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कोरिया नेशनल डिप्लोमैटिक एकैडेमी में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की टिप्पणियाँ

मार्च 05, 2024

कोरिया गणराज्य के साथ भारत की साझेदारी, जो कि एक अधिक अनिश्चित और अस्थिर विश्व में अधिक प्रमुखता प्राप्त कर रही है, के बारे में बात करते हुए मुझे आज हार्दिक प्रसन्नता है। हमारे संबंधों को 2015 से एक विशेष रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखा गया है। यह सिर्फ एक शब्द नहीं है बल्कि एक आकलन है जिस पर हम तब से लगातार खरे उतरने की कोशिश कर रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार हुआ है और लाभ दिखाई दे रहे हैं। फिर भी, यह आत्मनिरीक्षण करने और रणनीति बनाने का भी समय है कि हम अलग तरीके से और अधिक बेहतर कैसे कर सकते हैं।

2. संपर्कों की आवृत्ति और घनिष्ठता, किसी संबंध को परखने का एक तरीका है। हाल के वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति यून की दो बार भेंट हुई है, जिस तरह मैं अपने पिछले समकक्ष से मिला था। आप में से बहुत से लोग जानते होंगे कि पीएम मोदी वास्तव में दो बार कोरिया गणराज्य गए हैं, एक बार 2015 में और एक बार 2019 में। व्यापार इस आधार की एक अन्‍य कसौटी है और आज हमारे बीच लगभग 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर कमोवेश का व्यापार होता है। दोनों देशों की कंपनियों ने एक दूसरे में महत्वपूर्ण निवेश किया है। हमने देखा है कि आपका इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट फंड भारत में दो अवसंरचना परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध है। सॉवरेन वेल्थ फंड केआईसी ने भी हमारे देश में एक कार्यालय खोला है। हनवा और एलएंडटी के संयुक्त प्रयासों से हमारे रक्षा सहयोग ने रिकॉर्ड सफलता दर्ज की है। और हम से प्रत्येक के प्रवासी समुदाय दूसरे देश में हैं, हमारे मामले में यह संख्या लगभग 15,000 है और आपके मामले में इससे कुछ कम होगी। हमारे संबंधों की वर्तमान स्थिति का यह संक्षिप्त सारांश निश्चित रूप से उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह इसे इंगित करता है कि साकार करने के लिए हमारे सामने अभी कितनी सारी संभावनाएं मौजूद हैं।

3. हमारे संबंधों के राजनीतिक आयामों को समझ कर पूरा परिदृश्य स्पष्ट होता है। हमारे दोनों देशों में लोकतंत्र हैं, बाजार अर्थव्यवस्था हैं और हम कानून के अभिशासन में विश्वास रखते हैं। हमारे आधुनिक इतिहास में कुछ समानताएँ हैं और हम दोनों ही ऐसी घटनाओं से प्रभावित रहे हैं, जो हमारे नियंत्रण में नहीं थीं। हाल के वर्षों में, आतंकवाद और डब्ल्यूएमडी प्रसार जैसी चुनौतियों ने हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित किया है। हमने वैश्विक व्यवस्था की बदलती धाराओं के प्रति संवेदनशील होना सीख लिया है। हालाँकि हमारे समाधान हमारी विशेष राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल हो सकते हैं, लेकिन साथ मिलकर काम करना हमेशा हमारे लिए साझा लाभकारी रहा है।

4. ऐसा करने का कारण स्पष्ट रूप से उस संबंध में पारस्परिक लाभ है। लेकिन ऐसी आकांक्षाएं, अपने आप में एक मूल्य रखते हुए, समसामयिक संदर्भ के सामने स्थापित होने पर और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं। संक्षेप में, मेरा मानना है कि भारत-आरओके साझेदारी महत्वपूर्ण है, लेकिन इंडो-पैसिफिक पर इसका प्रभाव इससे भी अधिक मायने रखता है। ऐसा क्यों?

5. आइए हम इस पर थोड़ा विचार करें। पिछले कुछ दशकों में भू-राजनीतिक बदलावों के परिणामस्वरूप इंडो-पैसिफिक का उदय हुआ। तब तक, अमेरिकी रणनीतिक प्रभुत्व ने प्रशांत को एक थिएटर के रूप में हिंद महासागर से अलग रखा था। इसका उद्देश्य पूर्व में हितों के निश्चित प्रभुत्व पर जोर देना था। हिंद महासागर के संबंध में, खाड़ी पर ध्यान अधिक केंद्रित था। हालाँकि, जैसे-जैसे चुनौतियाँ बदलीं और क्षमताएँ बढ़ीं, न केवल अपने संसाधनों के संबंध में बल्कि अधिक भागीदारों के साथ काम करने के लिए भी अधिक एकजुट प्रयास की आवश्यकता थी। इसलिए इस अवधि में न केवल रणनीतिक अवधारणाओं में संशोधन देखा गया है, बल्कि वैश्विक सहयोग के लिए अधिक खुला दृष्टिकोण भी देखा गया है। उदाहरण के लिए, आप इसे क्वाड स्थापित करने की अनेरिकन इच्छा में देख सकते हैं।

6. भारत जैसे देश का परिप्रेक्ष्य स्वाभाविक रूप से कुछ पृथक है। हमारे मामले में, लुक ईस्ट और फिर एक्ट ईस्ट नीतियों के अंतर्गत हमारे हितों का लगातार विस्तार हुआ। आसियान के साथ संबंधों के सुदृढ़ीकरण और ईस्ट एशिया समिट की रूपरेखा में एक मजबूत आधार ने हमें आगे की जमीन तलाशने की अनुमति दी। इसके परिणाम उत्तर पूर्व एशिया में कोरिया गणराज्य और दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया तथा बीच के कई देशों में दिखाई दे रहे हैं। इंडो-पैसिफिक में व्यापार, निवेश, सेवाओं, संसाधनों, लॉजिस्टिक्स और प्रौद्योगिकी के मामले में भारत की हिस्सेदारी दिन पर दिन बढ़ रही है। इसलिए इस क्षेत्र की स्थिरता, सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वैश्विक हितों के प्रति हमारा दायित्व है, ठीक वैसे ही जैसे वैश्विक कल्याण हमारा एक प्रमुख कर्तव्य है।

7. इंडो-पैसिफिक का विचार प्रगाढ़ होने के साथ, कई देशों, समूहों और संगठनों ने इसे अपने विशेष दृष्टिकोण से देखा। आसियान, ईयू और आईओआरए इन सभी ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है। इसी प्रकार यूरोप और एशिया में भी अलग-अलग राष्ट्रों के दृष्टिकोण हैं। ईस्ट एशिया समिट ने 2019 में एक इंडो-पैसिफिक ओशंस इनीशिएटिव भी शुरू किया है। उल्लेखनीय है कि कोरिया गणराज्य ने सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद 2022 में अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति भी जारी की है। मेरी समझ यह है कि यह समावेशिता, विश्वास और पारस्परिकता के तीन सिद्धांतों पर आधारित एक स्वतंत्र, शांतिपूर्ण और समृद्ध क्षेत्र की परिकल्पना करता है। यह निश्चित रूप से समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ मिलकर अधिक घनिष्ठता से कार्य करने का आधार तैयार करता है।

8. हमारे लिए, साथ मिलकर काम करना क्यों महत्वपूर्ण है? इसका आंशिक उत्तर उभरते विश्व के अवसरों में निहित है, विशेष रूप से नई प्रौद्योगिकियों से संबंधित अवसरों में। लेकिन इनमें से कुछ समग्र रूप से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और पूर्वानुमान को भी संदर्भित करते हैं। इसलिए, हम राष्ट्रीय हितों, और वैश्विक जोखिम-मुक्ति दोनों से प्रेरित हैं। इसे समझने के लिए, आइए हम वर्तमान अस्थिरता के कारकों पर विचार करें। पिछले चार वर्षों में, हमने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं, और यहां तक कि पूरे वैश्विक समाज को कोविड-19 महामारी से तबाह होते देखा है। इससे हुए नुकसान के अतिरिक्त, वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो गया। इसके बाद, दो प्रमुख संघर्ष हैं जो अभी भी जारी हैं, एक यूक्रेन में और दूसरा मध्य पूर्व में, जो कि लाल सागर तक फैल गया है, जिससे एशिया और यूरोप के बीच मैरिटाइम शिपिंग के लिए जोखिम है। जलवायु घटनाएँ एक और बदलता कारक हैं जिस पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि वे लगातार घटित होंगी। भविष्य में ऐसे झटकों को लेकर विश्व लापरवाह नहीं रह सकता। इसके विपरीत, हमें अतिरिक्त, विश्वसनीय और लोचशील आपूर्ति श्रृंखलाएं बनाकर खुद को साबित करना होगा। व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण ऐसे प्रयासों का एक पहलू है। मैं समझता हूँ कि इस संबंध में आरओके की 3050 रणनीति है। तो मामला यह है कि हमारे प्रयास, व्यक्तिगत रूप से या एक साथ मिलकर, बड़े परिदृश्य में बदलाव ला सकते हैं।

9. अब वही गणनाएँ डिजिटल क्षेत्र पर भी बड़े पैमाने पर लागू होती हैं। लेकिन इसमें विश्वास और पारदर्शिता का अतिरिक्त कारक भी है। डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा, राष्ट्रों तथा व्यक्तियों के लिए भी महत्वपूर्ण चिंताएँ बनती जा रही हैं। ऐसे में केवल प्रतिक्रियाशील उपाय या निवारक फ़ायरवॉल ही पर्याप्त नहीं है। ऐसे संरचनात्मक समाधान चाहिए जो विश्वसनीय विक्रेताओं और विश्वसनीय भौगोलिक क्षेत्रों पर आधारित हों। हमें रणनीतिक व्यापार की अनिवार्यताओं को पहचानना होगा और तदनुसार अपनी नीतियों को समायोजित करना होगा।

10. तो, इस उभरते परिदृश्य को लेकर भारत और कोरिया गणराज्य कैसे प्रतिक्रिया कर सकते हैं? सबसे पहले, यह स्वीकार करना होगा कि विश्व अधिक राष्ट्रीय उत्पादन और रणनीतिक स्वायत्तता की ओर बढ़ रहा है। वे इसे अमेरिका, चीन या यूरोप में विभिन्न नाम दे सकते हैं, लेकिन मेरे विचार में अंतर्निहित समानता बहुत स्पष्ट है। इस संबंध में बहसें, कभी-कभी डी-कपलिंग के चरम परिदृश्यों को चित्रित करते हुए भ्रमित करने वाली होती है। इस वास्तविकता को धूमिल न होने दें कि कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, साझेदारी अब पहले की तुलना में बहुत अधिक सावधानी के साथ बनाई जाएगी। और भी कई क्षमताएं स्वदेश में निर्मित की जाएंगी। हम ऐसे दो देश हैं जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से ऐसा करने के लिए भलीभांति एकजुट हैं।

11. मेरा दूसरा तर्क भारत में होने वाले परिवर्तनों के संबंध में है। कई कारणों से, भारत में पहले हम विनिर्माण और प्रौद्योगिकी विकास को वह महत्व नहीं देते थे जो देना चाहिए था। यह बदलाव 2014 में मोदी सरकार के साथ शुरू हुआ और एक दशक में इसमें तेजी आई है। यह अवसंरचना, नवाचार, शिक्षा और कौशल में व्यापक सुधारों द्वारा समर्थित है। इसने अब हमें विभिन्न क्षेत्रों में 'मेक इन इंडिया' पहल शुरू करने में सक्षम बनाया है। इस तरह के गठबंधन, न केवल हमारे भागीदारों की भारतीय बाजार तक पहुंच सुगम बनाने बल्कि हमें वैश्विक उत्पादन के लिए एक मंच के रूप में भी उपयोग करने में मदद करेंगे। संक्षेप में, भारत की बढ़ती क्षमताएँ कोरियाई व्यवसायों के लिए एक आकर्षण मानी जा रही हैं। यदि आप भारत की विकासपरक संभावनाएं देखें तो यह निश्चित रूप से विचार करने योग्य है। हमने कोविड के दौर के बाद मजबूती से वापसी की है और अगले कुछ वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं। साथ ही, यदि आप मौजूदा नवाचारों, स्टार्ट-अप संस्कृति और यूनिकॉर्न की संख्या को देखें, तो यह एक अन्य मामला है जो अधिक फोकस और ध्यान खींचता है।

12. हम सभी जानते हैं कि अब हम एआई और चिप्स, बैटरी और इलेक्ट्रिक गतिशीलता, अंतरिक्ष और ड्रोन, स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल तकनीक और महत्वपूर्ण खनिजों और संसाधनों वाले विश्व की ओर बढ़ रहे हैं। विश्व की अधिकांश रणनीतिक गणनाएँ इन क्षेत्रों पर आधारित हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ये आने वाले समय में बढ़त प्रदान कर सकते हैं। हालाँकि इन सभी में एक सामान्य तत्व मानव संसाधन है। न केवल संसाधन, बल्कि कौशल भी जो तैयार रूप में आसानी से उपलब्ध हैं। विश्व इस चुनौती के प्रति जागरूक हो रहा है और अनेक क्षेत्रों में भरोसेमंद प्रतिभाओं का महत्व बढ़ता जा रहा है। पहले से ही, इस कारण से हम विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परियोजनाओं में काफी विलंब देख रहे हैं। यह कोई संयोग नहीं है कि भारत में ओईसीडी के कई और सदस्यों ने गतिशीलता साझेदारी समाप्त करने के अनुरोध के साथ हमसे संपर्क किया है। निस्संदेह भारत का अपना सेमीकंडक्टर मिशन है जिस तरह से यह कई अन्य नई और उभरती प्रौद्योगिकियों में पहल कर रहा है। हमारी अपेक्षा है कि कुछ वर्षों के भीतर ही भारत में इस संबंध में एक बहुत ही अलग बड़ा इको सिस्टम साकार होगा। मुझे विश्वास है कि इससे भारत और कोरिया गणराज्य के बीच सहयोग की अधिक संभावनाएं उत्पन्न होंगी।

13. अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में बातचीत स्वाभाविक रूप से उत्पादन, उपभोग और आमतौर पर प्रौद्योगिकी पर केंद्रित रहती है। यहां भी, संपर्क-सुविधा का महत्व एजेंडा में हाल ही में जोड़ा गया है। यह दो कारणों से प्रासंगिक है: एक तो यह कि नए उत्पादन और उपभोग केंद्र हमेशा उतने बेहतर तरीके से जुड़े नहीं होते जितना उनकी क्षमताएं जस्टिफाई करती हैं; और दूसरा यह कि साम्राज्यवाद के युग के दौरान ऐतिहासिक संबंध प्रभावी रूप से बाधित हो गए हैं। परिणामस्वरूप, विश्व के सामने पुराने का पुनरोद्धार करने के साथ नया बनाने की चुनौती है। इस संबंध में हाल के प्रयासों ने स्वाभाविक रूप से वैश्विक हितधारकों की बदली हुई आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित किया है। भारत के दृष्टिकोण से, यह आवश्यक है कि प्रशांत से अटलांटिक तक एक पार्श्विक संबंध हो जो हमारे देश से होकर गुजरता है। यह अच्छी तरह से साकार हो सकता है जब आईएमईसी (इंडिया मिडिल यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर) कार्यक्रम की खाड़ी और उससे आगे भारत के पश्चिम में प्रगति होगी और त्रिपक्षीय राजमार्ग भारत को वियतनाम तट तक जोड़ेगा। एशिया से यूरोप तक ध्रुवीय मार्ग खुलने की एक बहुत अलग लेकिन रोचक संभावना भी मौजूद है। चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर उस विकल्प को तलाशने का एक प्रयास है। जैसे ही ये और अन्य मार्ग अस्तित्व में आएंगे, उनके लॉजिस्टिक्स और गतिशीलता संबंधी प्रभावों का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाएगा। मेरा मानना है कि इसका भी हमारे द्विपक्षीय सहयोग पर लाभकारी प्रभाव पड़ सकता है।

14. वैश्विक व्यवस्था का नया स्वरूप साकार करने में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए जी20 के दो महत्वपूर्ण सदस्यों के रूप में, भारत और कोरिया गणराज्य की जिम्मेदारी बढ़ रही है। वह युग अब पीछे छूट चुका है जब कुछ शक्तियों ने उस प्रक्रिया पर असंगत प्रभाव डाला था। स्वत: ही, यह एक अधिक सहयोगात्मक और व्यापक आधार वाला प्रयास बन गया है। यह भी एक कारक है कि बहुपक्षवाद रुक गया है और उसका स्थान काफी हद तक बहुलवाद ने ले लिया है। आतंकवाद या डब्ल्यूएमडी प्रसार का मुकाबला करने या वास्तव में सामुद्रिक सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने आदि मामले हमारे लिए मौलिक रूप से मायने रखते हैं। हमने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क या खनिज सुरक्षा साझेदारी जैसी पहल में भी अवसर देखा है। डिजिटल डिलीवरी या स्वच्छ ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, हमारे राष्ट्रीय प्रयासों में समामेलन के बिंदु हैं।

मैं यहां यह भी कहना चाहूँगा कि हालांकि हम अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं, लेकिन ऐसी कई अंतरराष्ट्रीय पहलें भी हैं जिनमें हमारी साझा भागीदारी निश्चित रूप से हमारे संबंधों के द्विपक्षीय पहलू में भी योगदान करेगी।

यदि मुझे एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक देश के रूप में कोरिया गणराज्य के कुछ उदाहरण देने हों, तो सामुद्रिक सुरक्षा एक बहुत ही महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। हमारे यहां भारत में एक फ़्यूज़न सेंटर है जो विभिन्न साझेदारों के साथ कई व्हाइट शिपिंग समझौतों के परिणामस्वरूप बनाया गया है जहां आपके पास वास्तव में पूरे हिंद महासागर में एक आम प्रचालन परिदृश्य है। इसी तरह, इंडो पैसिफ़िक ओशंस इनीशिएटिव जैसी पहल में आरओके की भागीदारी, जो पारिस्थितिकी और पर्यावरण से लेकर परिवहन और विज्ञान प्रौद्योगिकी तक सामुद्रिक मुद्दों की एक श्रृंखला पर कार्य करती है, मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही मूल्यवान वृद्धि होगी। या अगर मैं एक पूरी तरह से अलग क्षेत्र का उल्लेख करना चाहूँ, आरओके के लिए एक ऐसे देश के रूप में जो इंटरनेशनल सोलर अलायंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए जलवायु मुद्दों पर बहुत सक्रिय रहा है, जिसे भारत ने सीओपी 21 में कुछ देशों के साथ प्रस्तावित किया था, और जिसमें आज सौ से अधिक सदस्य हैं, तो मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही सकारात्मक विकास होगा। वास्तव में, चूँकि जलवायु संबंधी घटनाएँ अधिक नियमितता के साथ घटित हो रही हैं, आपदा लोचशीलता में भी कोरिया गणराज्य का योगदान है, और इसके अलावा कोलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्‍ट्रक्चर नामक एक कार्यक्रम है, यह कुछ ऐसा है जिसका विशेष महत्व है। इसलिए मैं इन उदाहरणों से यह दर्शाना चाहता हूँ कि हमारे संबंधों को गहरा करने का एक तरीका यह है कि हम समान लक्ष्यों वाले समान संगठनों या साझा संगठनों में मौजूद रहें। और यह भी अपेक्षा है कि इससे हमारा गहन द्विपक्षीय संबंध और अधिक मजबूत बनेगा।

15. अपनी क्षमता साकार करने के लिए, एक चुनौती जिसे मैंने पहले ही चिह्नित किया था, यह महत्वपूर्ण है कि हम विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भागीदारी में तेजी लाएं। निश्चित रूप से, हमें अधिक राजनीतिक चर्चाओं, अधिक रणनीतिक बातचीत की आवश्यकता है: यही कारण है कि मैं यहां हूँ। हमें मजबूत व्यावसायिक संपर्कों और प्रौद्योगिकी संपर्कों की आवश्यकता होगी। हमारे सीईपीए की लंबे समय से लंबित समीक्षा में तेजी लाई जानी चाहिए ताकि इस दिशा में प्रगति हो सके। हमें आपसी हितों वाले अधिकाधिक बिंदुओं और साझा विचारों की पहचान करनी होगी जो हम दोनों के लिए लाभकारी हों। हमें उन शक्तियों को पहचानते हुए अधिक सहयोगी बनना होगा जिनके द्वारा हम योगदान कर सकते हैं। आज, हम सभी पुन: वैश्वीकरण की संभावना पर विचार कर रहे हैं जिसे उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा आकार दिया जाएगा। इससे हमारे दोनों देशों को एक बेहतर विश्व में योगदान करते हुए प्रगति करने का मौका मिलेगा। मुझे विश्वास है कि हमारे आपसी सहयोग के क्षितिज को व्यापक बनाकर, भारत-आरओके साझेदारी इंडो-पैसिफिक में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में उभर सकती है।

मेरे विचार ध्यानपूर्वक सुनने के लिए आप सभी को हार्दिक धन्यवाद

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