मीडिया सेंटर

भारत-फ्रांस मंत्रिस्तरीय बैठक के बाद संयुक्त प्रेस वार्ता का प्रतिलेख (सितम्बर 14, 2022)

अक्तूबर 14, 2022

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: आप सभी को बहुत-बहुत शुभ दोपहर। कृपया बैठ जाएं। फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री, महामहिम कैथरीन कोलोना की यात्रा के अवसर पर इस विशेष ब्रीफिंग में हमारे साथ शामिल होने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अभी हमारे पास दोनों मंत्री मंच पर मौजूद हैं। माननीय विदेश मंत्री महोदय, मीडिया के मित्रों। अब मैं माननीय विदेश मंत्री जी से प्रारंभिक टिप्पणी करने का अनुरोध करता हूं।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री कैथरीन कोलोना के साथ अपनी बातचीत के पूरा होने पर मीडिया के अपने सभी दोस्तों से मिलकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं इस बात की सराहना करता हूं कि वे इस जिम्मेदारी को संभालने के तुरंत बाद भारत आई हैं। मुझे लगता है कि यह एशिया की आपकी पहली द्विपक्षीय यात्रा है। बेशक, हम पहले से ही फोन पर संपर्क में हैं और हम जुलाई में बाली में जी20 बैठक के इतर भी मिले थे।

जहां तक फ्रांस के साथ हमारे संबंधों का प्रश्न है, आप सभी जानते हैं कि यह एक रणनीतिक साझेदारी है। लेकिन शायद यह ‘वाक्य’ भी पूरी तरह से यह नहीं दर्शाता कि हाल के वर्षों में हमारे संबंध कितने घनिष्ठ और मजबूत हुए हैं। खुद को उद्धृत करने के जोखिम पर, मैं यह रेखांकित करना चाहता हूं कि भारत फ्रांस को एक वैश्विक दृष्टिकोण और एक स्वतंत्र मानसिकता के साथ एक प्रमुख शक्ति के रूप में देखता है। यह बहुध्रुवीयता के उद्भव का केंद्र है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्रांस भारत की चिंताओं और प्राथमिकताओं के प्रति बेहद संवेदनशील रहा है। इसलिए पिछले तीन दशकों में, जहाँ दुनिया ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं, फ्रांस के साथ भारत के संबंध एक स्थिर और स्पष्ट गति को बनाए रखते हुए लगातार विकसित और प्रगाढ़ होते रहे हैं, और मैं आज कह सकता हूं कि वास्तव में हम विश्वसनीय भागीदार हैं। विशेष रूप से पिछले एक दशक में ऐसा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों ने हमारे संबंधों के लिए उच्च महत्वाकांक्षाएं निर्धारित की हैं और वे उन्हें शीघ्रता से पूरा करने की उम्मीद रखते हैं।

जब विदेश मंत्री मिलते हैं तो यह स्वाभाविक है कि हमारा ध्यान दिन के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर होगा। कई तरह के तनावों और चुनौतियों के कारण उत्पन्न अशांति को देखते हुए अभी विशेष रूप से ऐसा है। आज की हमारी बातचीत में ऐसी कई चिंताओं को शामिल किया गया है, जिनमें यूक्रेन में संघर्ष, इंडो-पैसिफिक में तनाव, कोविड महामारी के परिणाम, अफगानिस्तान के घटनाक्रम और जेसीपीओए की संभावनाएं शामिल हैं। हमने यह भी बात की कि मजबूत भारत-फ्रांस सहयोग से हमारे संबंधित हितों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की बेहतर सेवा कैसे हो सकती है। फ्रांसीसियों की इंडो-पैसिफिक के किसी भी छोर पर लंबे समय से मौजूदगी है। उन क्षेत्रों के बारे में मंत्री कोलोना के विचारों और आकलनों को सुनना वास्तव में बहुत मूल्यवान था। हम एक इंडो-पैसिफिक त्रिपक्षीय विकास सहयोग की स्थापना की दिशा में काम करने के लिए सहमत हुए, जो विकास परियोजनाओं की सुविधा प्रदान करेगा, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के ढांचे में। मुझे यह भी उल्लेख करना चाहिए कि आईएसए ने अब तीन देशों में परियोजनाओं को मजबूत किया है जो वास्तव में भारत और फ्रांस के सम्मिलित प्रभाव को- भूटान में, पापुआ न्यू गिनी और सेनेगल में दर्शाता है। इंडो-पैसिफिक त्रिपक्षीय भारतीय नवाचारों और स्टार्ट-अप को अन्य समाजों की आवश्यकताओं के लिए उनकी प्रासंगिकता प्रदर्शित करने के लिए एक मंच भी प्रदान करेगा। अफ्रीका महाद्वीप में भारत के विस्तार को देखते हुए, उसके परिप्रेक्ष्य में हमारा आदान-प्रदान भी बहुत उपयोगी था।

फ्रांस यूरोपीय संघ का एक प्रमुख सदस्य है और हमने स्वाभाविक रूप से व्यापार, निवेश और भौगोलिक संकेतकों पर भारत-यूरोपीय संघ वार्ता को आगे बढ़ाने पर चर्चा की। हमने इस संबंध में पहले दौर की वार्ता शुरू होने का स्‍वागत किया। मैंने इन प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिए यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता के दौरान फ्रांस के प्रयासों के लिए मंत्री कोलोना को धन्यवाद दिया। अपनी ओर से, उन्होंने मुझे संघ के भीतर बातचीत में शामिल विभिन्न मामलों के बारे में जानकारी दी, जिसमें यूक्रेन का संदर्भ भी शामिल है।

भारत और फ्रांस के बीच बढ़ती सहजता का एक प्रतिबिंब अन्य भागीदारों के साथ त्रिपक्षीय प्रारूप बनाने में उनकी दिलचस्पी है। मैंने पहले इंडो-पैसिफिक में विकास के मुद्दों पर हमारे सहयोग का उल्लेख किया था। हम इस महीने के अंत में अपने सहयोगी मंत्री पेनी वोंग के साथ न्यूयॉर्क में भारत-फ्रांस-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय बैठक की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आधिकारिक तौर पर हमें जो सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली थी, उसे देखते हुए, संयुक्त अरब अमीरात के साथ, एक अन्य त्रिपक्षीय को भी मंत्री स्तर पर अपग्रेड किया जाएगा।

बहुपक्षीय मंचों पर और वैश्विक मुद्दों पर एक साथ काम करने की भारत और फ्रांस की एक लंबी और मजबूत परंपरा रही है। वर्तमान में हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक साथ काम करते हैं और वहां हमारा समन्वय सराहनीय रहा है। मैं विशेष रूप से आतंकवाद की चुनौती पर फ्रांस के स्पष्ट रुख की सराहना करता हूं। मैंने हमारी आगामी जी20 प्रेसीडेंसी के बारे में मंत्री कोलोना से भारत के विचारों और अपेक्षाओं को साझा किया।

इसमें कोई शक नहीं कि, विदेश मंत्रियों पर सहयोग की विभिन्न धाराओं को एकीकृत करने की जिम्मेदारी है जो उनके पास द्विपक्षीय रूप से होती हैं। भारत और फ्रांस के मामले में, यह वास्तव में एक कठिन कार्य है, यह देखते हुए कि हम एक-दूसरे के साथ कई क्षेत्रों में काम करते हैं। हमने एक समग्र समीक्षा की और मुझे लगता है कि मैं अपने फ्रांसीसी समकक्ष की तरफ से यह घोषणा कर सकता हूं कि हम उन कई क्षेत्रों में प्रगति से संतुष्ट हैं जिन पर हमने चर्चा की- रक्षा, परमाणु, अंतरिक्ष आदि, लेकिन हम गति को और बढ़ाने की उम्मीद करते हैं।

आज हमारे विचार-विमर्श में कुछ विशिष्ट मुद्दे ध्यान देने योग्य हैं। एक, हम अपने प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी के फॉलो-अप के रूप में 18-35 आयु वर्ग के युवा पेशेवरों के आदान-प्रदान के लिए एक योजना शुरू कर रहे हैं। दूसरा, हम स्वास्थ्य पर भारत-फ्रांस कैंपस की उम्मीद करते हैं जो आदान-प्रदान और सहयोग की सुविधा के लिए डबल डिग्री पाठ्यक्रम स्थापित करने के लिए आकार ले रहा है। तीसरा, मैंने कूटनीति के भविष्य (Future of Diplomacy) के लिए रायसीना फोरम में फ्रांस का स्वागत किया जो युवा राजनयिकों के बीच नेटवर्किंग को बढ़ावा देगा। चौथा, मैंने ब्रेस्ट में सी टेक वीक में भारत को ‘कंट्री ऑफ़ ऑनर’ बनाने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया, जो ब्लू इकोनोमी (नीली अर्थव्यवस्था) के हितधारकों को एक साथ लाएगा। और पांचवां, हम फ्रांस में सफल वाइवाटेक शिखर सम्मेलन 2022 पर फॉलो-अप कार्रवाई के लिए सहमत हुए, जहां भारत कंट्री ऑफ़ दि इयर था। हम विशेष रूप से अब यूपीआई और रुपे सुविधाओं के लॉन्च के लिए उत्सुक हैं।

कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि हमारा दिन असाधारण रूप से अच्छा और उत्पादक रहा। मैं मंत्री कोलोना को एक बार फिर धन्यवाद देता हूं और उन्हें अपनी टिप्पणी के लिए आमंत्रित करता हूं।

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री: प्रिय मंत्री जयशंकर, देवियों और सज्जनों, प्रिय साथियों। मैं यहां भारत में आकर बेहद खुश हूं, लेकिन अगर आप सहमत हों तो मैं फ्रेंच में बात करना चाहूंगी। मैं अपने सहयोगी मंत्री जयशंकर को उनकी गर्मजोशी भरी टिप्पणियों और जो बातें हमने एक साथ की, उसके बारे में बताने के लिए धन्यवाद देना चाहती हूं, सब कुछ बहुत अच्छी भावना से है। जो कुछ उन्होंने पहले ही उल्लेख किया है, उसमें मैं केवल कुछ शब्द जोड़ना चाहूंगी। प्रिय सहयोगी, आपने कहा कि यह एशिया में मेरी पहली द्विपक्षीय यात्रा है, यह इसलिए है क्योंकि भारत की इस यात्रा का निर्णय मैंने स्वेच्छा से लिया है। मैंने यहां आने का फैसला किया। और निश्चित रूप से, क्योंकि भारत और फ्रांस के बीच एक बहुत ही विशेष साझेदारी है और यह अत्यंत अद्वितीय है। हमारे बीच सब कुछ वास्तव में असाधारण है। मैं आपको केवल यह याद दिलाना चाहूंगी कि इस समय हम अपने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इन दशकों के दौरान फ्रांस और भारत सबसे बुरे समय में भी एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं। मुझे लगता है कि हम कभी भी इसमें असफल नहीं हुए हैं और आज की दुनिया में, जो अनिश्चित है, एकजुटता और विश्वास का यह स्तर वास्तव में दुर्लभ है और यह अनूठा (अश्रव्य) है। और फ्रांस के लिए, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध है। मुझे लगता है कि यह (अश्रव्य) था कि हमने एक रणनीतिक साझेदारी विकसित करने का फैसला किया, जो एक जैसों के बीच एक साझेदारी है, यह एक बहुध्रुवीय दुनिया की सेवा में एक रणनीतिक स्वायत्तता के लिए हमारे साझा अभियान पर आधारित है। इसलिए मूल रूप से मंत्री जयशंकर और मैंने न केवल इस बारे में बात की कि हम एक साथ क्या कर सकते हैं, बल्कि आने वाले वर्षों में जिस तरह से, हम जानते हैं कि दुनिया भर में चीजें विकसित हो रही हैं और हम जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में चीजें काफी असाधारण रही हैं, बेशक, सुरक्षा और रक्षा का मुद्दा कुछ ऐसा है जो हमारे बहुत करीब है। और मुझे नहीं लगता कि कोई अन्य देश भारत के साथ ऐसे काम कर रहा है, जैसे फ्रांस करता रहा है। और हमें आपका पहला सबसे महत्वपूर्ण साथी होने पर बहुत गर्व है। और हममें से प्रत्येक यह जानता है कि कार्यात्मक की दृष्टि से भी, हमारी साझेदारी वास्तव में बहुत विकसित हुई है। हम हिंद महासागर में भी काम कर रहे हैं, जो एक बहुत बड़ी प्रगति है। हमारी निश्चित रूप से अन्य महत्वाकांक्षाएं हैं। हम बाहरी अंतरिक्ष में, साइबर स्पेस में, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में काम करना चाहते हैं। और मैं आपको याद दिलाना चाहती हूं कि हम जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के साथ आगे बढ़ने के लिए भी बहुत उत्सुक हैं, जो अच्छी प्रगति कर रही है। और यह दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा और भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और जलवायु लक्ष्यों को बढ़ावा देगा। तो यह पहला स्तंभ है। दूसरा स्तंभ जिसका मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगी, वह यह है कि हमारी भागीदारी केवल यह सुनिश्चित करने तक सीमित नहीं है कि हमारे देश एक-दूसरे के साथ अधिक सहयोग करें, बल्कि यह एक ऐसी साझेदारी भी है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करना है, जो कि कानून के नियम पर आधारित है। हमारे दोनों देश कानून के शासन के लिए प्रतिबद्ध हैं और हम समान भागीदार के रूप में काम करते हैं। और जैसा कि आप जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के कुछ मूलभूत सिद्धांतों पर हमला हुआ है। आप जानते हैं, कि यूक्रेन पर रूस का आक्रमण चिंता का विषय रहा है, और यह एक ऐसी चीज है जो केवल यूक्रेन ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व, विश्व की सभी सरकारों से संबंधित है। लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, आप जानते हैं, क्योंकि यह सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय समाज के एक सदस्य द्वारा किया गया हमला है। तो सभी अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत, आप जानते हैं, ये मूल सिद्धांत और हम सभी एक-दूसरे का सम्मान करने के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के इन मूल सिद्धांतों में विश्वास करते हैं और दुनिया भर में शांति और स्थिरता की तलाश करते हैं।

जब इन मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया जाता है या इन पर हमला किया जाता है, तो हर जगह सब कुछ ढीला और कमजोर हो जाता है। और यह न भूलें कि हर कोई हमें देख रहा है, यूक्रेन में जो कुछ भी हो रहा है और मैं चाहती हूं कि आप इस बिंदु पर जोर दें। यह कुछ ऐसा नहीं है जो केवल यूक्रेन या सिर्फ यूरोपीय महाद्वीप से संबंधित है। यह कुछ ऐसा है जो पूरे वैश्विक समुदाय के लिए एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है जो अब हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के मूल सिद्धांतों पर सवाल उठा रहा है। बेशक हमने इंडो-पैसिफिक के बारे में बात की। फ्रांस एक इंडो-पैसिफिक राष्ट्र है। हम हर जगह हैं। इसलिए यूरोपीय संघ में भी हमने इंडो-पैसिफिक नीति अपनाई है। और यद्यपि हम यूक्रेन को लेकर बहुत चिंतित हैं, फिर भी इस घटना ने भी हमें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है उसे भूलने नहीं दिया, और भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है और हम चाहते हैं कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र हो जो कानून पर, अधिकारों पर, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित हो। और हम इस क्षेत्र में ठोस समाधान लाना चाहते हैं ताकि हम समुद्री सुरक्षा, आर्थिक सहयोग के उद्देश्य को पूरा कर सकें।

हमने इंडो-पैसिफिक में देशों के लिए सतत विकास का समर्थन करने के लिए एक इंडो-फ्रेंच फंड बनाया है और फ्रांस से परे यूरोपीय संघ भी इस क्षेत्र में एक हितधारक है और हम सब एक साथ हैं। चीजों को अलग-अलग करने के बजाय, हम सब मिलकर काम कर रहे हैं। इंडो-पैसिफिक और यूक्रेन के मुद्दे के अलावा, भारत और फ्रांस अन्य क्षेत्रों में भी एक साथ काम कर रहे हैं, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में। फ्रांस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालेगा। और मैं आपको याद दिलाना चाहती हूं कि फ्रांस ने खुद को लामबंद किया है और यह खुद को एकजुट करना जारी रखेगा ताकि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिल सके। हम जानते हैं कि भारत अगले वर्ष G20 की अध्यक्षता या चेयरमैनशिप ग्रहण करेगा। और निश्चित रूप से हम इस आगामी G20 बैठक के लिए समर्थन करना चाहेंगे। जैसा कि आप जानते हैं, हमने एक साथ अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की है और जिसने अब तीन देशों में परियोजनाओं को ठोस आकार दे दिया है और हम प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रचारित LIFE पहल को समर्थन प्रदान करना जारी रखेंगे और हम इस पहल को अपना समर्थन देते रहेंगे। हमने आगामी G20 शिखर सम्मेलन पर भी चर्चा की, जिसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया कर रहा है और उस तरीके की भी चर्चा की जिससे फ्रांस और भारत यूक्रेन युद्ध के कुछ अप्रत्यक्ष परिणामों से निपटने के लिए एक आम पहल के साथ आ सकते हैं, चाहे वह ऊर्जा से जुड़ा हो, सामान्य रूप से ऊर्जा की कीमत, मुद्रास्फीति की लागत और खाद्य सुरक्षा का मुद्दा हो जिसमें भारत भी एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। और मंत्री जी पहले ही कह चुके हैं, लेकिन मैं फिर भी उल्लेख करना चाहूंगी, हमने कहा कि हमारी सरकारें जो करती हैं उससे परे, दो सरकारों के बीच, हम लोगों से लोगों के बीच संबंधों पर भी काम कर रहे हैं, चाहे वह संस्कृति हो, चाहे वह कोई अन्य क्षेत्र हो और चाहे वह शिक्षा हो, हम 2025 तक फ्रांस में 20,000 भारतीय छात्रों को प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक हैं। और हम जानते हैं कि महामारी के कारण, चीजें थोड़ी धीमी हो गई थीं, लेकिन हमें उम्मीद है कि हम इसकी भरपाई करने में सक्षम होंगे। देरी। और निश्चित रूप से स्वास्थ्य पर एक केंद्र होगा, जो स्थापित किया जाएगा, जो स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा कैंपस है। और फ्रांस हैदराबाद में भी एक ब्यूरो खोल रहा है। भारत में हमारे पास पहले से ही चार वाणिज्य दूतावास हैं, हमारे पास कई एलायंस फ़्रैंचाइज़ हैं। इसलिए, हमने वास्तव में उपयोगी चर्चा की और उत्कृष्ट बातचीत के लिए मंत्री महोदय को धन्यवाद, और मैं वास्तव में न्यूयॉर्क में उनसे मिलने के लिए उत्सुक हूं। और मैं आतिथ्य सत्कार के लिए भी मंत्री जी का आभार व्यक्त करती हूँ। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: धन्यवाद महामहिम। अब हम यहाँ एकत्रित मीडियाकर्मियों से प्रश्न आमंत्रित करेंगे। समय की कमी के कारण, हम इसे प्रत्येक पक्ष से दो प्रश्नों तक सीमित रखेंगे। मैं भारतीय पक्ष से शुरुआत करता हूं। पहला सवाल प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के श्री मानश से।

मानश:
यह प्रश्न फ्रांस की विदेश मंत्री से है। मैं भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से मानश हूँ। महोदया, आपकी भारत यात्रा ऐसे समय में हुई है जब हमने एक महान भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव और उथल-पुथल देखी है और हमने देखा है, वास्तव में इंडो-पैसिफिक की स्थिति के बारे में लोकतांत्रिक देशों से नए सिरे से चिंताओं का उभरना, विशेष रूप से चीन के आक्रामक व्यवहार की पृष्ठभूमि में। और भारत अपनी सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी गतिविधियों को लेकर भी चिंतित है। अपनी सीमा पर चीन के आक्रामक रुख के साथ-साथ इंडो-पैसिफिक में समग्र सैन्य बल के लचीलेपन के बारे में भारत की चिंताओं को आप कैसे देखती हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री:
आपका बहुत धन्यवाद। मैं प्रश्न के दूसरे भाग पर मंत्री जयशंकर को आपको उत्तर देने के लिए कहूँगी। मैं भारत की ओर से नहीं बोल सकती, लेकिन आपके प्रश्न के पहले भाग के लिए, शायद हमने अपनी परिचयात्मक टिप्पणियों में इस पर पर्याप्त जोर नहीं दिया है, लेकिन हमने इंडो-पैसिफिक में सामान्य स्थिति और उन कई चुनौतियों के बारे में बहुत कुछ कहा है जो कि चीन के कारण उभरी हैं। हमारे पास मूल रूप से एक ही विश्लेषण है। हम समान चिंताओं को भी साझा करते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि चीनी किस तरह की भूमिका निभा रहे हैं और हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इंडो-पैसिफिक में कोई असंतुलन न हो और न ही हम दुनिया में कहीं और असंतुलन चाहते हैं। इसलिए मैं सभी विवरणों में नहीं जा रही हूं। यह एक बहुत ही जटिल प्रश्न है। लेकिन हम निश्चित रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना जारी रखेंगे, हम कूटनीति का उपयोग करना जारी रखेंगे। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि शक्तियों का संतुलन हो ताकि हम एक-दूसरे का समर्थन करना जारी रख सकें ताकि हम में से प्रत्येक अपनी रणनीतिक स्वायत्तता विकसित कर सके। लेकिन हम इसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ-साथ अन्यत्र भी स्थिरता और शांति के आधार पर विकसित करना पसंद करते हैं। बेशक, हमें भारत के साथ, अन्य भागीदारों के साथ भी और अधिक काम करने की आवश्यकता है, ताकि हमारी मौजूदगी और अधिक हो सके, क्योंकि आप जानते हैं कि फ्रांस एक इंडो-पैसिफिक राष्ट्र होने के साथ-साथ हिंद महासागरीय राष्ट्र भी है। इसलिए, सहायता के संदर्भ में, हम निश्चित रूप से देखेंगे कि ऐसी कौन सी परियोजनाएं हैं जिन पर हम एक साथ काम कर सकते हैं। संक्षेप में कहूँ तो, हम कुछ खास देशों को न छोड़ें, आप जानते हैं, अकेले में या उनके चीनी सहयोगियों के साथ बैठक में, हम बहुत अधिक मौजूद हैं और हम अधिक सक्रिय होना चाहते हैं ताकि हम एक विकल्प पेश कर सकें प्रशांत के देशों के लिए, चाहे वह सांस्कृतिक क्षेत्रों में हो, चाहे वह विकास क्षेत्रों में हो या किसी अन्य क्षेत्र में, निश्चित रूप से, और भी बहुत कुछ है जो हम कर सकते हैं और हम एक साथ करना चाहेंगे।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री:
चूंकि मंत्री महोदया ने प्रश्न का एक भाग मुझे दिया है, भले ही आपने उन्हें संबोधित किया हो। देखिये, इंडो-पैसिफिक पर, मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि यह समान विचारधारा वाले देशों, समान दृष्टिकोण वाले देशों के लिए महत्वपूर्ण है, जो वहां शांति, स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि, प्रगति सुनिश्चित करने में योगदान करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं, और हम फ्रांस को एक इंडो-पैसिफिक देश के तौर पर बहुत अधिक मानते हैं और एक ऐसा देश जिसकी हिंद महासागर में लंबे समय से उपस्थिति है। तो यह कुछ ऐसा है जिस पर हमने विशेष रूप से चर्चा भी की। सीमा पर सवाल के बारे में आप जानते हैं, आपने मुझे कई बार सीमा के बारे में बोलते सुना है। मुझे नहीं लगता कि मैं आज यहां कुछ भी नया कहूंगा, सिवाय इसके कि मैं यह मान लूं कि पीपी15 में हमारा सैन्य विघटन हो गया है, जैसा कि मैं समझता हूं, विघटन पूरा हो गया था और यह सीमा पर एक समस्या को कम करने जैसा है।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: अगला सवाल ले मोंडे के कैरोल डायटेरिच का।

कैरोल डायटेरिच: यह प्रश्न मंत्री महोदया के लिए है। आपके पूर्ववर्ती द्वारा विशेष रूप से यूक्रेन के संबंध में विकसित की गई बहु (अश्रव्य) रणनीति के बारे में आप क्या सोचती हैं?

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री: मुझे लगता है कि इस संबंध में भी मेरे समकक्ष द्वारा उत्तर का एक हिस्सा दिया जा सकता है, यदि वह ऐसा करना चाहें तो। मुझे पूरा यकीन नहीं है कि मैं वास्तव में आपके प्रश्न के दोनों हिस्सों को ठीक से समझ पायी हूँ। हम एक बहुध्रुवीय दुनिया में रहते हैं और यह कोई नई बात नहीं है। हमने हमेशा बहुध्रुवीयता में विश्वास किया है, निश्चित रूप से हम एक-ध्रुवीयता, द्विध्रुवीयता आदि पर काम करते रहे हैं। और हममें से प्रत्येक राष्ट्र अपने इतिहास के कारण, अपने अनुभव के कारण, बल्कि इच्छा से भी, हम इस मूल्य में विश्वास करते हैं क्योंकि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जो केवल दो देशों या देशों के समूह के बीच संबंधों तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा देश है जहां कई लोग शामिल हैं। यह एक ऐसी दुनिया है जहां हम रिश्तों की बहुलता की बात करते हैं। और जैसा कि मैंने पहले कहा है कि हम अलगाव या अकेले काम करने या खुद काम करने में विश्वास नहीं करते हैं। हम शक्ति संतुलन में विश्वास करते हैं। हम एक-दूसरे के साथ काम करने में विश्वास रखते हैं।

जहां तक ​​यूक्रेन का संबंध है, मेरा उत्तर संक्षिप्त होगा। मैं इस युद्ध के जिम्मेदारों के विश्लेषण की बात नहीं कर रही हूँ। हम जानते हैं कि हमलावर कौन था। और हम जानते हैं कि एक ऐसा देश था जिसके अधिकारों का हनन किया गया था। तो, हम इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं। लेकिन जिस तरह से हम इसे देखते हैं, हम अपने इतिहास को जानते हैं और रूस के साथ भारत के संबंधों के इतिहास को जानते हैं, लेकिन यह हमें कारणों का एक ही विश्लेषण करने से नहीं रोकता है, इसके परिणामों से निपटने के लिए हम क्या कर सकते हैं। और हमें रूसी राष्ट्रपति से क्या कहना है, कि यह संघर्ष समाप्ति पर है और हमें मानवाधिकारों और एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करने के लिए वापस आना होगा। मुझे लगता है कि हममें से कोई नहीं, और मैं यूक्रेनियन या रूसी की बात कर रही हूं, उन्हें संवाद करने की जरूरत है, लेकिन हमारे प्रयास, विशेष रूप से रूस के राष्ट्रपति के साथ फ्रांस के राष्ट्रपति की चर्चा, हमें अपने मतभेदों को हल करने के अन्य तरीके के बारे में सोचने की जरूरत है, क्योंकि हमारे पड़ोसियों के साथ हो सकने वाली कठिनाइयों के बावजूद, हमें अन्य समाधानों की तलाश करने की आवश्यकता है और हम अपनी सभी समस्याओं को हल करने के लिए युद्ध शुरू नहीं कर सकते।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: मैं इतना ही जोड़ सकता हूँ, मैं समझता हूं कि दुनिया बहुध्रुवीय है। दुनिया और अधिक बहुध्रुवीय होती जा रही है। हमें लगता है कि यह अच्छी बात है। और हम मानते हैं कि फ्रांस भी ऐसा ही समझता है। यूक्रेन के संबंध में, हमने आज इस पर कुछ विस्तार से चर्चा की। मैं समझता हूं कि जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि वार्ता और कूटनीति में वापसी होनी चाहिए। और अगर आप दुनिया को, उसके प्रमुख देशों में से देखें, तो दो नेता जो वहां संघर्षरत दोनों पक्षों से नियमित रूप से जुड़े रहे हैं, वे हैं प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों। इसलिए, मुझे लगता है कि अंतिम उद्देश्य जो वार्ता की मेज पर वापस लौटना है वह कुछ ऐसा है जिसे हम साझा करते हैं।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: धन्यवाद महोदय। अगला सवाल हिंदुस्तान टाइम्स के रेजौल हसन का है।

रेजौल हसन: धन्यवाद मंत्रिगणों। आप दोनों से जल्दी-जल्दी प्रश्न। मेरा मतलब है, मंत्री महोदया आपने खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा की कीमतों के बारे में उल्लेख किया। क्या आप इस बारे में कोई नया विचार लेकर आ रहे हैं कि आप यूक्रेन संघर्ष के परिणाम से कैसे निपटेंगे? और यदि मैं आपसे शीघ्र ही एक और बात पूछूं, तो आपने आतंकवाद विरोधी सहयोग का भी उल्लेख किया; फ्रांस और भारत दोनों ने पदनाम जैसे मुद्दों पर मिलकर काम किया है। एक देश द्वारा यूएनएससी में ऐसे प्रयासों में लगातार दखल दिए जाने के बारे में दोनों मंत्री क्या सोचते हैं?

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। युद्ध के परिणामों के संबंध में जिसका आपने अभी उल्लेख किया है, खाद्य सुरक्षा और भोजन की उच्च लागत, मैं आपको याद दिलाना चाहूंगी कि इन मुद्दों को पैदा करने के पीछे प्रतिबंध नहीं हैं। न तो वे खाद्य सुरक्षा के मुद्दे की ओर ले जा रहे हैं और न ही वे खाद्य संकट की ओर ले जा रहे हैं। ये मुद्दे यूक्रेन पर रूस के युद्ध द्वारा बनाए गए हैं, लेकिन हमने इस युद्ध के कुछ नकारात्मक परिणामों से निपटने की कोशिश की है। विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा के संबंध में हमने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि यूक्रेन से जो भोजन आ रहा है वह कई देशों के लिए आवश्यक है, कई देश इन अनाजों पर निर्भर रहे हैं इसलिए हमने यह देखने की कोशिश की है कि निर्यात जारी रहे। हमने फार्म नामक एक परियोजना भी शुरू की है, जिसे फ्रांस द्वारा शुरू किया गया था और जिसे यूरोपीय संघ द्वारा अपने अधिकार में ले लिया गया है। इसके साथ, हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि बाजारों में पारदर्शिता हो ताकि बाजारों में कीमतें उचित बनी रहें। मैंने व्यापक शब्दों में भी बात की है, लेकिन हमें शायद इसे और अधिक ठोस आकार देने की आवश्यकता है, शायद हम ऐसा कर सकते हैं जब हम जी20 में मिलते हैं और यात्रा करते हैं, शायद एक पहल जिसे जी20 के लिए प्रस्तावित किया जा सकता है ताकि हम सबसे कमजोर देशों को कुछ सहयोग प्रदान कर सकें और वे इन खाद्य सुरक्षा मुद्दों के अधिक प्रभाव में नहीं आ सकें। हम और भी बहुत कुछ कर सकते हैं और हमने तय किया है कि हम इसे बहुत जल्दी करेंगे। मुझे लगता है कि जी20 में नहीं तो शायद तब जब फ्रांस के राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आएंगे।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: बहुत जल्दी में खाद्य सुरक्षा के बारे में, जैसा कि आप जानते हैं कि भारत ने हमेशा खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय पहलों का समर्थन किया है, विशेष रूप से यूक्रेन के संदर्भ में, और हम ऐसा करना जारी रखेंगे। लिस्टिंग के बारे में, जहां भारत और फ्रांस ने कई सालों तक सहयोग किया है, देखिए, आतंकवादियों की लिस्टिंग इसलिए की जाती है क्योंकि आतंकवादी पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए खतरा हैं। तो यह ऐसा कुछ नहीं है जो देश किसी संकीर्ण राष्ट्रीय एजेंडे की खोज में अनिवार्य रूप से करते हैं। और अगर कोई विशेष रूप से उन मामलों में लिस्टिंग को रोकता है जहां आगे बढ़ने के गुण बहुत स्पष्ट हैं, तो मुझे लगता है कि वे अपने स्वयं के हित और अपनी प्रतिष्ठा को जानबूझकर जोखिम में डालते हैं।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: धन्यवाद महोदय। मुझे लगता है कि हम समय से बाहर चल रहे हैं। हमारा एक और सवाल था, लेकिन मैं समझता हूं कि माननीय मंत्रियों को ब्रीफिंग के लिए जाना होगा। क्या हमें लेना चाहिए? तो हम इसे संक्षिप्त रखेंगे। हमारे साथ सेबस्टियन फ्रांसिस हैं, कृपया जल्दी करें। और अगर आप इसे बहुत संक्षिप्त रख सकते हैं, तो अच्छा रहेगा।

सेबेस्टियन फ्रांसिस: नमस्कार। महोदया, भारत इंडो-पैसिफिक के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक है। क्या फ्रांस इंडो-पैसिफिक में भी आसियान का भागीदार बनने की परिकल्पना करता है?

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री: हम आसियान में पर्यवेक्षक हैं, (अश्रव्य) अगर मैं गलत नहीं हूं।

सेबेस्टियन फ्रांसिस: क्या फ्रांस आसियान का हिस्सा बनने या उनके साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है?

सुश्री कैथरीन कोलोना, फ्रांस की विदेश और यूरोपीय मामलों की मंत्री:
क्या आप हमारे निदेशक द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को सुनने में सक्षम थे, हमारी साझेदारी है। वहां माइक नहीं था, इसलिए हम सुन नहीं सके।

वक्ता 1:
आसियान राष्ट्रों का एक समूह है जिसके अपने विस्तार की कोई योजना नहीं है। अन्य देशों और क्षेत्रों के साथ इसकी विशेष भागीदारी है। आज फ्रांस आसियान का विकास भागीदार है। हम चाहेंगे, आसियान के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा सकते हैं, और एक बार ऐसा हो जाने के बाद, हमारे पास शायद एक संवाद साझेदारी होगी और आने वाले वर्षों में रणनीतिक साझेदारी क्यों नहीं होगी, लेकिन आप जानते हैं कि निकट भविष्य में शामिल होने की योजना नहीं है। शुक्रिया।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: मंत्री महोदयों को धन्यवाद। और इसी के साथ हम इस प्रेस वार्ता के अंत में पहुँच गए हैं। शुक्रिया। शुभ संध्या।

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