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जी-20 शिखर सम्‍मेलन के पूर्ण सत्र में प्रधान मंत्री की टिप्‍पणी

नवम्बर 12, 2010

अध्‍यक्ष महोदय,

इस शिखर सम्‍मेलन के लिए की गई उत्‍कृष्‍ट व्‍यवस्‍थाओं और आपके सौहार्दपूर्ण आतिथ्‍य सत्‍कार के लिए अपने सहयोगियों के साथ-साथ मैं भी आपको धन्‍यवाद देता हूँ।

पिछले दो वर्षों से ही जी-10 अस्‍तित्‍व मे है। फिर भी यह अपने अस्‍तित्‍व की इस छोटी सी अवधि में अनेक महत्‍वपूर्ण सफलताओं का दावा कर सकता है जिसके कारण इसका उदय अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक सहयोग के प्रधान मंच के रूप में हुआ है।

हमने वर्ष 2008 में आई आर्थिक मंदी के प्रति तत्‍काल अपनी अनुक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए विशाल और समन्‍वित प्रोत्‍साहन पैकेजों की घोषणा की जिसके फलस्‍वरूप विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था भारी संकट के दुष्‍चक्र में फंसने से बच गई।

हमने विश्‍व बैंक और अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष में सुधार की एक सफल प्रक्रिया आरंभ की जिसके परिणाम पहले ही सामने आ चुके हैं। हमने व्‍यापक वित्‍तीय स्‍थिरता बोर्ड (एफएसबी) के जरिए वित्‍तीय विनियमों में अत्‍यावश्‍यक सुधार की पहल की। फिलहाल हम अपने-अपने देशों में समन्‍वित नीतियों की एक महत्‍वाकांक्षी प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में शामिल हैं जिससे कि ठोस एवं सतत आर्थिक पुनरुत्‍थान प्राप्‍त किया जा सके।

आज की स्‍थिति में विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में ठोस सुधार लाने के प्रयास विशेष रूप से महत्‍वपूर्ण हैं। कल विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था की स्‍थिति पर हुई हमारी चर्चाओं से मिलीजुली तस्‍वीर सामने आई। कुछ अच्‍छे समाचार भी हैं।

वर्ष 2010 में औद्योगिक देशों में विकास की प्रक्रिया बहाल हुई है। हालांकि, उत्‍पादन की खाइयां अभी भी बनी हुई हैं और बेरोजगारी का स्‍तर अभी भी चिन्‍ताजनक है।

कुल मिलाकर उदीयमान अर्थव्‍यवस्‍थाओं, खासकर एशियाई अर्थव्‍यवस्‍थाओं ने अच्‍छा प्रदर्शन किया है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था इस संकट से आसानी से बाहर आने में सफल रही है। आर्थिक संकट से पूर्व के चार वर्षों के दौरान हमारी विकास दर 9 प्रतिशत रही जबकि वर्ष 2008-09 में यह घटकर 6.7 प्रतिशत रह गई। वर्ष 2009-10 में अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार के संकेत मिले और हमारी अर्थव्‍यवस्‍था 7.4 प्रतिशत के विकास दर तक पहुंच गई।

आशा है कि वर्ष 2010-11 के दौरान हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में 8.5 प्रतिशत की दर से विकास होगा और वर्ष 2011-12 में हम 9 प्रतिशत की विकास दर प्राप्‍त कर लेंगे।

तथापि, औद्योगिक देशों में बेरोजगारी की ऊंची दर के कारण संरक्षणवादी भावनाएं उभकर सामने आ रही हैं, विशेषकर उस स्‍थिति में जब अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार लाने के पारम्‍परिक और राजकोषीय तंत्र असफल साबित हुए हैं। औद्योगिक देशों की संभावनाओं से संबंधित अनिश्‍चितता का प्रभाव निवेश वातावरण पर पड़ता है जिसके फलस्‍वरूप उदीयमान बाजार अर्थव्‍यवस्‍थाओं की मध्‍यम आवधिक विकास संभावनाएं प्रभावित होती हैं। इन सब बातों से पता चलता है

कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍थाओं को ठोस, सतत एवं संतुलित विकास के मार्ग पर वापस लाने के लिए काफी कुछ किया जाना है।

विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में संतुलन लाने की समस्‍या अभी भी हमारे समक्ष मौजूद है। अनेक औद्योगिक देशों के चालू खातों का घाटा अभी भी बहुत अधिक है जिसे कम करते हुए प्रबंधनीय स्‍तर तक लाने की आवश्‍यकता है। विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था पर इस प्रक्रिया का विरोधाभासी प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए बल्‍कि अन्‍यत्र विद्यमान चालू खाते के अधिशेषों में कमी लाते हुए इसमें संतुलन स्‍थापित किया जाना चाहिए। संतुलन की इस प्रक्रिया में हमारे देशों में समुचित रूप से समन्‍वित नीतियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

पिट्सबर्ग में हमने जिस पारस्‍परिक आकलन प्रक्रिया को स्‍वीकार किया था, वह इस प्रकार का समन्‍वय प्राप्‍त करने की दिशा में जी-20 की एक विलक्षण पहल थी। हमने देशों के समूहों के स्‍तर पर टोरंटो में पहले चरण के परिणामों को देखा। हमें आशा थी कि हम सियोल शिखर सम्‍मेलन के आयोजन तक राष्‍ट्र विशेष अनुशंसाओं पर विचार करने के लिए दूसरे चरण में प्रवेश कर जाएंगे।

हम अभी भी उस चरण में नहीं पहुंच पाए हैं, परन्‍तु इसके कारण सकारात्‍मक हैं। विभिन्‍न देशों में ढांचागत भिन्‍नताओं, विद्यमान अनिश्‍चितताओं और प्रत्‍येक देश द्वारा निर्धारित विविध लक्ष्‍यों के आलोक में सतत चालू खाता संतुलन के संबंध में किसी करार पर पहुंचना आसान नहीं है। इन लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए नीतियों के किसी विशेष समुच्‍चय पर सहमति व्‍यक्‍त करना और भी कठिन है।

इन कठिनाइयों के बावजूद हमें अंतर्राष्‍ट्रीय समन्‍वय के लिए कार्य योग्‍य जी-20 तंत्र का विकास करने की प्रक्रिया में शामिल रहना होगा। मेरा मानना है कि कुछ व्‍यापक सिद्धांतों पर काफी हद तक सहमति बन चुकी है।

सर्वप्रथम, हमें किसी भी कीमत पर प्रतिस्‍पर्धी अवमूल्‍य से बचना होगा और संरक्षणवाद की भावना के उदय का मुकाबला करना होगा।

दूसरी बत यह है कि जिन देशों में घाटा बहुत अधिक है, उन्‍हें अपनी-अपनी घरेलू परिस्‍थितियों के अनुरूप राजकोषीय मजबूती से जुड़ी नीतियों का पालन करना होगा जिससे कि मध्‍यम अवधि में ऋण निरन्‍तरता सुनिश्‍चित की जा सके। इसका अर्थ यह है कि सभी परिस्‍थितियों में राजकोषीय सुधार की ही आवश्‍यकता नहीं होगी।

तीसरी बात यह है कि हालांकि अन्‍यत्र संरचनागत सुधार भी आवश्‍यक हैं परन्‍तु इन बातों से घाटे वाले देशों में प्रभाविता और प्रतिस्‍पर्धा में वृद्धि होनी चाहिए जबकि अधिशेष वाले देशों में आंतरिक मांगों में भी विस्‍तार किया जाना चाहिए। पुन: संतुलन स्‍थापित किए जाने की इस प्रक्रिया में कुछ समय अवश्‍य लगेगा परन्‍तु यह आरंभ हो जानी चाहिए।

चौथी बात यह है कि सतत चालू खाते की निरन्‍तरता को कायम रखने के लिए विनिमय दर की लोचनीयता भी एक महत्‍वपूर्ण आधार है तथा हमारी नीतियों में इस विचारधारा को अवश्‍य जगह दी जानी चाहिए।

इसके साथ ही जिन देशों के पास बड़ा मुद्रा भण्‍डार है उनके समक्ष यह सुनिश्‍चित करने की विशेष जिम्‍मेदारी है कि उनकी मौद्रिक नीतियों से पूंजीगत प्रवाहों में असंतुलन न आए क्‍योंकि इससे उदीयमान बाजारों पर दबाव बढ़ेगा।

इन उपायों में मैं एक अन्‍य उपाय भी जोड़ना चाहूंगा, जिस पर काफी चर्चा की गई है। आज जब हम विकासशील देशों के लिए संवेदनशील पूंजीगत प्रवाहों में असंतुलन पैदा करने वाली वृद्धि से बचने का प्रयास कर रहे हैं, तो भी इन देशों को प्रोत्‍साहन निवेश, विशेषकर अवसंरचना क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दिए जाने की आवश्‍यकता है। उप सहारा अफ्रीका के देशों सहित अन्‍य उदीयमान बाजारों के आर्थिक प्रदर्शन में हाल के वर्षों में काफी सुधार आया है।

इन देशों में निवेश की अपार संभावनाएं हैं जिससे विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में मांग में वृद्धि की जा सकती है। वैश्‍विक बचत के पुनर्चक्रण के जरिए इस प्रक्रिया में बहुपक्षीय विकास बैंकों की भी अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अन्‍य उदीयमान बाजार व्‍यवस्‍थाएं भी अवसंरचना क्षेत्र सहित अन्‍य क्षेत्रों में भारी मात्रा में निजी निवेशों को आकर्षित करने की स्‍थिति में हैं।

अधिशेष बचत का उपयोग विकासशील देशों में किए जाने से न सिर्फ मांग असंतुलन की समस्‍या से तत्‍काल बचने में मदद मिलेगी बल्‍कि इससे विकास असंतुलनों को दूर करना भी आसान हो जाएगा। दूसरे शब्‍दों में हमें एक प्रकार के असंतुलन को दूर करने के लिए दूसरे प्रकार के असंतुलन का उपयोग करना चाहिए।

यदि हम इन क्षेत्रों में समन्‍वय स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से एमएपी प्रक्रिया के दूसरे चरण के लिए अपने आपको प्रतिबद्ध करते हैं, तो जी-20 के विभिन्‍न बाजारों को एक सशक्‍त संकेत देने में सफल रहेगा। हमारे वित्‍त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों से कहा जा सकता है कि वे अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष की सहायता से इन विचारों को और विकसित करें तथा यथासंभव शीघ्र हमारे देशों के वाह्य संतुलनों के लिए सतत विकास की प्रक्रियाओं की पहचान करने के लिए एक विश्‍वसनीय दृष्‍टिकोण का निर्धारण करें और इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए प्रत्‍येक देश द्वारा अपनाई गई नीतियों का आकलन करें।

मैं इस बात को स्‍वीकार करता हूँ कि यह कार्य आसान नहीं होगा और हमें करते हुए सीखने की प्रक्रिया में पर्याप्‍त लोचनीयता का प्रदर्शन करना होगा। तथापि, यदि हम ऐसा कर पाते हैं, तो हम वैश्‍विक शासन की नई प्रणाली में स्‍थाई योगदान देने में सफल होंगे।

कोरियाई अध्‍यक्षता के दौरान जी-20 की कार्यसूची में विकास को कार्यसूची में शामिल किए जाने के लिए मैं उन्‍हें धन्‍यवाद देता हूँ। जी-20 का जन्‍म आर्थिक संकट के दौरान हुआ और इसीलिए यह संकट प्रबंधन एवं वैश्‍विक संतुलन की लघु आवधिक कार्यसूची से ही मुख्‍य रूप से जुड़ा रहा। तथापि, हमारे समक्ष विद्यमान सबसे गंभीर असंतुलनों में से एक अर्थात विकास असंतुलन को जी-20 की कार्यसूची में जगह दिया जाना एक ऐसा महत्‍वपूर्ण कार्य किए जाने के समान है,

जो शेष रह गया था।

मैंने पहले ही उल्‍लेख किया कि आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों में विकासशील देशों का प्रदर्शन काफी अच्‍छा रहा है और इन देशों ने बाद के वर्षों में भी काफी अच्‍छा प्रदर्शन किया है। तथापि, हमें यह सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता है कि विशेषकर व्‍यापार के लिए परिवेश सहित समग्र वैश्‍विक आर्थिक पर्यावरण विकास की प्रक्रिया के अनुकूल बना रहे।

सियोल विकास सर्वसम्‍मति और इससे संबद्ध बहुवर्षीय कार्य योजनाएं, जो फिलहाल बनाई जा चुकी हैं, हमें निर्धारित समय सीमा के भीतर एक ऐसी व्‍यापक कार्यसूची उपलब्‍ध कराती हैं जिसके लिए हमें आने वाले महीनों में सभी संबंधित मंचों पर प्रयास करने चाहिए।

मुझे विशेषकर राष्‍ट्रीय एवं क्षेत्रीय अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश को सुविधाजनक बनाने पर विशेष बल दिए जाने और अवसंरचना निवेश हेतु निजी, अर्धसार्वजनिक और सार्वजनिक संसाधनों को एकत्र करने के लिए अनुशंसित उपाय प्राप्‍त करने हेतु उच्‍च स्‍तरीय पैनल की स्‍थापना का आह्वान किए जाने और इस क्षेत्र में एमडीबी नीति की समीक्षा किए जाने की खुशी है। अधिकांश उदीयमान बाजारों में तीव्र एवं समावेशी विकास के मार्ग में सीमित अवसंरचना एक बड़ी बाधा है और हमें अवसंरचना विकास पर आने वाली विशाल लागत को वहन करने के लिए नए तरीके ढूंढ़ने होंगे। एमडीवी कार्यसूची में भी इस पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।

नियोजन कौशलों के विकास पर बल देना भी उतना ही महत्‍वपूर्ण है। भारत में हम श्रम बाजार में भारी संख्‍या में प्रवेश करने वाले श्रम बलों के लिए गुणवत्‍ता आधारित नौकरियां उपलब्‍ध कराने के कार्य को भी उच्‍च प्राथमिकता प्रदान कर रहे हैं।

सियोल शिखर सम्‍मेलन में अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष में सुधार पर भी ध्‍यान दिया जा रहा है। हमने छ: प्रतिशत कोटे का हस्‍तांतरण उदीयमान बाजार अर्थव्‍यवस्‍थाओं के पक्ष में करने पर सहमति व्‍यक्‍त की है। इसके साथ ही बोर्ड की संरचना में सुधार लाकर यूरोपीय प्रतिनिधित्‍व में कमी लाई जा रही है।

अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष को पहले से ही उपलब्‍ध कराए गए अतिरिक्‍त संसाधनों के साथ हमने अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष को न सिर्फ अपेक्षित प्रदर्शन करने के लिए आवश्‍यक संसाधन उपलब्‍ध कराए हैं बल्‍कि इसे बेहतर लोकतंत्रीकरण की दिशा में कार्य करने के लिए भी प्रेरित किया है। इस दिशा में और भी कार्य किए जाने की आवश्‍यकता है तथा हम वर्ष 2013 तक कोटा फार्मूले की व्‍यापक समीक्षा किए जाने के निर्णय का स्‍वागत करते हैं जिससे कि यह उदीयमान बाजार अर्थव्‍यवस्‍थाओं के बढ़ते आर्थिक महत्‍व को प्रतिबिंबित कर सके।

इस तथ्‍य को कोटे की अगली समीक्षा में पूर्णत: प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए जिसे वर्ष 2014 तक पूरा किया जाना है। अध्‍यक्ष महोदय, अंत में हमें निश्‍चित रूप से यह सुनिश्‍चित करना चाहिए कि बहुपक्षीय व्‍यापार वार्ताओं के दोहा विकास दौर का सफल समापन किया जाए। हमने मंदी की प्रवृत्‍तियों के कारण विश्‍व में संरक्षणवादी भावनाओं के उदय का अनुभव किया है। यह प्रशंसनीय है कि वास्‍तविक संरक्षणवादी कार्रवाइयां काफी हद तक सीमित रही हैं। संरक्षणवाद हावी न हो जाए, यह सुनश्‍चित करने का एक मात्र तरीका यही है कि व्‍यापार वार्ताओं में गति लाई जाए। मुझे आशा है कि जी-20 इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में अपने प्रभाव का उपयोग करेगा।

अंत में मैं कहना चाहूंगा कि जी-20 विश्‍व के समक्ष उत्‍पन्‍न प्रतिकूल परिस्‍थितियों का एक माकूल जवाब था। अब से कुछ वर्षों के बाद विश्‍व यह बात अवश्‍य पूछेगा कि वैश्‍विक वित्‍तीय संकट के कारण आने वाली भयानक मंदी से विश्‍व को बचाने को छोड़कर जी-20 ने और क्‍या किया। सौभाग्‍यवश कोरियाई अध्‍यक्षता काल में प्रदर्शित गतिशीलता के जरिए जी-20 आगे बढ़ा है और किए जाने वाले कार्यों के संबंध में एक समृद्ध कार्यसूची पर पहुंच पाया है। मैं कोरिया द्वारा किए गए अथक प्रयासों के लिए एक बार पुन: उन्‍हें धन्‍यवाद देता हूँ।

मैं इस बात के प्रति भी आश्‍वस्‍त हूँ कि फ्रांस की अध्‍यक्षता में जी-20 इस कार्यसूची को स्‍पष्‍ट परिणामों में अनूदित करने में सफल होगा और मैं उनके साझे प्रयासों की सफलता की कामना करता हूँ।

सियोल
12 नवंबर, 2010



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