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विदेश मंत्री की अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी फोरम (यूएसआईएसपीएफ) वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन में टिप्पणी एवं वार्तालाप (सितंबर 30, 2021)

अक्तूबर 01, 2021

श्री डाउ आर विल्सन: धन्यवाद, जैसा कि मैंने कहा कि मैं डाउ विल्सन हूँ सीईओ वेरियन मेडिकल सिस्टम का, हम हाल ही मे एकजुट हुए हैं, हमें सीमेंस हेल्थलाइनर द्वारा अधिग्रहण किया गया है। कैंसर से परे, सीमेंस हेल्थलाइनर द्वारा सक्रिय रूप से और बहुत तेजी से भारत सरकार को महत्वपूर्ण अस्पताल की आपूर्ति, दवाओं और भोजन को अच्छी तरह से उपलब्ध कराकर कोविड-19 से लड़ने के प्रयास के दौरान मदद किया गया। हमने देश भर में सात ऑक्सीजन संयंत्रों का निर्माण किया और 500 कॉन्सेंट्रेटर दान स्वरूप प्रदान किया। आज सुबह मुझे विदेश मंत्री डॉ जयशंकर से मिलने में अत्यंत प्रसन्नता हुई। हममें से कई ने अपने सम्मानित कार्यकाल के दौरान माननीय मंत्री जी के साथ कार्य किया है, चाहे वह अमेरिका में राजदूत के रूप में हो, अथवा विदेश सचिव के रूप में। डॉ जयशंकर ने टाटा संस ग्लोबल कॉर्पोरेट अफेयर्स टीम का नेतृत्व करने से पहले भारतीय विदेश सेवा में अपना कार्यकाल बिताया। जनसेवा के लिए उनका विचार इतना सशक्त था कि वह सरकार में लौट आए जैसा कि आप जानते हैं, 2019 में विदेश मंत्री के रूप में। यह निश्चित रूप से विदेश मंत्रालय के लिए एक रोमांचक समय है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, पिछले सप्ताह, क्वाड वैश्विक महामारी के बीच में एक ऐतिहासिक बैठक की, महामारी तैयारी प्रत्येक मुद्दा पर चर्चा करने के लिए, लचीला आपूर्ति श्रृंखला के लिए, 5जी बुनियादी ढांचे की तैनाती तथा और भी बहुत कुछ। जैसा कि हमें इस सप्ताह ज्ञात हुआ, भारत और अमेरिका सम्बन्धों में जागरूकता बढ़ी है, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच के संबंध से अच्छे शायद ही कोई संबंध है, वास्तव में, हमारी कई बातचीत केवल इसी बात पर केन्द्रित है की हम कैसे अपने सम्बन्धों को व्यापार, निवेश तथा द्विपक्षीय सहायता से और अधिक बढ़ा सकते है। जबकि कोविड-19 अभी विचार के सबसे उचें स्तर पर विद्यमान है, हम सभी सोच रहें हैं की हमारा कल कैसा होगा। हम अपनी अर्थव्यवस्थाओं को इस वैश्विक महामारी के माध्यम से निजात पाने के लिए कैसे सहायता कर सकते हैं? हम अपने संबंधित देशों में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को कैसे मजबूत कर सकते हैं ताकि हम और अधिक लोगों के लिए गुणवत्ता देखभाल ला सकें? हम अपनी दोनों अर्थव्यवस्थाओं का सहायता करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं के लचीलेपन को कैसे सुनिश्चित और मजबूत कर सकते हैं? और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका-भारत संबंधों का भविष्य कैसा दिखता है? इस पर टिप्पणी सुनने के लिए तत्पर हैं, डॉ जयशंकर, हमारे साथ जुड़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आपको फिर से देखने में प्रसन्नता हो रही है। यह समय आपका है, हम सभी आपको सुनने के लिए तत्पर है की आप क्या कहना चाहते है।

डॉ एस जयशंकर:
धन्यवाद। नमस्कार। मुझे वास्तव में आप सभी के साथ यहाँ शामिल होकर प्रशन्नता हो रही। मै आपके साथ हूँ, इस आयोजन का स्वागत करता हूँ, भले ही यह वर्चुअल प्रारूप मे हो रहा हो। मुझे लगता है कि यह एक विशेष रूप से अच्छे समय के के लिए हमारे सम्बन्धों पर चर्चा है। जाहिर है, सबसे स्पष्ट बात यह है कि हम वाशिंगटन डीसी की यात्रा से अभी आए हैं, प्रधानमंत्री वहां मौजूद थे। वास्तव में, उनकी पहली यात्रा, राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति बिडेन के साथ व्यक्तिगत रूप से बैठक थी और यह अपने आप में महत्वपूर्ण है। लेकिन इससे भी अधिक, व्यक्तिगत रूप से शीर्ष नेताओं के शिखर सम्मेलन में क्वाड भी था, इसलिए वह भी बहुत ही उल्लेखनीय था। और जैसा कि आप सभी जानते हैं, यह एक ऐसा समय है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा उच्च स्तरीय बैठक करती है। और इसलिए आप जानते हैं, परंपरागत रूप से, सितंबर के अंत में एक वैश्विक सर्वेक्षण का समय होता है। तो क्या यह द्विपक्षीय है, क्या वह एक तरह का समूह है, जो बहुपक्षीय प्रयास को मंजूरी दे रहा है अथवा एक बड़ा वैश्विक आकलन है, जैसा कि मैंने कहा, यह हमारे संबंधों पर चर्चा करने के लिए एक बहुत ही अच्छा समय है। अब, उस सब से एक ही संदेश आता है, वह संदेश यह होगा कि बड़ी तस्वीर, समकालीन मुद्दों के संदर्भ में, और हम उनसे कैसे निपटेंगे? हम उन्हें कैसे जवाब देंगे? मुझे लगता है कि आज भारत और अमेरिका के बीच संबंध अत्यंत अनूकूल। और मेरे लिए, यह बहुत ही प्रभावशाली रहा कि इस द्विपक्षीय यात्रा का परिणामी दस्तावेज को वास्तव में जिसे भारत और अमेरिका की साझेदारी कहा जाता है, यह वैश्विक भलाई के लिए साझेदारी है। और मुझे यकीन है कि आप में से कई सहमत होंगे कि यह एक वाक्यांश है जिसे हम पांच वर्ष पहले प्रयोग नहीं करते थे। तो यह आपको वाकई पता होगा कि संबंध कहां तक आया है। अब आज रिश्ता कहां है? मुझे लगता है कि यह पिछले 15 वर्षों में वृद्धि हुई है, बहुत तेजी से प्रगति जारी है। व्यापार लगभग $150 बिलियन डॉलर स्तर तक पहुँच गया है, जाहिर है, पिछले वर्ष यह $120 तक नीचे आ गया था। लेकिन मैं इस वर्ष विश्वास कर रहा हूं, वास्तव में, यह इससे भी अधिक हो जाएगा। निवेश, यह काफी पेचिदा है, आपको पता है, आम तौर पर अच्छे आंकड़े नहीं मिलते है और अनुमार्गण के कारण लोगों में भ्रम फैलता है। लेकिन तथ्य यह है कि पिछले वर्ष हमें 82 अरब डॉलर में अब तक का सबसे अधिक विदेशी निवेश मिला और इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका का था, मुझे लगता है कि यह हमें कुछ दर्शा रहा है। आधिकारिक तौर पर, बेशक, निवेश में, जो हमें अमेरिका सेम प्राप्त हुए है वह रिकॉर्ड 62 अरब डॉलर का है, लेकिन मेरा मतलब है कि उससे भी बहुत अधिक होगा।

रक्षा क्षेत्र मे भी निरंतर प्रगति हो रही है। रक्षा व्यापार के लिहाज से हमने हाल ही में एमएच 60आर हेलीकॉप्टरों, हारपून मिसाइलों का अधिग्रहण किया था। लेकिन व्यापार से अधिक, मुझे लगता है कि नीतिगत आदान-प्रदान बहुत प्रभावी रहा है। हमारी सेनाओं के बीच अभ्यास जारी है, इससे सहयोग के रूपरेखा मे वास्तव में तेजी से अधिक प्रभावकारी होती है और जाहिर है और अधिक अवसर प्रदान करता है। और इसके अलावा, यदि आप देखेंगे की क्या वास्तव में हमारे संबंध की परिभाषित विशेषता है, जो लोगों से लोगों के बीच संबंधों पर है, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, नवाचार, संपर्क पर आधारित है, हमारे यहाँ से छात्रों की आवाजाही होती है, जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि इन सभी के कारण, कोविड के बावजूद वास्तव में प्रगति हुई है।

अब, दिलचस्प बात यह है कि वास्तव में कोविड ने हमारे संबंध को मजबूत करने में मदद की है। जब हम इस ग्रीष्म में दूसरी लहर के चपेट मे थे, जो असाधारण रूप से गंभीर था। यहां तक कि अमेरिका उन देशों में से एक था जो वास्तव में हमारे लिए पहले कदम बढ़ाया। मुझे लगता है, डो विल्सन ने बात की थी की उन्होने ने क्या किया था। लेकिन यह सही होगा की इस अवसर पर मेरे लिए इस मंच का उपयोग करके अमेरिका आम तौर पर, अमेरिकी व्यापार, अमेरिका यूएसआईएसपीएफ, वास्तव में इस अवसर पर उनलोगों ने जो किया उसका सराहना करने के लिए यह एक सही मंच है। अब, जब मैंने संबंधों के बारे में बात की है, तो मुझे लगता है कि यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका के तरफ से, इस समय भारत में हुए परिवर्तनों की अच्छी सराहना हो रही है, क्योंकि इससे हम वास्तव में भविष्य की संभावनाओं को और अधिक रचनात्मक तरीके से देख सकेंगे। परिवर्तन, ज़ाहिर है, कोविड से ही हो रही है, हम सब इस परीक्षण के माध्यम से गुजरे है, कैसे हम इस कष्ट से बाहर आए, हम सबकी अपनी एक व्यक्तिगत कहानी है। लेकिन तथ्य यह है कि इसमें जहां हमारे पास 4 लाख से अधिक केस दैनिक आधार पर आते थे। आज, यह संख्या बहुत छोटी हो गई हैं, चुनौती का एक बड़ा हिस्सा हमारे पीछे है, जिसका बिल्कुल मतलब यह नहीं है, कि हम अपने प्रयासों को कम कर दें, और शायद सबसे प्रभावी प्रतिक्रिया टीकाकरण के मामले में है। आज हम दैनिक आधार पर 1 करोड़ से अधिक लोगों को टीका लगा रहे हैं। एक दिन ऐसा भी आया है, जब हम 2.5 करोड़ लोगों को टीका लगा पाएँ हैं। तो तथ्य यह है कि कोविड प्रतिक्रिया, न सिर्फ हमारे बीच, बल्कि क्वाड सम्मेलन के दौरान हमने इस बात पर चर्चा किया की हम कोविड प्रतिक्रिया मे विश्व को क्या मदद कर रहें हैं, जैसा की मैंने कहा साझेदारी वैश्विक भलाई के लिए।

दूसरी उल्लेखनीय बात यह रही है कि हमारी प्रतिक्रियाओं में हम वास्तव में राजकोषीय रूप से बहुत प्रभावशाली रहे हैं, हमारी बहुत सी प्रतिक्रिया सही समय पर, सही मुद्दों पर सही तरीके से सही स्थान पर सही स्तर पर समर्थन की रही है। इसलिए, विकास की चुनौतियों और कोविड की चुनौतियों का जवाब देते हुए, वास्तव में, हमने इसे इस तरीके से कार्य किया है जिसमें बहुत अधिक जिम्मेदारी के साथ, मैं कहूंगा कि कोविड के बाद की पुनः प्राप्ति की मध्यम अवधि की रणनीति। और इसका लाभांश जाहीर है अब दिख रहा है। जब कोविड से लड़ाई जारी थी, तब भी आपके पास वास्तव में एक ऐसा देश था था एक ऐसी सरकार थी जो हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठी थी। फिर, बड़े सुधारों को इस चक्र के शुरू में ही देखा गया। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन सुधार जिसने वास्तव में विनिर्माण को बढ़ावा दिया है। श्रम न्यायालय में सुधार, कृषि सुधारों ने छोटे किसानों को न्यायपूर्ण समझौता दिया है और वास्तव में अधिक कृषि व्यवसायों को प्रोत्साहित कर रहा है, शिक्षा सुधार, इनमें से कुछ, यहां तक कि राष्ट्रीय परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम, मुझे लगता है कि भारत में जो कुछ हुआ है उसकी ये बहुत उल्लेखनीय विशेषताएं हैं और मुझे लगता है कि अमेरिकी व्यापार जगत को वास्तव में सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। और जिसके परिणामस्वरूप आज हमारे पास परिणाम के रूप में सामने है, मेरे विचार से, काफी मजबूत सुधार जारी है, बहुत विश्वास है कि हम अपने 9.5% विकास लक्ष्य को पूरा करेंगे। व्यापार निर्यात वास्तव में बहुत, बहुत मजबूत रहा है, अच्छी तरह से, वह भी एक अच्छा संकेत है और यह हमारी अधिक प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है।

अब, जैसा कि हम देखते हैं, अपने अमेरिकी भागीदारों के साथ बैठक के दौरान विश्व में मुझे लगता है कि तीन बड़े क्षेत्रीय मुद्दे हैं जो उस चर्चा में महत्वपूर्ण हैं। एक, ज़ाहिर है, दक्षिण एशिया में ही है, जहां ऐतिहासिक रूपसे हमने हमेशा एक साथ कार्य नहीं किया है, मुझे लगता है कि इसे बदलने की शुरुआत है और वह हम दोनों के लिए अच्छा है । दूसरा है हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और उस क्षेत्र की चुनौतियां, मुझे लगता है, काफी अनूठी हैं, वे अभी भी बाहर आ रहे हैं। कई मायनों में यह वह जगह है जहां वैश्विक भलाई के लिए प्रतिबद्धता का परीक्षण किया जाएगा। और यह इसके लिए कई समाधानों में से एक है, ज़ाहिर है, क्वाड प्लेटफॉर्म होगा जिस पर हम दोनों एक साथ काम करने के लिए सहमत हुए हैं। और अफगानिस्तान में जो घटनाक्रम हुआ है, वह हमारी सुरक्षा, आपकी सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए उनका क्या मतलब है। और अंत में, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, मैं संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के लिए यहां हूं और यह वैश्विक सर्वेक्षण का समय है। मैं इस बात को रेखांकित करके अपनी बात समाप्त करूंगा कि संयुक्त राष्ट्र में, सामान्य रूप से बहुपक्षीय क्षेत्र में, बहुत अधिक सहयोग है, और कई मुद्दों पर समान विचार के कई मुद्दे पहले से कहीं अधिक है। मै यह सुझाव नहीं दे रहा की हम प्रत्येक मुद्दे पर सहमत हैं। मुझे लगता है कि हम विभिन्न ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ विभिन्न स्थानों से आते हैं, लेकिन निश्चित रूप से, इसके कारण भी बहुत सकारात्मक रूप से विकसित हुआ है। तो मोटे तौर पर, मैं आप सभी के लिए रिश्ते की एक बहुत ही सकारात्मक तस्वीर पेश करना चाहूँगा। हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं; मुझे लगता है कि वाशिंगटन में चर्चाओं ने कई और नई संभावनाएं खोल दी हैं। उन्होंने सिर्फ हमारे सम्बन्धों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दोस्तों और साझेदारों के साथ कैसे काम करते हैं, इसके लिए भी एक दिशा का संकेत दिया है। तो शायद, ये राजदूत विस्नोर के लिए पर्याप्त उद्घाटन टिप्पणी के रूप में मुझसे आगे की प्रश्नोत्तरी में सहायक हो सकता है। बहुत-बहुत धन्यवाद।

श्री मलाकी न्यूजेंट: धन्यवाद, मंत्री जी। देवियों और सज्जनों, अब मैं यूएसआईएसपीएफ बोर्ड के सदस्य राजदूत फ्रैंक विस्नोर को डॉ जयशंकर के साथ बातचीत को नियंत्रित करने के लिए हमारे साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।

राजदूत फ्रैंक जी विस्नेर: मंत्री जी पुनः स्वागत है। मुझे प्रशन्नता है कि आप हमारे साथ होने के लिए समय निकालने में सक्षम हैं और जैसा कि आपने सिर्फ अमेरिकी भारत संबंधों का एक व्यापक मंच दृष्टिकोण निर्धारित किया है। लेकिन मैं आपसे पूछने जा रहा हूं, आप उस से कदम वापस भी ले सकते है। हम देख रहे है विश्व काफी बुनियादी परिवर्तन के माध्यम से गुजर रहा है, सचमुच प्रत्येक देश प्रभावित हो रहे हैं, पिछले कई महीनों, जैसा कि आप ने कहा, वास्तव में कोलाहल का रहा है। अफगानिस्तान, वहां सरकार के पतन, घटनाओं और दक्षिण चीन सागर में तनाव, क्वैड, ओकुस समझौते और यूरोप के साथ विवादों, अमेरिकी मोर्चे, कई अन्य घटना, संयुक्त राष्ट्रसंघ महासम्मेलन, आपने अंकित किया होगा। तो जैसा कि भारत अगर बैठकर सोंचता है तो आज विश्व में आप जिस स्तर पर हैं, उसी तरह भारत के हितों के मामले में आपका आकलन क्या है? भारत परिवर्तन के इस दौर को कैसे देखता है? और रणनीतिक स्तर पर, आप अपनी स्थिति कहाँ पाते हैं?

डॉ एस जयशंकर: खैर, सबसे पहले, फ्रैंक, आप को देख कर अच्छा लगा, और मुझे आशा है कि आप अच्छे होंगे। तो मै इस पर प्रतिक्रिया दूंगा। मुझे लगता है, जैसा आपने कहा, हमें आराम से बैठकर सोचने की विलासिता नहीं है, और मुझे लगता है कि हमें अधिक से अधिक कष्ट के साथ आगे बढ्ने की आवश्यकता है। यह एक बहुत ही कोलाहल पूर्ण, अत्यंत गतिशील वैश्विक स्थिति है। तो इसे आकार देना महत्वपूर्ण है, इसेमें भाग लेना महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है की यह हमारे लिए सही हो और बाकी विश्व के लिए भी। अब आपने जो चुनौतियां रखी हैं, उनमें से कई वास्तव में हमारी प्रमुख व्यस्तताएं हैं। मैं समळाता हूं कि जब हम अफगानिस्तान और इस क्षेत्र में जो कुछ हुआ उसे देखते हैं, तो मेरे विचार से हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण परिणाम होंगे और हम इस क्षेत्र के इतने निकट हैं। तो वहां चिंताओं और मुद्दों का एक समुच्य है जैसा वहाँ हो रहा है। जब हम दूसरी ओर देखते हैं, भारत के पूर्व की ओर, और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की ओर वास्तव में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है की जीवन व्यापक सिद्धांतों और अवधारणाओं के आधार पर चलता है, जिसके साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय सहज है, आप जानते हैं, ओवरफ्लाइट और नेविगेशन की स्वतंत्रता के कानून के शासन की अवधारणाएं हैं, विवादों का शांतिपूर्ण समाधान या क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना। मेरा मतलब है, ये सब मुद्दे वहाँ से बाहर आ रहें हैं। मैं अपने क्षेत्र के बारे मे बात कर रहा हूँ। और जब मैं अपने क्षेत्र को देखता हूं, तो मुझे लगता है कि मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हमारी समृद्धि और विकास इस क्षेत्र के लिए एक बड़ा उठने वाला ज्वार बन जाए, और इस क्षेत्र में जो विकल्प बनाए जाते हैं, वे न सिर्फ हमारे द्वारा, बल्कि हमारे पड़ोसी देशों द्वारा भी किए जाते हैं। हमारे विकल्प जो बहुत अधिक बहुध्रुवीय, बहुत अधिक लोकतांत्रिक, बहुत अधिक संतुलित वैश्विक स्थिति का समर्थन कर रहे हैं। तो मेरा विश्वास कीजिये, वहां बहुत कुछ करना है और हम उस पर कार्य कर रहें हैं।

राजदूत फ्रैंक जी विस्नेर: माननीय मंत्री जी, स्पष्ट रूप से, जैसा कि आपने अपनी टिप्पणियों में संकेत दिया है, आपके अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के मूल में, अमेरिकी संबंध निहित है। तो मै उस पर वापस आता हूँ और अधिक बात करता हूँ। आपने पिछले कुछ वर्षों में, बहुध्रुवीयता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया है। मुझे एक परिप्रेक्ष्य दें, अपने दर्शकों के लिए वर्तमान में कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध और बहुध्रुवीयता के लिए एक प्रतिबद्धता भारतीय विदेश नीति की दृष्टि में परिलक्षित हो रहें हैं।

डॉ एस जयशंकर: मुझे लगता है कि फ्रैंक अगर हम हम इतिहास में जाकर देखें, हम दोनों ने एक साथ ही हमारे पेशेवर जीवन में शीत युद्ध और ध्रुवीकरण को देखने और समझने के साथ शुरू किया है, लेकि जैसे हमारा देश अपने प्रसार को और बढ़ाना चाह रहें हैं और अपने विकल्पों का विस्तार करने की कोशिश कर रहें हैं। 90 के दशक में, हम एक विश्व में चले गए जहां संयुक्त राज्य अमेरिका का बहुत अधिक प्रभुत्व था। अब आज, हम जो देख रहे हैं वह वास्तव में पुनर्संतुलन है। मेरा मतलब है, अगर आप देखें, उदाहरण के लिए, शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं की सूची पिछले 50 वर्षों की सूची से काफी अलग है। अब, यदि आर्थिक सूची अलग है, तो किसी समय, राजनीतिक रणनीतिक सूची भी अलग होगी और यही हो रहा है। और यहां जाहिर है, चीन का उदय एक सबसे बड़ा बदलाव रहा है। लेकिन आप जानते हैं, भारत का विकास भी उस परिवर्तन का हिस्सा है। अब, जब हम बहुध्रुवीय विश्व की बात करते हैं, तो मेरा तात्पर्य है कि आज हम यह सोचते हैं कि आज के बड़े मुद्दों का निर्णय एक द्वारा नहीं किया जा सकता है अथवा मैं दो शक्तियों पर जोर देता हूं, मेरे विचार से इसे एक बड़े समूह की आवश्यकता है, समूह निर्णय लें, शेष विश्व द्वारा इसे बाध्यकारी होना चाहिए। तो हमें आवश्यकता है, मेरा मतलब है, एक और प्रबंधन बोर्ड की आवश्यकता है जिसमे हमारे ग्रह के अधिक से अधिक शेयरधारकों का अत्यंत अधिक प्रतिनिध्त्व हो। और इसी की हम वकालत करते हैं और मुझे लगता है कि ऐसा होने लगा है।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर: और वह, ज़ाहिर है, अमेरिका भारत के संबंधों को अलग नहीं करता है। यह केवल इसका एक हिस्सा है ।

डॉ एस जयशंकर: इसके विपरीत, मेरा तर्क होगा मेरा मतलब है की, हमें प्रमुख शेयरधारकों के रूप में कहते हैं, उन्हे एक दूसरे के साथ मिलकर चलने की आवश्यकता है। और हम दो ऐसे राष्ट्र हैं जो एक दूसरे के साथ बहुत सहज है और अधिक से अधिक सहज होते जा रहें है। और बहुत स्पष्ट रूप से, मुझे यह भी जोड़ना होगा कि हम अमेरका के तरफ से एक बड़ा परिवर्तन देखते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से एक बहुत अधिक इच्छा अन्य भागीदारों के साथ काम करने के लिए, जरूरी नहीं कि ऐसी शर्तों पर हो जिसे अमेरिका द्वार एकतरफा रूप से लाया गया हो। मुझे लगता है कि अमेरिका भी गठबंधनों और संधि आधारित सम्बन्धों के उस दौर से परे हो रहा है। यह कहीं अधिक लचीला है, मैं कहूंगा विविध विभेदित विश्व वहां से बाहर आ रहा है और मुझे लगता है कि अमेरिकी नीति निर्माताओं को समायोजित करने के लिए शुरुआत कर रहे है और उस में से कुछ आप क्वाड की तरह व्यवस्था में देखेंगे ।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर: यह संयुक्त राज्य अमेरिका के बारे में एक बहुत ही उत्साहजनक बयान है और इसके जड़ मे जाकर लगता है की आप सही हैं। लेकिन हमारे संबंधों में एक बड़ा बदलाव, भारत के साथ मेरे दशकों के अनुभव में भारतीय कार्रवाई, ऑस्ट्रेलियाई, जापानी, अमेरिकी कार्रवाई को एक साथ लाने के लिए एक ढांचे के रूप में क्वाड का उद्भव रहा है, मुझे आश्चर्य होगा यदि आप हम सभी के लिए रुक सकते हैं और इसका वर्णन कर सकते हैं, तो भारत के लिए क्वाड का क्या मतलब है? इसका उद्देश्य क्या है? आप इसे पूरा करने के लिए क्या करना चाहते हैं?

डॉ एस जयशंकर: आप जानते हैं, मैं वास्तव में सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि क्वाड के अन्य तीन भागीदारों के तरफ से भी न्यायोचित रूप से इसपर चाहूँगा। देखिए, हम चार देश हैं, जो वास्तव में चार अलग-अलग कोनों पर स्थित हैं, यदि आप हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से हैं, जिनके पास बहुत अधिक साझा हित हैं, जिनके पास अत्यधिक आम मुद्दे है, मैं कहूंगा, मूल्यों और विश्वासों, जो इन सभी के परिणामस्वरूप पूरे क्षेत्र की तात्कालिक चिंताओं से परे एक साथ कार्य करने पर उच्च स्तर का सहयोग है। अब, आम तौर पर, आप जानते हैं, लोग जैसे मुद्दों को देखते हैं, आप जानते हैं, नौवहन सुरक्षा, अभ्यास, शायद कनेक्टिविटी, हद्र, मेरा मतलब है, ये इस पर शुरुआती मुद्दों में से कुछ थे। लेकिन मैं तर्क दूंगा कि, विशेष रूप से इस वर्ष, जैसा कि सभी चार देशों ने क्वाड में अधिक ऊर्जा और रचनात्मकता का निवेश किया है, हम वास्तव में नए मुद्दों की एक श्रृंखला देख रहे हैं, जो सामने आ रहें हैं। यदि आप इन नेताओं की बैठक को देखें, तो एक बड़ा अधिकार क्वाड टीका पहल था, जहां अमेरिका वास्तव में प्रौद्योगिकी और कुछ हद तक संसाधन दे रहा है। भारत वास्तव में वैक्सीन का उत्पादन केंद्र है, जापान वैक्सीन की खरीद को धन सहायता प्रदान कर रहा है, और ऑस्ट्रेलिया के टीके के वितरण के साथ बाहर मदद कर रहा है। तो आप जानते हैं की, हम प्रतिबद्ध है कि इस पहल से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में कम से कम एक अरब टीके प्रदान करना है। या मैं आपको एक और समझौता देता हूं, जिसे हमने तैयार किया जो प्रौद्योगिकी, डिजाइन, विकास, शासन और उपयोग के सिद्धांतों पर था, क्योंकि आज आप जानते हैं कि प्रौद्योगिकियों का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय विमर्श का बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। लेकिन वहां हम महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों पर चर्चा कर रहे हैं, हम स्वास्थ्य सुरक्षा पर चर्चा कर रहे हैं, हमने वास्तव में एक क्वाड फैलोशिप कार्यक्रम की घोषणा की। हमारे पास लचीला आपूर्ति श्रृंखला है, यह एक और मुद्दा है। इसलिए, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन भी एक मुद्दा था। तो, यह मुझे लगता है, और अधिक के साथ बाहर विस्तृत है, मुझे लगता है, और अधिक सहजता के अपने स्तर के साथ ये चार देश बैठक के दौरान विश्व को देखते हैं और वैश्विक चुनौतियों के बारे में बात करते हैं। मुझे लगता है कि क्वाड की सुंदरता ठीक है क्योंकि यह कठोर नहीं है, यह औपचारिक नहीं है, यह बहुत सहज है और आसानी से अग्रसर है। मेरा मतलब है, एजेंडा ऐसा तैयार किया गया है जो समय की आवश्यकताओं को देखते हुए रखा गया है। इसलिए, मैं वास्तव में इसे बहुत स्पष्ट रूप से देखता हूं, समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग के एक अत्यंत नए मॉडल के रूप में।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर: यह दिलचस्प है की आपने क्वाड के बारे में इतना अच्छा वर्णन किया, परंतु आपने वास्तव में चीन का उल्लेख नहीं किया है। मुझे लगता है कि क्वाड की एक व्यापक परिभाषा देने में आप बिल्कुल सही थे। मुझे भारत के नजरिए के बारे में कुछ जानकारी दें कि हम दोनों देश चीनी शक्ति के उदय के जटिल मुद्दे का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं। आपने उस के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाया है। हमने चीन को देखने और उसके साथ व्यवहार के तरीके अपनाए हैं। क्या हम एक ही राह पर हैं?

डॉ एस जयशंकर: मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं, फ्रैंक। क्वाड मुद्दों के लिए है, यह किसी के खिलाफ नहीं है। और वास्तव में, यदि आप क्वाड वक्तव्य को देखें, तो क्वाड वक्तव्य वास्तव में कहता है कि हम विधि द्वारा शासन के लिए हैं, हम ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता के लिए हैं, हम विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए हैं, हम लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हैं, हम राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता के लिए हैं। तो मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है नकारात्मक वक्तव्य है, जो वास्तव में हमारी नीति में नहीं है किसी तरह में इसमे परिलक्षित नहीं है, यह हमारी नीति है, यह किसी और की नीति है। और मुझे नहीं लगता कि हमें इसके लिए इसे कम करके आँकना चाहिए। मुझे लगता है कि हमें सकारात्मक होने की जरूरत है, हम सभी को भागीदारों के साथ सहयोग करने का मौलिक अधिकार है, मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है कि दूसरों को हमारे विकल्पों पर वीटो नहीं होना चाहिए। यह एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था का हिस्सा है। लेकिन आपके इस प्रश्न पर कि हम चीन के उदय को कैसे देखते हैं? मैं कहूंगा कि कई मायनों में वे द्विपक्षीय विकल्प हैं जो हम सभी को करने हैं, हम प्रत्येक का चीन के साथ बहुत महत्वपूर्ण संबंध है। और, कई मायनों में, चीन वर्तमान संदर्भ में इतना बड़ा भागीदार है और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इतना प्रमुख है, मुझे लगता है कि यह स्वाभाविक है कि ये संबंध काफी अद्वितीय हैं। तो हमारी समस्याएं क्या हैं, अथवा मेरे अवसर संयुक्त राज्य अमेरिका, अथवा ऑस्ट्रेलिया, अथवा जापान, अथवा इंडोनेशिया अथवा फ्रांस के लिए समान नहीं होंगे। यह प्रत्येक देशों के लिए अलग होगा। लेकिन तथ्य यह है कि मैं फिर से यह कहना चाहूंगा कि मेरा तात्पर्य है कि चीन के उदय का अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर बहुत मौलिक प्रभाव पड़ा है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में भाग लेने वाले लोगों के रूप में हमें इसका आकलन करने और अपने हित के आलोक में इसका उत्तर देने की आवश्यकता है। तो मुझे लगता है कि यह आवश्यक है की चीन की बात किए बिना चर्चा सामान्य नहीं होगी। आप जानते हैं, इसे किसी नकारात्मक विचार के रूप मे परिलक्षित होकर एकरूप नहीं होना चाहिए, मुझे नहीं लगता कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का एक पूरी तरह से प्राकृतिक विकास का उचित वर्णन है ।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर:
माननीय मंत्री जी, मैंने आपको सुना, और यह एक बहुत ही स्वागत योग्य संदेश और संकेत है। मैं आपको कुछ देर के लिए मै आपको अफगानिस्तान के मुद्दे पर लाना चाहूँगा जो आपके देश के पास घटित हो रहा है। यह अगस्त की घटना वास्तव में नाटकीय हैं। जैसा कि भारत को क्या लगता है कि अफगानिस्तान में क्या हुआ है, आप अपने राष्ट्र के सामने अब खतरे के स्तर का आकलन कैसे करते हैं? और आप इसका जवाब कैसे दे रहे हैं?

डॉ एस जयशंकर: खैर, मुझे लगता है, कुछ हद तक, फ्रैंक, हम सबके पास चिंता का स्तर समान होना चाहिए, इस आशय से न्याय अभी भी बाकी है। जब मैं चिंता के स्तर कहता हूं, तो आप जानते हैं, दोहा में तालिबान द्वारा की गई प्रतिबद्धताएं थीं, मेरा तात्पर्य है कि अमरीका जानता है कि मेरा सबसे अच्छा अर्थ है, हमें उसके विभिन्न पहलुओं पर विश्वास में नहीं लिया गया। इसलिए जो भी, चाहे दोहा में किए गए मसौदे में हों, मेरा तात्पर्य है कि इसका व्यापक अर्थ है। लेकिन इसके अलावा, आप जानते हैं कि क्या हम एक समावेशी सरकार देखने जा रहे हैं? क्या हम महिलाओं, बच्चों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति सम्मान देखने जा रहे हैं? सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम एक ऐसा अफगानिस्तान देखने जा रहे हैं जिसके धरती का उपयोग अन्य देशों तथा शेष विश्व के विरुद्ध आतंकवाद के लिए नहीं किया जाए, मेरे विचार से ये हमारी चिंताएं हैं। इन चिंताओं को वास्तव में अगस्त में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव द्वारा लाया गया था जिसे 2593 कहा जाता है। और मुझे लगता है कि कैसे उन चिंताओं को संबोधित कर रहे है आज अभी भी एक खुला प्रश्न है, यही वजह है कि मैंने कहा कि न्याय अभी भी बाकी है। तो अगर आप मुझसे पुछेंगे, क्या आप चिंतित हैं? जाहिर है हम स्पष्ट रूप से चिंतित हैं। यदि आप मुझसे पुछेंगे कि यह समय तीखे निष्कर्ष निकालने का है, तो मैं अपना समय लूंगा और कुछ हद तक विचार-विमर्श के साथ इसका अध्ययन करूंगा, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, इसमें से बहुत कुछ, जो भी समझौता रही है, इनमें से कई पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को नहीं पता हैं।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर:
माननीय मंत्री जी, क्या अमरीका और भारत अफगानिस्तान की ओर देखते हैं, क्या हम मान्यता, सहायता, आतंक के खतरे जैसे प्रश्नों के संबंध में ऐसे ही पृष्ठों पर समान रूप हैं? क्या संचार की हमारी लाइनें खुली हैं? क्या हम चीजों को इसी तरह से देखते हैं?

डॉ एस जयशंकर:
मुझे लगता है कि हम इसी तरह के पृष्ठों पर समान रूप से हैं, इनमें से कई मुद्दों पर एक सिद्धांत स्तर पर, निश्चित रूप से कहते हैं कि, आतंकवाद के लिए अफगान धरती मिट्टी का उपयोग कुछ ऐसा है जिसे हम दोनों बहुत दृढ़ता से महसूस करते हैं और जब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति बिडेन से मुलाकात की तो इस पर चर्चा हुई, यह परिणाम दस्तावेज में था। देखिए, ऐसे मुद्दे होंगे जिन पर हम और अधिक सहमत होंगे, ऐसे मुद्दे होंगे जिन पर हम कम सहमत होंगे। कुछ मामलों में हमारे अनुभव आपकी तुलना में अलग हैं। आप जानते हैं, हम उस क्षेत्र से स्वयं सीमा पार आतंकवाद के शिकार हुए हैं। और हम कहते हैं कि कई मायनों में आकार दिया गया है, अफगानिस्तान के कुछ पड़ोसियों के बारे में हमारे विचार के बारे में। तो अब, कितना, अमेरिका इन उद्देश्यों के साथ है, और मुझे लगता है कि यह अमेरिकियों पर निर्भर है।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर: माननीय मंत्री जी इसमे संयुक्त रूप से पाकिस्तान को भेजे जाने वाले संकेतों को शामिल होता हैं। आप उन संकेतों को कैसे विकसित होते हुए देखते हैं?

डॉ एस जयशंकर: मेरा मतलब है, हम स्पष्ट रूप से इस मामले पर आपके देश में काफी बहस देखा गया है और मैंने देखा है कि आपने इस विषय पर पिछले कुछ दिनों में काफी सजीव बहस किया। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, वहां कई पहलु है जिसे हम साझा कर रहे हैं, तथा वहां कई पहलु है जहां शायद हमारी स्थिति बिल्कुल एक जैसी नहीं हैं।

अम्ब. फ्रैंक जी विस्नर: माननीय मंत्री जी, हमारे पास केवल कुछ ही समय बचा है और मैं पूरे विश्व के सबसे परिणामी मुद्दों में से एक पर आपका विचार प्राप्त करना चाहता हूं और यह जलवायु परिवर्तन है। ग्लासगो सम्मेलन अब सामने है। क्या आप हमें एक तस्वीर दे सकते हैं कि भारत ग्लासगो में अपनी प्रतिबद्धताओं और उन नीतियों को कैसे आगे बढ़ाने का इरादा रखता है?

डॉ एस जयशंकर: देखिए, मुझे लगता है फ्रैंक कि अब जैसे की हम ग्लासगो के तरफ अग्रसर हैं और मै यहाँ पेरिस के अनुभवी के रूप में बात कर रहा हूँ, विश्व के बारे मे ऐसी ही अच्छी खबर नहीं है। सीमित मात्रा में अच्छी खबर में यह तथ्य शामिल है कि भारत एकमात्र जी-20 देश है जिसने अपनी पेरिस प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के मामले में, ऊर्जा दक्षता के संदर्भ में, उत्सर्जन की ऊर्जा की तीव्रता के संदर्भ में, वनीकरण, जैव विविधता, जल उपयोग के संदर्भ में भारी प्रगति हुई है। इसलिए मुझे लगता है कि हमारे पास एक ऐसा रिकॉर्ड है जो एक बहुत ही विश्वसनीय रिकॉर्ड है, जिसे हम ग्लासगो में ले जा रहे हैं और जाहिर है, हमारे पास अपनी दृष्टि और विचार हैं कि हमें क्या करना है। लेकिन काश मैं यही बाकी विश्व के बारे में कह पता क्योंकि मैं चाहता हूं कि आप इस पर सोचें। हमें धरती ग्रह के बचाव के साथ ग्लासगो में जाना चाहिए। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए की अमेरिका को बचाने के लिए संसाधन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जबकि धरती ग्रह को बचाने का पैकेज 100 अरब का है। इस पर सोचा जाना चाहिए 100 अरब का मतलब क्या है? 100 अरब की राशी उस राशी से कम ही है जो एनएफएल मीडिया अधिकारों से कमा रहा है और हम दावा करते हैं कि यह अस्तित्व का मुद्दा है। इसलिए मुझे लगता है कि विश्व को इसके बारे में गंभीर होने की जरूरत है, आप जानते हैं, हमें नेट जीरो के लिए प्रयास करने की जरूरत है, परंतु वैश्विक नेट जीरो का मतलब है कि विकासशील देशों के पास अभी भी विकास के लिए स्थान होना चाहिए और विकसित देशों को अपना नेट जीरो और नेट माइनस करने की आवश्यकता है। इसलिए हमें इस चुनौती से निपटने के लिए एक और अधिक ईमानदार और स्पष्ट रूप से एक और अधिक गंभीर प्रयास की आवश्यकता है।

राजदूत फ्रैंक जी विसनेर: माननीय मंत्री जी, आपने आज हमें एक वास्तविक व्यवहार दिया है, भारत के विश्व के दृष्टिकोण और हमारे संबंधों की दिशा, क्वाड की दिशा, चीन के साथ संबंध, अफगानिस्तान से कैसे निपटना है, और अंत में जलवायु परिवर्तन पर एक गुंजायमान बयान का एक दृष्टिकोण दिया है। अगर हमारे पास अधिक समय होता तो मै अर्थशास्त्र से संबंधित पूछता, लेकिन मुझे डर है कि घड़ी की सुई यह इंगित नहीं कर रहा, अब हम अपने मेजबान के पास चलते हैं। सर, आपकी स्पष्टवादिता और हमारे साथ रहने की आपकी इच्छा के लिए धन्यवाद।

डॉ एस जयशंकर: धन्यवाद। हमेशा की तरह अत्यंत प्रसन्नता।
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