमें आशा जगी है।
अमीरा (परिवर्तित नाम) किशोर असाध्य गठिया (जे सी ए) से पीड़ित हैं जो गठिया रोग का एक असामान्य प्रकार है जिसमें किशोर अवस्था में ही लोगों के संधि प्रभावित हो जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप संधियों और अस्थियों को गम्भीर क्षति पहुँचती है।
‘‘ये विकार अपेक्षाकृत असामान्य है जिसका यदि समय पर पहचान का निदान नहीं किया गया तो यह गंभीर अपंगता का कारण बन सकता है और किसी भी युवा व्यक्ति को पंगु बना सकता है'', अपोलो चिकित्सालय के अस्थि विभाग में वरिष्ठ परामर्शदाता और संधि परिवर्तन के शल्य चिकित्सक
डॉ0 वैश्य ने अमीरा की चिकित्सा की है, आई ए एन एस ने बताया था।
रोगी में नितम्बों, हाथों, कुहनियों, कलाईयों और घुटनों में गत 22 वर्षों से अनेक संधियों में पीड़ा होने का एक इतिहास था। गंभीर पीड़ा कड़ेपन और संधि विकार का अर्थ था कि वह अपने मौलिक क्रिया-कलापों जैसे चलना और यहां तक कि बैठना भी नहीं कर सकती थीं।
‘‘उनकी संधियों की स्थिति इतनी खराब थी कि उन्होंने अकेले चलना छोड़ दिया था वे यहां तक कि अपने नितम्ब संधियों में विकार के कारण अपने पैर भी नहीं हिला पातीं थी और यहां तक कि उन्हें अपने अधिकॉंश मौलिक दैनिक क्रिया-कलापों के लिए भी सहायता की आवश्यकता पड़ती
थी'' चिकित्सक ने कहा था।
अमीरा की गत माह नितम्ब संधियों और कुहनियों को परिवर्तित करने के लिए दो सप्ताहों में चार शल्य क्रियायें की गयीं थीं। उन्हें तीसरे सप्ताह में चिकित्सालय से छुट्टी मिल गयी थी। दोनों नितम्बों की शल्य क्रिया एक ही दिन में की गयी थी।
संपूर्ण प्रक्रिया की लागत लगभग 10 लाख (19,340 अमरीकी डॉलर) थी।
वैश्य ने कहा था कि रोगी अब अपने नये संधियों के साथ चल सकने में सक्षम है।
‘‘इससे पूर्व वह यहां तक कि अपने पैरों को चला भी नहीं सकती थी परन्तु अब शल्य चिकित्सा के मात्र एक सप्ताह के अंदर ही चलना शुरु कर दिया है'' उन्होंने कहा था।
डॉ0 वैश्य ने कहा था कि अमीरा इराक अब वापस जा रहीं हैं और वे कुछ अन्य संधियों के परिवर्तन के लिए पुन: वापस आयेंगी।
बीमारी का सही कारण जिसे बचपन के गठिया के नाम से जाना जाता है, अभी तक पता नहीं चला है।
चिकित्सक ने कहा था कि ‘‘युवा रोगी की शल्य क्रिया जटिल होती है क्योंकि आप उन्हें बार-बार शल्य क्रियाओं के लिए विवश नहीं कर सकते''।
उन्होंने आगे कहा था कि संधि परिवर्तन के लिए आने वाले युवा रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती हुई देखने को मिल रही है।
‘‘संधि परिवर्तन के लिए आने वाले युवा रोगियों की संख्या लगातार वृद्धि हुई है'', उन्होंने यह जोड़ते हुए आगे कहा था कि ‘‘सबसे बड़ी समस्या यह है कि समय पर इनका पहचान नहीं किया जाता है जिसके कारण विकृति अधिक बढ़ जाती है''।
चिकित्सक ने कहा था कि संधि परिवर्तन की शल्य क्रियायें संयुक्त राज्य अथवा यूरोप की अपेक्षा भारत में कम से कम 5 से 10 गुना सस्ती हैं।
‘‘ना केवल चिकित्सालय शुल्क मात्र सस्ता है बल्कि अन्य चीजें भी भारत में सस्ती हैं, संधियां भी भारत में सस्ती हैं यद्यपि, उन सभी का उत्पादन संयुक्त राज्य में होता है'' डॉ0 वैश्य ने कहा था।
उन्होंने आगे बताया था कि लगभग 5,000 विदेशी रोगी प्रतिवर्ष संधि परिवर्तन के लिए भारत आते हैं।
(व्यक्त किये गये उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)