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टोक्यो में रायसीना राउंड टेबल में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का भाषण (07 मार्च, 2024)

मार्च 07, 2024

टोक्यो में रायसीना राउंड टेबल में भाग लेकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। सबसे पहले मैं ओआरएफ, जेबीआईसी और कीज़ई डोयुकाई को उनके सहयोग के लिए, विशेष रूप से समीर, माएदा सैन और निनामी सैन को, इस विशेष उपक्रम में उनके नेतृत्व के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा।

यह सत्र इस बारे में है कि आपस में विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी वाले भारत और जापान, वैश्विक व्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों का किस प्रकार सामना करना चाहते हैं। इस विषय के कई पहलू हैं और मैं आठ बिंदुओं पर प्रकाश डालूंगा जिन पर मेरे विचार में बात की जानी चाहिए।

2. पहला उस व्यवस्था से ही संबंधित है, जो राजनीतिक और आर्थिक पुनर्संतुलन के संचय द्वारा निर्मित है, जो वैश्वीकरण द्वारा तेज हुई है और अब उभरती बहु-ध्रुवीयता में परिलक्षित है। हम - जीडीपी, प्रौद्योगिकी, प्रभाव, या जनसांख्यिकी, इनमें से किसी भी मेट्रिक्स का उपयोग करें- आज शीर्ष 20 या 30 देश वे नहीं हैं जो वे दो दशक पहले थे। वे 4 या 8 दशक पहले जो थे उससे भी कम हैं। न केवल वे देश अलग-अलग हैं जो हमें प्रभावित करते हैं, बल्कि उनका सापेक्ष प्रभुत्‍व, महत्व और क्षमताएं भी अलग-अलग हैं। परिणामस्वरूप, नए संतुलन की तलाश की जा रही है और कुछ मामलों में यह हासिल भी किया जा रहा है। यह उस अस्थिरता को प्रेरित करता है जिसे हम वर्तमान में वैश्विक व्यवस्था के रूप में वर्णित करते हैं।

3. दूसरा क्रम व्यवस्था को संदर्भित करता है. यह कई मायनों में अनिश्चित हो गई है, कम पूर्वानुमानित हो गई है या कम अनुशासित हो गई है। दरअसल, इसमें काफी अव्यवस्था है। अधिक हितधारकों के बीच आम सहमति बनाना बहुत कठिन हो गया है, खासकर जब वे अपनी परस्पर स्थिति पर सहमत नहीं होते हैं। हम बहुपक्षवाद, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र में जो देखते हैं, वह इसकी अभिव्यक्ति भी है और एक कारण भी है। परिणामस्वरूप हम तेजी से समान विचारधारा वाले साझेदारों की ओर बढ़ कर रहे हैं जो एक विशेष उद्देश्य के लिए एकजुट होते हैं।

4. तीसरा बिंदु परिदृश्य के संबंध में है। 1945 के बाद, प्रमुख शक्तियों की सुविधा के लिए इन्हें बड़े करीने से थिएटरों में बांटा गया। इसमें बदलाव आना शुरू हो गया है क्योंकि क्षमताएं सीमित हो गई हैं और प्रतिबद्धताएं सवालों के घेरे में आ गई हैं। अधिक विनम्र दौर के लिए अधिक सहयोग की आवश्यकता होती है। और इसे प्रभावी बनाने के लिए व्यापक क्षेत्रों की भी आवश्यकता है। इंडो-पैसिफिक का विकास इसका एक अच्छा उदाहरण है।

5. चौथा बिंदु यह है कि हमारे सामने विभिन्न चुनौतियाँ हैं। वैश्वीकरण के तीन दशकों ने जबरदस्त आर्थिक और प्रौद्योगिकी केंद्रीकरण उत्पन्न किया है, जिसके अब प्रमुख रणनीतिक निहितार्थ हैं। इनसे व्यापार, निवेश, संपर्क-सुविधा, संसाधनों और यहां तक कि गतिशीलता का लाभ उठाने में मदद मिली है। कई मामलों में तो शक्ति की प्रकृति में ही बदलाव आ गया है। प्रौद्योगिकी के प्रभाव से यह और भी बढ़ गया है। राष्ट्रीय सीमाएँ अब प्रभावी सुरक्षा प्रदान नहीं करतीं। इसके विपरीत, एआई से चिप्स तक प्रत्येक प्रौद्योगिकी प्रगति, पर्यावरण-अनुकूल या स्वच्छ तकनीक, अंतरिक्ष या ड्रोन - अपने साथ नई चुनौतियां भी लेकर आई है। कुछ ही देश अपने बूते पर इससे निपट सकते हैं। इसके साथ ही प्रभुत्व की प्रतिस्पर्धा भी तेज हुई है।

6. पांचवीं बात यह कि इस मिश्रण में वैश्विक दृष्टिकोण में बदलाव भी सम्मिलित है। वैश्वीकरण के असमान लाभों और कई समाजों में जीवन की गुणवत्ता में ठहराव ने राजनीतिक प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। कोविड के हमले ने विश्व को और भी असुरक्षित बनाया है। हम सभी ने अनुभव किया है कि आधारभूत ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भरता से क्या होता है। इसलिए कई अन्य देश और क्षेत्र रणनीतिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।

7. छठा, इस पृष्ठभूमि में, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वैश्विक जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हम इसे यूरोप में संघर्ष में, एशिया में अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलनाओं में, और मध्य पूर्व में जारी गतिविधियों में, तथा प्राय: सामान्य को हथियार बनाए जाने के रूप में देखते हैं। लंबे समय से चले आ रहे समझौतों का पूर्ण पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे उस परिवेश की स्थिरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं जिसमें हम सभी कार्य करते हैं।

8. सातवां बिंदु यह है कि संयुक्त राष्ट्र अभी भी वैश्विक व्यवस्था की सबसे सार्वभौमिक अभिव्यक्ति है। इसलिए इसका सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण है। जी4 समूह के साथी सदस्यों के रूप में, भारत और जापान संयुक्त राष्ट्र के ढांचों को और अधिक समसामयिक बनाना चाहते हैं। यह स्पष्ट रूप से एक कठिन कार्य है, लेकिन हमें इसके लिए दृढ़ता से प्रयास जारी रखने होंगे।

9. जहां तक उन शक्तियों का सवाल है जो एशिया में बहु-ध्रुवीयता के केंद्र में हैं, यह हमारे साझा हित में भी है कि स्वतंत्रता, उदारता, पारदर्शिता और नियम-आधारित व्यवस्था के पक्ष में समग्र संतुलन बना रहे। विश्व देखेगा कि इस साझा लक्ष्य के लिए हम विभिन्न संबंधों और प्रयासों के माध्यम से एक-दूसरे का समर्थन कैसे करते हैं, जिसका प्रधानमंत्री किशिदा ने विस्तार से उल्लेख किया, जो कि इस संबंध में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

10. और आठवां बिंदु यह कि मेरे विचार में यह महत्वपूर्ण है कि जापान आज भारत में बदलाव की गति का विशेष महत्‍व समझे। भारत वह देश है जो आज हर दिन 28 किलोमीटर राजमार्ग बना रहा है, जो हर साल 8 नए हवाई अड्डे बना रहा है, जो हर साल 1.5 से 2 मेट्रो की स्थापना कर रहा है, जो पिछले 10 वर्षों से हर दिन 2 नए कॉलेज बना रहा है, और जिसने अपने तकनीकी और चिकित्सा संस्थानों और आउटपुट को दोगुना कर दिया। भारत का यह रूपांतरण हमें अधिक प्रभावी और विश्वसनीय भागीदार बनाता है। व्यापार करने में सरलता, अवसंरचना के विकास, जीवन यापन की सरलता, डिजिटल डिलीवरी, स्टार्टअप और नवप्रवर्तन की संस्कृति से लेकर अंतरराष्ट्रीय एजेंडे को आकार देने तक, भारत आज स्पष्ट रूप से एक बहुत अलग देश है। जापान के लिए इसे पहचानना महत्वपूर्ण है।

11. कुल मिलाकर, विश्व अब अधिक अस्थिर, अनिश्चित, अप्रत्याशित और उदार विचारों वाला बन रहा है। यह वह संभावना है जिसका भारत और जापान को अपने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य तथा अपने आपसी संबंधों के दृष्टिकोण से भी सामना करना होगा। क्या हम अपने लिए, व्यापक क्षेत्र के लिए और समग्र विश्व के लिए स्थिरता, सुरक्षा, स्वतंत्रता, प्रगति और समृद्धि का संरक्षण कर सकते हैं?

12. तो इसे ध्यान में रखते हुए, कुछ विचार हैं जिनका परीक्षण किया जाना चाहिए:

क्या हमारा आर्थिक महत्व, स्थिरीकरण बढ़ाने वाला कारक हो सकता है? भारत और जापान के बीच व्यापार स्थिर हो गया है लेकिन निवेश कहीं अधिक गतिशील है। क्या बड़े उछाल की संभावना है? और मैं यहां निनामी सैन की कही गई बात का उल्लेख कर रहा हूँ कि आज मेक इन इंडिया और भारत से निर्यात, दो संभावनाएं हैं जिन्हें जापानी कंपनियों द्वारा समझने का प्रयास किया जाना चाहिए।

आगामी उभरती प्रौद्योगिकियों का परिनियोजन, स्पष्ट रूप से निर्णायक बदलाव लाने वाला साबित होगा। क्या इस संबंध में सहयोग की कोई संभावना है? सेमीकंडक्टर का क्षेत्र, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नवीकरणीय ऊर्जा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अंतरिक्ष इसके स्पष्ट उदाहरण हैं। लेकिन क्या हम प्रतिभाओं के बीच आवश्यक संबंधों का विकास कर सकते हैं?

जलवायु परिवर्तन संबंधी सशक्त प्राथमिकताओं वाले दो राष्ट्रों के रूप में, क्या हम अपने वैश्विक उद्देश्यों के समर्थन में व्यावहारिक सहयोग विकसित कर सकते हैं। जापान का भारत में लॉजिस्टिक्स और जन परिवहन में भागीदारी का इतिहास रहा है। हालाँकि अब तक हमारे ऊर्जा पथ अलग-अलग रहे होंगे, लेकिन अब पर्यावरण-अनुकूल हाइड्रोजन और पर्यावरण-अनुकूल अमोनिया कई संभावित साझेदारों को एक साथ ला रहे हैं। क्या इन नए क्षेत्रों में खोजबीन की जानी चाहिए?

नए उत्पादन और उपभोग केंद्रों के साथ संपर्क-सुविधा भी अधिक महत्व प्राप्त कर रही है। भारत आज अपने पूर्व और पश्चिम दोनों ओर प्रमुख मार्गों पर काम कर रहा है। इनमें पश्चिम में अरब प्रायद्वीप के माध्यम से आईएमईसी पहल और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा सम्मिलित हैं। और पूर्व में, दक्षिण पूर्व एशिया में त्रिपक्षीय राजमार्ग और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मार्ग जिसके ध्रुवीय निहितार्थ भी हैं। यह ध्यान देने की बात है कि ये गलियारे, जब पूरे हो जाएंगे, तो अनिवार्य रूप से एशिया के माध्यम से अटलांटिक को प्रशांत महासागर से जोड़ देंगे। पारदर्शी और सहयोगात्मक संपर्क-सुविधा की आवश्यकता के बारे में हमारे दोनों देशों के विचार समान हैं। तो हम इस क्षेत्र में किस प्रकार आगे सहयोग कर सकते हैं?

ऐसे विश्व में जहां वैश्विक समानताओं और वैश्विक कल्याण में प्रतिदिन क्षणिक बदलाव हो रहे हैं, वहां अधिक सक्षम अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों द्वारा अधिक से अधिक विकासपरक प्रयास अनिवार्य हैं। ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में, भारत इस जिम्मेदारी के प्रति विशेष रूप से सचेत है। हमारे विकास संबंधी प्रयास आज विभिन्न महाद्वीपों के 78 देशों तक विस्तृत हैं। क्या भारत और जापान अपनी विकास सहायता के संबंध में समन्वय कर सकते हैं?

सुरक्षा और संरक्षण की जिम्मेदारी भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। सामुद्रिक सुरक्षा और संरक्षा विशेष रूप से गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं। हम इसे लाल सागर में हर दिन देख सकते हैं। हमने अभी वहां शिपिंग में पहली कैजुअल्टी देखी है। इसी प्रकार साइबर सुरक्षा के मामले भी हैं। साथ ही, अतीत और वर्तमान की चुनौतियाँ भी हमारे सामने मौजूद हैं। आतंकवाद का प्रतिरोध इसका एक बड़ा उदाहरण है। क्षेत्र के व्यापक लाभ के लिए हमारी प्रतिरक्षा क्षमताओं को मजबूत करना भी आवश्यक है। रक्षा और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का यह समूह, हमारी सोच में अपना बड़ा स्थान बनाने की संभावना रखता है।

13. मैं तीन व्यापक अवलोकनों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा । एक तो यह कि लोचशील और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं और विश्वसनीय और पारदर्शी डिजिटल लेनदेन के विकास के साथ विश्व पुन: वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। इस संबंध में भारत और जापान स्वाभाविक भागीदार हैं। दूसरी बात लोकतंत्र और बाजार अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, हम आधारभूत समानताएं भी साझा करते हैं। स्वतंत्र और उदार इंडो-पैसिफिक के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को क्वाड द्वारा हर गुजरते वर्ष के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है। इस योगदान का मूल्य भी विश्व भर में तेजी से समझा जा रहा है। और तीसरी बात यह कि जब हम भविष्य के अवसरों और चुनौतियों पर विचार करते हैं, तो हमने जो निश्चितता बनाई है वह आज अधिक महत्वाकांक्षी ढंग से सोचने का आधार है। पिछले दशक में भारत में हुई प्रगति, हमारी साझेदारी के संदर्भ में और भी अधिक आशाजनक है। आज का यह सम्मेलन, हमारे सहयोग की भावी रूपरेखा का आकलन करने के लिए ही आयोजित किया गया है। इसमें किए जाने वाले विचार-विमर्श की मुझे उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा रहेगी।

धन्यवाद।

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