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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर विशेष ब्रीफिंग का प्रतिलेख (जून 24, 2022)

जून 24, 2022

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: आप सभी को बहुत-बहुत शुभ दोपहर। कल से शुरू हो रही प्रधानमंत्री की जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की पूर्व संध्या पर आयोजित इस विशेष मीडिया ब्रीफिंग के लिए आज दोपहर यहां आप सबकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। हमें यात्रा की जानकारी देने के लिए, साथ ही आपके कुछ प्रश्नों का जवाब देने के लिए, हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे साथ यहाँ विदेश सचिव श्री विनय क्वात्रा मौजूद हैं। मेरे साथ डायस पर मंत्रालय में सचिव (आर्थिक संबंध) श्री दम्मू रवि भी हैं। साथ ही खाड़ी मामलों को देख रहे संयुक्त सचिव, श्री विपुल और श्री निनाद देशपांडे भी यहाँ मौजूद हैं, जो जी7 और कई अन्य प्रभार को संभाल रहे हैं। इसके साथ ही, मैं विदेश सचिव महोदय से इस यात्रा के बारे में आरंभिक वक्‍तव्‍य देने का अनुरोध करूंगा और फिर हम कुछ प्रश्‍नों के लिए मंच खोलेंगे।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: प्रधानमंत्री की आगामी यात्रा और जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने को लेकर आयोजित इस विशेष ब्रीफिंग के लिए आज दोपहर यहां उपस्थित होने के लिए आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद और नमस्कार। जर्मन चांसलर श्री स्कोल्ज़ के निमंत्रण पर, माननीय प्रधानमंत्री जी7 बैठक में भाग लेने के लिए इस रविवार 26 जून को, जो कि वास्तव में 25 जून की मध्यरात्रि होगी, दक्षिण जर्मनी के बवेरिया में म्यूनिख के पास श्लॉस एल्मौ की यात्रा करेंगे।

भारत के अलावा, जर्मनी ने अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका को भी आमंत्रित किया है, जैसा कि चांसलर स्कोल्ज़ ने कहा है, मैं उन्हें उद्धृत करता हूं, "वैश्विक दक्षिण के लोकतंत्रों को साझेदारों के रूप में मान्यता देने के लिए"। यात्रा के दौरान, माननीय प्रधानमंत्री जी7 शिखर सम्मेलन के अलावा जी7 के नेताओं के साथ-साथ अतिथि देशों के साथ द्विपक्षीय बैठकें और चर्चा भी करेंगे। प्रधानमंत्री जी7 शिखर सम्मेलन के लिए जर्मनी में अपने प्रवास के दौरान एक सामुदायिक कार्यक्रम में भारतीय प्रवासियों के साथ संवाद भी करने वाले हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रधानमंत्री की जर्मनी की अंतिम यात्रा इस साल 2 मई को हुई थी जो बर्लिन में आयोजित छठे अंतरसरकारी परामर्श के लिए थी। यह प्रधानमंत्री का चौथा अंतरसरकारी परामर्श था और पहला मौका था जब उन्होंने नए जर्मन चांसलर, चांसलर स्कोल्ज़ के साथ कार्यक्रम की सह-अध्यक्षता की थी।

जी7 शिखर सम्मेलन ने चालू वर्ष के लिए पांच प्रमुख प्राथमिकताओं को चुना है। और व्यापक तौर पर ये हैं: 1) ऊर्जा संक्रमण, 2) आर्थिक सुधार और परिवर्तन, 3) महामारी की रोकथाम और नियंत्रण, 4) स्थायी निवेश और बुनियादी ढाँचा तथा 5) लोकतंत्र के साझा मूल्यों को बढ़ावा देना। शिखर सम्मेलन के दिन, यानी 27 जून को, प्रधानमंत्री जी7 शिखर सम्मेलन के अन्य भागीदार देशों के साथ दो सत्रों में भाग लेने वाले हैं। पहला सत्र जलवायु, ऊर्जा और स्वास्थ्य से संबंधित है और दूसरा सत्र खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता पर है। जी7 शिखर सम्मेलन में भारत की नियमित भागीदारी स्पष्ट रूप से इस बढ़ती हुई स्वीकृति और मान्यता की ओर इशारा करती है कि भारत को चुनौतियों, विशेष रूप से दुनिया के सामने मौजूद वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए किसी भी और प्रत्येक निरंतर प्रयास का हिस्सा बनने की आवश्यकता है। जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद, प्रधानमंत्री संयुक्त अरब अमीरात के पूर्व राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख खलीफा बिन जायद अल नयहान के निधन पर व्यक्तिगत संवेदना व्यक्त करने के लिए 28 जून को संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा करेंगे। यूएई के नए राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक के रूप में चुने जाने के बाद से महामहिम शेख मोहम्मद बिन जायद अल नयहान के साथ प्रधानमंत्री की यह पहली मुलाकात होगी। जैसा कि आप सभी जानते हैं, आखिरी बार प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा अगस्त 2019 में की थी। और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति आखिरी बार जनवरी 2017 में भारत आए थे जब उन्होंने अबू धाबी के क्राउन प्रिंस के तौर पर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया था।

जैसा कि सामान्य तौर पर ज्ञात है, प्रधानमंत्री तथा संयुक्त अरब अमीरात के वर्तमान राष्ट्रपति, दोनों नेतागणों ने पिछले कुछ वर्षों में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को नियमित और लगातार तरीके से पोषित किया है। इस साल फरवरी में दोनों के बीच वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान, दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जो तभी से लागू है और उस सीईपीए समझौते के तहत पहली खेप भारत से यूएई और यूएई से भारत के लिए चलने लगी है। हम सभी इस बात से अवगत हैं कि भारत और यूएई के बीच बहुत ही करीबी और मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, जिसकी नींव हमारे ऐतिहासिक लोगों के बीच के संपर्कों में निहित है। द्विपक्षीय संबंधों के लिए हमारी दृष्टि में विविध क्षेत्रों में भागीदारी शामिल है, जिसमें व्यापार, निवेश, ऊर्जा, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, कौशल विकास, शिक्षा, संस्कृति और लोगों से लोगों के बीच के संबंध प्रमुख हैं। मैं अपनी बात यहीं समाप्त करना चाहूंगा और यदि कोई प्रश्न हैं, तो हमें उनका उत्तर देने में बहुत खुशी होगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: महोदय, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मंच को प्रश्नों के लिए खोलने से पहले, कुछ बुनियादी नियमों के बारे में जान लें, कृपया अपना और अपनी एजेंसी का परिचय दें। और कृपया यात्रा को लेकर एक प्रश्न तक ही सीमित रहें।

कविता जोशी: नमस्कार सर मैं कविता जोशी हूँ हरिभूमि अखबार से, सर मेरा सवाल प्रधानमंत्री के यूएई दौरे को लेकर है । सर, जैसे पैगम्बर विवाद के बाद ये पहला मौका है जब प्रधानमंत्री यूएई जा रहे है और वहां पर राष्ट्रपति के साथ वो आमने-सामने की मुलाकात करेंगें, तो सर क्या इस मुलाकात में जो पैगम्बर विवाद जो भारत में हुई है उसको लेकर के जो हमारा स्टैन्ड है वो भी प्रधानमंत्री वहां पर राष्ट्रपति के साथ जो वार्ता होने वाली है उसको रख सकते है, उसका कोई जिक्र हो सकता है और सर द्विपक्षीय संबंधों के बारें में क्या चर्चाए होंगी यूएई के साथ इसको थोड़ा सा समझाएं ?

मानश: सर, मैं पीटीआई, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से मानश हूँ। मेरा प्रश्‍न जी7 शिखर सम्‍मेलन में भाग लेने के लिए होने वाली प्रधानमंत्री की जर्मनी यात्रा के बारे में है। जैसा कि यह शिखर सम्मेलन यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में हो रहा है जिसने गंभीर खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों को जन्म दिया है। तो खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा के इन दो मुद्दों से निपटने के लिए भारत का दृष्टिकोण क्या है, जिसकी चर्चा वैश्विक संवाद में व्यापक रूप से की गई है?

ऋषिकेश : महोदय, मैं स्पूतनिक न्यूज से ऋषिकेश हूं। महोदय, जब प्रधानमंत्री मोदी बाइडेन या जर्मन चांसलर से मुलाकात करेंगे, तो क्या श्रीलंका को वित्तीय सहायता प्रदान करने के बारे में कोई चर्चा होगी?

मधुरेन्द्र: मैं न्यूज नेशन से, मेरा सवाल प्रधानमंत्री की यात्रा को लेकर है, विशेष रूप से दो विषयों पर आप का ध्यान केंद्रित करना चाहूँगा, रणनीतिक गठबंधन जो भारत-संयुक्त अरब अमीरात का है उसमें किस तरह की बातचीत प्रधानमंत्री मोदी की होगी ? क्या हम कोई रक्षा सौदा करने जा रहे हैं या रणनीतिक गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिए हम क्या करने जा रहे हैं ? क्या एजेंडा होगा ? और दूसरा ऊर्जा सुरक्षा को लेकर के क्या बातचीत होगी ?

चंद्रकला: शुभ दोपहर, सर। ईटीवी भारत से मैं चंद्रकला। मेरा प्रश्न जी7 देशों से संबंधित है, जिन्होंने किसी तरह रूस पर संयुक्त रूप से प्रतिबंध लगाए हैं। तो क्या रूस से तेल खरीद को प्रतिबंधित करने की बात आने पर नई दिल्ली पर देशों का कोई दबाव होगा? शुक्रिया।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्‍ता : महोदय, इस मुद्दे पर शायद मैं आपको मंच सौंप दूंगा।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: धन्यवाद।

धन्यवाद, कविता जी आपका सबसे प्रथम प्रश्न था कि माननीय प्रधानमंत्री जी की जो यूएई की यात्रा है उसमें पैगम्बर विवाद को लेकर के बातचीत होगी या नही होगी, जुड़ा हुआ प्रश्न था जो हमारे स्पुतनिक के मित्र ने पूछा था, ये जो था प्रधानमंत्री जी के यूएई के यात्रा में सुरक्षा संबंधो के क्षेत्र में क्या बातचीत होगी ? क्या एजेंडा होगा ? क्या ऊर्जा सुरक्षा एजेंडा का भाग होगा की नही ? तो, यदि आपकी अनुमति हो तो मैं दो प्रश्न को एक साथ संयुक्त रूप में जो है इसका उत्तर देने का प्रयास करूँगा।

देखिए, जहाँ तक आपने जो विवादस्पद मुद्दे की जो बात की, खाड़ी के देशों के लगभग सभी देशो में ये स्पष्ट रूप से समझ है कि भारत की इस मुद्दे को लेकर के क्या पोजिशन रही है, क्या सिचुएशन रही है। ये पोजिशन और सिचुएशन हमने कई बार, कई मंचो के माध्यम से स्पष्ट की है और मुझे नही लगता कि इस मुद्दे को लेकर के आगे कुछ विशेष रूप से बात करने की आवश्यकता है।

जहाँ तक प्रधानमंत्री जी की यूएई की यात्रा का संबंध है, जैसा की मैंने अभी कहा अपने उद्घाटन भाषण में कि माननीय प्रधानमंत्री जी इस यात्रा पर दो मुख्य उद्देश्यों से जा रहे है, प्रथम कि वहां पे जो अबुधाबी के रूलर हिज हाईनेस शेख खलीफा का निधन हुआ उसको लेकर के अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए जो आज के मुख्य राष्ट्रपति है तथा जो वहां के राष्ट्रपति है मोहम्मद बिन जायद अल नयान उनको अपनी तरफ से शुभकामनाएं, सहयोग और उनकी जो अभी हाल में राष्ट्रपति पद पर नियुक्ति हुई है ।

ये स्वाभाविक है कि जब दो देशों के नेता मिलते हैं तो द्विपक्षीय संबंधो के कई मुद्दों पर बात होती है, इन मुद्दों का क्या स्वरूप होगा, स्पष्ट रूप से क्या मुद्दे होंगे ये तो मेरा इस समय कहना शायद उचित नहीं होगा, लेकिन जैसा मैंने आपसे बताया जहाँ तक भारत-यूएई के संबंधो का प्रश्न है वो काफी ही ज्यादा गतिशील, मजबूत और व्यापक हैं। कुछ क्षेत्रो के जिक्र मैंने आपके सामने रखे उसमें ऊर्जा और ऊर्जा सुरक्षा का जो क्षेत्र है वो काफी समय काल से जो है भारत-यूएई के द्विपक्षीय संबंधो का एक मुख्य भाग रहा है।

हमारे जो जन मानस के संबंध रहे हैं, लोगों से लोगों के बीच संबंध जो दोनों के बीच रहे हैं ये एक दूसरा परिपेक्ष रहा है । इसके आलावा, मैंने अभी कहा रक्षा, सुरक्षा पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य, निवेश ये सब क्षेत्र हैं क्योंकि भारत-यूएई की जो रणनीतिक साझेदारी है वो बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी है वो केवल एक विषयी रणनीतिक साझेदारी नहीं है।

तो नैचुरली जब दो नेतागण जब प्रधानमंत्री और यूएई के राष्ट्रपति मिलेंगे तो इन सभी मुद्दों पे किस प्रकार से दोनों देशो के संबंधो को सहयोग द्वारा, सह्कारिक द्वारा कैसे विकसित किया जाए कैसे उनको नई ऊंचाईयों पर लेके जाया जाए, उन विषयों पर दोनों नेताओं के बीच में मेरा पूरा विश्वास है कि बातचीत होगी लेकिन बातचीत का स्पष्ट और विशेष रूप से क्या स्वरूप होगा, आप सहमत होंगे मुझसे कि उसका इस समय जिक्र करना शायद पूर्णतः उचित नहीं होगा ।

मुझे लगता है कि पीटीआई के मित्र ने हमसे खाद्य सुरक्षा, यूक्रेन संकट आदि से संबंधित एक प्रश्न पूछा था और जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान इस पर कैसे बात होगी। मुझे लगता है कि यूक्रेन के सवाल पर, भारत ने सभी मंचों से, अपनी प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से, सार्वजनिक बयानों के माध्यम से, और यहाँ तक कि कुछ प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जिसे खुद मैंने आयोजित किया है, अपनी स्थिति को बार-बार स्पष्ट किया है और उसकी स्थिति हमेशा बहुत स्पष्ट रही है। इसे दोहराने का जोखिम लेते हुए मैं फिर से कहता हूँ कि, स्थिति यह है कि हमने संघर्ष की शुरुआत से ही सुविधाओं को तत्काल बंद करने के लिए कहा है। और हमने साफ तौर पर कहा है कि समस्या के समाधान का रास्ता कूटनीति और बातचीत से है। जहां तक ​​खाद्य सुरक्षा का सवाल है, मुझे लगता है कि रूस-यूक्रेन की स्थिति ने पूरी दुनिया में एक स्पष्ट मात्रा में खाद्य सुरक्षा संकट पैदा कर दिया है और एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में, भारत ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बहुत ही सक्रिय रुख अपनाया है। विशेष रूप से कमजोर देशों के लिए खाद्य सुरक्षा का इस तरह से समाधान किया गया है जिससे कि उनकी जरूरतों को पूरा किया जा सके, लेकिन साथ ही, भारत के भीतर खाद्य सुरक्षा बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुई है और खाद्य सुरक्षा मुद्दों का प्रबंधन देश के भीतर आंतरिक तौर पर और बाहर के अन्य देशों के साथ, व्यापार आदि के संबंध में, अच्छे तरीके से किया गया है, और मुझे लगता है कि जिस तरह से भारत ने इस स्थिति को आगे बढ़ाया है, उसकी व्यापक तौर पर सराहना हुई है।

हमारे स्पुतनिक के मित्र का प्रश्न था कि श्रीलंका के मुद्दे को लेके यदि कोई आर्थिक सहायता जो है वो जी7 में इस विषय पर बातचीत होगी की नहीं होगी ?

जैसा कि मैंने अपने उद्घाटन भाषण में आपको बताया था, शिखर सम्मेलन के दिन जी7 की प्राथमिकताओं के बारे में, जिन दो सत्रों में माननीय प्रधानमंत्री भाग लेंगे उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। पहला सत्र जलवायु और ऊर्जा से संबंधित है और दूसरा सत्र खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता से संबंधित है। यह बहुत संभव है कि जी7 और आउटरीच देशों के अन्य नेताओं के साथ अलग से होने वाली बातचीत में, इस क्षेत्र की स्थिति पर चर्चा हो। यह हमारा प्रयास रहा है, पिछली बातचीत में भी हमने भागीदार देशों को रेखांकित किया था, हमने श्रीलंका की वर्तमान स्थिति के बारे में अपने दृष्टिकोण को साझा किया, उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से बताया था कि इस वर्ष की शुरुआत से ही, भारत ने श्रीलंका को लगभग 3.5 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की है। इस सहायता को अनिवार्य रूप से चार कोष्ठकों के तहत श्रीलंका को प्रदान किया गया है, एक, सार्क व्यवस्थाओं के तहत मुद्रा विनिमय, व्यापारिक व्यवस्थाओं के लिए एक अरब डॉलर की ऋण व्यवस्था, और एशियाई बकाया राशि के निपटान के रोलओवर के द्वारा। इसलिए मुझे लगता है कि श्रीलंका को हमारी सहायता, विकास के क्षेत्र में हमारा निरंतर सहयोग और श्रीलंका को मानवीय सहायता पैमाने और इसकी गति के मामले में अभूतपूर्व है। साथ ही, विशेष रूप से अन्य विकसित देशों के साथ हमारी बातचीत के दौरान, हमने उन्हें एक साथ आने और श्रीलंका के साथ साझेदारी करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है ताकि उनकी वर्तमान आर्थिक स्थिति को जल्दी से जल्दी ठीक किया जा सके और श्रीलंका आर्थिक सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ सके।

रूस से तेल खरीद पर यह आखिरी सवाल था और क्या दबाव होगा। देखिए, मुझे लगता है कि इस पर, हमने इसे कई बार दोहराया है, और दोहराव का जोखिम लेते हुए, मैं इसे फिर से कहता हूं, दुनिया भर में कच्चे तेल की खरीद के संबंध में भारत जो भी व्यापारिक व्यवस्था अपना रहा है, वह विशुद्ध रूप से भारत की ऊर्जा सुरक्षा के विचार के द्वारा निर्धारित हैं। इसके अलावा कोई अन्य विचार नहीं है। और मुझे लगता है कि इस विचार को बहुत अच्छी तरह से समझा गया है, मैं कहूंगा कि सभी देशों में इसकी सराहना की गई है और मुझे नहीं लगता कि उस मुद्दे पर दबाव बनाने का कोई मतलब है। भारत ने अपनी तेल व्यापार खरीद को जहां कहीं से भी जरूरी है, उसे जारी रखा है, और यह पूरी तरह से हमारे ऊर्जा सुरक्षा विचारों से निर्धारित, शासित और प्रेरित है, जो निश्चित रूप से राष्ट्रीय आर्थिक हितों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण चीजों में से एक है। शुक्रिया।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: धन्यवाद महोदय। कुछ और हाथ उठे हैं जिनसे मैं बात करने की कोशिश करूंगा।

विजयलक्ष्मी: सर मैं विजय लक्ष्मी हूँ इंडिया टीवी से, सर क्योंकि जी7 की मीटिंग है सर तो पिछले दिनों हमने देखा की यूक्रेन क्योंकि युद्ध की जो स्थिति है यूक्रेन पर प्रतिबंध लगाने को लेकर के काफी यूरोपीय देश काफी बात करते आए, क्या हम उम्मीद करते है कि इस प्लैट्फॉर्म पर भी उस तरह की चर्चा हो सकती है और अगर होती है या इस तरह की मांग होती है तो भारत का रुख क्या रहने वाला है?

ब्रह्म प्रकाश दुबे: सर मैं ब्रम्ह्प्रकाश दुबे हूँ ज़ी न्यूज़ से, मेरा सवाल प्रधानमंत्री की यात्रा को लेकर के है, जर्मनी की यात्रा को लेकर, मेरा सवाल ये है कि जिस तरह से भारत पिछले एक डेढ़ साल से अपनी सीमा पर सामना कर रहा है खासतौर से चाइना के सन्दर्भ में मेरा सवाल है तो क्या इस प्लैट्फॉर्म में क्या हम ये मुद्दा भी उठाएंगे कि जब यूरोप के समक्ष या जी7 के समक्ष कि जब एशिया के मुद्दे आते हैं तो यूरोपियन देशों का रुख कुछ और होता है। तो, चीन के सन्दर्भ में मेरा सवाल है, क्या मसला भी उठेगा क्योंकि तक़रीबन डेढ़ साल से मसला लटका हुआ है, चीन का जो एग्रेशन, चीन का जो रुख है सीमा पर ?

नीरज: सर नीरज हूँ न्यूज़ 18 इंडिया से, अभी ब्रिक्स का सम्मेलन हुआ डेक्लरेशन में जो यूक्रेन पे जो बातें कही गई, यूक्रेन पर जो डिक्लेर किया गया वो भारत के स्टैंड को ही दोहराता है, रूस ब्रिक्स का मेंबर है जी7 का स्टैंड रूस के खिलाफ है । तो रूस ने जो ब्रिक्स में जो बातें कही हैं बतौर भारत के प्रधानमंत्री और ब्रिक्स के सदस्य के तौर पर क्या जी7 में प्रधानमंत्री उस संदेश को रखेंगे जो रूस ने ब्रिक्स में दिया होगा क्योकिं जी7 का मेंबर नही है रूस ?

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: आपने दो अलग-अलग चीजों पे जिक्र किया एक है जो जॉइंट डिक्लेरेशन है और रूस ने जो नेशनल पोजिशन दिया था, आपकी किसकी बात कर रहे है ?

नीरज: मैं बातचीत की जो बात है घोषणा पत्र में, बातचीत का जो समर्थन किया गया है, रूस बतौर मेंबर है ब्रिक्स का तो उस संदेश को वहां ले जाएंगे पीएम।

संजीव: सर, मैं न्यूज 24 से संजीव हूं। और आपने हमें प्रधानमंत्री द्वारा प्रवासी भारतीयों को संबोधित करने की जानकारी दी। यह किस शहर में होने जा रहा है और किस तारीख को सर?

अविनाश: सर मैं अविनाश हूं। महोदय, क्या आप जी7 बैठक के लिए प्रधानमंत्री की जर्मनी यात्रा के महत्व के बारे में कुछ शब्द कह सकते हैं?

वक्ता 1: महोदय, आपने उल्लेख किया है कि श्रीलंका की स्थिति पर चर्चा हो सकती है। मेरा सवाल यह है कि क्या भारत अमेरिका, जापान, जर्मनी से सीधे श्रीलंका को धन देने के लिए कहेगा और आपने कल ही श्रीलंका का दौरा किया था, भारत ने श्रीलंका से 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर के अलावा और कितने पैसे का वादा किया है।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: दूसरे भाग का यात्रा से क्या संबंध है, ये मुझे नहीं समझ आ रहा है। तो मैं इसे छोड़ रहा हूँ। पहले भाग का जवाब मुझे लगता है कि विदेश सचिव ने पहले ही दे दिया है, लेकिन मैं इसे उन पर छोड़ता हूं। हाँ, आखिरी सवाल।

जय प्रकाश: सर मैं जयप्रकाश हूँ दैनिक जागरण से, सर मेरा सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री की अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन से मुलाकात की कोई सम्भावना है ?

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता:
ठीक है, महोदय, मुझे लगता है कि हम प्रश्नों के उस सेट के साथ इसे समाप्त करते हैं।

श्री विनय क्वात्रा, विदेश सचिव: विजयलक्ष्मी जी जो आपका प्रश्न था कि जो जी7 की समिट वार्ता के दौरान रूस के ऊपर सैंक्शन्स को लेके क्या भारत का रुख रहेगा, क्या उसमें पक्ष रहेगा ? किस प्रकार से उसमें कहा जाएगा और उसके बाद जैसे की हमारे ज़ी न्यूज़ 18 के मित्र ने भी पूछा कि भारत का जो ब्रिक्स का जो वक्तव्य था उस वक्तव्य में जो रूस का परिपेक्ष था, क्या भारत उस परिपेक्ष को जी7 में रखेगा ? यदि मैं प्रश्न ठीक से समझा तो शायद यही प्रश्न था आपका ।

देखिए भारत किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में, किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय समिट की वार्ता में खासतौर पर ऐसी वार्ता में केवल दो या तीन परिपेक्षों से अपना पक्ष रखता है । सबसे पहला परिपेक्ष पक्ष रखने का है स्वयं भारत का परिपेक्ष, किसी दूसरे देश का परिपेक्ष नही है, स्वयं भारतीय परिपेक्ष से, भारत के हितो के मद्देनज़र, भारत और दूसरे देशो के परिपेक्ष के मद्देनज़र तथा भारत के जो सिद्धांत हैं, भारत के जो हित हैं उनको मूलतः मद्देनज़र रखते हुए ही भारत का परिपेक्ष इन अंतररास्ट्रीय सम्मेलन में रखा जाता है।

इसी सन्दर्भ में जैसा मैंने शुरू में भी कहा जहाँ तक यूक्रेन का प्रश्न है हमारा पक्ष हमेशा यही रहा है कि शीघ्र अति शीघ्र युद्ध विराम तथा डिप्लोमेसी और डायलॉग द्वारा मुद्दे का समाधान । इस परिपेक्ष के अलावा जो यूक्रेन के मुद्दे को लेके जो फूड सिक्योरिटी, एनर्जी सिक्योरिटी, कमोडिटी इंफ्लेशन, प्राइस इन्फ्लेशन, डिस्रप्शन ऑफ सप्लाई चैन के जो रिलेटेड मुद्दे हैं उनके बारें में भी भारत ने स्पष्ट रूप से अपना परिपेक्ष हर द्विपक्षीय वार्ता में जी7 देश के नेता हो, क्वाड का समिट हो या जी7 की समिट हो उसमें रखा है और आगे चलते हुए भी भारत के सिद्धांत, भारत के हित और जो बाकी कैस्केडिंग इफेक्ट है जैसे फूड सिक्योरिटी, उर्जा सुरक्षा के बारें में उसमें बाकी वलनरेबल कंट्रीज के बारें में क्या एक परिपेक्ष रखा जाए वही परिपेक्ष भारत के मत, भारत के वक्तव्य और भारत के सुझावों को ही जी7 में प्रस्तावित करेगा। आई थिंक इसके बारें में कोई दुविधा, शंका, संकोच नही होना चाहिए कि पक्ष केवल भारत का होगा, सिद्धांत हमारे होंगे, हित अपने होंगे लेकिन समाधान ऐसा होगा जो कि एक वैश्विक परिपेक्ष में एक स्पष्ट रूप से एक रिलेवेन्स रखता हो, एक उसकी उपयोगिता हो, एक उसकी स्पष्टता हो।

एक प्रश्न था ज़ी न्यूज़ के मित्र का कि यूरोप, एशिया, चीन बॉर्डर को लेके उसका मुद्दा किस प्रकार से एड्रेस किया जाएगा और ये जो है। देखिए इसके बारें में भी कई और मंचो से भी हमारे विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिस प्रकार कि, इंडो-पैसिफिक में जिस प्रकार कि सामरिक चुनौतियां रही है वो सामरिक चुनौतियां यूक्रेन से काफी पहले की सामरिक चुनौतियां है । इन सामरिक चुनौतियों का विश्व के प्रति और विश्व का क्या इसके प्रति दायित्व हो आकर्षण हो ये हमने हर मंच पे जो है अपने समकक्षीय देश के नेताओं को स्पष्ट रूप से बताया है, तो ये ऐसी बात नहीं है कि ये अचानक यूक्रेन के बाद उभर के आई है, ये सामरिक चुनौतियां और हम सबको पता है कि उन सामरिक चुनौतियों का उदय कहाँ से होता है। इन सामरिक चुनौतियों के बारें में हमारे प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से विशेष रूप से सब लोगों को और हमारे विदेश मंत्री ने हर मंच से स्पष्ट किया है इसके बारे में भारत की क्या नीति रही है।

जहां तक प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम से संबंधित प्रश्नों का संबंध है, मैं समझता हूं कि ब्यौरों पर काम किया जा रहा है। और मुझे लगता है कि विशिष्ट समय, स्थान, स्थल, मुझे नहीं लगता कि सुरक्षा हित के संदर्भ में इसे इस स्तर पर वास्तव में बताना सही होगा। लेकिन मुझे लगता है कि जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ेगी, मुझे यकीन है कि इनमें से कुछ चीजें और स्पष्ट हो जाएंगी। जहां तक अमेरिका, जापान, श्रीलंका, श्रीलंका को सहायता का संबंध है, मैं समझता हूं कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है कि जहां तक श्रीलंका के साथ भारत की साझेदारी का संबंध है, इसके विभिन्न आयामों का संबंध है, इसकी सीमा का संबंध है, इसकी गहराई का संबंध है, मुझे लगता है कि भारत श्रीलंका के साथ साझेदारी करने में सबसे आगे रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश अनिवार्य रूप से जल्द से जल्द अपने पैरों पर वापस खड़ा हो जाए। इसमें व्यापक वित्तीय सहायता, विकास सहायता, यहां तक कि मानवीय सहायता भी शामिल है और यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में हमने हमेशा अन्य सभी भागीदारों को सूचित किया है, कि श्रीलंका में आर्थिक स्थिति एक ऐसा मामला है जिसे गंभीरता से संबोधित करने की आवश्यकता है, लेकिन भारत पड़ोसी देश में संकट के लिए एक सच्चे पहले प्रतिउत्तरदाता के रूप में रहा है और श्रीलंका भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति का एक केंद्रीय हिस्सा है। श्रीलंका में शांति, समृद्धि तथा स्थिरता प्रमुख चीजें हैं। इसलिए उन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, हम इस जरूरत की घड़ी में श्रीलंका जाने और सहायता करने में सबसे आगे रहे हैं। हमने अन्य भागीदारों को भी यह सूचित किया है। और हम आशा करते हैं कि वे भागीदार इस पर अधिक गंभीरता से विचार करेंगे कि आने वाले दिनों, हफ्तों और महीनों में वे श्रीलंका से कैसे संपर्क करना चाहेंगे। धन्यवाद।

दो प्रश्नों को भूल जाने के लिए क्षमा चाहता हूँ, जिसमें से एक यात्रा के महत्व से संबंधित था। मुझे लगता है कि मैंने शुरुआत में ही अपनी टिप्पणी में उल्लेख किया था कि इसका एक बड़ा महत्व यह है कि आप जानते हैं, हम एक चरण से गुजर रहे हैं और यह निश्चित रूप से एक सतत और एक उभरता चरण है, जहां दुनिया बड़े पैमाने पर चुनौतियों का सामना कर रही है, जिनकी प्रकृति वैश्विक है। वैश्विक नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री के निरंतर जुड़ाव, चाहे वह क्वाड में हो, चाहे वह जी7 में हो, चाहे वह ब्रिक्स में हो, या जी20 में, महत्व का बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से जी7 के मामले में यह है कि इन वैश्विक चुनौतियों के लिए, उनके शमन के लिए, इन सभी चुनौतियों का समाधान करने के लिए, भारत की उपस्थिति, भारत की भागीदारी, भारत की भूमिका, भारत की जिम्मेदारी, वैश्विक समस्याओं के उन समाधानों को खोजने के लिए नितांत आवश्यक है। और मुझे लगता है कि यह हमारी उपस्थिति और भागीदारी, इन शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति और भागीदारी का बहुत उल्लेखनीय महत्व है, जो तब विशिष्ट सत्रों में सिमट जाता है जब आप इसके बारे में बात करते हैं, इसलिए यदि आप जलवायु और ऊर्जा के बारे में बात करते हैं, तो भारत मानवता का 1/5वां है। स्वाभाविक रूप से, दुनिया में ऊर्जा और जलवायु के समाधान के लिए जो कुछ भी प्रयास किये जा रहे हैं, उनमें भारत जो करता है वह सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि यह काफी स्पष्ट है। जी7 की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय यात्राओं की समय-सारणी के संबंध में, तो यह एक सतत प्रक्रिया है, जैसे-जैसे यह यात्रा आगे बढ़ेगी, हम प्रधानमंत्री की होने वाली द्विपक्षीय बैठकों को आपके साथ साझा करते रहेंगे। धन्यवाद।

श्री अरिंदम बागची, आधिकारिक प्रवक्ता: महोदय, विस्तार से जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। श्री दम्मू रवि, सचिव (आर्थिक संबंध) के साथ-साथ संयुक्त सचिव श्री विपुल और श्री देशपांडे को भी उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। आज यहां होने के लिए आप सभी का धन्यवाद। शुक्रिया। शुभ दोपहर।

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