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भारत-अफ्रीका परियोजना पर 15वीं सी.आई.आई.-एक्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव में विदेश राज्य मंत्री का संबोधन

सितम्बर 24, 2020

महामहिम,
माननीय डॉ. लेमोगैंग क्वापे, अंतर्राष्ट्रीय मामलों एवं सहयोग मंत्री, बोत्सवाना गणराज्य,
माननीय डॉ. रानिय अल-मशत, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंत्री, अरब गणराज्य, मिस्र
माननीय ईसेनहॉवर मकाका, एम.पी. विदेश मामलों के मंत्री, मलावी गणराज्य
माननीय लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. सिबुसिसो बी. मोयो, विदेश मामलों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मंत्री, जिम्बाब्वे गणराज्य,
श्री कुप्पुस्वामी, सह-अध्यक्ष, सी.आई.आई. अफ्रीका समिति
विशिष्ट अतिथिगण,
देवियो और सज्जनों,

नमस्कार और शुभ संध्या।

भारत-अफ्रीका परियोजना पर सी.आई.आई.-एक्ज़िम बैंक संगोष्ठी में आज दोपहर बोत्सवाना, मिस्र, मलावी तथा जिम्बाब्वे के विदेश मंत्रियों के साथ जुड़ना मेरे लिए वाकई बहुत सम्मान व सौभाग्य की बात है। इस मौके पर मैं सबसे पहले महामहिम का गर्मजोशी से स्वागत करता हूं और साथ ही इस मंच पर हमारे साथ जुड़ने हेतु अपने अत्यंत व्यस्त कार्यक्रम के बीच समय निकालने के लिए आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं। महानुभाव, आज यहां आपकी उपस्थिति न केवल भारत तथा अफ्रीका के बीच मजबूत साझेदारी का प्रतीक है, बल्कि इस बात का भी एक मजबूत संदेश है कि हम अपने लोगों तथा हमारे देशों के बेहतर भविष्य के लिए साथ मिलकर काम करेंगे।

दक्षिण अफ्रीकी नेता और प्रतिष्ठित नेल्सन मंडेला के शब्दों में, भारत और अफ्रीका कई दशकों से एक सुनहरे धागे से बंधे हुए हैं - जिसे नस्लवाद, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद जैसे आम दुश्मनों के खिलाफ संघर्ष के लंबे, कठिन तथा पीड़ादायक वर्षों के दौरान बुना गया। स्वतंत्र होने के बाद हमारे मजबूत संबंधों ने इस साझी विरासत पर काफी अधिक प्रभाव डाला है, जो हमें आज भी न केवल द्विपक्षीय क्षेत्र में बल्कि क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय क्षेत्र में भी अपनी भागीदारी बनाए रखने की प्रेरणा देती है।

स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में भारत और अफ्रीकी देशों ने एक लंबा सफर तय कर लिया है। हम अपने लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा कर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ रही हैं और हम एक-दूसरे के देश में अधिक व्यापार व निवेश का प्रयास कर रहे हैं और हमारे सहयोग हेतु अधिक तालमेल प्राप्त करते हैं। आज, भारत अफ्रीका के सबसे बड़े व्यापार, निवेश तथा विकास भागीदारों में से एक है। भारत अफ्रीकी वस्तुओं एवं उत्पादों के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और अफ्रीका के कम से कम विकसित देशों के उत्पादों को शुल्क मुक्त पहुंच प्रदान करता है। हालाँकि, संभावनाओं का बहुत अधिक दोहन से भारत-अफ्रीका व्यापार मजबूत हुआ, जो कि 2010-11 में 51.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2019-20 में 66.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि इस दौरान न केवल भारत का अफ्रीका में निर्यात बढ़ा बल्कि अफ्रीका का भारत में निर्यात भी लगभग 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ा है। आज अफ्रीका की बाजार हिस्सेदारी भारत के समग्र आयात टोकरी में 8.0% है, जबकि भारत महाद्वीप के बाहर से अफ्रीका के कुल आयात का लगभग 9% योगदान देता है। इतना ही नहीं भारत अफ्रीकी महाद्वीप में निवेश का एक प्रमुख स्रोत बनकर भी उभरा है।

महामहिम,

भारत अतीत में अफ्रीका और उसके लोगों के लिए खड़ा रहा; आज, भारत अफ्रीकी देशों का एक प्रमुख विकास भागीदार है; और मुझे यकीन है कि भारत भविष्य में भी अफ्रीका के लिए एक प्रमुख विकास भागीदार बना रहेगा। यह एक प्रतिबद्धता है जो हमारे नेतृत्व द्वारा उच्च स्तर पर व्यक्त की गई है, जिसको हमारे देश के सामान्य लोगों का भी सहयोग है। भारत और अफ्रीकी देशों के बीच स्थायी मित्रता, आपसी समझ और सहयोग की इस परंपरा में भारत-अफ्रीका फोरम समिट (आई.ए.एफ.एस.) का आयोजन किया जाता है। अपनी शानदार यात्रा में, आई.ए.एफ.एस. ने अक्टूबर 2015 में अफ्रीका के सभी 54 देशों, उनमें से 40 देशों ने राज्य के प्रमुखों / सरकार / उपाध्यक्ष स्तर पर प्रतिनिधित्व करते हुए, नई दिल्ली में आयोजित शिखर सम्मेलन में भाग लेकर, एक अटल क़दम उठाया। यह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की दूरदर्शिता तथा बुद्धिमत्ता का परिणाम रहा, जिन्होंने हमेशा अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंधों को प्राथमिकता दी है।

अफ्रीका के प्रति भारत का दृष्टिकोण अफ्रीकी देशों, उनके लोगों तथा उनकी विकास संबंधी आकांक्षाओं की गहरी समझ से बना हुआ है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 2018 में युगांडा की यात्रा के दौरान व्यक्त किए गए 10 मार्गदर्शक सिद्धांत इस दृष्टिकोण का मूल रूप हैं। उन्होंने जो कहा था, वो दोहराता हूं,

"एक, अफ्रीका हमारी सर्वोच्‍च प्राथमिकताओं में होगा। हम अफ्रीका के साथ सहयोग बढाना जारी रखेंगे और हमने दिखाया है कि यह सहयोग सतत और नियमित होगा।

दो, हमारी विकास साझेदारी आपकी प्राथमिताओं से निर्देशित होगी। आपकी अनुकूल शर्तों पर हमारी साझेदारी होगी जो आपकी क्षमता को मुक्‍त बनायेगी और आपके भविष्‍य को बाधित नहीं करेगी। हम अफ्रीकी योग्‍यता और कुशलता पर निर्भर करेंगे। हम स्‍थानीय क्षमता निर्माण के साथ – साथ यथा संभव अनेक स्‍थानीय अवसरों का सृजन करेंगे।

तीन, हम अपने बाजार को मुक्‍त रखेंगे और इसे सहज और अधिक आकर्षक बनायेंगे ताकि भारत के साथ व्‍यापार किया जा सके। हम अफ्रीका में निवेश करने के लिए अपने उद्योग को समर्थन देंगे।

चार, हम अफ्रीका के विकास को समर्थन देने के लिए, सेवा देने में सुधार के लिए, शिक्षा और स्‍वास्‍थ के सुधार के लिए, डिजिटल साक्षरता विस्‍तार के लिए, वित्‍तीय समावेश के विस्‍तार के लिए और वंचित लोगों को मुख्‍य धारा में लाने के लिए डिजिटल क्रांति के भारत के अनुभवों का दोहन करेंगे।

यह संयुक्‍त राष्‍ट्र के सतत विकास के लक्ष्‍य को आगे बढ़ाने के लिए ही नहीं होगा बल्कि डिजिटल युग में अफ्रीका के युवाओं को लैस करने के लिए भी होगा।

पांच, अफ्रीका में विश्‍व की 60 प्रतिशत भूमि उपजाऊ है। लेकिन विश्‍व उत्‍पादन में अफ्रीका की हिस्‍सेदारी केवल 10 प्रतिशत है हम अफ्रीका की कृषि में सुधार के लिए आपके साथ काम करेंगे।

छह, हमारी साझेदारी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के समाधान के लिए होगी। हम अंतरराष्‍ट्रीय जलवायु व्‍यवस्‍था सुनि‍श्चित करने के लिए, अपनी जैव विविधता को सुरक्षित रखने के लिए और स्‍वच्‍छ तथा सक्षम ऊर्जा संसाधनों को अपनाने के लिए अफ्रीका के साथ काम करेंगे।

सात, हम आतंकवाद और चरमपंथ का मुकाबला करने, साईबर स्‍पेस को सुरक्षित रखने तथा शांति के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र को समर्थन देने में अपने सहयोग और पारस्‍परिक क्षमताओं को मजबूत बनायेंगे।

आठ, हम समुद्रों को मुक्‍त रखने और सभी देशों के लाभ के लिए अफ्रीकी देशों के साथ काम करेंगे। अफ्रीका के पूर्वी तटों तथा हिंद महासागरों के पूर्वी तटों में विश्‍व को सहयोग की आवश्‍यकता है न कि स्‍पर्धा की। इसीलिए हिंद महासागर की सुरक्षा के लिए भारत का विजन सहयोग और समावेश का है। इसका मूल क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास है।

नौ, यह मेरे लिए विशेष रूप्‍ से महत्‍वपूर्ण है। अफ्रीका में वैश्विक सहयोग में वृद्धि को देखते हुए हम सब को एक साथ काम करना होगा ताकि अफ्रीका एक बार फिर प्रतिद्वंदी आकांक्षाओं के अखाड़े के रूप में न बदले बल्कि अफ्रीकी युवा की आकाक्षाओं के लिए नर्सरी बने।

दस, भारत और अफ्रीका ने एक साथ औपनिवेशिक शासन के विरूद्ध लडाई लड़ी है, इसलिए हम वैसी न्‍यायोचित, प्रतिनिधि मूलक तथा लोकतांत्रित व्‍यवस्‍था के लिए एकजुट होकर कार्य करेंगे जिसमें अफ्रीका और भारत में रहने वाली एक तिहाई मानवता की आवाज और भूमिका हो। वैश्विक संस्‍थाओं में सुधार के लिए अफ्रीका के समान स्‍थान के बिना भारत की सुधार इच्‍छा अधूरी होगी। यह हमारी विदेश नीति का महत्‍वपूर्ण उद्देश्‍य होगा।”

आई.ए.एफ.एस. के तहत भारत की पहल हमारे प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त किए गए इन नीति सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। जैसा कि आप जानते हैं, हमारे विदेश मंत्री ने भी इस कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र के दौरान अपने भाषण में अफ्रीका के प्रति भारत के दृष्टिकोण के बारे में विस्तार से बताया था।

महामहिम,

मुझे यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि पिछले आई.ए.एफ.एस. शिखर सम्मेलन के दौरान की गई प्रतिबद्धताओं को लागू करने में भारत ने जबरदस्त प्रगति की है। पिछले पांच वर्षों में, भारत के शीर्ष नेताओं ने अफ्रीकी देशों के 34 दौरे किए हैं; भारत ने विविध द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वचनबद्धताओं के लिए लगभग 100 अफ्रीकी नेताओं की मेजबानी की; और हमने अफ्रीका में भारत के अब 38 अफ्रीकी देशों में आवासीय राजनयिक मिशन के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि की है। जैसा कि पिछले आई.ए.एफ.एस. के दौरान वादा किया गया था, हमने व्यापार तथा निवेश, कृषि, ऊर्जा, नीली और समुद्री अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, शिक्षा व कौशल विकास, स्वास्थ्य, शांति एवं सुरक्षा और बहुपक्षीय मंचों में सहयोग सहित सहयोग के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर चर्चा करने हेतु नई दिल्ली में पिछले सितंबर में शिखर सम्मेलन की एक सफल मध्यावधि समीक्षा बैठक आयोजित की।

जैसा कि हमने कहा है, आज, भारत 37 अफ्रीकी देशों में 194 विकासात्मक परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है; 11.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल परिव्यय के साथ अभी 29 देशों में 77 अतिरिक्त विकास परियोजनाओं को पूरा करने हेतु काम कर रहा है। अफ्रीकी साझेदार देशों में अवसंरचना, कनेक्टिविटी, कौशल विकास, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए सहायता अनुदान को 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य तक बढ़ाया गया है। कुशल एवं प्रशिक्षित जनशक्ति हेतु हमारे अफ्रीकी भागीदारों की जरूरतों से भारत पूरी तरह अवगत है। इसलिए, क्षमता निर्माण हमेशा से अफ्रीका को दी जाने वाली भारत की विकास सहायता के प्रमुख घटकों में से एक रहा है। हमने विभिन्न वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रबंधन क्षेत्रों में स्नातक और परास्नातक दोनों स्तरों पर दीर्घकालिक, और साथ ही सौर ऊर्जा, व्यवसाय प्रबंधन, आईटी, राजमार्ग इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य, जल संसाधन प्रबंधन जैसे विविध विषयों में अल्पकालिक अति विशिष्ट एक से तीन महीने के विकास पाठ्यक्रमों पर क्षमता निर्माण प्रशिक्षण और यहां तक कि अधिकारियों, अभ्यासरत डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को दवा नियामक प्रथाओं पर प्रशिक्षण प्रदान किया है। इन कार्यक्रमों ने पिछले शिखर सम्मेलन के बाद से 40,000 से अधिक अफ्रीकी छात्रों, सरकारी अधिकारियों और पेशेवरों को लाभान्वित किया है। मुझे यकीन है, ये सभी प्रयास हमारे अफ्रीकी भागीदारों के सामाजिक तथा आर्थिक विकास में मदद करेंगे। हमारा मानना है कि भारत की विकास सहायता अफ्रीका में टिकाऊ अवसंरचना के निर्माण, नए रोजगार के अवसर पैदा करने और इसके लोगों की आर्थिक भलाई को बढ़ावा देने हेतु अधिक प्रौद्योगिकी पैठ और निवेश को बढ़ावा देगी।

महामहिम, देवियों और सज्जनों,

मैं इस अवसर पर दो महत्वपूर्ण बहुपक्षीय पहलों को संक्षेप में दुहराना चाहूंगा जिन्हें भारत ने हाल के वर्षों में लॉन्च किए हैं, जो विकासशील देशों की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने तथा सतत विकास को बढ़ावा देने में काफी प्रभाव डालते हैं। हमने अपने सहयोगी देशों को सौर ऊर्जा का उपयोग करने, ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाले जीवाश्म ईंधन पर उनकी निर्भरता को कम करने और उत्सर्जन में कमी लाने में मदद करने हेतु 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन शुरू किया है। यह संतोषजनक है कि भारत के जैसे ही सौर ऊर्जा से समृद्ध 38 अफ्रीकी राष्ट्र इस गठबंधन में शामिल हो गए हैं। हम जो दूसरा गठबंधन बनाना चाहते हैं, उसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हम जो नया आधारभूत ढांचा तैयार करें, वह आपदा-प्रतिरोधक हो। यह अनुमान लगाया गया है कि, अब से 2040 तक 94 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाएगा, इस निवेश में 50 से 60% की हिस्सेदारी विकासशील देशों की होगी। इसलिए आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन, या सी.डी.आर.आई. का उद्देश्य अच्छी प्रथाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए एक नेटवर्क स्थापित करना चाहता है और बुनियादी ढांचे के विकास को प्रबंधित करने हेतु उचित मानकों का विकास करता है जिससे कि लचीलापन को बढ़ावा मिल सके। इस गठबंधन की सदस्यता अफ्रीका के विकासशील देशों के लिए भारत के जैसे ही विशेष रूप से उपयोगी होगी क्योंकि हम सभी के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बुनियादी ढांचे में किया गया हमारा बेशकीमती निवेश चक्रवात, सूनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण बर्बाद न हो जो दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे हैं। इस गठबंधन की अंतिम संरचना और विशिष्ट वितरण इसके सदस्य देशों द्वारा सह-निर्मित किए जा रहे हैं और मुझे इस गठबंधन में हमारे कई अफ्रीकी मित्रों के शामिल होने की उम्मीद है।

देवियों और सज्जनों,

अफ्रीका के साथ भारत के संबंध कभी भी एक-तरफा नहीं रहे हैं। हम अपने अफ्रीकी भागीदारों की प्राथमिकताओं को समझते हैं और उनका सम्मान करते हैं। हमें ज्ञात है और समावेशी तथा सतत विकास के माध्यम से अफ्रीका को समृद्ध बनाने के उद्देश्य वाले एजेंडा 2063 पर ध्यान दिया है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 3 और एजेंडा 2063 का मुख्य घटक सभी नागरिकों तक योग्य और गुणवत्ता स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की पहुंच प्रदान कर 2063 तक सभी नागरिकों के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके। भारत भी एसडीजी और अच्छी गुणवत्ता स्वास्थ्य देखभाल की सार्वभौमिक पहुंच के लिए प्रतिबद्ध है, जैसा कि 2017 की इसकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में उल्लिखित है, विशेष रूप से भारत-अफ्रीका विकास साझेदारी में उन क्षेत्रों में फैली हुई है जहां भारतीय अनुभव तथा उपचार सबसे उपयुक्त अफ्रीका की स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के अनुकूल हो सकते हैं।

स्वास्थ्य क्षेत्र में संरचित भागीदारी के माध्यम से आई.ए.एफ.एस.-III के रणनीतिक विज़न को आगे बढ़ाने हेतु, मेरे मंत्रालय ने भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.) के सहयोग से 2016 में नई दिल्ली में पहली भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य विज्ञान बैठक आयोजित की गई। इस बैठक के बाद, आई.सी.एम.आर. ने भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य विज्ञान सहयोग मंच (आई.ए.एच.एस.पी.) की स्थापना करके सहयोग को मजबूत करने की पहल शुरु की है। अनुसंधान व विकास, क्षमता निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं, दवाओं के व्यापार और दवाओं एवं निदान हेतु विनिर्माण क्षमताओं के क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए मार्च 2019 में एयू और भारत (आई.सी.एम.आर.) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। मेरा मानना​है कि इस महत्वपूर्ण एमओयू को लागू करना भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य देखभाल सहयोग में मील का पत्थर साबित होगा, जो पारस्परिक रूप से लाभकारी होगा।

इस साल फरवरी में, भारत में पहली बार भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन लखनऊ में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में 33 अफ्रीकी देशों के 146 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने 6 फरवरी 2020 को 'लखनऊ घोषणा' को भी अपनाया था। नेताओं ने इस बात की सराहना की कि भारत तथा अफ्रीका इंडो-पैसिफिक सातत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और शांति एवं सुरक्षा के लिए एयू विज़न अफ्रीका में भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए एस.ए.जी.ए.आर. (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास) के भारत के दृष्टिकोण के अनुरुप है। लखनऊ घोषणा ने इस वर्ष "बंदुकों का दमन; अफ्रीकी विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण" को अफ्रीकी संघ के विषय के रूप में मान्यता दी।

इस साल आई.ए.एफ.एस. समिट के लिए, हमने मार्च 2020 के मध्य में भारत-अफ्रीका कृषि मंत्रियों की बैठक आयोजित करने की योजना बनाई थी। हमें इस बैठक में भाग लेने के संबंध में अपने कई अफ्रीकी सहयोगियों की पुष्टि भी मिल चुकी थी। दुर्भाग्य से, यह महामारी के कारण स्थगित होने वाली पहली बड़ी बैठक थी। हमने बाद में वर्ष में, लेकिन शिखर सम्मेलन से पहले, तपेदिक के उपचार और नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने पर भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक करने की योजना बनाई थी, जो कि विकासशील दुनिया के लिए एक अदृश्य, लेकिन अधिक घातक संकट है। मुझे उम्मीद है कि हम इन दोनों बैठकों को जल्द से जल्द आयोजित करेंगे क्योंकि मेरा मानना​है कि हमें अभी एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखना है और भारत इस बीमारी से निपटने पर केंद्रित और प्रभावी तरीके पर विकसित अपनी अभिनव विशेषज्ञता को हमारे अफ्रीकी भागीदारों के साथ साझा करने हेतु प्रतिबद्ध है।

देवियों और सज्जनों,

2020 में अपने पिछले शिखर सम्मेलन में सहमति के अनुसार जिस भारत अफ्रीका फोरम समिट के 4वें संस्करण की बैठक को हम नहीं कर रहे हैं, उसका कारण कोविड महामारी की जीवन में एक बार आने जैसी असाधारण चुनौती है। नोवल कोरोना वायरस का प्रसार निश्चित रूप से दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे विनाशकारी वैश्विक संकट है। हमने इस संकट के समय अपने साथी देशों की मदद करने का प्रयास किया है क्योंकि हम हमेशा अन्य संकट से गुजरे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले कुछ महीनों में अपने कई अफ्रीकी समकक्षों से टेलीफोन पर बातचीत की है और वायरस के खिलाफ संयुक्त अफ्रीकी प्रयास हेतु भारत के पूर्ण समर्थन से अवगत कराया है। हमारे विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने भी कई अफ्रीकी देशों में अपने समकक्षों से बात की है और हमारे संयुक्त संघर्ष में सहायता की पेशकश की है और आपसी द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय हित के मामलों पर भी चर्चा की है। भारत ने दुनिया भर में 85 देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या एचसीक्यू समेत आवश्यक दवाओं और जीवनरक्षक एंटीबायोटिक्स समेत 16 अन्य आवश्यक दवाओं की आपूर्ति के रूप में चिकित्सा सहायता प्रदान की है, जिनमें 25 अफ्रीकी देश हैं। लगभग 150 टन की चिकित्सा सहायता, जिसकी कीमत लगभग 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर है, अफ्रीका महाद्वीप में वितरित की जा रही हैं या की जानी हैं।

हालांकि, हमने भारत-अफ्रीका फोरम समिट III का अधिदेश मार्च 2020 में पूरा होने के बावजूद भारत-अफ्रीका साझेदारी के सभी मुख्यों घटकों - परियोजनाओं, छात्रवृत्ति, नकद अनुदान - को जारी रखा है, यह सभी पक्षों के लिए उपयुक्त होगा कि भारत अफ्रीका फोरम समिट के चौथे संस्करण का आयोजन जल्द से जल्द किया जाए। मुझे विश्वास है कि शिखर सम्मेलन की तैयारी के दौरान और इस कॉन्क्लेव के दौरान जो गहन बातचीत होगी, वह इसमें महत्वपूर्ण योगदान देगी। हम जल्द से जल्द संभव अवसर पर भारत अफ्रीका फोरम समिट IV का आयोजन करने हेतु उत्सुक हैं।

मैं फिर से बोत्सवाना, मिस्र, मलावी और जिम्बाब्वे के मंत्रियों का धन्यवाद देते अपनी बात को समाप्त करता हूं। मैं सी.आई.आई. और एक्जिम बैंक को भारत तथा अफ्रीका दोनों के लिए क्षेत्रों और प्रमुख प्राथमिकताओं के मुद्दों पर इस तरह के अद्भुत डिजिटल कॉन्क्लेव का आयोजन करने हेतु बधाई देता हूं।

धन्यवाद, जय हिन्द।

नई दिल्ली
सितंबर 24, 2020

 

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