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प्रधानमंत्री की उज्बेकिस्तान यात्रा पर विदेश सचिव द्वारा विशेष ब्रीफिंग की प्रतिलिपि (16 सितंबर, 2022)

सितम्बर 17, 2022

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: मीडिया के मित्रों, मेरे सहयोगी राजदूत मनीष प्रभात, अरिन्दम, संघाई सहयोग संगठन और ईआरएस डिविजन्स के संयुक्त सचिवों– योजना और आदर्श, क्रमशः, को शुभ संध्या। हमारा कार्यक्रम थोड़ा व्यस्त चल रहा है क्योंकि प्रस्थान कार्यक्रम भी जारी है। आपके अनुवर्ती प्रश्नों का उत्तर देते हुए इस कार्यक्रम की अवधि को हम अपेक्षाकृत छोटा रखेंगे। आज शाम यहां आने के लिए एक बार फिर से आप सभी का धन्यवाद, मुझे पता है हम सभी के पास समय का अभाव है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन की 22वीं बैठक में हिस्सा लेने के लिए पिछली रात समरकंद पहुँचे। प्रधानमंत्री ने आज दिन में हुए अलग–अलग मुलाकातों के दौरान उज़्बेक एवं उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति का, उत्कृष्ट व्यवस्था एवं भारत समेत सभी प्रतिनिधिमंडलों को दिए गए गर्भजोशी से भरे आतिथ्य के लिए आभार व्यक्त किया। जैसा कि आप जानते हैं, आज सुबह आरंभ हुआ शिखर सम्मेलन दो सत्रों में बंटा था, एक सत्र में केवल सदस्य देशों ने हिस्सा लिया और दूसरे विस्तारित सत्र में सदस्य देशों के साथ पर्यवेक्षकों और आमंत्रित देशों ने हिस्सा लिया और अपनी बात रखी।

विस्तारित सत्र में प्रधानमंत्री ने जो बातें कही वह आप सब के साथ साझा की जा चुकीं हैं। मैं केवल दो सत्रों में हुए प्रधानमंत्री के मध्यवर्तन के कुछ प्रमुख बातों को यहां रखना चाहता हूँ। पहला, उन्होंने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिति एवं अफगानिस्तान समेत क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा के मुद्दों पर भारत के दृष्टिकोण को साझा किया था। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इस क्षेत्र और दुनिया भर में विकास के मुद्दे एससीओ ( SCO) चर्चाओं के तहत एजेंडा के विषय हैं। दूसरा, उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन में मध्य एशियाई गणराज्यों की आकांक्षाओं एवं जरूरतों की केंद्रीयता पर जोर दिया है। तीसरा, क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ने के लिए अधिक सहयोग की आवश्यकता है। और इस संदर्भ में, उन्होंने एससीओ (SCO) द्वारा निभाई जा सकने वाली भूमिका पर ज़ोर दिया, इसमें एससीओ आरएटीएस ( SCO RATS) संगठन, जो हमारे क्षेत्र में आतंकवाद के संकट का मुकाबला करने वाला एससीओ का अंग है, के कार्य भी शामिल हैं। चौथा, बेहतर क्षेत्रीय संपर्क की आवश्यकता पर बल दिया, जो भारत और एससीओ के सदस्य देशों, भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापक आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग के लिए नितांत अनिवार्य है। और इस संदर्भ में प्रधानमंत्री समेत सभी सदस्य देशों ने इस शिखर सम्मेलन के दौरान ईरान को एससीओ के सदस्य देश के रूप में शामिल किए जाने का स्वागत किया। चाबाहार, नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के साथ क्षेत्रीय संपर्क हेतु एक अन्य महत्वपूर्ण परियोजना का भी प्रधानमंत्री के भाषण में उल्लेख किया गया था।

प्रधानमंत्री ने संगठन में होने वाले विस्तार के प्रति अपना समर्थन दोहराया और इस संदर्भ में हमने ईरान और बेलारूस का, नए सदस्य देश के रूप में स्वागत किया। निश्चित रूप से दोनों सदस्य राष्ट्र अपनी सदस्या के मामले में प्रक्रिया के भिन्न चरणों में हैं और शंघाई सहयोग संगठन के नए संवाद साझीदारों के रूप में यूएई, मालदीव, बहरीन, कुवैत और म्यांमार को भी शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री ने व्यापार और अर्थव्यवस्था, मानवीय एवं विकास साझेदारी के क्षेत्र में वास्तविक सहयोग की आवश्यकता पर ध्यान दिलाया औऱ एससीओ के सदस्य देशों के बीच सहस्राब्दी पुरानी सभ्यतागत संबंधों का उपयोग नींव के रूप में किए जाने की बात की जिस पर भारत एवं एससीओ के बीच सहयोग के इन दो स्तरों का निर्माण किया जा सके और इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने आगामी वर्ष 2022-23 के दौरान वाराणसी, काशी को एससीओ के पहले पर्यटक एवं सांस्कृतिक राजधानी के रूप में अपना समर्थन देने के लिए एससीओ के सभी सदस्य देशों को धन्यवाद दिया। मैं यहां इस बात को रेखांकित करना चाहता हूं कि यह ऐतिहासिक शहर वाराणसी को दिया उचित सम्मान है और इससे भारत एवं इस क्षेत्र के बीच सांस्कृतिक एवं लोगों–से–लोगों के बीच संबंधों का नया द्वारा खुलेगा। आगामी वर्ष के दौरान काशी को एससीओ के पर्यटक एवं सांस्कृतिक राजधानी घोषित करने के हिस्से के रूप में, उत्तरप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के सहयोग से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, एससीओ द्वारा शहर को दी गई मान्यता की सराहना करने के लिए इन कार्यक्रमों का आयोजन वाराणसी में किया जाएगा।

परिणामों के बीच, दोनों स्तरों पर बडी संख्या में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए। एक, राष्ट्र और सरकार के प्रमुखों द्वारा और दूसरा, कार्यात्मक स्तर पर, मुझे लगता है हमारे मामले में, राजदूत इस पर हस्ताक्षर करेंगे। लेकिन प्रमुख परिणामों में शिखर सम्मेलन के सार के रूप में समरकंद घोषणा रही। नेताओं ने हमारी पहल पर जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया पर वचन दिया। इस बात को मैंने कल की प्रेस वार्ता में भी बहुत संक्षेप में कहा था। एससीओ ने स्टार्ट–अप और नवाचार पर विशेष कार्य समूह बनाने का भी निर्णय किया है। मैं कल कही अपनी बात को एक बार दोहराना चाहूंगा कि इस विशेष कार्य समूह के अध्यक्ष होने के नाते, हम इस समूह के स्थायी अध्यक्ष होंगे। यह विशेष कार्य समूह का प्रस्ताव है और इसमें स्वयं प्रधानमंत्री ने भी अपने भाषण पर इस मुद्दे पर जोर दिया था। और आज का निर्णय एससीओ की रूपरेखा में स्टार्ट–अप संस्कृति के समावेश को बढ़ावा देने एवं एससीओ सदस्यता, मध्य एशियाई देशों के साथ भारतीय स्टार्ट–अप और नवाचार प्रणाली के बीच जुड़ाव को बढ़ावा देने में मदद करेगा। एससीओ ने एक अन्य भारतीय पहल को भी मंजूरी दी एवं परंपरागत चिकित्सा पर विशेषज्ञ कार्य समूह के गठन के माध्यम से एक अन्य भारतीय पहल को स्वीकार किया। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप सभी जानते हैं कि भारत के पास वैश्विक नेता बनने की क्षमता है औऱ इसे इसी रूप में स्वीकार किया जाता है। और इस संदर्भ में हाल ही में गुजरात राज्य में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की शुरुआत किया जाना, आप सभी को याद होगा ।

आतंकवाद पर, एससीओ ने आतंकवाद, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एकीकृत सूची तैयार करने की दिशा में काम करने पर सहमत हुआ, जिनकी गतिविधियां एससीओ सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं। मुझे यहां इस बात उल्लेख अवश्य करना चाहिए कि एससीओ के सदस्य राष्ट्रों ने हमारे क्षेत्र और एससीओ के सदस्य राष्ट्रों के लिए इस चुनौती से संबंधित खतरों को बहुत स्पष्ट रूप से समझा। यहां कुछ अंतर–सरकारी समझौते भी हुए जिनमें पर्यटन और प्लांट क्वारंटाइन मुद्दे समेत अनुमोदित किया गया। कुछ अन्य समझौतों को भी अनुमोदित किया गया था, जिसमें अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर डिजिटल साक्षरता समझौता, औद्योगिक सहयोग को प्रोत्साहित करना आदि शामिल थे।

प्रतिबंधित और विस्तारित प्रारूप के माध्यम से अपनी भागीदारी और हस्तक्षेप के अलावा प्रधानमंत्री ने उज़्बेकिस्तान, रूस, ईरान और तुर्की के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी कीं। मैं इनमें से प्रत्येक बैठक में हुई प्रमुख बातों के बारे में बताऊंगा। मेरा विचार है कि इनमें से कुछ को पहले ही प्रेस विज्ञप्ति के रूप में जारी किया जा चुका है। उज़्बेकिस्तान के साथ, अनिवार्य रूप से पांच बातें। व्यापक बिन्दु हैं– एक, दोनों नेताओं ने हमारे द्विपक्षीय संबंधों की 30वीं वर्षगांठ को मनाया। दूसरा, दोनों ने विशेष रूप से व्यापार और निवेश आधारित संबंधों में द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए दोनों देशों द्वारा उठाए जा रहे व्यावहारिक कदमों पर ज़ोर दिया। तीसरा, चाबहार बंदरगाह और नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के मामले में दोनों देशों के बीच संपर्क को मजबूत करने, सुधारने की आवश्यकता है। चौथा, वर्ष के दौरान पहले भारत– मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान लिए गए निर्णयों का शीघ्र कार्यान्वयन और पांचवा, अफगानिस्तान की स्थिति और निश्चित रूप से आतंकवाद के खतरे सहित दोनों देशों के संबंध में सामान्य हितों एवं सामान्य चिंताओं के क्षेत्रीय मुद्दे पर काम करना।

रूस के संबंध में, आप सभी ने सुना कि दोनों नेताओं ने अपने उद्घाटन भाषण में क्या कहा, जो प्रेस के लिए लाइव भी थे। लेकिन इसके अलावा, प्रधानमंत्री और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच सभी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय सहयोग के मुद्दों पर बातचीत की गई थी। दो, स्वाभाविक रूप से यूक्रेन की स्थिति पर भी चर्चा हुई और आपने दोनों नेताओं के शुरुआती भाषण में जो कहा गया उसे भी सुना, लेकिन अपनी अनुवर्ती बातचीत में, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और निश्चित रूप से ऊर्वरक सुरक्षा समेत रुस– यूक्रेन स्थिति से पैदा होने वाले मामलों पर भी चर्चा की गई। तीन, आतंकवाद की चुनौती का मुद्दा, जो निस्संदेह चर्चा का अन्य मुद्दा था। प्रधानमंत्री ने, जैसा कि उन्होंने अक्सर कहा है और इसका संकेत भी दिया है, ने, अपनी आरंभिक टिप्पणी में, एक बार फिर, शत्रुता को समाप्त करने और बातचीत एवं कूटनीति की आवश्यकता के आह्वान किया।

अपनी पिछली बैठक में, जो अभी– अभी ईरान के राष्ट्रपति के साथ समाप्त हुई थी, तीन–चार प्रमुख बातें थीं। एक, प्रधानमंत्री ने ईरान के राष्ट्रपति को बधाई दी क्योंकि यह उनकी व्यक्तिगत स्तर पर पहली मुलाकात थी। राष्ट्रपति पद संभालने पर व्यक्तिगत रूप से बधाई दी। दो, मैं कहूंगा कि व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग की पूरी श्रृंखला के क्षेत्र में दोनों देशों द्वारा किए जाने वाले कार्यों की एक पूरी श्रृंखला का मूल्यांकन किया गया। और इसमें निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच ऊर्जा संबंधी मुद्दों, सहयोग के विषय को शामिल किया गया। तीन, चाबहार बंदरगाह, भारत और ईरान के बीच संबंधों के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है। और जैसा कि आप जानते हैं, भारत पहले ही उस परियोजना में लगभग 85 मिलियन डॉलर से अधिक की राशि का निवेश कर चुका है। हम दोनों देशों के लिए चाबहार बंदरगाह के विकास में तेज़ी लाना आवश्यक है ताकि यह पूरे क्षेत्र, पूर्व–पश्चिम और उत्तर– दक्षिण, दोनों ही में, कनेक्टिविटी का महत्वपूर्ण पारगमन बिन्दु के रूप में कार्य कर सके। राष्ट्रपति रईसी ने जेसीपीओए वार्ता की स्थित के बारे में चल रहे जेसीपीओए पर प्रधानमंत्री को संक्षिप्त जानकारी भी प्रदान की।

मुझे इस बात का भी उल्लेख करना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने दिन में तुर्की के राष्ट्रपति से मुलाकात की और भारत एवं तुर्की दोनों के हितों के क्षेत्रों के संदर्भ में, द्विपक्षीय स्तर पर वे क्या करते हैं, क्षेत्रीय रूप से वे कैसे अभिसरण कर सकते हैं और विश्व में विकास संबंध में उनके दृष्टिकोण अधिक घनिष्ठता के साथ कैसे मेल खा सकते हैं, पर, संक्षिप्त, लेकिन व्यापक चर्चा की। दोनों नेताओं ने हाल में हुए द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी पर बात की, जो काफी व्यापक है। व्यापार करीब 10 अरब डॉलर के करीब पहुंच चुका है; आर्थिक संबंधों को गहरा करने और निश्चित रूप से, जैसा कि मैंने कहा, इस क्षेत्र में और पूरे विश्व में विकास के लिए स्पष्ट, विशिष्ट तत्व।

24 घंटे से भी कम का दौरा, लेकिन बहुत, बहुत उत्पादक और उपयोगी बातचीत वाले व्यस्त कार्यक्रम को आप स्पष्ट रूप से देख, स्वीकार कर सकते हैं और इसकी सराहना कर सकते हैं। एससीओ के दोनों सदस्य और विशेष रूप से नेताओं, जिनका मैंने जिक्र किया है। मुझे लगता है कि हम एससीओ के एजेंडा में काफी सफलतापूर्वक योगदान करने में सक्षम हैं लेकिन इस अवसर का उपयोग अन्य द्विपक्षीय साझीदारों के साथ जुड़ाव के नए स्तरों के निर्माण के लिए भी करते हैं जिनका संक्षिप्त विवरण सूचीबद्ध है। मुझे लगता है कि अब मुझे अपनी बात यहीं पर समाप्त कर देनी चाहिए और मुझे आप सब के प्रश्नों का उत्तर देने में प्रसन्नता होगी। मैं एक बार फिर बता दूं कि हमारे पास समय का थोड़ा अभाव है। कृपया अपना प्रश्न शीघ्र पूछें।

श्री अरिन्दम बागची, सरकारी प्रवक्ता: हम प्रश्नों का दौर शुरु करते हैं और यह पहला प्रश्न होगा। ठीक है। हम आपसे शुरू करते हैं।

ब्रह्म प्रकाश: Sir मैं ब्रम्हप्रकाश हूँ Zee News से, मेरा सवाल पाकिस्तान को लेकर है, जिस तरह से भारत की मौजूदगी में पाकिस्तान ने कहा कि वो खुद आतंकवाद का शिकार है और उसपर प्रतिबंध हटने चाहिए। भारत का क्या मानना है और दोनों देश के बीच मुलाकात की क्या कोई संभावना थी या क्यों नही बैठक हो सकी और खासतौर से चीन के साथ में। Thank you !

नयनिमा: द प्रिंट से नयनिमा। ईरान के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता में, क्या तेल के पुनर्ग्रहण पर चर्चा की गई थी और क्या चाबहार परियोजना एवं ज़ाहेदान रेल लिंक पर भी बात हुई। धन्यवाद।

सुहासिनी: पाकिस्तान के विदेश मंत्री, बिलावल भुट्टो ने कहा कि पाकिस्तान ने अभी तक इस बारे में फैसला नहीं किया है कि क्या पाकिस्तान भारत में एससीओ की होने वाली बैठकों और साथ ही एससीओ के शिखर सम्मेलन में भाग लेगा या नहीं। क्या इससे कोई समस्या हो सकती है?

सिद्धांत: सर, मैं डब्ल्यूआईओएन (WION) से सिद्धांत। क्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कोई सुखद वार्ता हुई या दोनों नेताओं ने केवल हाथ मिलाया?

अभिषेक: सर में सीएनएन न्यूज़ 18 (CNN News 18) से अभिषेक। सर, क्या आपने कहा था कि एससीओ आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों की सूची के साथ सामने आएगा?

स्मिता शर्मा: स्मिता शर्मा। प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों में राष्ट्रपति पुतिन के माध्यम से आई टिप्पणियों से ऐसा लग रहा था कि नई दिल्ली ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि यह अनिवार्य रूप से अब रूप पर निर्भर है कि वह यूक्रेन संघर्ष को हल करने की दिशा में और कदम उठाए। क्या इस विषय पर आप थोड़ा विस्तार से जानकारी दे सकते हैं?

मनीष चांद: सर मैं मनीष चांद, इंडिया राइट्स नेटवर्क से। सर, अफगानिस्तान के साथ किस प्रकार की चर्चा हुई, जैसे, आप जानते हैं, मैं आपका ध्यान पाकिस्तान के मामले पर दिलाना चाहता हूँ।

श्री अरिन्दम बागची, सरकारी प्रवक्ता: किसके साथ?

मनीष चांद: नहीं, सामान्य रूप से, एससीओ में, एससीओ की भूमिका स्थिरता लाने की है, और आप जानते हैं कि अपनी टिप्पणी में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने तालिबान की संपत्तियों को मुक्त करने की बात की थी। उन्होंने तालिबान शासन को मान्यता प्रदान करने की जबरदस्त सिफारिश की। एससीओ का दृष्टिकोण क्या था?

अभिषेक उपाध्याय: Sir अभिषेक उपाध्याय ABP News से, sir ये जो political controversy हो गई, order था खड़े होने का सारे राष्ट्राध्यक्षो का, उसपर आप क्या कहेंगें कि क्या उसके पीछे का protocol क्या था, जो controversy हुई उसकी क्या हकीकत क्या है? थोडा आप clarify कर पाएंगे तो चीज़े clear होंगी उसमें।

माहा सिद्दिकी: सर, मैं माहा सिद्दीकी। क्या चीन की तरफ से बैठक का कोई अनुरोध किया गया था, जो नहीं हो सका।

श्री अरिन्दम बागची, सरकारी प्रवक्ता: देखिए, एससीओ में प्रतिबंधित प्रारूप में एक कार्यप्रणाली है, लोग रूसी वर्णमाला के अनुसार क्रमबद्ध किए जाते हैं, शुरुआत भारत से होती है क्योंकि यह उसमें पहला आता है। शायद छोड़ा बदलाव हुआ है, लेकिन हम हमेशा से उस तरफ रहे हैं। मुझे नहीं पता कि विवाद क्यों पैदा हुआ।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: सबसे पहले मैं उन प्रश्नों का उत्तर दे देता हूँ जो कौन सी बैठकें हुईं, कौन सी बैठकें नहीं हुईं, वे बैठकें क्यों नहीं हुईं, से संबंधित हैं। मैंने आपको प्रमुख बैठकों के बारे में, एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने जिन प्रमुख द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लिया था, जिनमें उज़्बेकिस्तान, रूस, तुर्की और ईरान के राष्ट्रपति के साथ हुई बैठक शामिल है, के बारे में जानकारी दी है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि, जो बैठकें निर्धारित की गईं थीं और जिनके लिए हमारे पास अनुरोध आए थे, उन सब पर विचार किया गया था और वे सभी बैठकें तय कार्यक्रम के अनुसार हुईं थीं। इसलिए, मैंने जो कुछ भी आपको नहीं बताया है, स्पष्ट है कि, उससे संबंधित कोई बैठक नहीं हुई हैं। और मुझे नहीं लगता है कि क्या हुआ और क्या नहीं हुआ पर कुछ बताने को रह गया है।

आपका जो I think पाकिस्तान से related आपका प्रश्न था वो उसी तक ही सिमित था। तेल के पुनर्ग्रहण, चाबहार कनेक्टिविटी और व्यापार लिंक पर, मुझे लगता है यही आपका प्रश्न था। यदि आप ईरान के साथ हमारी चर्चाओं का इतिहास देंखें, ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित प्रश्न हमेशा से महत्वपूर्ण तत्व रहा है। चाहे वह जेसीपीओए से पहले के दिनों में हुई चर्चाएं हों या कभी– कभी जेसीपीओए के सफल कार्यान्वयन के दौरान, चाहे प्रश्न तेल व्यापार का हो, उस क्षेत्र में भारत के निवेश, संयुक्त निवेश का हो, बातचीत की गुंजाइश हमेशा रही है। और मुझे लगता है कि यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि यदि दो नेताओं की मुलाकात होती है तो वे इस क्षेत्र पर सहयोग की स्थिति पर बात अवश्य करेंगे। यही बात चाबहार बंदरगाह और चाबहार बंदरगाह से संबंधित कनेक्टिविटी के अन्य तरीकों पर भी लागू होती है, चाहे वह रेल संपर्क हो या सड़क संपर्क, जो चाबहार बंदरगाह क्षेत्र से इलाके के अन्य हिस्सों से संबंधित हों। जैसा कि मैंने बताया है, चाबहार बंदरगाह क्षेत्रीय संपर्क स्तंभ का महत्वपूर्ण तत्व है, और ईरान के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री की चर्चा में इस पर व्यापक और कुछ विस्तार के साथ बातचीत हुई है और निश्चित रूप से उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति के साथ, जो यह सुनिश्चित करने में गहरी दिलचस्पी रखते हैं कि भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क में सुधार हो। और निश्चित रूप से हमारे लिए न केवल मध्य एशियाई देशों के साथ बल्कि इस क्षेत्र के परे भी कनेक्टिविटी में सुधार होना चाहिए। स्मिता, मुझे लगता है…

स्मिता शर्मा: रूस के राष्ट्रपति और रूस के साथ अब की स्थिति पर टिप्पणी…

विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: ठीक है। मुझे लगता है, दोनों नेताओं ने स्पष्ट शब्दों में जो कहा, मेरा उसकी व्याख्या करना अनुचित होगा। आप सभी ने वह बहुत स्पष्ट रूप से सुना है। मैं जो कहना चाहता हूं वह बहुत स्पष्ट है और मुझे लगता है, रूस, यूक्रेन की वर्तमान स्थिति पर पहला कदम कौन उठाएगा, इसका प्रश्न नहीं है। मुझे लगता है कि परिप्रेक्ष्य, प्रयास, और भारत जिस सोच के साथ खड़ा है, वह महत्वपूर्ण है। और यदि आप वास्तव में इसका विस्तार से विश्लेषण करेंगी तो, जब हम कहते हैं शत्रुता समाप्त होनी चाहिए और वर्तमान में चल रहे रूस– यूक्रेन युद्ध का समाधान कूटनीति और बातचीत के माध्यम से होना चाहिए तो आप स्पष्ट रूप से अंतर्निहित मंशा और इसके पीछे के उद्देश्य को देख पाएंगी। और मुझे लगता है कि राष्ट्रपति पुतिन के साथ अपनी बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के आरंभिक उद्धाटन टिप्पणियों में यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है, जो जनता के लिए लाइव था।

मनीष, अफगानिस्तान से संबंधित प्रश्न, मैंने पहले ही इस बात को रेखांकित किया है कि अफगानिस्तान पर हमारा दृष्टिकोण कुछ वैसा ही है जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन में अपने भाषण और अन्य देशों के अपने समकक्ष नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता में बहुत दृढ़ता के साथ रखा। और इस बात का बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि, एक, अफगानिस्तान में भारत की प्राथमिकताएं हमेशा से इस प्रकार की रही हैं कि वह स्वयं को अफगानिस्तान के नागरिकों के लाभ, विकास से जोड़ कर देखता है। चाहे वह मानवीय सहायता के माध्यम से हो या विकास सहयोग साझेदारी परियोजना के माध्यम से, अफगानिस्तान के साथ हमारे सहयोग की मानव–केंद्रित प्रकृति पर आवश्यक ध्यान दिया गया है। अफगानिस्तान के सरकार का स्वरूप क्या होना चाहिए- वहां क्या होता है, यह ऐसा विषय है जिसे अफगानिस्तान के लोगों को तय करना है लेकिन हम हमेशा एक समावेशी अफगान सरकार के पक्ष में रहे हैं जो अफगान के नेतृत्व वाली, अफगानियों की हो। और मैं समझता हूँ कि प्रधानमंत्री के भाषणों और अन्य नेताओं के साथ उनकी बातचीत में भी यह दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट रूप से सामने आया है।

राष्ट्राध्यक्षो किस प्रकार से खड़े हुए उसका उत्तर already हमारे spokesperson दे चुके है बाकि प्रश्नों के उत्तर भी

अभिषेक उपाध्याय: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को लेकर के मेरा सवाल था,आतंकवाद को लेकर जो उन्होंने झूठ बोला उसपर भारत क्या कहेगा क्योकि उसके आतंकवाद से भारत प्रभावित रहा है।

विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: देखिए, पाकिस्तान ने आतंकवाद के बारें में क्या कहा ये तो आप पाकिस्तान से पूछे तो अति उत्तम रहेगा लेकिन भारत का आतंकवाद को लेके क्या परिपेक्ष है वो हमेशा से स्पष्ट है। आतंकवाद एक क्षेत्रीय समस्या है, आतंकवाद की उत्पत्ति कहाँ है? उसका mitigation कैसे हो? उसको सँभालने के लिए,उसको mitigate करने के लिए किस प्रकार क्षेत्रीय देश एक संगठित हो, एक साथ मिलकर उसका समाधान ढूंढे, SCO के agenda में वही एक मुख्य परिपेक्ष था और जैसा मैंने बताया कि जो SCO के structure है regional anti-terrorism structure उसके अंतर्गत SCO संस्था,संस्था के रूप में और उस संस्था के द्वारा सदस्य लोग जो है वो किस प्रकार से आतंकवाद की समस्या का मुकाबला करते है वो सुनिश्चित किया जाता है। किस ने क्या कहा, सच कहा या झूठ कहा वो तो आप जिसने कहा उन्ही से पूछे तो ठीक रहेगा।

अध्यक्ष 1: ईरान पर प्रेस विज्ञप्ति में जेसीपीओए (JCPOA) पर बातचीत पर ईरान के विवरण के बारे में है। विशेष रूप से, जेसीपीओए ( JCPOA) पर, क्या है …

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: मुझे लगता है कि ईरान के राष्ट्रपति ने बातचीत में, जारी जेसीपीओए ( JCPOA) वार्ताओं की वर्तमान स्थिति पर अपने दृष्टिकोण पर संक्षेप में बताया है।

श्री अरिन्दम बागची, सरकारी प्रवक्ता: आप सब का आज, यहां आने के लिए बहुत– बहुत धन्यवाद। अब हमें अपनी बातचीत यहीं समाप्त करनी होगी। धन्यवाद।

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