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एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री की उज्बेकिस्तान यात्रा पर विदेश सचिव द्वारा विशेष वार्ता का प्रतिलेख (सितंबर 15, 2022)

अक्तूबर 15, 2022

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: आप सभी को नमस्कार । एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री की समरकंद की आगामी यात्रा के लिए हमारी इस विशेष मीडिया वार्ता में बड़ी संख्या में आने के लिए धन्यवाद। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य के उद्घाटन के लिए हमारे साथ यहाँ विदेश सचिव महोदय, श्री विनय क्वात्रा हैं और हमारे साथ यूरेशिया प्रभाग का कार्य संभाल रहे संयुक्त सचिव श्री आदर्श स्वाइका जी भी हैं। महोदय, कृपया आप शुरू करें ।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: बहुत-बहुत धन्यवाद अरिंदम। संयुक्त सचिव आदर्श, अरिंदम, मीडिया के मित्रों, आप सभी को नमस्कार । और कल से शुरू हो रहे शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री की आगामी यात्रा पर इस विशेष वार्ता के लिए आज सुबह यहाँ आने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। उस यात्रा से संबंधित कुछ तत्वों को उजागर करना चाहता हूँ और उसी के माध्यम से यही उद्घाटन टिप्पणियाँ भी होंगी ।

उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति श्री शौकत मिर्जियोयेव के निमंत्रण पर, एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की 22 वीं बैठक में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आज देर शाम को उज्बेकिस्तान के समरकंद की 24 घंटे की यात्रा के लिए रवाना होंगे। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि उज्बेकिस्तान इस संगठन का वर्तमान अध्यक्ष है। आप यह भी जानते हैं कि एससीओ एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है जिसके, भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, आठ सदस्य देश हैं, और इस बार एससीओ बैठक का मेजबान उज्बेकिस्तान है।

एससीओ की स्थापना जून 2001 में हुई थी और भारत 2017 में पूर्ण सदस्य बन गया। एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद इस संगठन के सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है और परिषद् एससीओ के एक सदस्य देश द्वारा आयोजित वार्षिक शिखर सम्मेलन में बैठक करती है। जब से हम 2017 में इसके पूर्ण सदस्य बने हैं, प्रधानमंत्री मोदी हर साल एससीओ शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। 2020 और 2021 में पिछले दो शिखर सम्मेलनों के दौरान, प्रधानमंत्री ने इसके आभासी प्रारूप में भाग लिया। समरकंद में, हम सभी नेताओं द्वारा पूर्ण भौतिक रूप में भागीदारी की अपेक्षा करते हैं।

एक पूर्ण सदस्य के रूप में एससीओ में शामिल होने के बाद से, भारत एससीओ प्रक्रियाओं, विचार-विमर्श और इसके परिणामों में सकारात्मक योगदान देता रहा है। राष्ट्रों के प्रमुखों की परिषद के बाद, सरकार के प्रमुखों की परिषद एससीओ का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण तंत्र है, जो मुख्य रूप से संगठन के व्यापार, अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक एजेंडे से संबंधित है। भारत ने 2020 के दौरान इस तंत्र की अध्यक्षता की, तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने नवंबर 2020 में आभासी प्रारूप में शिखर बैठक की अध्यक्षता की थी। उस समय हमारी अध्यक्षता के दौरान, राष्ट्रीय संग्रहालय द्वारा आभासी प्रारूप में एससीओ सदस्य राज्यों में साझा बौद्ध विरासत की प्रदर्शनी आयोजित करने, क्षेत्रीय भारतीय साहित्य की 10 पुस्तकों का एससीओ की आधिकारिक भाषाओं यानी रूसी और चीनी में अनुवाद करने, और आभासी प्रारूप में पहले एससीओ स्टार्ट-अप फोरम, पहले एससीओ एमएसएमई फोरम और पहले एससीओ युवा वैज्ञानिक सम्मेलन की मेजबानी करने सहित कई पहल की गईं। आरएटीएस, एससीओ का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी तंत्र, संगठन का एक अन्य महत्वपूर्ण तंत्र है। भारत ने पिछले साल अक्टूबर में एक साल के लिए आरएटीएस की कार्यकारी परिषद की अध्यक्षता ग्रहण की और क्षेत्र में आतंकवाद की समस्या से निपटने में व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

समरकंद शिखर सम्‍मेलन की ओर बढ़ते हैं, जैसा कि मैंने पहले कहा था, प्रधानमंत्री आज देर शाम को समरकंद पहुँचेंगे। वे कल सुबह शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। शिखर सम्मेलन में आमतौर पर दो सत्र होते हैं। एक तो प्रतिबंधित सत्र, जो केवल एससीओ सदस्य देशों के लिए है और फिर एक विस्तारित सत्र जिसमें संभवतः पर्यवेक्षकों की भागीदारी शामिल होगी और साथ ही अध्यक्ष देश यानी उज्बेकिस्तान के विशेष आमंत्रितों के साथ-साथ एससीओ शिखर सम्मलेन में भाग लेने वाले कुछ क्षेत्रीय संगठन भी शामिल होंगे । एससीओ के दो स्थायी निकायों के प्रमुख, एससीओ सचिवालय के महासचिव और एससीओ-आरएटीएस के निदेशक भी दोनों सत्रों में मौजूद रहेंगे।

हम उम्मीद करते हैं कि शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा में सामयिक क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे; एससीओ का सुधार और विस्तार; क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति; कनेक्टिविटी को मजबूत करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देने सहित इस क्षेत्र में हमारे सहयोग के परिप्रेक्ष्य शामिल होंगे। समरकंद घोषणा और कई अन्य दस्तावेजों को शिखर सम्मेलन के दौरान अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। वे वर्तमान में एससीओ सदस्य देशों के विचाराधीन हैं।

शिखर सम्मेलन की गतिविधियों के अलावा, प्रधानमंत्री शिखर सम्मेलन के दौरान उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति और कुछ अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे। इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की भागीदारी इस बात का प्रतिबिंब है कि भारत एससीओ और उसके लक्ष्यों को कितना महत्व देता है। यह पूरे क्षेत्र के साथ हमारे दृष्टिकोण और सम्बन्ध से भी जुड़ा है। जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, भारत ने इस वर्ष की शुरुआत में पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी, इससे पहले विदेश मंत्री स्तर की बैठक हुई। हम मध्य एशिया और विस्तारित पड़ोस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करते रहे हैं। और यह यात्रा उस दृष्टिकोण और उस परिप्रेक्ष्य को आगे ले जाएगी। मैं बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ और यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो हमें उनका उत्तर देने में खुशी होगी।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: महोदय, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। इससे पहले कि हम प्रश्नों पर आगे बढ़ें, कृपया अपना और संगठन का परिचय दें और कृपया अपने प्रश्नों को सीमित रखें ।

येशी: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से येशी सेली । अन्य कौन से देश हैं जिनके साथ पीएम मोदी के द्विपक्षीय बातचीत होंगी ? और क्‍या उनकी पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ किसी प्रकार की बातचीत होने की संभावना है?

सुधी रंजन: महोदय, मैं ब्लूमबर्ग से सुधी रंजन हूँ । द्विपक्षीय वार्ताओं पर विदेश सचिव हमें स्‍पष्‍टीकरण देंगे। क्या प्रधानमंत्री की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की संभावना है? और राष्ट्रपति पुतिन महोदय के साथ द्विपक्षीय वार्ता पर भी कुछ बताएँ।

कविता : Sir, मैं कविता हूँ Hari Bhoomi से, Sir जो bilateral meetings हैं Chinese President के साथ Bilateral meeting होनी है और पाकिस्तान और चीन की तरफ से क्या विदेश मंत्रालय को कोई इसके बारें में आपके पास कोई communication आया है bilateral meeting को लेकर के Prime minister मोदी के साथ?

मनीष कुमार झा: फाइनेंशियल एक्सप्रेस से मनीष कुमार झा। महोदय, हम समझते हैं कि एससीओ काफी हद तक द्विपक्षीय वार्ता पर आधारित है। एससीओ में हम मूल रूप से द्विपक्षीय मुद्दों पर जोर नहीं देते हैं, ठीक ? लेकिन फिर भी हम देखते हैं कि बहुत सी द्विपक्षीय वार्ताएं चल रही हैं। तो हम कैसे विलय करते हैं और फिर निष्कर्ष की ओर किस तरह का निर्णय लेते हैं या किस तरह की पहुँच बनाते हैं, जो एससीओ चार्टर से दूर है। शुक्रिया ।

मनीष झा: Foreign Secretary मैं मनीष झा हूँ TV9 भारत से, ऐसा लगता है कि Prime Minister और Chinese president के बीच कोई bilateral नही होगी और अगर ऐसा होता है तो क्या हम कह सकते है जैसे पाकिस्तान को लेकर हमने एक message दिया है कि talks and terror cannot go together उसी तरह से चीन को लेकर भी अब है की जब तक status quo बहाल नही होगा, तब तक शी जिनपिंग के साथ meeting नही होगी?

कादम्बिनी शर्मा: कादिम्बिनी शर्मा from NDTV India, अगर ईरान के साथ bilateral होता है तो क्या focus तेल पर रहेगा?

मनीष: Sir मैं मनीष हूँ Zee News से, मेरा सवाल है कि SCO leaders boat riding भी कर रहे है, क्या Prime Minister मोदी भी boat riding के कोई कार्यक्रम में शामिल है?

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्‍ता : इस नोट पर मैं श्रीमान आपको सौंपता हूँ ।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: यह एससीओ से इतर प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय गतिविधियों से संबंधित प्रश्नों का संपूर्ण विवरण है ।

तथा जो specific आप लोगो के प्रश्न है किस नेता के साथ द्विपक्षीय वार्ता होगी अथवा नही होगी?

देखिए, मैं केवल यही कहूँगा कि मैंने अपनी उद्घाटन टिप्पणी में यह भी उल्लेख किया है कि मेजबान देश, शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता के अलावा, प्रधानमंत्री की एससीओ शिखर सम्मलेन बैठक के दौरान अन्य द्विपक्षीय बैठकें होंगी। और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, जब प्रधानमंत्री की इन द्विपक्षीय बैठक का कार्यक्रम सामने आएगा हम आपको इस बात से अवगत कराते रहेंगे । इस स्तर पर मैं आपके साथ बस इतना ही साझा कर सकता हूँ । मैं किसी भी चीज़ पे अपना interpretation आपके प्रश्न द्वारा जो अंकित है वो नही कहना चाहूँगा इसमें

लेकिन इस संबंध में एक सवाल था, ठीक है, नाव की सवारी वाली एक अलग बात है। मुझे लगता है, फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मनीष ने एससीओ के एजेंडे के साथ द्विपक्षीय बातचीत को कैसे संतुलित किया जाए, इस सवाल के बारे में पूछा। मुझे लगता है कि मनीष आप बिल्कुल सही हैं कि एससीओ अनिवार्य रूप से हित के विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है जो इस क्षेत्र के लिए प्रासंगिक हैं और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों के विवरण में नहीं जाते हैं। और परंपरागत रूप से, यदि आप एससीओ के एजेंडे को देखें और निश्चित रूप से उस समय से जब भारत इसका पूर्ण सदस्य रहा है, तो हमने यह भी देखा है कि इसका ध्यान हमारे क्षेत्र और दुनिया में हो रहे विकास पर चर्चा करने पर रहता है। यह क्षेत्र के सामने आने वाली आम चुनौतियों को कम करने और इस विशेष मामले में आतंकवाद का मुकाबला करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। यह इस बात पर भी चर्चा करता है कि इस क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक सहयोग को कैसे मजबूत किया जा सकता है। ये वे तत्व हैं जो एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा में केंद्रित रहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान होने वाले नेताओं के बीच द्विपक्षीय चर्चाओं के बीच कोई टकराव है। इसलिए मुझे लगता है कि दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं और वे दोनों इस मायने में अपने अपने दम पर खड़े हैं।

खैर, मेरे पास वास्तव में नाव की सवारी का कोई जवाब नहीं है। मुझे लगता है कि यह शंघाई सहयोग संगठन में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम है। वे बहुत कम समय के लिए वहाँ हैं। अनिवार्य रूप से वे आज देर रात में वहाँ पहुँचेंगे, कल प्रतिबंधित और विस्तारित सत्र में भाग लेंगे और कल एससीओ शिखर सम्मेलन से संबंधित कुछ अन्य कार्यक्रमों में भाग लेंगे, और कुछ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे, जिनके लिए, जैसा कि मैंने कहा, हम आपको उनके होने पर अवगत कराते रहेंगे और फिर वे कल रात वापस आने वाले हैं।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: प्रश्न का संदर्भ वे नेता थे जो पहले ही पहुँच चुके हैं और एक कार्यक्रम था जहाँ उन्हें नाव की सवारी के लिए ले जाया जाना था। मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री इसमें शामिल होंगे।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: प्रधानमंत्री वहाँ पहुँचने के बाद और वहाँ रहने के समय तक शिखर बैठक से संबंधित अपने कार्यक्रमों में भाग लेंगे। शुक्रिया।

वक्ता 1: नमस्ते, मेरा प्रश्न रूसी तेल के बारे में है। क्या रूस भारत को जी7 मूल्य सीमा प्रस्ताव में शामिल नहीं होने के लिए एक प्रलोभन के रूप में अपने तेल पर गहरी छूट दे रहा है। और यदि हाँ, तो छूट कितनी अधिक है?

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: यह एससीओ पर एक विशेष वार्ता है। क्या यह एससीओ से सम्बंधित है?

वक्ता 1: मुझे खेद है, पर मैं केवल अनुवर्ती कार्रवाई कर रहा हूँ। रूसी पक्ष ने पुष्टि की है कि पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक होगी। इसलिए मैं सिर्फ फॉलो अप करना चाहता था।

शैलेश कुमार : Sir मेरा नाम शैलेश कुमार है और मैं National Defence से हूँ, मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि क्या SCO by and large china- centric हो गया है। भारत को इससे क्या फायदा हुआ है? और खासकर के जितने भी member states है वो सब जिनजियांग से लगे हुए हैं। उनके borders और एक तरह से चीन जब से शंघाई-5 और उसके बाद SCO आया तब से जिनजियांग को उन्होंने पूरी तरह से settle कर लिया चाहे terrorism हो, चाहे और भी समस्या हो, demography change जो की 50% लगभग change हो गई है, internationalisation of the Uyghurs Muslims, वो सब कर लिया। लेकिन चीन overlook करता रहा है हमारे concerns को चाहे वो PRI extend करना हो सब जगह, पर वो CPEC में हमारी sovereignty को challenge कर रहे हैं, अभी हमारे border disputes हैं। तो, क्या चीन जो है हमारे interest को overlook कर रहा है और अपने interest को promote कर रहा है?

प्रणय उपाध्याय : Sir प्रणय उपाध्याय ABP News से, Sir मेरी दो छोटी जिज्ञासा है, Sir प्रधानमंत्री जी जा रहे है समरकंद में तो वहां कई SCO देशों का ये प्रस्ताव है कि domestic trade के लिए या regional trade के लिए या bilateral trade के लिए currency जो local currencies है उनका इस्तेमाल किया जाए, भारत का इसपर क्या नजरिया है और दूसरी बात energy security को लेकर कितना महत्वपूर्ण होगा प्रधानमंत्री का bilateral engagement और जो SCO engagement है। क्या कुछ होने वाला है उसमें?

सृंजॉय: महोदय, टाइम्स नाउ से सृंजॉय। आपने आरएटीएस के बारे में बात की और यह कितना महत्वपूर्ण है और यह कितना प्रभावी है। अब इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एससीओ के सदस्यों में से एक ऐसा देश है जिसके बारे में हमने लगातार बात की है और शायद सीमा पार आतंकवाद के बारे में सही भी । अगर आठ सदस्यों में से एक सदस्य सीमा पार आतंकवाद में शामिल है तो आरएटीएस कैसे विकसित हो सकता है।

रेजौल: विदेश सचिव जी, हिंदुस्तान टाइम्स से रेजौल। पिछले प्रश्न जैसा ही प्रश्न, हमने आरएटीएस के बारे में हमेशा व्यावहारिक आतंकवाद विरोधी सहयोग के लिए एक मंच के रूप में सुना है। लेकिन हम यह कैसे करते हैं जब पाकिस्तान सक्रिय रूप से भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को पनाह देता है और चीन उन्हें सूचीबद्ध करने के प्रयासों को रोक रहा है?

शशांक मट्टू: विदेश सचिव, मिंट से शशांक मट्टू। तो आपने व्यापारिक कनेक्टिविटी के बारे में बात की, लेकिन चीन का, उदाहरण के लिए, पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ 40 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है। हमारे पास लगभग 2 बिलियन हैं, वे आंशिक रूप से मध्य एशिया में एक बहुत विस्तृत रेल नेटवर्क कनेक्टिविटी परियोजना का भी वित्तपोषण कर रहे हैं। मध्य एशिया के आगे बढ़ने के साथ भारत के लिए आर्थिक रणनीति क्या है, इसकी आपकी क्या समझ है ?

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्‍ता : महोदय, शायद हम इस दौर के प्रश्न ले लें और एक और अंतिम दौर ले लें। बाकियों के पास मैं वापस आऊँगा।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: सुश्री ली, रूसी तेल और मूल्य सीमा गठबंधन से संबंधित आपके प्रश्न पर, भारत जी-7 का सदस्य नहीं है, केवल रिकॉर्ड के उद्देश्यों के लिए इस पर स्पस्ट हो लें । गहरी छूट, बाजार मूल्य-देखिए, हमने अन्य प्लेटफार्मों पर भी कई बार यह कहा है कि जब भारतीय संस्थाएं बाहर जाती हैं और भारत की ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों का जवाब देने की कोशिश करती हैं और तेल की खरीद करती हैं, तो वे अनिवार्य रूप से इसे बाजार से खरीदती हैं। ये सरकार से सरकारी खरीद नहीं हैं जो हम करते हैं। मूल्य सीमा गठबंधन पर, यह क्या रूप लेता है, यह किस आकार में विकसित होता है, यह कुछ ऐसा है कि मुझे लगता है कि जिन लोगों, जिन देशों ने उस विचार को आगे बढ़ाया है, वे शायद इसका बेहतर जवाब दे सकते हैं ।शंघाई सहयोग संगठन में प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय बैठकों के संबंध में, मैं केवल वही दोहराऊंगा जो मैंने पहले कहा है। हमने ऐसी रिपोर्टें देखी हैं जिनका आप उल्लेख कर रहे हैं। मैं आपको इस बात की पुष्टि कर सकता हूँ कि जैसे-जैसे द्विपक्षीय बैठकों की समय-सारणी सामने आएगी, वैसे-वैसे हम आपको उनके बारे में पूरी तरह से अवगत कराते रहेंगे।

शैलेश आपका जो प्रश्न था चीन की केन्द्रता का। शंघाई cooperation संस्था के सन्दर्भ में? देखिए, मैं आपसे इतना ही कहना चाहूँगा कि जो भारत का परिपेक्ष है वो ये है कि शंघाई cooperation organization एक regional संस्था है, जिसमें भारत एक सदस्य है और जिसमें मुख्यः केन्द्रता का एक परिपेक्ष जो है, एक pillar जो है वो central Asian देशों की centricity है। आपकी जो टिप्पणी थी, आपके प्रश्न से जुडी हुई कि एक देश ने ये किया, एक देश ने वो किया, मैं आपसे इतना ही कहना चाहूँगा कि जो भारत के हित हैं शंघाई cooperation संस्था को ले के, Shanghai cooperation organization से जुड़े हुए भारत के जो क्षेत्रीय हित हैं जो उन सदस्य देशों के साथ सहयोग है, उन सदस्य देशों के भीतर जो central asia के पांच देश हैं उनके साथ सहयोग है, चाहे वो सहयोग आर्थिक हो, चाहे वो सुरक्षा के क्षेत्र में हो, चाहे वो सहयोग या पेरिपेक्षों का आदान-प्रदान क्षेत्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्थिति में वार्ता को ले के हो। हमारा मानना है कि इसमें किसी एक देश की केन्द्रता नही अपितु क्षेत्रीय केन्द्रता है। तो, बाकि हर देश Central Asian countries के साथ सहयोग का अपना एक परिपेक्ष रखता है, भारत का जो परिपेक्ष central asian देशों के साथ है, वो स्वयं में अपने आप में पूर्ण है और सम्पूर्ण है और हम उसको किसी तृतीय क्षेत्र से बाहर देश के परिपेक्ष से इसका आंकलन नही करते हैं।

प्रणय आपकी भी दो जिज्ञासाएं थी, एक currency swap को ले के और एक energy security को ले के? जैसे कि मैंने अपने opening remarks में भी कहा कि जो Shanghai cooperation organization की summit में जो documents है जो भी उनका out come होगा वो अभी under consideration होगा, उसके बारें में जब तक चीज़े पूरी रूप से स्पष्ट नही हो जाती कहना मुश्किल है। मैं इतना ही कहूँगा कि जब हम आर्थिक सहयोग की बात Shanghai cooperation संस्था के सन्दर्भ में करते हैं तो energy security जैसे प्रश्न और बाकि प्रश्न जैसा अभी आपने उठाया वो सब वार्ता का भाग होते है मगर वो outcome का क्या परिपेक्ष रहता है वो जो है summit ख़त्म होने के बाद ही स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है।

आतंकवाद से जुड़े दो प्रश्नों पर, मुझे लगता है कि एक टाइम्स नाउ से, और दूसरा हिंदुस्तान टाइम्स से रेजौल द्वारा । आप जानते हैं, यह देखने के कई तरीके हैं कि विभिन्न देश इस क्षेत्र में आतंकवाद की चुनौती का आकलन कैसे करते हैं और उसे कैसे देखते हैं। आपने पाकिस्तान और इस क्षेत्र में आतंकवाद की चुनौती से जुड़े होने का जिक्र किया है। मैं आपको बता सकता हूँ कि यदि आप आतंकवाद का मुकाबला करने पर चर्चा के इतिहास को देखते हैं, तो शंघाई सहयोग संगठन के ढाँचे के भीतर आप पाएँगे कि चर्चा का सार और एससीओ की विभिन्न संरचनाएँ, उनके इस मुद्दे से निपटना, वर्षों की अवधि के दौरान विकसित हुए हैं। और अब इस बात पर ध्यान दिए बिना कि आतंकवाद की इस समस्या पर कोई विशेष देश क्या करता है, मैं कहूँगा कि एससीओ देशों के भीतर इस आतंकवाद की प्रकृति क्या है, यह समस्या कहाँ से आती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एससीओ देशों को स्वयं के लिए और विशेष रूप से आरएटीएस सहित एससीओ संरचनाओं के लिए एक साथ आने और तरीके बनाने के लिए, जिसका मैंने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में उल्लेख किया है, व्यावहारिक सहयोग के तरीके बनाने की गहरी समझ और गहरी प्रशंसा है। और यह कुछ ऐसा है जिस पर हम पिछले साल अक्टूबर में आरएटीएस की कार्यकारी परिषद की अध्यक्षता लेने के बाद से बहुत दृढ़ता से ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। मुझे यकीन है कि आपने फॉलो किया होगा कि एससीओ आरएटीएस संरचना ने आतंकवादी और चरमपंथी संगठनों का एक एकीकृत रजिस्टर बनाने की दिशा में काम करने का भी फैसला किया है, जिनकी गतिविधियाँ एससीओ आरएटीएस के भीतर एससीओ सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं। डेटाबेस का सवाल है, जिसमें यह विशेष समस्या शामिल है और एक निकाय के रूप में आरएटीएस निश्चित रूप से इस मुद्दे पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए काम कर रहा है।

आर्थिक जुड़ाव आदि पर यह अंतिम प्रश्न था। आप जानते हैं, मैंने पहले भी इसका उल्लेख किया है, और यदि आप इस वर्ष की शुरुआत में भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के विचार-विमर्श को देखें तो आपको वहां कहीं अधिक विवरण मिलेगा, लेकिन भारत-मध्य एशिया व्यापार और आर्थिक सहयोग के कई तत्व हैं और हम इसे उस मूल्य प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य से देखते हैं जो भारत का व्यापार और आर्थिक सहयोग मध्य एशियाई देशों के साथ साझेदार होने पर लाता है और ये मूल्य प्रस्ताव मूल रूप से हमारी पूरकताओं और मध्य एशिया के साथ हमारे जुड़ाव पर आधारित हैं, और जिसका मैंने उल्लेख किया है, एक, व्यापार और संपर्क पर ध्यान केंद्रित करना और यह कुछ ऐसा है जो वर्षों की अवधि में फिर से काफी बढ़ गया है। और निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा है, जो मध्य एशिया के एक तत्व को जोड़ता है। कई पार्श्वों के माध्यम से मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी पर यह बड़ा बल है, जो भारत को मध्य एशियाई देशों से जोड़ता है। व्यापार-से-व्यवसाय सहयोग, वाणिज्यिक सहयोग पर अनिवार्य रूप से व्यापार परिषद खंड के माध्यम से ध्यान केंद्रित किया जाता है, जो कि भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के परिणामों का व्युत्पन्न है। उन उत्पादों और सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है जो हमें लगता है कि भारत के मध्य एशिया के साथ सम्बन्ध, व्यापारिक जुड़ाव के संदर्भ में पूरक हैं, इसमें विशेष रूप से फार्मा उत्पाद, कृषि वस्तुएँ, तेल और गैस एक स्पष्ट तत्व है, और खनिजों का आयात और आईटी से संबंधित सेवाओं के संपूर्ण तत्व और स्टार्ट-अप एवं नवाचार के क्षेत्र में सहयोग का एक नया तत्व भी शामिल है जिसमें भारत विशेष कार्य समूह की अध्यक्षता करेगा, जिसका अर्थ है, अनिवार्य रूप से स्टार्ट-अप और नवाचार कार्य समूह की एक स्थायी अध्यक्षता । इसलिए ये महत्वपूर्ण तत्व हैं और हम उन पर निर्माण करना जारी रखते हैं। हम इनमें से कुछ क्षेत्रों में अच्छी प्रगति, अच्छी वृद्धि देख रहे हैं। लेकिन हम उन्हें बनाने के लिए, मध्य एशियाई देशों में प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत रूप से और उन सभी के साथ सामूहिक रूप से और साथ ही हमारे विस्तारित पड़ोस में अन्य देशों के साथ, हमारी ताकत के आधार पर और हमारे द्वारा लाए गए मूल्य प्रस्ताव के आधार पर और देशों के अन्य समूहों से जिनके साथ संबंध बनाते है और उन पर आगे बढ़ते हैं, अपनी साझेदारी का निर्माण करने के लिए अपने विचारों में बहुत स्पष्ट हैं । धन्यवाद ।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: धन्यवाद। हम एक दो और प्रश्न लेते हैं।

मानश: महोदय, पीटीआई, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से मानश। महोदय, आपने एससीओ शिखर सम्मेलन में विभिन्न प्रमुख क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा पर भारत की अपेक्षाओं का उल्लेख किया। और यह वास्तव में आंतरिक रूप से स्पष्ट है कि चीन का आक्रामक व्यवहार, और बढ़ती मुखरता यह न केवल भारत के लिए, बल्कि क्षेत्र के लिए एक मुद्दा है। कई देशों ने वास्तव में इस तरह की चुनौतियों का सामना किया है। तो, क्या आप इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता पर किसी चर्चा की उम्मीद कर रहे हैं, जो कई अन्य देशों के लिए समस्या पैदा कर रहा है? क्या भारत वास्तव में इस मुद्दे को उठाएगा? शुक्रिया।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: मैं समझता हूँ, मैं इस मुद्दे का उत्तर दे कर पहले यहीं समाप्त करता हूँ। मैं आपकी टिप्पणी पर टिप्पणी नहीं करूँगा, लेकिन आपके प्रश्न पर, जो मैं कहूँगा वह यह है कि, मैंने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में पहले ही उल्लेख किया है और यह भी दोहराया है कि शंघाई सहयोग संगठन के एजेंडे में क्षेत्र के घटनाक्रम पर चर्चा शामिल है, जिसमे एससीओ की सदस्यता का संपूर्ण निकाय है और इससे जुड़े क्षेत्र, इससे जुड़े देश हैं । और इसमें भारत अपना दृष्टिकोण सामने रखेगा कि हम इस क्षेत्र को कैसे देखते हैं, हम उन घटनाक्रमों को कैसे देखते हैं, हम उनका आकलन कैसे करते हैं। मुझे लगता है कि हर देश ऐसा करेगा। शुक्रिया।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: और अंतिम दो प्रश्न।

श्रीधर: महोदय, श्रीधर, एशियाई युग से। आपने उल्लेख किया कि द्विपक्षीय वार्ताओं को अभी भी मजबूत किया जा रहा है, लेकिन मैं विशेष रूप से पूछना चाहता हूँ कि क्या हमें द्विपक्षीय बैठक के लिए चीन से कोई सूचना मिली है। और, आगे और , अगर इज़ाज़त हो, एससीओ, जैसा कि शैलेश ने भी एससीओ को संदर्भित किया था, को अब तेजी से रूस और चीन के नेतृत्व वाले विश्वदृष्टि के लिए प्रतिबद्ध संगठन के रूप में देखा जा रहा है। जो कुछ बयानों में, संयुक्त बयानों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के संदर्भ में पश्चिमी-विरोधी है। क्या आप इस बात से सहमत होंगे कि भारत धीरे-धीरे इस मामले में सबसे अलग हो रहा है?

विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: मैं समझता हूँ कि आपके प्रश्न के दूसरे भाग का उत्तर मैं पहले ही दे चुका हूँ। और मुझे लगता है कि आपको उस योगदान का आकलन करने की आवश्यकता है जो प्रत्येक सदस्य संगठन में करता है और मैं योगदान शब्द का उपयोग बहुत ही सोच समझ कर कर रहा हूँ । आपको एक सदस्य देश के क्षेत्रीय संगठन के साथ जुड़ाव के उस हिस्से को इस दृष्टिकोण से देखना होगा कि वह विशेष सदस्य क्या मूल्य प्रस्ताव लाता है। और मैं पहले ही आपको उन तत्वों पर प्रकाश डाल चुका हूँ जिन्हें भारत उठाता है। मुझे लगता है कि एक, एससीओ की पूरी सदस्यता, दो, जो देश पर्यवेक्षक के रूप में भाग ले सकते हैं या तीन, वे देश जिन्हें आमंत्रित किया जा सकता है, विशेष रूप से मध्य एशियाई देशों में, भारत अपने रुझानों के संदर्भ में, अपने मूल्यों के संदर्भ में, अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभों के संदर्भ में, जिसका एससीओ के एजेंडे के विकास मे बहुत बड़ा योगदान है, और निश्चित रूप से, इसके उत्पादक परिणाम जो इसके साथ आते हैं, की बहुत स्पष्ट और गहरी सराहना है । इसलिए उस पर, मैं सोचता हूँ कि कोई संदेह नहीं है। और, जैसा कि मैंने कहा, उस भूमिका और उस योगदान की व्यापक और गहरी प्रशंसा है जो भारत 2017 में एससीओ का पूर्ण सदस्य बनने के समय से कर रहा है, बल्कि उससे पहले से भी।

द्विपक्षीय संबंध मजबूत किए जा रहे हैं - मैंने ऐसा नहीं कहा, यह आपके शब्द हैं। मैंने कहा, हम आपको द्विपक्षीय बैठकों या प्रधानमंत्री की शिखर बैठक की समय-सारणी, एससीओ पर साइड-लाइन बैठकों के रूप में अवगत कराते रहेंगे। कि मैंने यह कहा था ।

अमित : Sir मैं अमित हूँ Times Now Navbharat से, एक सवाल है जिसे SCO में terrorism को लेके भी चर्चा होगी लेकिन जैसे पाकिस्तान लगातार मसूद अजहर को लेकर झूठ बोल रहा है, अफगानिस्तान कह रहा है कि अजहर मसूद पाकिस्तान में है। तो, ऐसे में SCO में कितनी गंभीरता से इस बात को लेकर चर्चा होगी और इसको लेकर अजहर मसूद को लेकर आपलोगों का क्या stand है?

अखिलेश सुमन : महोदय, मैं संसद टीवी से अखिलेश सुमन हूँ । मेरा बहुत छोटा सा सवाल है। मध्य एशियाई देशों के साथ जुड़ने में कनेक्टिविटी भारत के लिए प्रमुख समस्याओं में से एक रही है। और भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो मध्य एशियाई देशों से सीधे नहीं जुड़ा है। तो इस शिखर सम्मेलन के दौरान, या उससे पहले भी, आप पाकिस्तान के माध्यम से भारत तक पहुँच प्रदान करने के लिए एससीओ सदस्यों से कैसे बात कर रहे हैं, इस वजह से हमें तापी और कई अन्य लाभ नहीं मिल रहे हैं जो हमें भारत मध्य एशिया लिंक से मिल सकते हैं। शुक्रिया।

सचिन: टाइम्स ऑफ इंडिया से सचिन । चूंकि हम चीनी राष्ट्रपति के साथ एक संभावित द्विपक्षीय वार्ता के बारे में बात कर रहे हैं, इसलिए मैं आपसे नवीनतम दौर के विघटन के महत्व के बारे में पूछना चाहता हूँ, जो प्रभावी हो गया है।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: आप इस यात्रा से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं।

सचिन: तो मैं आपसे समग्र संबंध के संदर्भ में इसका क्या महत्व है सिर्फ यह पूछना चाहता था, यदि आप इसका उत्तर दे सकते हैं।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: मैं समझता हूँ कि नवीनतम दौर के विघटन के एक विशेष बिंदु पर, विदेश मंत्री ने कल ही इस पर टिप्पणी की है, इसलिए मैं इससे अधिक कुछ नहीं कहना चाहूँगा। जैसा कि मैंने कहा, मैं एक बार फिर वही दोहराता हूँ जो मैंने आज सुबह की वार्ता में कई बार कहा है कि हम आपको प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय बैठकों की समय-सारणी के बारे में अवगत कराते रहेंगे। मुझे लगता है, इसे यहीं छोड़ देते हैं ।

अखिलेश कनेक्टिविटी के संबंध में आपका प्रश्न है, हम इसे कैसे बनाने की कोशिश करेंगे, हम कैसे प्रयास कर रहे हैं, मैं कहूँगा कि इस कनेक्टिविटी को बनाने में भूगोल की बाधाओं को दूर करते हुए । मेरा मतलब है, विदेश मंत्री ने अपने एक भाषण में जो कहा था, मैं उसे फिर से उद्धृत करता हूँ, कि हमारे लिए जो कुछ भी हमें जोड़ता है, वह कनेक्टिविटी है। हम कनेक्टिविटी को केवल इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी की संकीर्ण सीमाओं से नहीं देखते हैं। मुझे लगता है कि आप उसका जिक्र कर रहे हैं, यदि आप मध्य एशिया और भारत के समाजों के बीच संपर्क को देखें, तो मुझे नहीं पता कि आपको मध्य एशियाई देशों में जाने का मौका मिला है या नहीं, यदि आप यात्रा करते हैं तो आप देखेंगे, आप महसूस करेंगे कि भारत और मध्य एशिया के देशों में जनसांख्यिकी या जनसंख्या के बीच सांस्कृतिक संपर्क का गहरा बंधन है । जैसा कि मैंने कहा, भूमि मार्ग उस तर्ज पर आकार लेगा, जिस पर मध्य एशियाई देशों और भारत ने कनेक्टिविटी स्थापित करने के संबंध में आगे बढ़ने का फैसला किया है, चाहे वह परिवहन कनेक्टिविटी हो, चाहे वह कॉरिडोर कनेक्टिविटी हो, चाहे वह उत्पाद विशिष्ट कनेक्टिविटी हो, जिनमें से कुछ का आपने उल्लेख किया है, करने के लिए, और इससे जुड़े सभी तत्व।

देखिए, आतंकवाद के प्रश्न पे जो आपका प्रश्न था, मैं ! बार-बार प्रश्न पूछने से उत्तर तो अलग नही आएगा, ये तो विधान है इसी प्रकार का। तो, i think आतंकवाद के प्रश्न पर जो हमारा संज्ञान है हमारा परिपेक्ष है वो मैं पहले ही कह चूका हूँ।

श्री अरिंदम बागची, सरकारी प्रवक्ता: महोदय, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। यहाँ आने के लिए आदर्श को भी धन्यवाद। आप सभी को धन्यवाद।

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