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कतर आर्थिक मंच में विदेश मंत्री की भागीदारी (जून 22, 2021)

जून 22, 2021

जेनेट्ट रोड्रिग्स: भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका से मिलकर बने और क्वाड के नाम से जाने जाने वाले दुनिया में एक नए शक्तिशाली समूह पर चर्चा करने के लिए मेरे साथ आज यहां भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर जी मौजूद हैं। मंत्री जी, हमसे जुड़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। चलिए, अब बिना समय गवाएं सीधे अपने पहले सवाल पर चलते हैं। चीन और भारत के बीच गलवान घाटी में हुई झड़प को एक साल हो गए हैं, और इस मुद्दे को हल करने हेतु कई दौर की सैन्य तथा कूटनीतिक बातचीत भी हो चुकी है। इस संदर्भ में क्वाड ने भारत की ओर से क्या भूमिका निभाई है? और इससे किस तरह की मदद मिल सकती है?

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: सबसे पहले, जेनेट्ट, मैं यह कहना चाहूंगा कि आज आपके साथ इस विषय पर जुड़ना मेरे लिए बेहद खुशी की बात है। मुझे लगता है कि जब क्वाड और भारत-चीन सीमा मुद्दे की बात आती है, तो यह दो अलग-अलग विषय हैं, और मुझे नहीं लगता कि इनमें कोई गहरा संबंध है, क्योंकि क्वाड चार देशों से मिलकर बना है, जो एक साझा एजेंडे पर एकजुट हुए हैं। और इस एजेंडे में समुद्री सुरक्षा के साथ-साथ कनेक्टिविटी भी शामिल है। पिछले साल, इसमें वैक्सीन, और शिक्षा को भी शामिल किया गया। इसलिए क्वाड का एजेंडा अलग है, इसमें अभिसरण का अलग सेट है, एक अलग विश्वदृष्टि है, जिसके लिए वे मिलते हैं, और इसपर बात करते हैं। अब अगर, भारत-चीन सीमा मुद्दे की बात करें, तो यह कई मायनों में काफी समय से है, यह ऐसी चुनौती और समस्या है, जो क्वाड से बिल्कुल भिन्न है। और इसमें अभी दो बड़ी समस्याएं हैं। पहली, अभी भी सीमा के आसपास सैनिकों की तैनाती जारी है, खासकर लद्दाख में। मुद्दा यह है कि क्या चीन अपनी लिखित प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरेगा जो दोनों देशों के बीच सीमा पर अधिक मात्रा में सशस्त्र बल की तैनाती नहीं करने के बारे में की गई है। और सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि क्या हम आपसी संवेदनशीलता, आपसी सम्मान और आपसी हित के आधार पर इस संबंध को बना सकते हैं। इसलिए मैं समझ सकता हूं कि आपको दोनों मुद्दों में क्यों रुचि है, लेकिन मैं आपसे कहूंगा कि आप इन्हें एक दूसरे से स्वतंत्र मुद्दे के रुप में देखें।

जेनेट्ट रोड्रिग्स: मंत्री जी, क्वाड से थोड़ा अलग हटकर विशेष रूप से जी7 समूह की बात करें तो हाल ही में, जी7 बीजिंग को लेकर तीन आयामी दृष्टिकोण अपनाने पर सहमत हुआ है, जो मूल रूप से जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों में सहयोग करने, व्यापार एवं आपूर्ति श्रृंखलाओं पर प्रतिस्पर्धा करने और मानवाधिकारों पर असहमति पर केन्द्रित है। वैश्विक मंच पर इस दृष्टिकोण के प्रभाव को लेकर आपके क्या विचार हैं?

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: देखिए, हम जी-7 शिखर सम्मेलन में उन चार देशों में से एक थे जिन्हें अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। ज़ाहिर तौरपर ऐसे कई मुद्दे हैं जिनको लेकर हम जी-7 के साथ सहमत हैं। कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं, जहां हमारा दृष्टिकोण अलग है। आज, अगर हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात करें तो, विशेष यह देखते हुए कि दुनिया बहुत अधिक बंटी हुई, बहुत अधिक बहुध्रुवीय और बहुत अधिक पुनर्संतुलित है, हर देश का दृष्टिकोण प्रतिस्पर्धा, सहयोग और सहयोग के स्तर को लेकर अलग-अलग होंगे। और जब आप उन किसी विशेष मुद्दे की बात करते हैं, उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन को ही ले लीजिए, तो ज़ाहिर तौर पर जी-7 और चीन के बारे में बातचीत होती है, लेकिन इस मुद्दे पर हमारी स्थिति बहुत ही अलग है, क्योंकि हम अभी अपने विकास के बहुत ही शुरुआती चरण में हैं। तो, इस मुद्दे को अलग रखें। इसलिए, यहां हमारी स्थिति जी7 के बाकी अन्य देशों यानि विकासशील देशों के जैसी है। जब आपूर्ति श्रृंखला जैसे मुद्दे की बात आती है, तो हम आपूर्ति श्रृंखला को अधिक लचीला और विश्वसनीय बनाने के जी7 के दृष्टिकोण से सहमत नज़र आते हैं। लेकिन हमें यह भी लगता है कि हम अपनी खुद की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाकर इसमें योगदान दें सकते हैं। और वास्तव में, मोदी सरकार ने पीएलआई योजना के नाम से एक बड़ी पहल की शुरुआत की है, जिसे भारत में विनिर्माण को आकर्षित करने हेतु बनाया गया है। लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर खुले समाज से जुड़े मुद्दों की बात करें, तो हमारा जी7 के साथ एक सुदृढ़ अभिसरण है, यही वजह है कि हमने इसको स्वीकार करने की इच्छा जताई हैं। इसलिए इसमें असमानता भी है। लेकिन, आज दुनिया की यही प्रकृति है। आप अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग मुद्दों पर साथ मिलकर काम करते हैं, और और यह समस्या आधारित संबंधों से बिल्कु अलग है, जिसका हम अभी विश्व राजनीति में अनुभव कर रहे हैं।

जेनेट्ट रोड्रिग्स: मंत्री जी बुनियादी ढांचे के निर्माण के मुद्दे पर वापस आते हुए, मेरा सवाल है कि भारत जी7 की बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड पहल में किस तरह से शामिल होने की योजना बना रहा है, जिसमें 2035 तक विकासशील देशों द्वारा आवश्यक 40 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बुनियादी ढांचे के निवेश घाटे को कम करने की अपेक्षा की गई है। आप इस बारे में कुछ बता सकते हैं कि भारत इसमें किस तरह से भाग लेने वाला है?

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: देखिए, बी3डब्ल्यू पहल जी7 की एक पहल है। इससे पहले भी हम कई सालों से कई देशों के साथ विकास भागीदारी कर रहे हैं, और आज दुनिया में विकास परियोजनाओं के मामले में हैं, हम 62 देशों में परियोजनाएं कर रहे हैं। और हमने लगभग 630 परियोजनाओं पर हस्ताक्षर किए हैं, और उनमें से लगभग 340 यानि आधी परियोजनाएं पूरी भी हो चुकी हैं। इसलिए, जहां तक जहां परियोजना और विकास भागीदारी का सवाल है, भारत पहले से ही ऐसा करता आ रहा है। और, मैं आपको इसका एक उदाहरण दे सकता हूं, पिछले हफ्ते मैं केन्या गया था। और इस दौरान वहां के लोगों, वहां की सरकार, वहां के राष्ट्रपति के साथ रिवाटेक्स नामक एक कपड़ा संयंत्र पर बात हुई, जिसका संचालन हमने अभी-अभी पुनः शुरु किया है और दुनिया के बाकी देशों की बात करें तो हमने अफगानिस्तान में सलमा नामक स्थान पर एक बांध बनाया है जो संभवत: पिछले 40 वर्षों में वहां बना एकमात्र बांध है, हमने अफगान संसद का भी निर्माण किया है। श्रीलंका में, हमने शरणार्थियों के लिए बहुत सारे शरणार्थी आवास बनाएं हैं। मॉरीशस में, हमने मेट्रो एक्सप्रेस का निर्माण किया है; जो बहुत ही सफल परियोजना है। इथियोपिया में, हमने शुगर प्लांट बनाए हैं। मोज़ाम्बिक और तंजानिया में, हमने पानी के क्षेत्र में बहुत काम किया है। इसलिए, हमारा कनेक्टिविटी, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम करने का इतिहास रहा है। लेकिन जी7 के साथ हमारे जुड़ाव का साझा उद्देश्य व्यापक सिद्धांतों पर आधारित होगा, जिसके तहत परिकल्पना की गई है कि ऐसी परियोजनाएं व्यवहार्य हों, वे पारदर्शी हों, वे ऋण को बढ़ाने का काम न करें, वे पर्यावरण के अनुकूल हों। लेकिन, इसमें सबसे अहम बात यह है कि, इस परियोजनाओं में उस समुदाय की प्राथमिकता होनी चाहिए, जहां वे स्थित हैं। इसलिए, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमें लगता हैं, हमारा जी-7 के साथ बहुत अधिक अभिसरण संभंव है। हम उनके साथ काम करने को लेकर तत्पर हैं। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, हमने बीते कुछ सालों में कई परियोजनाओं पर काम किया है और मुझे उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी हम ऐसी और परियोजनाओं पर काम करना जारी रखेंगे।

जेनेट्ट रोड्रिग्स: मंत्री जी, आपने यह भी कहा कि क्वाड के एजेंडे में वैक्सीन भी शामिल हैं। महामारी से जुड़े सवाल पर आते हुए, क्या आप अपनी हाल की वाशिंगटन यात्रा के बारे में कुछ बता सकते हैं? मैं विशेष रूप से भारत के लिए वैक्सीनों की खरीद और भारत में इन वैक्सीनों को तैयार करने हेतु कच्चे माल की खरीद पर क्या चर्चा हुई है, क्या अमेरिका की ओर से कोई भरोसा दिया गया है?

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: जेनेट्ट, आज सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि दुनिया के पास पर्याप्त वैक्सीन नहीं हैं। इसमें पेटेंट एक समस्या है, लेकिन उत्पादन इसकी दूसरी समस्या है। और जैसा कि आप सभी जानते हैं, भारत में हम एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का उत्पादन कर रहे हैं। लाइसेंस के तहत, हम कोवैक्सीन नामक अपनी खुद की वैक्सीन का उत्पादन भी कर रहे हैं। आने वाले महीनों में छह अन्य वैक्सीन का भी उत्पादन शुरु हो जायेगा, जिसमें स्पुतनिक पहली वैक्सीन होगी। वैक्सीन उत्पादन में सबसे बड़ी चुनौती इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन की है, जिसकी दुनिया को जरूरत है और इसके लिए चुनौती नियमित रूप से उत्पादन करने की योजना बनाने की है, और ऐसा तभी हो सकेगा जब भारत अपनी उत्पादन क्षमता को इस स्तर तक बढ़ाये। इसलिए मेरे लिए चर्चा का मुख्य विषय आपूर्ति श्रृंखला को चालू रखने की है, ताकि हम उत्पादन को उस स्तर तक बढ़ा सकें जिसकी दुनिया को जरूरत है। यहां, वाशिंगटन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि बहुत सारी आपूर्ति श्रृंखला अमेरिका से शुरु होती हैं। इसमें से कुछ यूरोप से भी आता है। इसलिए मुझे लगता है कि अगर भारत को अपना उत्पादन बढ़ाना है तो अमेरिका और यूरोप को आगे आने की जरूरत है। यहां आप हमारा दृष्टिकोण देख सकते हैं, जब हमने अपने यहां कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू किया, तो हमने अपने कुछ पड़ोसियों को इसकी आपूर्ति की, क्योंकि हमारा मानना है कि, जब तक कि सभी सुरक्षित न हों, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। जब हमारे यहां दूसरी लहर आई, तो जाहिर तौरपर हमने वैक्सीन की अपनी घरेलू जरुरतों पर ध्यान दिया, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ेगा, हम फिर से अपनी वैश्विक भूमिका निभाना शुरु कर देंगे। और इसके लिए यह जरुरी है कि आपूर्ति श्रृंखला में किसी तरह का व्यवधान न आये।

जेनेट्ट रोड्रिग्स: मंत्री जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: धन्यवाद।

जेनेट्ट रोड्रिग्स: आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। अब कार्यक्रम की समाप्ति का समय हो गया है। श्री जयशंकर इस बातचीत के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री: धन्यवाद। आप सभी अपना ख्याल रखें।

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