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अबुजा में नाइजीरिया-भारत बिजनेस काउंसिल (एनआईबीसी) में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का संबोधन

जनवरी 23, 2024

प्रतिष्ठित मंत्रीगण,
राज्यपाल, उप-राज्यपाल,
एनआईबीसी के प्रतिनिधिगण,
देवियो और सज्जनों,

यहां आप सभी के साथ होना बहुत प्रसन्नता की बात है, केवल इसलिए नहीं कि मुझे एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। बल्कि इसलिए भी कि भारत से किसी विदेश मंत्री का नाइजीरिया का यह पहला दौरा है। आपके समान विचार मेरे मन में भी हैं। लेकिन मेरे विचार में यह हममें से उन व्यक्तियों के लिए, जो कूटनीति, विदेश नीति, राजनीति में शामिल हैं, इस पर विचार करने का एक अवसर है। केवल इस बात पर विचार करने के लिए नहीं कि हमने क्या किया या हमने क्या नहीं किया या हम क्या कर सकते थे, बल्कि वास्तव में भविष्य की ओर देखते हुए, इस संबंध को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए हम अलग तरीके से क्या कर सकते हैं।

मैं यहां दो दिनों से हूँ। यह मेरा तीसरा दिन है। मैं इस कार्यक्रम के तुरंत पश्चात प्रस्थान करने वाला हूँ। और मैं आपसे कहना चाहूँगा कि इन तीन दिनों के दौरान, यह मेरा तीसरा व्यावसायिक कार्यक्रम है। मैंने दो सामुदायिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया है। और मैं इसका उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरे लिए यह वास्तव में बिज़नेस और समुदाय, भारतीय समुदाय है, जो इस संबंध की असली शक्ति है। तो, सबसे पहले मैं उन व्यक्तियों का आदरपूर्वक आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने राजनीतिक स्तर पर अपेक्षित से कम आदान-प्रदान के दौर में भी झंडा ऊंचा रखा, जो बिज़नेस करते रहे, जिन्होंने अलग-अलग तरीकों से जो कुछ विकसित किया, वह आज एक अत्यंत महत्वपूर्ण संबंध में योगदान करता है।

इस संबंध का वर्णन करने के विभिन्न तरीके हैं। लेकिन बिज़नेस प्रतिनिधियों और नीतिगत प्रतिनिधियों के लिए, कहा जा सकता है कि यह आज लगभग 13 से 15 बिलियन डॉलर के वार्षिक व्यापार का संबंध है, जहां भारत ने लगभग 27 से 30 बिलियन डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है, जहां नाइजीरिया, अफ़्रीका में हमारा प्रमुख आर्थिक भागीदार है। लेकिन इतना कहने के पश्चात, मैं आपसे यह भी आग्रह करूंगा कि हमें संतुष्ट नहीं होना है, बल्कि आगामी संभावनाओं पर कार्य करना होगा। मैं कल कुछ साथियों से बात कर रहा था कि अभी पूरे हुए वर्ष में भारत का निर्यात 766 बिलियन डॉलर था। और मैं निश्चित रूप से चाहूँगा, और मुझे विश्वास है कि आप भी निश्चित रूप से यह चाहेंगे कि इसका एक बड़ा भाग नाइजीरिया आए। क्योंकि आज हम 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हैं, एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें कई प्रकार की क्षमताएं, प्रौद्योगिकियां, अनुभव और प्रथाएं विकसित हैं, जो शायद हमारे पास पूर्ववर्ती वर्षों में नहीं थीं, और जो आज वास्तव में अधिक गंभीर आपसी संपर्क के लिए आधार निर्मित करती हैं।

व्यापारिक संबंधों को और भी अधिक मजबूती से विकसित करने के लिए सरकार की ओर से हम वास्तव में क्या कर सकते हैं? मेरे विचार में सक्षम वातावरण में सुधार करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है, हमें उन समस्याओं पर ध्यान देना होगा, जिनके बारे में मैंने पिछले दो दिनों में सुना है। बैंकिंग, बीमा, क्रेडिट गारंटी, फ्लाइट कनेक्शन, व्यापारिक निपटान आदि। मेरे विचार में ये आज की चुनौतियाँ हैं हमें जिनको प्राथमिकता देनी होगी, बहुत ईमानदारी से इस पर विचार करना होगा और रचनात्मक, व्यावहारिक समाधान खोजने होंगे। मैं आज नाइजीरियाई सरकार के अपने मंत्रिस्तरीय सहयोगियों को देखकर भी बहुत प्रसन्न हूँ, क्योंकि कल मुझे ब्लू इकोनॉमी मंत्री से मिलने का सम्मान मिला था। और मैं इसका उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि, कई मायनों में, अगर हमें इस रिश्ते को अधिक महत्व, सार्थकता, और व्यावहारिकता प्रदान करनी है, तो हमें प्रोटोकॉल और कूटनीति के परिवेश से परे जाना होगा। इसे बहुत संकीर्ण अर्थों में न देखते हुए, बल्कि वास्तव में व्यापार के लिए पूरी गंभीरता के साथ, और हमारी अर्थव्यवस्था और हमारी सरकार और हमारी नीति निर्माण के विभिन्न भागों पर विचार करना है और देखना है कि हम कहां संपर्क विकसित कर सकते हैं। इसलिए, हालांकि मैं विदेश मंत्री हूँ, लेकिन मैं आप सभी से वास्तव में विदेश नीति की रूपरेखा से परे देखने, ऐसे संबंध बनाने का आग्रह करता हूँ जो वास्तव में हमारे संबंध को नई ऊंचाईयों पर ले जाएंगे।

अब, भारत-नाइजीरिया के बारे में बात करने के पश्चात, मैं अफ्रीका के संबंध में एक बड़े तथ्य का उल्लेख करना चाहूँगा। अफ़्रीका का उदय हो रहा है, और भारत को अफ़्रीका के उत्थान पर विश्वास है। हम अफ्रीका के उत्थान को दृष्टिगत रखते हुए विश्वास के साथ आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि, किसी भी वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के अनुसार, आज जनसांख्यिकी के मामले में, संसाधनों के मामले में, महत्वाकांक्षा के मामले में, नीतिगत अनुरूपता के मामले में अफ्रीका में बहुत अधिक वृद्धि हो रही है। यह स्पष्ट रूप से शक्तिशाली, बहुत ही अलग, बहुत ही कम समय में बहुत अधिक सकारात्मक भविष्य है।

अब, हम अफ्रीका के साथ सहयोग कर रहे हैं क्योंकि, जैसा कि एनआईबीसी के अध्यक्ष ने हमें स्मरण कराया, कि हमारा एक साझा अतीत रहा है, जो पूर्णत: अनुकूल इतिहास नहीं था, हमारे आपसी संबंधों में नहीं, बल्कि हमारे और कुछ अन्य पक्षों के बीच। लेकिन यह एक ऐसा इतिहास है जिसने जबरदस्त एकजुटता उत्पन्न की है। और इस एकजुटता को देखते हुए आज मैं बहुत स्पष्ट रूप से यह कह सकता हूँ कि हमारे लिए, जब हम बदलती वैश्विक व्यवस्था के बारे में बात करते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से, आज, भारत, जैसा कि मैंने कहा, विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश, पांचवीं सबसे बड़ी, अनुमानित चार ट्रिलियन डॉलर जीडीपी की अर्थव्यवस्था वाला देश है। हमारे लिए, विश्व की पुनर्व्यवस्था, पुनर्संतुलन, विश्व की बहुध्रुवीयता तब तक पूरी नहीं होगी जब तक अफ्रीका को उसका उचित स्थान नहीं प्राप्त होता। और हम इसके बारे में प्राय: बात करते हैं, निश्चित रूप से राजनयिक विश्व में, जैसा कि आप जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र में सुधार होगा, किसके पास सीट होगी, यह कैसे होगा, और यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मैं आप सभी से कहना चाहूँगा कि एक नई वैश्विक व्यवस्था का पुनर्संतुलन, पुनर्व्यवस्थित होना तभी संभव हो सकेगा जब इसका आधार आर्थिक होगा, अर्थात अफ्रीका का उत्थान अफ्रीका के आर्थिक उत्थान से अभिन्‍न रूप से संबंधित है।

अब, यह स्पष्ट रूप से विकल्प प्रस्तुत करता है, क्योंकि केवल दूसरों के लिए बाज़ार बनकर या संसाधनों का प्रदाता बनकर वैश्विक व्यवस्था में ऊपर जाना बहुत कठिन है। इसलिए, भारत जिन मूल्यों का समावेश करता है, और यह आज भी एक मूल्य है, मेरे विचार में, जो यहां, और होने वाली बातचीत में परिलक्षित होता है, अर्थात, हम आज अफ्रीका में कैसे निवेश करते हैं, हम अफ्रीका में कैसे निर्माण करते हैं, कि हम अफ़्रीका में कैसे उत्पादन करते हैं, कि हम अफ़्रीका में कैसे मूल्यवर्धन करते हैं। और मेरा सुझाव है, देवियो और सज्जनो, यह वास्तव में वह मूल्य है, जैसा कि आप जानते हैं, यह भारत और अफ्रीका के बीच आज के संबंधों की विशेष प्रकृति में समाविष्ट है। हम आज अनेक प्रकार की गतिविधियों में भागीदार बनने के लिए तैयार हैं, उत्पादन की, मूल्यवर्धन की, अनुसंधान की, स्थानीयकरण की, रोज़गार की जो इसके साथ होंगी। और उन सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतों का समाधान करने के लिए, जो हमारी ज़रूरतों से बहुत समान हैं। हम सब आज एक ही राह पर हैं, हममें से कुछ लोग थोड़ा आगे हैं, लेकिन, जैसा कि आप जानते हैं, , हम वर्तमान में जिन सभी चीजों से गुजर रहे हैं और हम गुजर चुके हैं और हम जिन चीजों से गुजरेंगे वे वास्तव में जो भी हैं, अंतत: वही आपका भी मार्ग है।

इसलिए, आज आपके लिए मेरा यह संदेश ऐसे समय में है, विशेष रूप से कोविड के पश्चात, जब हम सब अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए दूर-दराज के भौगोलिक क्षेत्रों पर निर्भर रहने के खतरों से परिचित हुए, क्योंकि हम सभी को उन वर्षों के दौरान चिंताएं रहीं, जब हमने यह माना हुआ था कि वैश्विक व्यापार सब कुछ सुचारू रूप से प्रदान करता रहेगा, जब तक कि वास्तविकता से हमारा सामना नहीं हो गया। लेकिन आज, अगर स्थानीय उत्पादन पर जोर देना है, जैसा कि मैंने कहा, अधिक मूल्यवर्धन, अगर हमें अधिक लोचशील और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाएं चाहिएअगर हमें प्रौद्योगिकी साझा करनी है, तो भारत आपका भागीदार है। और ये किसी सम्मेलन में कहे जाने वाले अच्छे शब्द मात्र ही नहीं हैं। हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण पूरे महाद्वीप में 200 विकास परियोजनाओं में है और अन्य 70-80 पर काम चल रहा है। यह आज के प्रासंगिक अनुभवों में है कि चाहे हम निवेश और सहयोग पर विचार करें, लेकिन इनकी जड़ें अतीत में नहीं होनी चाहिए। उन्हें उन क्षेत्रों को देखना चाहिए जो अधिक महत्त्वपूर्ण होंगे, जैसे कि डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, पर्यावरण-अनुकूल और स्वच्छ विकास, जल, कृषि स्थायित्व और सुरक्षा, नीली अर्थव्यवस्था आदि। ये वास्तव में आज ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें हमें विश्वास है कि हमारी साझेदारी बढ़ सकती है।

इसलिए, जैसा कि मैंने कहा, यह हमारे लिए ग्लोबल साउथ के रिश्ते का मूल है। हमारे लिए ग्लोबल साउथ निश्चित रूप से एक ऐसा शब्द है, जो हृदय से निकली भावना को अभिव्यक्त करता है। लेकिन सबसे बढ़कर, यह नीतियों का एक समूह है, विशेष रूप से आर्थिक और विकासपरक नीतियां, जिसके लिए हमने नाइजीरिया, अफ्रीका तक अपना सहयोग का हाथ बढ़ाया हुआ है। मैं आज बहुत आभारी हूँ कि इस सम्मेलन में मुझे इनमें से कुछ भावनाओं को आपके साथ साझा करने का अवसर मिला। मैं एनआईबीसी और उसके सहयोगियों को धन्यवाद देता हूँ। मैं इस सम्मेलन की पूर्ण सफलता की कामना करता हूँ। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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