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सियोल से वापस आते समय विमान में प्रधान मंत्री जी की मीडिया से बातचीत

नवम्बर 12, 2010

प्रधान मंत्री: जी-20 की अत्‍यंत ही उपयोगी बैठक हुई। जी-20 के अधिकांश कार्य प्रगति पर हैं। परन्‍तु जैसाकि मैंने अपनी आरंभिक टिप्‍पणी में कहा, जी-20 की स्थापना के बाद के दो वर्षों में हमने काफी उपलब्‍धियां प्राप्‍त की हैं। सियोल जी-20 बैठक से निम्‍नलिखित ठोस निष्‍कर्ष सामने आए:

प्रथम, अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष कोटा सुधारों के दूसरे चरण का समापन तथा नई एवं और भी लोचनीय ऋण श्रृंखलाओं के साथ कोष के कार्यकारी मण्‍डल का पुनर्गठन।

द्वितीय, वित्‍तीय आर्थिक सुधारों की एक महत्‍वपूर्ण आधारशिला के रूप में बेसल-3 की स्‍थापना। अभी वित्‍तीय स्‍थिरता बोर्ड द्वारा काफी कुछ किया जाना शेष है जिसे सभी 20 देशों को शामिल करते हुए लोकतांत्रिक रूप प्रदान किया गया है।

तृतीय, बृहत आर्थिक पारस्‍परिक आकलन प्रक्रिया से संबद्ध करार की समीक्षा जी-20 की अगली बैठक में की जाएगी। यह एक जटिल प्रक्रिया है। परन्‍तु विभिन्‍न देशों की अगुआई में किए जा रहे नीतिगत समन्‍वय की दिशा में यह पहला कदम है।

चतुर्थ, जी-20 की कार्यसूची में विकास को प्रमुख स्‍थान देना। निजी, सार्वजनिक और अर्ध सार्वजनिक साधनों का उपयोग करते हुए विकासशील देशों में अवसंरचना विकास के वित्‍तपोषण पर नजर रखने का अधिदेश एक उच्‍चस्‍तरीय पैनल को सौंपा गया है। इसके अतिरिक्‍त दोहा दौर की व्‍यापार वार्ताओं की संभावनाओं तथा पर्यावरण से संबद्ध कानकुन शिखर सम्‍मेलन से जुड़े मुद्दे पर भी चर्चा हुई।

इसलिए समग्र रूप में इस बैठक से सकारात्‍मक परिणाम प्राप्‍त हुए और मैं समझता हूँ कि अपने संबोधन में मैंने जो बातें कही हैं, वे पहले ही आपको उपलब्‍ध करा दी गई हैं। मैं समझता हूँ कि आपने उसे देखा होगा।

प्रश्‍न: वित्‍तीय क्षेत्र विकास परिषद के संबंध में क्‍या आप इस प्रकार के उपायों को सही मानते हैं और क्‍या आपको लगता है कि भारत जी-20 में अधिशेष तथा घाटे वाले देशों के बीच वार्ताकार की भूमिका निभा सकता है?

प्रधान मंत्री: जी नहीं। ऐसी कोई संभावना नहीं है।

सुधार की हमारी प्रक्रिया सोच-समझकर चलाई गई है। ये सुधार समय की मांग के अनुरूप किए गए हैं। हम किस प्रकार का सुधार चाहते हैं, इस बात का निर्धारण एक मात्र हमारी आवश्‍यकताओं के आधार पर ही किया जाएगा। परन्‍तु निश्‍चित रूप से हम एक संशोधित प्रणाली चाहते हैं जिसे अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वीकार किया जाए क्‍योंकि इस अंतर्निर्भर विश्‍व में एक देश से दूसरे देश में आने वाले पूंजीगत प्रवाहों को इसी प्रकार प्रबंधित किया जा सकता है।

हमें सकल घरेलू उत्‍पाद के लगभग 7 से 8 प्रतिशत का व्‍यापार घाटा हो रहा है। हमारा चालू खाता घाटा

हमारे सकल घरेलू उत्‍पाद का लगभग 2.5 से 3 प्रतिशत तक का है। हम विदेशी मुद्रा का भण्‍डारण नहीं कर रहे हैं इसलिए हम वैश्‍विक प्रणाली के कार्यकरण में किसी प्रकार की समस्‍या भी उत्‍पन्‍न नहीं कर रहे हैं। एक प्रकार से भारत अधिशेष राष्‍ट्र नहीं है, हमारा व्‍यापार घाटा बढ़ा है परन्‍तु विवेक की सीमाओं के भीतर इस घाटे का प्रबंधन किया जाएगा और किया भी जाता रहा है।

प्रश्‍न: विश्‍व में नई वित्‍तीय व्‍यवस्‍था के प्रतिमानों के संबंध में आपकी क्‍या प्रतिक्रिया है? क्‍या इससे अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के प्रयास संपूरित होंगे?

प्रधान मंत्री: नई वित्‍तीय व्‍यवस्‍था के अंतिम आकार के संबंध में अभी अनुमान लगाना जल्‍दबाजी होगी। जैसाकि मैंने कहा इनमें से अधिकांश कार्यों में प्रगति हो रही है। मैं समझता हूँ कि अनेक विचारों पर चर्चा चल रही है। विभिन्‍न मंचों पर बातचीत हो रही है। इस समय मेरे लिए यह बताना कठिन होगा कि इन सभी वार्ताओं का निष्‍कर्ष क्‍या निकलेगा।

प्रश्‍न: पूंजीगत प्रवाहों के संबंध में चीन और जर्मनी ने अमरीका के साथ इस मुद्दे को उठाया है। मुद्रास्‍फीति संबंधी जोखिमों को देखते हुए क्‍या हम इस संबंध में आशावान रह सकते हैं?

प्रधान मंत्री: पूंजीगत प्रवाहों से समस्‍याएं उत्‍पन्‍न हो सकती हैं। परन्‍तु हम अभी ऐसे चरण में नहीं पहुंचे हैं कि पूंजी का प्रवाह एक बड़ी समस्‍या बन जाए। हम अपने मामलों का प्रबंधन इस प्रकार करेंगे कि पूंजीगत प्रवाहों से मुद्रास्‍फीति संबंधी उन समस्‍याओं का उदय न हो जिनका उल्‍लेख अभी-अभी आपने किया।

प्रश्‍न: पूर्ण सत्र में दिए गए अपने संबोधन में आपने जिन बातों का उल्‍लेख किया था उनमें से अधिकांश को जी-20 की अंतिम विज्ञप्‍ति में शामिल किया गया है। इसका अर्थ है कि आपने अंतिम विज्ञप्‍ति को काफी हद तक प्रभावित किया है। क्‍या इसे डा. मनमोहन सिंह की जीत मानी जाए?

प्रधान मंत्री: मैं जीत का दावा नहीं करता। इन विचारों पर विभिन्‍न मंचों पर चर्चा चल रही है। विभिन्‍न देशों के आर्थिक सलाहकार इन विचारों पर चर्चा कर रहे हैं और इसे प्रदान करने तथा ग्रहण करने की प्रक्रिया कही जा सकती है। परन्‍तु मैं इतना दावा अवश्‍य करना चाहूंगा कि अपने भाषण के जरिए मैंने विकास से जुड़े मुद्दे को सतत एवं प्रबंधनीय विकास प्रक्रिया में महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिलाने में सफलता प्राप्‍त की और कहा कि जी-20 को सिर्फ अधिशेषों और घाटों पर ही नहीं ध्‍यान देना चाहिए बल्‍कि इस बात का भी ध्‍यान रखना चाहिए कि इस प्रकार के असंतुलन हमें और भी मौलिक असंतुलनों का समाधान करने का अवसर प्रदान करते हैं

जिसका उल्‍लेख हम अमीर और गरीब देशों के बीच विकास खाई के रूप में करते रहे हैं। मेरे द्वारा आरंभिक वक्‍तव्‍य दिए जाने के बाद अनेक अन्‍य वक्‍ताओं ने भी इसी बिन्‍दु पर बात की और मेरे द्वारा कही गई बातों को संपूरित करते हुए विकास को अंतर्राष्‍ट्रीय संवाद में अग्रणी स्‍थान देने का प्रयास किया।

प्रश्‍न: 2-जी स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट और इसमें मंत्री राजा की भूमिका के बारे में आप क्‍या कहेंगे।

प्रधान मंत्री: संसद का सत्र चल रहा है। यह मामला शायद न्‍यायालय में विचाराधीन भी है इसलिए इस पर टिप्‍पणी करना मेरे लिए उपयुक्‍त नहीं होगा।

प्रश्‍न: बेसल-3 मुद्दा ... इस संबंध में कुछ चिन्‍ताएं थीं कि क्‍या भारत को इसे अंगीकार करने की आवश्‍यकता है? क्‍या जल्‍दीबाजी करने की आवश्‍यकता है?

प्रधान मंत्री: जल्‍दीबाजी का प्रश्‍न नहीं है। यदि मैं सही-सही स्‍मरण कर सकूं, तो बेसल प्रारूप को भी वर्ष 2018-19 तक पारित किया जाना होगा। इसलिए मुझे लगता है कि अपनी ओर से निर्णय लेने के लिए हमारे पास अभी काफी समय शेष है।

प्रश्‍न: अवसंरचना विकास के लिए अधिशेषों के उपयोग का प्रस्‍ताव ... क्‍या विकसित देशों में अवसंरचना क्षेत्र में पूंजी प्रवाह को सीमित करने की आवश्‍यकता है?

प्रधान मंत्री: बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी बाधा है जिससे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका में अनेक विकासशील देशों की विकास प्रक्रिया में बाधा आ रही है। हमारे समक्ष एक विचित्र स्‍थित है।

इस तार्किक विश्‍व में पूंजी का प्रवाह अमीर देशों से गरीब देशों की ओर होना चाहिए। यहां पूंजी का प्रवाह विकासशील देशों की ओर हो रहा है और मैं समझता हूँ कि इस समस्‍त प्रक्रिया में कुछ विरोधाभास है। मैं कह रहा था कि इन असंतुलनों को दूर करने के लिए नई व्‍यवस्‍था का निर्माण किया जाना चाहिए जिसमें अधिशेष पूंजी गरीब देशों के लिए उपलब्‍ध हो सके और जिससे उनके विकास की प्रक्रिया को गति मिल सके। यदि ऐसा हो पाता है,

तो मुझे लगता है कि इससे गरीब देशों की विकास प्रक्रिया में काफी तेजी आ जाएगी।

प्रश्‍न: अपने संबोधन में आपने कहा कि राजकोषीय मजबूती की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। क्‍या भारत राजकोषीय प्रोत्‍साहन की प्रक्रिया को कायम रखना चाहता है?

प्रधान मंत्री: मैं समझता हूँ कि हम एक ऐसे दौर में पहुंच गए हैं जब हम पूरी सावधानी के साथ वित्‍तीय मजबूती की दिशा में कार्य कर रहे हैं। मौद्रिक नीतिगत उपाय रिजर्व बैंक द्वारा वापस ले लिए गए हैं और धीरे-धीरे हमारी वित्‍तीय प्रणाली भी मजबूती की दिशा में आगे बढ़ेगी।

प्रश्‍न: महोदय, जी-20 का सफर टोरंटो से शुरू हुआ है। आप टोरंटो से सियोल तक जी-20 की इस यात्रा का वर्णन किस प्रकार करेंगे?

प्रधान मंत्री: जैसा मैंने आपको अभी बताया, मैंने ऐसे तीन-चार विषयों का जिक्र किया जिन पर प्रगति हुई है ... अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष कोटा सुधार ... अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष में नई सुविधाएं तथा जी-20 की कार्यसूची में विकास को प्रमुख स्‍थान प्रदान करना। तदुपरांत, अधिशेष वाले देशों और घाटे वाले देशों द्वारा पारस्‍परिक सामंजस्‍य प्रक्रिया का निर्धारण किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को जी-20 समूह का अनुमोदन प्राप्‍त है। परन्‍तु यह एक जटिल प्रक्रिया है। पारस्‍परिक आकलन प्रक्रिया के संबंध में कार्य करने के लिए प्रचालनात्‍मक नियम बनाने की दिशा में काफी प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है।

प्रश्‍न: आज आपके द्वारा दिए गए वक्‍तव्‍य पर विकसित देशों की क्‍या प्रतिक्रिया रही है?

प्रधान मंत्री: चूंकि विकास को स्‍पष्‍ट रूप से जी-20 समूह की कार्यसूची में जगह मिली है इसलिए कहा जा सकता है कि इस संबंध में प्रगति हुई है।

प्रश्‍न: अवसंरचना क्षेत्र में निवेश ... परियोजनाओं में काफी विलम्‍ब हो रहा है ...

प्रधान मंत्री: ये हमारी आंतरिक चिन्‍ताएं हैं। हमें यह सुनिश्‍चित करना है कि अच्‍छी परियोजनाओं को विचारार्थ कार्यसूची में शामिल किया जाए, परियोजना का प्रबंधन संतोषजनक हो और लोग परियोजनाओं में निवेश को उपयोगी मानें।

यदि ऐसा प्रतीत होता है कि देश का व्‍यवस्थित प्रबंधन किया जा रहा है, परियोजनाओं की परिकल्‍पना उपयुक्‍त तरीके से की गई है, यदि इनकी घरेलू नीतिगत रूपरेखा है, जो निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्‍त है, तो उनके लिए स्‍वाभाविक रूप से धन उपलब्‍ध होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि धन का उपयोग किए जाने के तौर तरीकों की चिन्‍ता किए बिना मुक्‍त रूप से धन का प्रवाह जारी रहेगा।

प्रश्‍न: राष्‍ट्रपति बुश के साथ आपका घनिष्‍ठ संबंध था और ऐसा लगता है कि राष्‍ट्रपति ओबामा के साथ भी आपने अच्‍छा व्‍यक्‍तिगत संबंध बनाया है ... इसके बारे में आपका क्‍या कहना है ...?

प्रधान मंत्री: इससे पहले भी कई बार मैंने इस प्रश्‍न का उत्‍तर दिया है। मैं समझता हूँ कि जब मैंने पहली बार राष्‍ट्रपति बुश से मुलाकात की थी, तो उन्‍होंने अपनी पत्‍नी के साथ मेरा परिचय कुछ इस तरह से कराया था, ''लाउरा, क्‍या तुम 1.2 बिलियन जनसंख्‍या वाले किसी अन्‍य देश के बारे में जानती हो, जो लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध हो, मूलभूत मानव अधिकारों के सम्‍मान के प्रति प्रतिबद्ध हो, विधिसम्‍मत शासन के प्रति प्रतिबद्ध हो और फिर भी विकास कार्यसूची के संदर्भ में अच्‍छी सफलता प्राप्‍त कर रहा हो।'' यह भारत का आकर्षण था। भारत एक विलक्षण राष्‍ट्र है। अपनी विविधता,

जाति और धर्म की जटिलताओं के बावजूद हमारा लोकतंत्र सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है और हम 8 से 9 प्रतिशत की विकास दर प्राप्‍त करने में सक्षम हैं। इसलिए मैं कह सकता हूँ कि भारत की इन्‍हीं विशेषताओं ने जार्जबुश को आकर्षित किया था और राष्‍ट्रपति ओबामा पर भी यही बातें लागू होती हैं। संसद में दिया गया, उनका संबोधन, अपने संबोधन में भारत के संबंध में की गई उनकी बातें कार्यकारी लोकतंत्र के रूप में एक ऐसे भारत के विलक्षण स्‍वरूप को प्रस्‍तुत करता है, जो विधिसम्‍मत शासन के प्रति वचनबद्ध है, मौलिक मानवाधिकारों के सम्‍मान के प्रति कृतसंकल्‍प है और फिर भी सम्‍मानजनक विकास दर प्राप्‍त करने में सक्षम है।

इसलिए यह मेरी नहीं भारत की विशेषता है। मैं जो भी हूँ, वह भारत में उपलब्‍ध अवसरों का सुपरिणाम है।

प्रश्‍न: आज आपने जी-20 में जो वक्‍तव्‍य दिया, उसका समर्थन सबने किया और बधाई भी दी। क्‍या भारत के आम आदमी के जीवन में बेहतर बदलाव आने वाला है। जी-20 द्वारा किए जा रहे इन कार्यों से भारत में आम आदमी को क्‍या लाभ होंगे।

प्रधान मंत्री: भारत में जो विकास होना चाहिए, जितनी तेजी से हमें आगे बढ़ना चाहिए, उसके लिए हमें अंदरूनी तौर पर बहुत कुछ करना होगा। साथ-साथ हमारे लिए अंतर्राष्‍ट्रीय परिवेश भी ऐसा होना चाहिए जिसमें व्‍यापार प्रवाहों को बढ़ावा मिले, पूंजीगत प्रवाहों में वृद्धि हो, तकनीकी का अंतरण आसान हो और

अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक प्रणाली के कार्यकरण में भारत की भागीदारी हो। जी-20 को असंतुलनों की समस्‍या का समाधान करने की जिम्‍मेदारी दी गई है जिसके कारण अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय प्रणाली में अवरोध आया है। इस बात में भारत का हित है कि अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय प्रणाली का पुनर्गठन किया जाए, इसका सुप्रबंधन हो क्‍योंकि इसका अर्थ यह होगा कि हमारे देश में त्‍वरित विकास हो रहा है और हमारे लोगों के लिए नौरकियों का सृजन करने के संबंध में हमारी क्षमता में वृद्धि होगी।

प्रश्‍न: चीनी मुद्रा के मूल्‍यांकन के संबंध में आपका क्‍या विचार है?

प्रधान मंत्री: चीन के पास अधिशेष है और मैं समझता हूँ कि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। परन्‍तु अधिशेष देशों और घाटे वाले देशों के बीच का संबंध कोई तकनीकी मुद्दा नहीं है। यदि आप ब्रेटनवुड्स बहस की बात करें तो उस समय भी केनेस योजना और ह्वाइट योजना विद्यमान थी और केनेस का विचार था कि घाटे वाले देशों के साथ सामंजस्‍य स्‍थापित करने की जिम्‍मेदारी अधिशेष वाले देशों की हैं। परन्‍तु अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय तंत्र अनिवार्यत: एक सत्‍ता तंत्र है और जिस प्रकार से अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय प्रणाली काम करती है उसमें ऋण देने वाले देशों की ही बात सुनी जाती है।

अभी जी-20 को और भी संतुलित प्रणाली की आवश्‍यकता है जिसमें अधिशेष तथा घाटे वाले देशों द्वारा साथ-साथ उपचारी कार्रवाई करनी होगी। परन्‍तु यह उपचारी कार्रवाई क्‍या होनी चाहिए। मैं समझता हूँ कि एमएपी प्रक्रिया से यह बात सामने आएगी जिसका अनुमोदन जी-20 द्वारा किया जा चुका है।

प्रश्‍न: युनाइटेड किंगडम और मैक्‍सिको के साथ आपकी बातचीत हुई। हमें पता चला है कि विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में मंदी के कारणों पर सर्वसम्‍मति का निर्धारण करना कठिन होगा ...

प्रधान मंत्री: स्‍पष्‍ट है कि मंदी के कारणों के संबंध में सहमति स्‍थापित होने से पूर्व काफी समय लगेगा। चीन का मानना है कि यह समस्‍या संयुक्‍त राज्‍य अमरीका से आरंभ हुई क्‍योंकि वहां आसान ऋण की बहुतायत थी।

परन्‍तु यदि आप अमरीकी लोगों से पूछें, तो वे यही कहेंगे कि ऐसा इसलिए हुआ कि अधिशेष वाले कुछ देश जान-बूझकर अपनी मुद्रा की दर को सीमित रख रहे हैं। इस स्‍थिति में उपचारी कार्रवाइयों की आवश्‍यकता है। परन्‍तु इस प्रकार की उपचारी कार्रवाइयां किन देशों द्वारा की जाएंगी, अधिशेष द्वारा अथवा घाटे वाले देशों द्वारा। यह बात तभी सामने आएगी, जब एमएपी प्रक्रिया को आकार लेने की अनुमति प्रदान की जाती है।

प्रश्‍न: क्‍या आपको लगता है कि जी-20 शिखर सम्‍मेलन के बाद विनिमय दर के संबंध में चीन और अमरीका के बीच तनाव कुछ कम हुआ है।

प्रधान मंत्री: मुझे लगता है कि अमरीका और चीन के बीच अत्‍यंत ही घनिष्‍ठ आर्थिक संबंध हैं। उदाहरण के लिए मुझे नहीं लगता कि विनिमय दर संबंधी विवाद का संबंधों के विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा। निश्‍चित रूप से चीन और संयुक्‍त राज्‍य अमरीका के बीच आर्थिक संबंध ... (अश्रव्‍य) ... मैं नहीं समझता कि इससे उनके संबंधों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

प्रश्‍न: मैं कोई ऐसा प्रश्‍न नहीं पूछ रहा हूँ, जो न्‍यायालय के विचाराधीन है अथवा जिस पर संसद में बहस की जा रही है। यदि श्री राजा को हटाया जाता है, तो जयललिता ने कांग्रेस को अपने 18 सांसदों का समर्थन देने का प्रस्‍ताव किया है?

प्रधान मंत्री: इस बात को मैं पहली बार सुन रहा हूँ। मैं समझता हूँ कि इस बात को कांग्रेस हाईकमान को नोट करना चाहिए। मुझे नहीं पता कि डा. जयललिता ने क्‍या कहा है। डीएमके के साथ हमारा गठबंधन है और यह गठबंधन अभी जारी है।

सियोल से नई दिल्‍ली वापस आते समय विशेष विमान में।
12 नवंबर, 2010



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