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भारत-जापान के बीच विशेष रणनीतिक साझेदारी पर निकेई फोरम में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का भाषण

मार्च 08, 2024

आप सभी को वेरी गुड मार्निंग, और मैं कहना चाहूँगा कि उभरती वैश्विक व्यवस्था के संदर्भ में भारत-जापान साझेदारी पर चर्चा करने के लिए निकेई फोरम में आप सभी के साथ सम्मिलित होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। जैसा कि आप सब अवगत हैं, या कम से कम आप में से कुछ लोग तो जानते होंगे, कि मैंने दो पुस्तकें लिखी हैं जिनमें निश्चित रूप से बदलते क्रम पर चर्चा की गई है, और इसके अलावा भारत-जापान संबंधों की प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला गया है। निःसंदेह यह इस विषय पर मेरे गहन विश्वास को रेखांकित करता है। यह इस संबंध के साथ मेरा दीर्घकालीन जुड़ाव भी दर्शाता है, और पिछले दो दशकों में इसके रूपांतरण का भी मैं साक्षी रहा हूँ।

2. अपनी पहली पुस्तक 'द इंडिया वे' में, मैंने जापान के एक बड़े अकल्पनीय भावी दृष्टिकोण पर बात की थी, क्योंकि यह वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था में विशाल तकनीकी क्षमताओं वाली एक प्रमुख अर्थव्यवस्था को के साथ वापसी करेगा। उस पहली पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद व्यतीत चार वर्षों में, मैं इस विश्वास के प्रति और भी अधिक आश्वस्त हो गया हूँ। हम एआई और चिप्स, इलेक्ट्रिक गतिशीलता और बैटरी, स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल तकनीक, अंतरिक्ष और ड्रोन के क्षेत्रों में बदलाव ला रहे हैं, और वास्तव में और भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। इस मूल्यांकन का दर्पण प्रतिबिंब भारत से संबंधित है, जहां प्रतिभा का विशाल भंडार है। मेरे वर्तमान दौरे में, इस पूरकता को महसूस करना वास्तव में मेरी चर्चा का एक केंद्र बिंदु रहा है।

3. एक और बात जो मैंने अपनी पहली पुस्तक में कही वह वास्तव में हमारे संबंधों के ऐतिहासिक आधार से संबंधित है, जिनमें से कुछ शायद वर्तमान पीढ़ी के लिए थोड़ा अपरिचित है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे लिए, इतिहास हमारे संबंधों में एक सकारात्मक शक्ति है, कुछ ऐसा जो शायद एशिया में हमेशा नहीं कहा जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए, मैंने उस सहयोग के सामुद्रिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया था। इसका एक कारण यह भी था कि 2019-20 में, जब मेरी पहली पुस्तक आई थी, इंडो-पैसिफिक के बारे में बहस तब जारी थी, और क्वाड एक अलग बिंदु था। तब से दोनों इस क्षेत्र से परे भी व्यापक स्वीकार्यता प्राप्त करते हुए प्रतिष्ठित हुए हैं। सामुद्रिक मुद्दा विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि यह उस समय उभर रही ग्लोबल कॉमन्स की चुनौती का सबसे वास्तविक उदाहरण था। पुनः, तब से, यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है क्योंकि ऐसे बहुत सारे परिवर्तन हैं जो हम नए सामुद्रिक संतुलन के संदर्भ में देखने की अपेक्षा कर रहे हैं।

4. एक संबंधित मुद्दा जिसे मैंने चिह्नित किया वह संपर्क-सुविधा का था। समकालीन प्रयासों के संबंध में रणनीतिक स्पष्टता प्रदर्शित करने वाला भारत पहला देश था। हमने सार्वजनिक रूप से आग्रह किया कि संपर्क-सुविधा के प्रयास सहयोगात्मक, पारदर्शी, व्यवहार्य और संप्रभुता का सम्मान करने वाले होने चाहिए। सच कहूँ तो, उस समय विश्व के अधिकांश पक्षों में इस संबंध में स्पष्टता नहीं थी। समय और अनुभव ने उन्हें आगे बढ़ाया है, लेकिन हर चीज़ की एक कीमत चुकानी होती है।

5. अपनी दूसरी पुस्तक 'व्हाय भारत मैटर्स' में, मैंने क्वाड के परिप्रेक्ष्य से जापान से संबंधों पर अधिक स्पष्ट रूप से विचार किया। एक प्रश्न जिसने कई पर्यवेक्षकों को परेशान किया है, वह यह है कि क्वाड 2007 में विफल क्यों हुआ लेकिन 2017 और उसके बाद सफल रहा। इसका उत्तर निश्चित रूप से यह है कि 2007 में, कोई भी पक्ष ऐसा करने के लिए आवश्यक पूंजी, राजनीतिक पूंजी निवेश करने को तैयार नहीं था। और वे ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि जापान में कुछ आवाज़ों को छोड़कर, उनमें से किसी को भी वास्तव में इस बात की समुचित जानकारी नहीं थी कि अगले दशक में इंडो-पैसिफिक में किस प्रकार विकास होगा। बीच की घटनाओं के परिणामस्वरूप 2017 तक हमारी स्पष्ट रूप से अधिक समझ विकसित हुई। लेकिन यह भी अपने आप में पूर्ण उत्तर नहीं है.

6. यह तथ्‍य है कि क्वाड सदस्यों में से दो का तीसरे के साथ संधि संबंध है. भारत कई मायनों में एक बाहरी देश है। लेकिन मेरे विचार में, 2008 और 2017 के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में इतना अधिक बदलाव आया है कि क्वाड व्यवस्था व्यवहार्य और टिकाऊ बन गई है। मैंने अपनी पुस्तक में इन तीन द्विपक्षीय संबंधों की तुलना की है, और आप देख सकते हैं कि जहां अमेरिका और जापान के साथ भारत के संबंधों में सुधार के लिए एक समानांतर समय सीमा है, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने वास्तव में पिछले दशक में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

7. यह कहने के बाद मैं दृढ़तापूर्वक आगाह करूंगा कि कूटनीति में आत्मसंतुष्टि के लिए कोई जगह नहीं है। विभिन्न स्तरों पर संबंध लगातार विकसित करने होते हैं। उन्हें लगातार नवीनीकृत भी करना होता है। हमेशा नई जटिलताएँ होंगी लेकिन साथ ही, नए अवसर भी होंगे। आज भारत और जापान को इसी परिप्रेक्ष्‍य में आपसी संपर्क देखने चाहिए।

8. कुल मिलाकर, और कल अपने समकक्ष मंत्री कामिकावा के साथ लंबी चर्चा के बाद मैं यह कहना चाहूँगा कि हम व्यापक परिदृश्य और प्रमुख चिंताओं पर सहमत हैं। अधिक समन्वित तरीके से प्रतिक्रिया देने की हमारी प्रवृत्ति और क्षमता में भी सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए, हम देख सकते हैं कि रक्षा क्षेत्र में, भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास चल रहा है। निवेश के मामले में यह काफी बेहतर है, हालांकि व्यापार हमारी अपेक्षा से अधिक स्थिर बना हुआ है। भारत और जापान उभरती प्रौद्योगिकियों पर भी सक्रिय बातचीत कर रहे हैं जिनमें काफी संभावनाएं हैं। नई आपूर्ति श्रृंखला बनाना और सशक्त डिजिटल संपर्क बनाना हम दोनों की प्राथमिकताएं हैं। हम हाल ही में बहुपक्षीय संगठनों सहित विश्व राजनीति में एक साथ मिलकर काम करते रहे हैं। हालाँकि, व्यक्तियों से व्यक्तियों के बीच संबंध पीछे रह गए हैं और स्पष्ट रूप से इस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। यह अभी तक का रिपोर्ट कार्ड है।

9. मेरा तर्क यह है कि भारत-जापान संबंधों को न केवल हमारी व्यापक गतिविधियों से, खासकर क्वाड से मजबूती मिलेगी; बल्कि इसकी प्रभावशीलता और इसकी व्यापकता में भी योगदान होगा। निष्कर्ष यह है कि विश्व बदल रहा है, इंडो-पैसेफिक बदल रहा है, भारत और जापान बदल रहे हैं, लेकिन हमारे संबंधों में, हमारे लिए राष्ट्रीय स्तर पर, साथ ही पूरे क्षेत्र और विश्व के लिए अनेक समाधान मौजूद हैं।

तो,, एक बार फिर से, मेरे विचार सुनने के लिए मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूँ और आगे वार्ता हेतु उत्सुकता से प्रतीक्षारत हूँ।

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