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विदेश मंत्री की इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021 में साक्षात्कार की प्रतिलिपि (अक्टूबर 08, 2021)

अक्तूबर 25, 2021

राहुल कंवल: शुभ संध्या। भारत को हमेशा एक बहुत ही जटिल पड़ोस का सामना करना पड़ा है। लेकिन शायद ही इससे पहले, हमारे देश को इतने सारे वैश्विक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। अफगानिस्तान के तालिबान अधिग्रहण से लेकर वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पीएलए का सैन्य जमावाड़ा। भारत के लिए भू-रणनीतिक जोखिम स्पष्ट और मौजूद हैं।

इन अशांत परिस्थितियों के माध्यम से भारत के विदेशी मामलों की दिशा तय करने के लिए कूटनीति की ललित कला में एक पुराने योग्य जिम्मेदार व्यक्ति हैं, जिन्हें कई लोगों द्वारा माना जाता है की वें विदेश सेवाओं में अपनी पीढ़ी के बेहतरीन व्यक्ति के रूप में, डॉ जयशंकर के पास अब पेशेवर विशेषज्ञता के अपने क्षेत्र में नीति को आकार देने का दुर्लभ अवसर है। यह एक ऐसा आकर्षक स्थान हैं जहाँ लाखों पेशेवर इसका सपना देखते है, लेकिन चुने कुछ ही जाते है और कार्य करने का मौका मिलता।

देवियों और सज्जनों, नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री का कॉन्क्लेव की शुरुआत के लिए स्वागत करने में मेरा साथ दें। डॉ सुब्रमण्यन जयशंकर। आइए गर्मजोशी के साथ स्वागत करें। इस बातचीत के लिए मेरे साथ जुड़े हैं, इंडिया टुडे, विदेशी मामलो के संपादक, संपादक गीता मोहन और इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक, टेलीविजन, शिव अरूर।

राहुल कंवल: डॉ जयशंकर, स्वागत हैं। मैं आपसे अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछकर शुरू करता हूं। बारादर गुट और हक्कानी गुट के असहमत होने के बारे में बहुत सारी खबरें आई हैं। काबुल में तालिबान के अधिग्रहण की वास्तविकता को प्रकाश में रखते हुए आप नए अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों को फिर से तैयार करने की दिशा में कैसे काम कर रहे हैं, डॉ जयशंकर?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: हाँ। सबसे पहले राहुल का शुक्रिया। आज आप सभी के साथ यहाँ होने मे प्रसन्नता हो रही है। देखिए, अफगानिस्तान की स्थिति अभी भी सामने आ रही है। अभी भी स्पष्टता की बहुत कमी है। जाहिर है, कुछ और अधिक दिखाई देने वाले परिवर्तन स्पष्ट हैं। इसलिए आपको अपना राय बनाना है, अपनी स्थिति स्पष्ट करनी है, आपके पास जो है, उसके आधार पर अपना फैसला करना होगा। अब, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में सामान्य अर्थ यह है कि कुछ बुनियादी अपेक्षाएं हैं, जो विश्व की अफगानिस्तान से हैं। उनमें से सबसे बुनियादी वास्तव में यह तथ्य है कि अफगान मिट्टी का उपयोग अन्य देशों के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं किया जाएगा। सरकार की प्रकृति के बारे में भी उम्मीदें हैं कि यह किसी रूप में समावेशी होगा कि, आप जानते हैं, वर्तमान दौर में शासन मानकों क्या अभिप्राय है, इस बारे में एक विचार है। इसलिए, प्रश्न यह है की, जैसा की आप जानते हैं कि वहाँ अल्पसंख्यकों, महिलाओं, बच्चों के साथ कैसे व्यवहार किया जा रहा हैं, आप उन लोगों से कैसे निपटते हैं जो आपका देश छोड़ना चाहते हैं, कोई देश से बाहर जाना चाहता है अथवा अपने देश में वापस आना चाहता है। मेरा मतलब है, क्या ये सब वहाँ अभी वैध हैं। इसलिए मुझे लगता है कि ये सभी जीवित मुद्दे हैं और हम स्पष्ट रूप से इस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सोच को आकार देने में काफी शामिल हैं, आंशिक रूप से क्योंकि हम भी इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं, इनमें से कई वाद-विवाद वहां हो रहे हैं। उनमें से कुछ जी-20 प्रारूप में हो रहे हैं। हमने जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक की थी। तो मुझे लगता है कि यह आकार ले रहा है। हम स्पष्ट रूप से साथ रहकर स्थिति का जवाब दे रहे हैं। परंतु इन तथ्यों से परे यह है कि बहुत ही निश्चित स्थिति लेने के लिए मुश्किल है क्योंकि जमीन स्थिति इसके लिए अनुमति नहीं देता।

गीता मोहन: बस इसी से संबंधित एक प्रश्न है। हम जानते हैं कि जब तालिबान ने काबुल को अपने कब्जे में लिया था, तब दोहा में हमारे राजदूत दीपक मित्तल और स्टेनीजई के बीच पहली बार बातचीत हुई थी और तब से हमने वास्तव में वास्तविक जुड़ाव नहीं देखा है। क्योंकि ऐसा लगता है कि जब भारतीय प्रशासन की बात आती है तो हक्कानी का बात करने का तरीका तथा शैली निर्धारित है, उनके ट्वीट मे भी यह बात परिलक्षित होती है। और वह सोमनाथ मंदिर की बात करते हैं, ऐतिहासिक स्तर पर सोमनाथ की मूर्ति के तोरे जाने की घटना पर गर्व करते हैं।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
देखिए, हम विभिन्न कामकाज में हैं। ठीक है, आप समाचार कार्यों में हैं। मैं कूटनीति के कामकाज में हूं। स्वभाव से, मैं और अधिक आनुभविक हूँ, और अधिक रहूँगा, मैं अपने फैसले को लेकर ज्यादा सावधान रहूँगा मेरा मतलब हमारी कार्य प्रकृति से है। ठीक? आपके मत से मै सहमत नहीं हूँ , इसलिए, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है, मैं आपके द्वारा कही गई कुछ बातों से पूरी तरह सहमत हूं, आप जानते हैं, इस व्यक्ति ने कार्यभार संभाल लिया है, और मेरा मतलब है कि लोग पद ले सकते हैं, लोग ट्वीट कर सकते हैं, हम अटकलें लगा सकते हैं कि यह हमारा अधिकार है, लेकिन मुझे लगता है कि जब नीति निर्माण की बात आती है, तो मैं दोगुना,तिगुना,चौगुना परिश्रम से कार्य करूंगा। मेरे निर्णयों के बारे में अधिक विचार-विमर्श करें।

आप जानते हैं की मुझे कोई तीव्र निश्चित स्थिति लेने तथा इसके बारे मे सार्वजनिक होने की मजबूरी नहीं है। इसलिए, इसलिए, ऐसी चीजें हो सकती हैं, जो आप जानते हैं, मैं इस बारे में बोलने में सक्षम नहीं हो सकता हूं, लेकिन इस समय, जैसा कि मैंने कहा, जैसा कि आपने कहा, वास्तव में हमारा प्राथमिक संपर्क दोहा में रहा है और यहीं है।

शिव अरूर: जयशंकर जी हक्कानी से गीता भी वार्ता कर रहीं थी, मैं आपका ध्यान अब पाकिस्तान की ओर दिलाना चाहता हूं। सब कुछ जो अफगानिस्तान में हुआ है। और जैसा कि आपने कहा, कई चीजें अभी भी हैं, आप जानते हैं, प्रचुर मात्रा में लोगो का बहिर्गमन, इन सब से पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध की स्थिति कितनी जटिल है, क्योंकि धारणा यह है कि पाकिस्तान मे जो कुछ हुआ है उससे आईएसआई जीत गई है। और इसलिए, सरलीकृत तरीके से यह देखा गया है कि यह भारत के लिए एक रणनीतिक झटका रहा है, पाकिस्तान की तुलना में, आप उसमे कैसे मार्गनिर्देशन कर रहे हैं?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: ठीक है, दुबारा मै वही स्थिति लूँगा और कहूँगा, मुझे उनही मान्यताओं के आधार पर कार्य करना है। मैं नहीं कह सकता। काश यह इस तरह नहीं किया गया होता, अथवा अमरीकी वहाँ से नहीं जाते, या वे कुछ अलग ढंग से इसे करते। उन्होंने जो किया है, वही किया है। मुझे इसी के साथ रहना है और इसी के साथ समझौता करना है। यदि आप मुझसे पूछेंगें की 8 अक्टूबर की जो मेरी सुरक्षा नीति की स्थिति थी वह 8 अगस्त से अलग थी, हाँ तो ऐसा है। अब, लेकिन आप मुझसे सहमत होंगे कि कई बार हम सब बयान, निर्णय या आकलन अत्यंत व्यापक रूप में करते हैं। मुझे लगता है कि तस्वीर थोड़ा और अधिक जटिल है, उससे अधिक सूक्ष्म। आप जानते हैं की दो महीने से भी कम हुआ है जब तालिबान ने अफगानिस्तान का अधिग्रहण कर लिया। तो आप जानते हैं की काबुल में भी स्थित स्पष्ट होने से काफी दूर है।

इसलिए, आप जानते हैं, देखिए, मैं कुछ धैर्य, कुछ विवेचना और कुछ सावधानी बरतने का आग्रह करूंगा। अब मैं समझता हूं। मेरा मतलब है, कि इस युग में यह आवश्यक नहीं है की मीडिया इन बातों तक कैसे पहुँच सकती है। क्योंकि आप लोगों की अलग-अलग मजबूरियां, अलग-अलग समयसीमा और अलग-अलग दबाव होते हैं। इसलिए, हमारे बीच यह अंतर आपके और मेरे बीच होगा। यह है, आप मुझे बहुत मजबूत बयान के साथ उत्तेजक रखेंगे, उस पर प्रतिक्रिया देने को विवस करेंगे।

मैं इससे कोई बचाव नहीं कर रहा हूं। मै उनमे से कई चीज़ के कुछ तत्व को स्पष्ट कर रहा हूँ जहां कई बाते असपष्ट होती है, कई लोग ये कहते है मुझे कुछ पता है, बहुत सारी तथ्य है, बहुत सारी बातें हैं जिसके बारे मे जानकारी नहीं होती। मुझे इन बातों का जानकारी लेना आवश्यक होता है, कुछ मामलों में हम स्थिति के लिए इंतजार करते हैं जब तक की वह स्पष्ट नहीं होता है।

राहुल कंवल: शिव उम्मीद कर रहे हैं कि आप वीरेंद्र सहवाग की तरह आक्रामक होंगे और आप इसके बजाय राहुल द्रविड़ की तरह सुरक्षात्मक हैं।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: बिल्कुल।

राहुल कंवल: और वह ठीक है। आप अफगानिस्तान के तालिबान अधिग्रहण को जम्मू-कश्मीर की आंतरिक स्थिति को कैसे प्रभावित होते हुए देखते हैं। हमने पिछले कई महीनों से युद्धविराम देखा है। अब, आतंकवादियों के कारण युद्धविराम टूटता जा रहा है, जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ की जा रही है और हाल ही में और अधिक संख्या में। हमने पिछले कुछ दिनों में हत्याओं की बाढ़ देखी है। क्या आप इस बात से चिंतित हैं कि अफगानिस्तान की स्थिति घाटी में पहले से ही जटिल स्थिति को जटिल बना रही है?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: आप जानते हैं, जाहिर है, मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि पिछले कुछ दिनों में क्या हो रहा है, खासकर कुछ लक्षित हत्याएं। लेकिन क्या मैं अफगानिस्तान के साथ जो कुछ हो रहा है, उससे संबंध बनाऊंगा, मैं नहीं जानता, आप जानते हैं, मैं चाहूंगा कि यदि कोई संबंध है तो मैं वहां किसी प्रकार के संबंध के साक्ष्य देखना चाहूंगा। शायद वहां नहीं है, लेकिन मैं स्पष्ट रूप से कुछ चीजें है जो श्रीनगर में हुआ है उसपर चिंतित हूँ।

गीता मोहन:
आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से ही सिर्फ भारतीय खुफिया जानकारी ही नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी है कि पाक आधारित आतंकी समूह अब हाथ मिलाने और तालिबान के साथ मिलकर काम करना चाहते है। क्या यह भारत के लिए चिंता की स्थिति है।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: देखिये गीता, जिस तरह से बहुत बड़ी संख्या में पाक नागरिक जिन्हें आप विदेशी लड़ाके कहते हैं, उन्हें आतंकवादी कहते हैं। वे वहां मौजूद थे। मेरा मतलब है, इसे कहने की आवश्यकता नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की ऐसी रिपोर्टें हैं जो उनके बारे में कहती हैं। ठीक? और हजारों उनके बारे में बोलते हैं। अब फिर से, आप मुझ पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। अमेरिका और अमेरिकी संसद कुछ बहसों को देखिए, कांग्रेस की सुनवाई, सवाल पूछे जा रहे हैं कि उस स्थिति में इस समय पाकिस्तान की क्या भूमिका थी? और आपने अमेरिकी प्रशासन की प्रतिक्रियाओं को देखा है जो बहुत कुछ बता रहे हैं। इसलिए वहां चीजें हो रही हैं। मेरा मतलब है कि अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ उसमें पाकिस्तान की भूमिका कोई रहस्य नहीं है, मेरा मतलब है कि यह बहुत सार्वजनिक है, यह अब अधिक सार्वजनिक है क्योंकि अब वे भी इनमें से कई चीजों के बारे में बोलते हैं। तो, जाहिर है, यह पूरे पड़ोस के लिए एक चिंता का विषय है। मेरा मतलब है, पूरे क्षेत्र के लिए ।

शिव अरूर:
पाकिस्तान के बारे मे ही अगला प्रश्न है मंत्री जयशंकर जी। इस वर्ष फरवरी के बाद से दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम की स्थिति थी। संघर्ष विराम का उल्लंघन कम हो गया है, लेकिन अभी भी घुसपैठ हो रही है, दोनों पक्षों के बीच कुछ समय से बातचीत नहीं हो रही है । आप हमें अपनी दृष्टि का एक परिप्रेक्ष्य दे सकतें है जब आपको लगता है कि चीजें सही हो सकता है पटरी पर वापस आ सकती है? सर, भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे से फिर वार्ता कर रहे हैं? संभावित बैक-चैनल और इस तरह से, क्या इसकी प्रत्याशा की जा सकती है, हम जानते हैं की आपको ये ज्ञात है।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: वैसे ये सोचना की हम बिलकुल भी वार्ता नहीं करते,थोड़ा अतिशयोक्तिपूर्ण है। उनका दूतावास है, हमारा दूतावास है। मेरा मतलब है कि हमारा विदेश मंत्रालय दूतावास से बात करता है, उनके विदेश मंत्रालय हमारे दूतावास से बात करते हैं। तो ऐसा नहीं है कि कोई संचार नहीं है। मेरा मतलब है, राजनयिकों ने वही करना जारी रखा है जो राजनयिकों को करना चाहिए। मुझे लगता है कि मुद्दा है जो आप एक अर्थ में इशारा कर रहे है, तथ्य यह है की वहां नियमित कूटनीति बंधन से परे बातचीत का मुद्दा था, मुद्दों का एक निश्चित संग्रह पर। अब यह कुछ वर्ष पहले नया नहीं था, 2016 सटीक रूप से, पठानकोट से शुरुआत और फिर उड़ी में समापन। घटनाएं एक दिशा में चली गईं जिससे बातचीत के उस विशेष तरीके को जारी रखना बहुत मुश्किल हो गया।

और अंत में, एक बड़ा प्रश्न है जो हम सभी को अपने आप से पूछने की आवश्यकता है जब आप कहते हैं, जब आप देखते है कि बातचीत का दौर वापस आ रहा है? आप मुझे बताएं। जब आप पाकिस्तान को एक सामान्य देश बनते हुए देखते हैं, और मेरे लिए, एक सामान्य देश एक ऐसा देश है जो अपने पड़ोसियों के खिलाफ आतंकवाद को प्रायोजित और निष्पादित नहीं करता है, जो एमएफएन आधार पर अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार करता है, जिसका अपने पड़ोसियों के साथ संपर्क है, जो लोगों को वीजा के आधार पर आगे बढ़ने की अनुमति देता है। मेरा मतलब है, जिस तरह से हम अपने सभी अन्य पड़ोसियों के साथ कार्य करते हैं, यदि मैं बांग्लादेश, या नेपाल, या श्रीलंका या मालदीव को देखता हूं। प्रश्न यह है कि पाकिस्तान के साथ ऐसा कब हुआ? बिल्कुल अभी? जाहिर है, संभावनाएं अच्छी नहीं लगती क्योंकि सार यह है कि यह सिर्फ हमारे पड़ोसियों में से एक नहीं है, आप जानते हैं, बहुत, बहुत कम हैं। मेरे विचार से, वास्तव में आज विश्व में कोई अन्य स्थिति नहीं है, जहां एक देश वास्तव में पड़ोस के विरुद्ध आतंकवाद के इस प्रकार से वृहत स्तर पर परिचालित करता हो।

राहुल कंवल: माननीय मंत्री जी, चीन के साथ आचरण की स्थिति के बारे में आपका क्या कहना है? हमने एक बड़े पैमाने पर सैन्य जमावड़ा देखा गया है जो हवाई परिसंपत्तियों को लाने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को जारी रखा है। हवाई सुरक्षा को दुरुस्त किया जा रहा है। हमने अपनी आर्थिक और सैन्य क्षमताओं में विषमता को देखते हुए यथासंभव सर्वोत्तम रूप से सामना करने की कोशिश की है। हालांकि, चीजें काफी रूप से बदली हैं, गलवान के बाद से स्थिति काफी अच्छी हुई है पर अभी भी संबंध सामान्य नहीं है। विदेश मंत्री के रूप में, आप हिमालय के दूसरी ओर क्या हो रहा है, उसे कैसे देखते हैं?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: खैर, मै तो वहाँ 80 के दशक से चीजों का अनुभव कर रहन हूँ, मुझे लगता है कि चीनी के साथ एक व्यावहारिक सभ्य संबंध विकसित हुआ है, तथ्य यह है कि वहां शांति और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति प्रतिपादित होनी चाहिए। यह सिर्फ एक धारणा या बातचीत नहीं थी। यह हमारे बीच समझौतों में लिखा गया था, जबकि 2020 में ऐसा हो गया। हमने देखा कि चीन के तरफ से किसी कारणवश उन समझौतों की उपेक्षा की गई, जो अभी भी हमारे लिए स्पष्ट नहीं है क्योंकि मैं अभी भी हूं और मैं अपने समकक्ष से कई बार और अन्य लोगों से मिला हूं, आप जानते हैं, एक-दूसरे से जुड़े हुए हमारी प्रणाली, लेकिन वे, मुझे पता है, मैंने अभी भी एक विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं सुना है कि उन्होंने हमारी सीमा के उस क्षेत्र में इतनी भारी मात्रा में सैन्य बल को क्यों लाया। अब यदि शांति और सौहार्द भंग होता है तो फिर एलएसी को बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं, यथास्थिति एकतरफा है और लिखित समझौते का उल्लंघन करते हुए सैन्य ताकतों को सीमा पर लाया जाता है, तो जाहिर है कि संबंधों पर असर पड़ेगा। अब अगर हमें एक सामान्य संबंध में वापस जाने की जरूरत है, जो वे कहते हैं कि वे चाहते हैं और जो हम दोनों का मानना है कि हमारे पारस्परिक हित में है, तो मुझे लगता है कि उन्हें समझौतों का पालन करने की आवश्यकता है। ऐसा ही वांछित है, आप जानते है की सही मार्ग क्या है।

अब, हां, कुछ प्रगति की है, हमने पांगोंग में प्रगति की है। तो हम कुछ अंय क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन मुझे लगता है कि बड़ी समस्या बनी हुई है, एलएसी पर तो कोई सैन्य बल नहीं है परंतु इसके अलावा वहां एक बहुत अच्छी खासी चीनी सैन्य बल है, बहुत करीब है।

गीता मोहन: डॉ जयशंकर, अंतरराष्ट्रीय मामलों में मोदी प्रशासन की उपलब्धियां इतनी नहीं हैं, लेकिन यह संबंधों में आने वाली दिक्कतें हैं, जिन्हें घरेलू राजनीति में काफी जगह मिलती है। अब हमने देखा है कि राहुल गांधी विदेश संबंधों पर संसदीय समिति से बाहर चले गए हैं, जब चीन पर चर्चा की बात आती है कि चर्चा की आवश्यकता है। विपक्ष की ओर से सरकार की पारदर्शीता पर काफी बात हुई है। बस यह जानना चाहता था कि क्या सरकार के सामने आने वाली कठिनाइयों या समस्याओं की जानकारी देने में सरकार में कोई भाव है या क्या सरकार वास्तव में देश के साथ और विपक्ष के साथ पारदर्शी रही है?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: देखिए, मैं सरकार में एक लंबे समय से रहा हूँ, एक बहुत लंबे समय और कई सरकारों के साथ कार्य किया हूँ। मैं समळाता हूं कि सरकारें, स्पष्ट रूप से जब राष्ट्रीय सुरक्षा स्थिति की बात आती है, तो सभी सरकारों ने, पर्याप्त रूप से बाते कहीं हैं, ताकि आप सरकार से बाहर के लोगों को जानें, जो कुछ हो रहा है उसका उचित अर्थ हो और बाहर बड़े राष्ट्रीय उद्देश्यों और लक्ष्यों का समर्थन प्राप्त होगा। अब, अगर कई बार ऐसा नहीं होता है क्योंकि लोग राजनीति करने में व्यस्त रहते हैं, तो मुझे सिर्फ इतना कहना है कि यह बहुत ही दुखद स्थिति है, लेकिन मुझे नहीं लगता, आप जानते हैं, बस पिछले डेढ़ वापस मूरकर देखिए। मेरा मतलब है कि वहाँ जो हो रहा है उसके बारे में हमे कितना कुछ पता है। इसलिए कोई नहीं कह सकता की ओह, मुझे पर्याप्त रूप से नहीं बताया गया है या ब्रीफिंग की कमी रही है। मेरा मतलब है, मैं नहीं जानता, स्थायी समिति प्रकरण जिसका आप उल्लेख कर रहे हैं लेकिन मैं आपको उदाहरण के लिए बता सकता हूं कि एक विदेश मंत्री के रूप में हमारे पास एक परामर्शदात्री समिति है। और हमने, आप जानते हैं कि इस मुद्दे पर चर्चा की गई है। इसलिए संसद में इस पर चर्चा हुई है। आप जानते हैं, रक्षा मंत्री ने बार-बार बयान दिए हैं। इसलिए, मुझे लगता है कि आप जानते हैं, कहीं न कहीं हमें राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों की बात आती है तो हमें जिम्मेदारी और परिपक्वता की भावना की आवश्यकता होती है। यह रुख स्पष्ट करने का एक विषय नहीं होना चाहिए।

शिव अरूर: माननीय मंत्री जी, चीन से ही अगला प्रश्न है, आप जानते हैं, इसके राजनीति भाग से। बस कुछ देर के लिए एलएसी पर वापस आ रहें हैं। जैसा कि आपको कोई संदेह नहीं है, कोर कमांडरों के बीच एक दर्जन से अधिक दौर की वार्ताएं हुई हैं। आप अपने समकक्ष से कई बार मिले हैं। वहां अप्रैल, 2020 की ओर यथास्थिति के लिए वापसी का प्रश्न है, और वहां भी भावना है, आप जानते है, कि चीनी बड़ी संख्या में वहां हैं, वे हमसे बात कर रहे हैं, लेकिन वहां किसी भी वास्तव में बड़ा डिसएंगेजमेंट का कोई संकेत नहीं है। सर, क्या चीजें जमीनी रूप से बदल गई हैं? क्या यह प्रतीत होता है कि यह स्थिति एक प्रकार की अर्ध-स्थायी, निकट भविष्य की स्थिति बनती जा रही है जहां हमें अपने दरवाजे पर बड़ी संख्या में चीनी के साथ रहना है?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
क्या अप्रैल 2020 के संदर्भ में जमीनी स्तर पर चीजें बदल गई हैं? हाँ। खैर, जाहिर है, मेरा मतलब है कि जमीनी स्तर पर चीजें काफी बदल गई हैं। मेरा मतलब है कि वो सैन्य बल ले आयें। इसलिए हमने जवाबी कार्यवाही में तैनाती की। तो अब अगर आप मुझसे पुछेंगे की कब तक जारी रहेगा, जब तक वे तैनाती जारी रखेंगे।

तो देखिए, एक बात मुझे बिलकुल स्पष्ट करनी है। हां, मेरा मतलब है कि उन्होंने ऐसे कार्य किए हैं जैसा कि मैंने कहा था जो समझौतों आदि का उल्लंघन कर रहे थे। लेकिन हमें अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए जो करना है, उसके संदर्भ में दृढ़ता या प्रभावशीलता के संकल्प में कोई कमी नहीं रही है। तो हम भी अतिरिक्त तैनाती बढ़ा देंगे और पूरे सर्दी के मौसम में रहें हैं। हम दूसरी सर्दी के करीब पहुँच गए हैं।

इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय सशस्त्र बल इस देश की रक्षा के लिए उन्हें जो करना है, वह करेंगे। और मैं हर किसी को जो देशभक्त हैं उनको ऐसा ही विश्वास होगा।

राहुल कंवल: डॉ जयशंकर, एक शत्रुतापूर्ण पड़ोसी से निपटना ही काफी है। इस समय हमारे यहाँ पीएलए की एलएसी के पास एकत्रित हैं। पाकिस्तानी सेना जो नियंत्रण रेखा और जम्मू-कश्मीर में अपने नापाक मंसूबों को जारी रखे हुए है। और अब अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान एक ही राग में कार्य कर रहे हैं। आप कुछ मायनों में कहेंगे की यह एक सबसे खराब सामरिक स्थिति उभरती हुई नजर आ रही है। और आप इस तथ्य को देखते हुए भारत की रणनीति को कैसे फिर से तैयार कर रहे हैं, आपके पास दो शत्रुतापूर्ण पड़ोसी इतने बारीकी से काम कर रहे हैं?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
आप जानते हैं राहुल, इस मुद्दे पर वापस आते हुए, जो आपने समस्या बताई है, उसमे मेरे पास विकल्प है । मुझे नहीं, आपको पता है, हम काफी समर्थ हैं। जैसा की हम सब को पता है, पश्चिमी सीमा पर लगातार मुश्किल स्थिति रहती है। इस के साथ ही अगर उत्तरी सीमा पर भी उत्तेजना बढ़ जाए तो हम इससे निपटने मे पूरी तरह से सक्षम है। हम यह नहीं कह सकते की समस्याएँ ज्यादा बढ़ गई है, हमे यह पसंद नही। यह एक बहुत ही जटिल चुनौती है ।

हमारे साथ स्पष्ट रूप से खतरा दिख रहा है, हमें यह चुनौती दी गई है, हमे उसका जवाब देना है। और मैं कहूंगा कि बहुत स्पष्ट रूप से, आप जानते हैं कि सशस्त्र बलों ने ऐसा किया है, इसका जवाब देने में काफी अच्छा कार्य किया है।

राहुल कंवल: आप जानते हैं, एक बात पर मुझे विश्वास है कि इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में यहां बैठे और टीवी पर देखने वाले कई लोग या डिजिटल रूप से देखने वाले कई लोग इस बात की अवश्य ही सराहना करेंगे, न केवल जैसे हमने पीएलए के विरुद्ध खड़े हुए, बल्कि घरेलू टीके के मुद्दे पर यूनाइटेड किंगडम द्वारा दिखाए जा रहे नव-साम्राज्यवाद के विरुद्ध जैसे हम खड़े हुए। एक ही टीका जब वे अपने नागरिकों या दूसरों को देते हैं, तो वे विश्व में कहीं जा सकते और जब कोविडशील्ड भारत अपने नागरिकों को प्रदान करता है, तो उन्हें कहीं न कहीं समस्या होती है, इसमे मुद्दे मे नए मुखर भारत का संकेत है, ठीक है आप मुझे अपने देश मे नहीं आने देंगे तो हम भी आपको अपने देश में नहीं आने देंगे। अब आप भी क्वारंटाइन रहें। बहुत ख़ूब। डॉ जयशंकर।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
धन्यवाद। मुझे बस लगता है कि यह एक समझदार, भारत है । मेरा मतलब है, आप इसके बारे में और क्या करेंगे? मेरे लिए, यह एक समस्या है, जो पहली जगह में पैदा नहीं होना चाहिए था। तो हमने वही किया जो हमें करना था और मुझे खुशी है कि हमने स्थिति को सुलझा लिया है और मैंने आज दोपहर अपने समकक्ष के साथ बहुत, बहुत सौहार्दपूर्ण बात की। इसलिए मुझे आशा है कि हम दोनों इस बात पर सहमत हुए कि हमें ऐसे तरीके खोजने चाहिए जिनके द्वारा यात्रा अधिक स्वतंत्र रूप से और स्वाभाविक रूप से और हमारे देशों के बीच क्वारंटाइन के बिना हो। तो यही है जो किया गया है।

गीता मोहन: अब संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ, हम पूरी तरह से नए समीकरण में दिख रहे हैं। औकुस के बारे मे। हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राज्य अमेरिका गए थे। क्वाड शिखर को बड़ी सफलता मिली। लेकिन आप क्वाड की तुलना में औकुस को कैसे देखते हैं, जो एक सैन्य गठबंधन है और यह बहुत खुले तौर पर और बहुत खुलेआम कहता है, यह चीन के विरुद्ध गठबंधन है।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: खैर, देखिए, हमलोग औकुस का हिस्सा नहीं है। तो औकुस की दिशा उन्हे तय करनी है हमे नहीं। इसके बारे में मेरी समझ इसका एक बड़ा हिस्सा एक विशेष क्षमता से प्राप्त होती है, जो कि आस्ट्रेलियाई पनडुब्बी क्षमता है और जो भी चर्चाएं हैं, संबंधित देशों ने उस क्षमता को बढ़ाने के बारे में जानकारी दी है। लेकिन बहुत स्पष्ट रूप से, मुझे उसमे और क्वाड में कोई संबंध नही है। मेरा मतलब है, क्वाड में हम दोनों अर्थात हम और जापान इसमे शामिल नही है। दूसरे, क्वाड देशों में, उनमें से दो या उनमें से एक कई बार अन्य रिश्ते, अन्य त्रिपक्षीय, या चतुष्कोणीय या अन्य संगठनों का हिस्सा है, तो ऐसा नहीं है कि वहां कोई सम्झौता है कि क्वाड देशों का केवल आपस में समझौता है। प्रत्येक देश किसी के साथ समझौता कर सकता है। मेरा मतलब है, हम त्रिपक्षीय रूप मे ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ है । तो वास्तव में, आप जानते हैं, दिलचस्प बात यह है कि हम और ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस के साथ एक त्रिपक्षीय है। ठीक है, जो न्यूयॉर्क में मिलना चाहिए था, वो नहीं हो पाया। तो आज देखिये, कूटनीति की प्रकृति बदल गया है, देशों का संयोजन अब एक साथ बैठकर और पता लगाते है कैसे सबसे अच्छा अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए और उनकी चिंताओं को संबोधित करने के कौन सा गठबंधन होगा। यह अब नित्य हो रहा है। तो यह आंशिक रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का विकास है क्योंकि हम द्विध्रुवी और एकध्रुवीय दुनिया से दूर जा रहे हैं। इसलिए, यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका, आप जानते हैं, अन्य देशों के साथ काम करना उपयोगी समझता है और स्पष्ट रूप से अन्य, आप जानते हैं, कम शक्तियां के साथ गठबंधन औए भी अधिक हो रहा हैं और तथ्य यह भी है कि रणनीतिक परिदृश्य की वास्तविकता, पहलों पर बहुपक्षीय समाधान आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए मैं कुछ हद तक सोचता हूं, आप जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ ग्रिडलॉक है। यह अवर्णवादी है। यह आप जानते हैं, अक्सर वहां नहीं है। इसलिए, जब आपके पास वह स्थिति है, लेकिन समस्याएं अभी भी वास्तविक और दबाव वाली हैं, तो मुझे लगता है कि देशों ने अभी निर्णय लिया है । ठीक है, हम अपने स्वयं का रास्ता तय करेंगे यह उन मामलों में से एक है।

शिव अरूर: माननीय मंत्री जी आप भारत की सरकारी मशीनरी में सबसे ऊपर रहे हैं। और अब आप मंत्री हैं, मेरे साथ और भी लोग यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं की भारत सरकार की मशीनरी ट्रंप प्रशासन से बिडेन प्रशासन से कैसे सामंजस्य बैठाया। हम सभी जानते हैं कि ट्रंप प्रशासन कैसा था। हाँ। मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि कैसे, आप जानते हैं, यह कैसे हुआ? यह ट्रंप प्रशासन से सामंजस्य बैठने से अलग कैसे है?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: हमारी तंत्र, या उनका तंत्र?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: हमारा तंत्र? ठीक है

शिव अरूण: और विशेष रूप से आपका मंत्रालय?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: बिल्कुल। यही मुख्य तंत्र है। यह हमारे कार्य की प्रकृति है की जो कुछ भी है उससे सामंजस्य बैठा लेते है। ठीक है, मेरा मतलब है, यह यदि आपके पास ट्रम्प प्रशासन है तो आप स्पष्ट रूप से ट्रम्प प्रशासन का अध्ययन करते हैं, इसे विच्छेदन करते हैं, यह पता लगाते हैं कि मुख्य घटक कौन हैं, वो कौन सा कदम उठाते हैं, आप जानते हैं ऐसे ही काम करते हैं। आप अपनी नीति कैसे स्पष्ट करते हैं? उनकी संवेदनाएं क्या हैं? तो यह सार्वभौमिक प्रस्ताव की भावना में है। मेरा मतलब है, कूटनीति का अध्ययन करने के बारे में है, विदेशी सरकारों, देशों, प्रशासन और पता लगाना की कैसे अपने कार्य को पूरा कर सकते हैं। अब, मैं आपकी प्रश्न को लेता हूं ट्रम्प और बिडेन के बीच एक अंतर है और आप जानते हैं, आप इसका अध्ययन करते हैं और यह तय करते हैं कि आपका समायोजन कैसे किया जाए, आप जानते हैं, आपके काम करने के तरीके और आपका एजेंडा और आपकी अभिव्यक्ति और एक अर्थ में आपकी रणनीति क्या है।

राहुल कंवल: क्या यह बाहर से उचित आकलन है कि मोदी सरकार को डेमोक्रेट प्रशासन की तुलना में ट्रम्प प्रशासन के साथ कार्य करना ज्यादा सहज था। क्योंकि डेमोक्रेट प्रशासन को जब भी मौका मिलता है मुद्दों को उठाने से नहीं चुकती जिसमे भारत सरकार या सत्तारूढ़ दल पड़ना नहीं चाहता।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
नहीं। देखिए, आप जनते है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ अमेरिका के साथ कार्य करने के लिए मेरा पहला अनुभव ट्रंप के साथ नहीं था। यह ओबामा के साथ था। ठीक। अब मैं चाहता हूं कि आप थोरा पीछे जाकर देखें जब ट्रंप ने चुनाव जीता था। जब आप पीछे मुड़कर देखेंगे की उस समय कई भारतीयों का मत था की ट्रम्प प्रशासन के साथ कार्य करना मुश्किल होगा।

ठीक है, अब जब बीडेन चुनाव जीत गए हैं तो लोग कह रहें हैं की उनके प्रशासन के साथ कार्य करना मुश्किल होगा। अब, मुझे आपको निराश करने में खुशी नही हो रही। हम अब जो कोई भी वहां हैं उनसे सामंजस्य बैठने मे सक्षम है। यही हमारा काम है।

राहुल कंवल: इसलिए हम सबने देखा है, हां, मंत्री जी, हम जानते हैं की आप किसी से भी सामंजस्य बैठने मे सक्षम है। यहां बैठे सभी को कुछ अंतर्दृष्टि दें और एक पल के लिए सहवाग की तरह बल्लेबाजी कर सकते हैं। दो पदों के बीच में। विदेश सचिव और विदेश मंत्री के रूप में, मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आपके लिए कौन सा पद ज्यादा पेचीदा है, आप हमे इस पर अपनी अंतर्दृष्टि दें?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
खैर, वास्तव में, आप जानते है, मैं उन कार्यों में से तीन कार्य किया है, जो की मंत्री हैकर कार्य है, अप्पलेबी कार्य है, लेकिन मैंने बर्नार्ड कार्य भी किया है, जो मंत्री के विशेष सहायक के रूप मे होता है। अब अगर यदि आप उल्लेख करें तो, येस मिनिस्टर के रूप मे अप्पलेबी सामने आती है, तो यह अलग है। तो यह अलग अलग कार्य है। मै कहूँगा की यह मानसिक स्तर पर है। आप जानते हैं की मंत्री बनने के बाद बड़ा बदलाव आता है। मैं बताना चाहूंगा कि बड़ा परिवर्तन तब आता है जब आप राजनीतिक होते हैं, जब आप मंत्री होते हैं, तो आप वास्तव में कम विभागीय होते हैं, आपके पास बड़ी तस्वीर के लिए बहुत अधिक कार्य होता है । मेरा मतलब है कि आप पहली स्थिति में बहुत सरल थे। उदाहरण के लिए, जब आप मंत्रिमंडल की बैठकों में बैठते हैं, तो आपके पास सरकार, सभी विभागों का पूरा दृष्टिकोण होता है, चिंताएं क्या हैं? इसलिए आप उस आलोक में अपनी जिम्मेदारियों को देखते हैं। जबकि यदि आप एक विभाग के सचिव हैं, आप कितने भी प्रबुद्ध हो दिन के अंत मे मै यह नहीं कहूँगा की आप अपने विभाग के एक कैदी हैं बल्कि अपने विभाग के एक चैंपियन होंगे। तो यही अंतर है। यह एक अलग प्रकार का अंतर है जिसकी अपनी एक विकास प्रक्रिया है, अगर मै उसे अच्छे से नहीं करता तो आज यह नहीं कर रहा होता।

राहुल कंवल: आपको कौन सा कार्यभार अच्छा लगा?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: मुझे सबसे अच्छा वर्तमान में कार्यभार लग रहा है।

राहुल कंवल: देखिए, यही राजनयिक होने का फायदा है, नहीं एक अल्पविराम, नहीं एक पूर्ण विराम जगह से बाहर है। आप उन्हे ऑफ स्टंप के बाहर गेंद डालकर विकेट के पीछे पकड़ नही सकते। यह कभी नही होगा।

गीता मोहन: एक प्रश्न फिर से, आपके व्यक्तिगत अनुभव पर। क्या एक राजनयिक के रूप में कुछ ऐसा है जो आपमे बदल चुका है? मंत्री के रूप में क्या आपने पहले के किसी निर्णय को बदला है। अब जबकी आप मंत्री हैं?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
आप जानते हैं, मैंने इसके बारे में इस तरह से कभी नहीं सोचा है, लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि, आप जानते हैं, और विशेष रूप से हाल के दिनों में, अच्छे मंत्रालयों, अच्छी सरकार को एक तरह से मंत्री और सचिव के एक टीम के रूप में काम करने के आधार पर अच्छा होता है। और जब मैं विदेश सचिव था, तो मेरे मंत्री के रूप में शुसमा जी थी और हमने साथ मे काफी अच्छा कार्य किया। आपने इस कवर किया होगा इसलिए आप जानते होंगे। ये सब विदेश नीति में शामिल है। अधिकतर देशों मे यही है। इसमे बहुत ज्यादा कार्यकारी प्रमुख का भाग होता है। जैसे ही कार्य का दायरा बढ़ता है तो प्रधानमंत्री भी इसमे बहुत गहराई से शामिल होते। आप जानते हैं की जीतने ज्यादा सक्षम होंगे उतने ज्यादा वैश्विक होंगे, ये तो स्वाभाविक है। यह हमारे लिए अद्वितीय नहीं है, हर देश में, हर समाज है यह हुआ है। इसलिए, मैं कहूंगा, आप जानते हैं, ऐसा नहीं है कि आप एक सचिव के रूप में कुछ करते हैं, जिसे आप एक मंत्री के रूप में नहीं जानते हैं। यह निर्णय लेने का एक बहुत, बहुत सहयोगात्मक प्रकार है। सभी कम से कम सब कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा के अनुसार बहुत, बहुत सहयोगात्मक हो जाता है। सभी कुछ जो आवश्यक वो अक्षरसः सहयोगात्मक ही होते हैं। अभी नहीं परंतु कभी भी मै पीछे मुरकर देखुंगा तो मुझे लगेगा की मैंने जो किया उससे मै संतुष्ट हूँ।

शिव अरूर: अत्यंत सहयोगात्मक भागीदारी। लेकिन मंत्री जी आपके द्वारा यह पद संभालने के बाद ऐसा कभी भी लगा की ये नही होना चाहिए था। क्या कोई आश्चर्य था? क्या आपने पाया कि कुछ चीजें थीं जो विदेश सचिव होने पर अलग दिखती थीं, लेकिन जब आप मंत्री हैं तो मशीनरी के संदर्भ में आपका बिल्कुल अलग नजरिया था?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: ठीक है, मेरा मतलब है कि सबसे पहले मुझे मंत्री बनने की उम्मीद नहीं थी। तो मेरा मतलब है, कि पहला आश्चर्य था । जब मैंने देखा, तो ये मुझे एक बड़ा फायदा दिखा था। ठीक है, एक ऐसे विभाग का मंत्री बनना जहाँ आपने सब देखा है, निश्चित रूप से इसका फायदा तो मिलता ही है। खास कर के इस विभाग मे जहाँ विदेश सेवा एक प्रकार से मंत्रालय सेवा ही है। मैं बाहर कुछ अन्य स्थानों में काम नहीं किया है, लेकिन कुल मिलाकर तो, आप अपने संगठन को अच्छी तरह से जानते हैं. मेरा मतलब है, यह वास्तव में आप उस संगठन में आते हैं, कि एक बहुत बड़ा फायदा है। अब, इसका नकारात्मक पहलू यह है कि आपको उस संगठन के नित्य प्रतिदिन कामों से स्वयं को मुक्त करने की भी आवश्यकता होती है। आपको स्वयं से ही कहना होता है की आप अब विदेश सचिव नहीं रहे मंत्री बन गए हैं, फिर भी आपको बहुत ज्यादा अलग नहीं होना है। जो मुझे लगता है कि मैंने कोशिश किया है।

राहुल कंवल: कभी बयानों को फिर से लिखने की कोशिश की ।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: आप जानते हैं, यह कोई सचिव या मंत्रालय स्तरीय नहीं है ।

राहुल कंवल:
जब यह आपके पास आता है। यदि आप तय करते हैं कि आप परिवर्तन करना चाहते हैं और ........

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
यह हमेशा सहयोगात्मक होता है। शुरू के दिनों में परिवर्तन के दौरान ऐसा होता है लेकिन मैंने इसमे अत्यंत जल्द सामंजस्य बैठा लिया था। और, मैं एक राजनीतिक व्यक्ति के रूप में नई चीजें सीखने की खोज कर रहा था। तो जैसा की आप जनते हैं मैं अपनी पुरानी दुनिया में नहीं फँसा रह सकता था। मेरा मतलब है कि मेरे लिए यह एक नया क्षेत्र था। वहां सीखने का एक बहुत कुछ था। तो मैंने उसमे अपनी बहुत रुचि और ऊर्जा लगाया। तो मुझे लगता है कि मैंने ऐसे ही परिवर्तन किया।

गीता मोहन: ईमानदारी से कोई एक गलती बताए जिसे आपने मंत्री बनने के बाद किया जिसे अपने सीखने के दौरान किया हो।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
आप मुझे क्यों नहीं बताते? आप जानते हैं, ईमानदारी से, जैसा कि मैंने कहा, आप एक दूसरे से जितनी बार बात करते हैं। यह है कि हम वास्तव में आप लोगों की कल्पना से कहीं अधिक संवादात्मक हैं। इसलिए, यदि आप मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या आपने निर्णय लिए हैं, जिन पर आपने पुन समीक्षा की होगी, वह हो सकता है, आप जानते हैं, लेकिन वे एक सचिव के रूप में मेरे निर्णय नहीं थे या मंत्री के रूप में किसी और का निर्णय नहीं था। वे हमारे फैसले थे। और यही बहुत अच्छी तरह से मोदी सरकार में भी ऐसे ही फैसले लिए जाते हैं। मेरा मतलब है, यह एक वहां पर टीम के प्रयास पर जोर दिया जाता है, आप खेल सादृश्य का उपयोग कर रहें थे। यह करने का अत्यंत ही टीम संचालित तरीका है। केवल मंत्री और सचिव के बीच ही नहीं, बल्कि इसके मंत्रियों के बीच भी, मैं समळाता हूं, मैं देखता हूं, मेरा तात्पर्य है कि मैं अपने मंत्रिस्तरीय सहयोगियों के साथ कितना समय बिताता हूं, विदेश नीति के बड़े मुद्दों पर काम करते हुए, आप जानते हैं, वित्त, व्यापार, स्वास्थ्य, नागर विमानन हैं, आप जानते हैं कि हम एक-दूसरे के कार्यालयों में कितना जाते हैं, एक-दूसरे से बात करते हैं, एक-दूसरे को व्हाट्सएप करते हैं। यह वास्तव में मेरी यादों में पिछली सरकारों से कहीं अधिक है। लेकिन फिर ध्यान रहे, मैं मंत्री नहीं था, मैं उस समय सिविल सेवक था ।

राहुल कंवल: सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक डॉ जयशंकर अपनी पुस्तक द इंडिया वे मे लिखते है, हम सभी को इस बात पर प्रतिबिंबित करना चाहिए की हम अमेरिकी विचारकों और रणनीतिकार या ब्रिटिश विचारकों, जर्मन विचारकों, शायद हाल ही में भी चीनी विचारकों को पढ़ते हुए बड़े हुए हैं लेकिन बहुत कम ध्यान भारतीय रणनीति या भारतीय लेखन पर दिया गया है। आप इसे अपनी पुस्तक में इसे लिखा हैं और मैं आपके लिए इस अवसर का उपयोग उस बड़े मुद्दे पर चिंतन करने के लिए करना चाहता हूं, कि विदेशी मामलों, रणनीति, युद्ध पर हमारी बहुत सारी सोच आम तौर पर पश्चिमी दुनिया से बाहर आती है और महाभारत, रामायण के हमारे पढ़ने से इतना बाहर नहीं है जिसे आप अपनी पुस्तक में बार बार लिखे हैं। और वह कुछ है जो आंख खोलने वाला है। आपने इतनी अच्छी बात एक जगह पर कैसे ले आयें आपकी इंडियन वे अत्यंत प्रसंसनीय है। और यह आपके लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है डॉ जयशंकर?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
खैर, आप जानते है, यह कुछ है जो मेरा मतलब है, मैंने इसे पुस्तक में लिखा है, लेकिन यह कुछ है जो मैं एक लंबे समय के लिए आंशिक रूप से के सोचा था क्योंकि मेरे लिए, महाभारत हमेशा शायद रणनीतिक पुस्तक का सबसे बड़ा प्रकार रहा है। मेरा मतलब है, शायद ही विश्व में वर्तमान दौर में घटित कोई भी घटना होगी जिसकी तुलना आप महाभारत से नहीं कर सकते। आप जानते हैं, शायद अपनी प्रारंभिक किशोरावस्था से ही इसे मैंने समझा है। लेकिन मैंने उसे अब लिखा। वास्तव में, आप जानते हैं, दिलचस्प बात यह है कि एक व्यक्ति जिसके साथ मैंने बहुत चर्चा की थी वह सुषमा स्वराज थी और मैंने उस समय इसे लिखा था, आंशिक रूप से, क्योंकि मुझे लगा कि हम जानते हैं, भारत बदल गया है, यदि आप आज देखें, तो आप जानते हैं, आप पर हमारे व्यक्तित्व पर हमारी राजनीति वास्तव में कितनी गहरी आकांक्षाओं को जानते हैं, व्यापक रूप से यह हमारी प्रणाली में जड़ें जमा रखा है।

मुझे लगता है कि हम एक बहुत व्यापक, बहुत अधिक विविध, हमारे देश और ऐसे लोगों के बहुत अधिक सच्ची प्रतिबिंब बन गए हैं, मुझे लगा कि आसानी से एक तर्क है, जो मेरे अंदर लंबे समय से संबंधित था, कृपया अपने इतिहास को देखिए, अपनी संस्कृति, हमारी अपनी परंपरा। वहां इतना कुछ है समझने के लिए, हमारे कार्यों की प्रकृति ही यही है की आपको अनूरुप स्थिति को ढूँढना पड़ता है। इसलिए विदेश हो या भारत मे ऐसा ही है। ठीक है, इसे तुरंत ही ग्रहण करना चाहिए।

राहुल कंवल: तो, आपने हाल ही में किसी को क्या बताया और वह कौन है, और वह भारत में कौन है? देखते है, आप आगे क्या करते हैं। आप इसके लिए करें।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: यह एक्स और वाई है, इसलिए, आप जानते हैं, कि है, कि आप क्या करते हैं। और वह उसी कार्य का हिस्सा है।

शिव अरूर: मंत्री जी। अब लगभग समय समाप्त होने वाला है। लेकिन मैं निश्चित रूप से आपसे पूछना चाहता था, आप जानते हैं, यह एक ऐसी सरकार है जो बहुत अधिक गति के लिए प्रतिष्ठित है। शायद ही कोई छुट्टी लेता है, प्रधानमंत्री भी। आप पढ़ने और लिखने के अलावा इस सरकार की सबसे हॉट सीटों में से एक पर हैं। मैं जानता हूं कि आप बहुत पढ़ते हैं। मैं जानता हूं कि आप उस से अलग बहुत कुछ लिखते हैं। क्या आपको बहुत सारी छुट्टी मिलती हैं? आप कैसे तनाव को कम करते हैं? हम जानना चाहते हैं?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर:
छुट्टी, आपका मतलब दैनिक छुट्टी से है?

शिव अरूण: 1-2 दिन की छुट्टी और आराम करना।

राहुल कंवल: आप क्या बात कर रहें है शिव। क्या है ये?

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: नहीं, देखिए, मुझे लगता है कि आज के वर्तमान दौर मे विश्व मे क्या कुछ घटित हो रहा है। भले ही किसी ने आपको छुट्टी दे दिया हो, आप जानते है छुट्टी ले नहीं सकते? क्योंकि आपको कुछ न कुछ कार्य होगा करने के लिए, आप इसमे शामिल थे। इसलिए, मेरा मतलब है कि मैं वे सभी चीजें करता हूं जो सामान्य लोग करते हैं। आप जानते है, मेरा मतलब है, मैं सुबह टहलने जाता हूं। मैं कुछ खेलता हूं।

राहुल कंवल: वह आपको स्क्वैश में शिव हरा देंगे। वह अब भी स्क्वैश में आपको हरा देंगे।

राहुल कंवल: एक अंतिम प्रश्न सर। हमने इंडियन वे की बात की। महाभारत, रामायण। मैं आपको चीनी सैन्य गतिविधियों और रणनीति पर ले जाना चाहता हूं और मैं आपसे जानने के लिए बहुत उत्सुक हूं क्योंकि यदि आप चीनी ग्रंथों और रणनीति को पढ़ते हैं, तो वे युद्धरत राज्यों की बात करते हैं दो परिदृश्यों की बात करते हैं, एक शक्ति है, जो बढ़ रही है, और मैंने वर्तमान दौर में चीन का उल्लेख किया, जिसका मानना है कि यह समय आ गया है इसलिए पड़ोसी देशों पर दबाव बनाना शुरू हो गया है। दूसरा सबसे घातक गलती है जो कोई भी शक्ति कर सकता है। चीन के उदय में, यह इसके तर्कों पर विश्वास करता है, जो वास्तव में जितनी जल्दी है, जो इसे घातक त्रुटियां करने की ओर ले जाता है, और मैं अब आपका ध्यान आकर्षित करता हूं, चीन के बीच क्या हो रहा है जैसे एलएसी के साथ भारत, जो आधुनिक संदर्भ में अन्य राष्ट्रों के बीच संतुलन का मुकाबला करता है, भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान बढ़ती महाशक्ति के खिलाफ एक प्रतिसंतुलन बल के रूप में एक साथ आ रहा है। मैं चाहता हूं कि आप अब भविष्य के बारे में बताए की अभी से 30, 40 वर्षों बाद चीन युद्धरत देशों जैसी घातक गलती कर सकता है, ये सोचकर की समय आ गया है जबकि समय अभी आया नहीं होता।

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर: आप केवल 30-40 वर्षों के परिदृश्य को देख रहें हैं, हमारे यहाँ बड़ी आकांक्षा है तथा साफ रूप से यह कहना चाहता हूँ की एक बड़ा अस्तित्व है बजाय इसके की हमें किसी के विरुद्ध प्रतिसंतुलन करना पड़े। हमारा अपना हित है और कैसे मैं इसे आगे बढ़ाना है जिसके कारण हमे निर्णय लेने होंगे जो की दुसरे के साथ मिलकर ही हो सकता है। कुछ मामलों में ऐसा नहीं हो सकता है। तो आपके प्रश्न में निहित था, आप प्रतिसंतुलन की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं? मुझे नहीं लगता कि ऐसा है। मुझे लगता है कि भारत, भारत का उदय हुआ है। ठीक। हम कर रहे हैं, मैं अभी भी भारत के उदय के प्रारंभिक दौर पर बात कर रहन हूँ, लेकिन भारत के उदय एक अलग गतिशील और एक अलग प्रकृति के साथ एक अलग गति से हो सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि अभी से 30, 40 और 50 वर्षों बाद पीछे मुरकर देखेंगे की इन लोगों ने भारत के उदय में अभूतपूर्व योगदान दिया। तो हमलोग स्वयं को उस प्रतिसंतुलन के स्तर पर नीचे नहीं ले जा सकते। चीन के संदर्भ में, आप जानते हैं चीन ने ऐतिहासिक रूप से क्या किया है। मेरा मतलब है, मुझे लगता है कि यह वास्तव में एक है, मैं उदाहरण है, जो बहुत अधिक उद्धृत है, जर्मनी की है, आप जानते है, आप एक काल्पनिक ऐतिहासिक प्रश्न पूछ रहे थे, क्या जर्मनी में विल्ह्व्ल्म को प्रथम विश्व युद्ध अलग ढंग से भाग लेना चाहिए था। जर्मनी अपने समय की सबसे मजबूत शक्ति थी, आप जानते है, उनके व्यवहार से अंय देशों पूरी तरह से एकजुट हो गए। इसलिए कई उदाहरण हैं। ऐसे देशों के उदाहरण भी हैं जो वृद्धि के प्रबंधन में बहुत सफल रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका एक है, तो आप इतिहास में जैसा चाहे वैसा उदाहरण ढूंढ सकते है। तो अंततः राजनीतिक विज्ञान निर्धारित करता है की इतिहास का कौन सा हिस्सा आपको अच्छा लगा। इसलिए मैं उस पर थोरा सतर्क होकर जवाब दूँगा।

राहुल कंवल: बहुत कम ही ऐसा हुआ है की विदेश मंत्री के रूप में कार्य करने वाले, जिनके साथ आप चीनी सैंय पाठ या युद्धरत राज्यों या यहां तक कि जर्मन सैंय इतिहास के बारे में एक गहरी बातचीत कर सकते है और यह बहुत ही शानदार है। और यह आप जानते हैं, भारतीयों के रूप में हम सभी के लिए वास्तव में अच्छा है कि क्या हम सहमत है या आपने जो किया उनमे से कुछ से असहमत हैं। लेकिन भारत के विदेशी मामलों के पहिए में आप निपुण है, पहली बार आप वास्तविक जीवन के बारे में भी बताए और इंडिया टुडे कॉन्क्लेव मे, आपके मन में क्या चल रहा है और कैसे आप भारत की विदेश नीति कार्यान्वित कर रहें है, हमने गहराई से जानने की कोशिश की, सराहना करते है आपने यहाँ आने के लिए समय निकाला, आपने कुछ बहुत तीव्र अंतर्दृष्टि साझा की। क्या हम भारत के विदेश मंत्री के लिए तालियों की गड़गड़ाहट के साथ बहुत गर्मजोशी से स्वागत कर सकते हैं। डॉ सुब्रमण्यन जयशंकर। आपको 45 मिनट सुनना हम सब के लिए सौभाग्य की बात है। धन्यवाद सर।

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