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रायसीना संवाद 2021 में “क्रिमसन टाइड, ब्लू जियोमेट्रीज़: इंडो-पैसिफिक में एक नई साझेदारी” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में विदेश मंत्री की भागीदारी (14-04-2021)

अप्रैल 15, 2021

समीर सरन: आप सभी को शुभ प्रभात, शुभ संध्या। रायसीना संवाद 2021 के इस लाइव सेशन में आप सभी का स्वागत है, जिसमें तीन बेहद प्रतिष्ठित पैनलिस्ट से समकालीन सवालों पर चर्चा कर होगी। पैनल का शीर्षक "क्रिमसन टाइड, ब्लू जियोमेट्रीज़" मूल रूप से इंडो पैसिफिक क्षेत्र के प्रबंधन पर चर्चा से संबंधित है। यह जल निकाय, इस क्षेत्र को खुला, समावेशी एवं स्वतंत्र बनाने हेतु समान विचारधारा के देशों के बीच नई साझेदारी की शुरुआत में अहम भूमिका निभा रहा है। आप इसे जिस भी रुप में व्यक्त करें, यह सभी में अहम भूमिका निभा रहा है। साथ ही, इस बात से सभी लोग सहमत होंगे कि क्षेत्रीय देश संस्थागत के दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन संस्थानों के बीच पिछले दो दशकों के बदलावों के साथ तालमेल बनते हुए नहीं देखा गया है।

यह पैनल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति की उभरती हुई जियोमेट्रीज़ का बेहद महत्वपूर्ण अवलोकन पेश करेगा और इसके लिए हमारे आज हमारे साथ फ्रांस के यूरोप और विदेश मामलों के मंत्री श्री जीन-यवेस ले ड्रियन, ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री, मारिसे पायने और भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर मौजूद हैं। आप सभी का स्वागत है। और रायसीना वार्ता में शामिल होने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। आप सभी की मेजबानी करना हमारे लिए बेहद खुशी की बात है; मुझे पता है कि मंत्री ले ड्रियन दिल्ली आये हुए हैं। इसलिए दिल्ली में आपका स्वागत है। रायसीना के कार्यक्षेत्र में इस त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन करना वास्तव में हमें बहुत पसंद आया। ऐसे समय में जब हम यह बातचीत कर रहे हैं, तो पेरिस में एफआरएस, कैनबरा में एनएसई, कार्नेगी इंडिया और ओआरएफ के विचारकों का एक समूह इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि इस महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय वार्ता को और महत्वपूर्ण कैसे बनाया जाए? और क्योंकि हम इस महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय के अगले चरण में हैं, इसलिए हम आपको आज की इस बैठक से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को बताना चाहेंगे।

आज की शुरुआत मैं श्री जीन-यवेस ले ड्रियन के साथ करना चाहूंगा। जैसा कि मैंने कहा, इंडो पैसिफिक संस्थागत दौर से गुजर रहा है, ऑस्ट्रेलिया, भारत और फ्रांस के बीच के इस अंतर को दूर करने में आपकी राय में इस तरह की बहुपक्षीय व्यवस्था की क्या भूमिका है?

जीन-यवेस ले ड्रियन: आप सभी को शुभ संध्या। नमस्कार मारिसे, आपको फिर से देखकर बेहद प्रसन्नता हुई। और मेरे सहयोगी, श्री जयशंकर जी को भी नमस्ते, जो अगले वीडियो में हैं, यानि हम पड़ोसी हैं। इस रायसीना वार्ता में शामिल होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है। मैं पहली बार रायसीना वार्ता में हिस्सा ले रहा हूं, और पहली बार इसका आयोजन बहुत ही असामान्य परिस्थितियों में हो रहा है। मुझे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर आज की चर्चा और भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के हमारे मित्रों को फिर से देखकर बेहद प्रसन्नता हो रही है। और मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि फ्रांस भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का एक अहम हिस्सा है, भले ही भारत की तुलना में बहुत अधिक नहीं है, फिर भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में हमारे 2 मिलियन लोग रहते हैं। इसलिए यह हमारी पूरी भूमिका निभाने का एक और मुख्य कारण है।

इस मामले में, हमारा दृष्टिकोण बहुत ही व्यावहारिक है और जब हम किसी क्षेत्र को समावेशी और सहयोग का क्षेत्र बनाने की बात करते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि हमें इसकी शुरुआत बहुत ही जटिल मामलों, संस्थागत मामलों पर बातचीत से करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से सिर्फ समय की बर्बादी होगी और इसका कोई हल नहीं निकल सकेगा। हमें कई मुद्दों पर ठोस संचालन और भागीदारी बढ़नी चाहिए, और यही वजह है कि भारत, और ऑस्ट्रेलिया दोनों के बीच साझा पर्यावरणीय मुद्दों, सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा समस्याओं पर रणनीतिक साझेदारी है। और इससे आगे बढ़ते हुए हम, अकादमिक सहयोग भी कर रहे हैं, जिसमें हम तीनों एक साथ मिलकर इस त्रिपक्षीय के तहत काफी कुछ कर रहे हैं। और हम अपने सहयोग को मजबूत कर रहे हैं। मैं आज दिल्ली में हूं और हम अपने मित्र, मंत्री जयशंकर के साथ मिलकर, अपनी मौजूदा साझेदारी को और मजबूत कर रहे हैं।

इसके अलावा, हम आईओआरए के तहत एक दूसरे को अधिक संस्थागत प्रारूप में देखते हैं जो समुद्री सुरक्षा हेतु बेहद अहम है। हम प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई इंडो-पैसिफिक पहल का भी हिस्सा हैं। और यह पहल अवैध तरीके से मछली पकड़ने से भी संबंधित है। हम आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ लड़ाई में ऑस्ट्रेलिया के साथ खड़े हैं। इसलिए कई तरीके हैं जो हमारे उद्देश्यों को एक दूसरे से जोड़ते हैं, जिसके लिए हम मिलकर एकसाथ काम कर सकते हैं। और इससे हम कोई संस्थागत पहल शुरू किए बिना कुछ कामों को करने में सक्षम होते हैं। और इससे मुझे यूरोप के इतिहास की याद आती है। इस रविवार को, हम पेरिस में कोयला एवं इस्पात के लिए यूरोपीय आर्थिक समुदाय की 50वीं वर्षगांठ मनाएंगे। और यह एक बेहद ठोस पहल है जिसपर यूरोपीय संघ कुछ हद तक भौतिक रुप से टिका हुआ है, जिसे चिन्हित किया जा सकता था और जिस पर हम आगे का निर्माण कर सकते थे। और इंडो-पैसिफिक की चुनौतियां इससे काफी समान हैं। ये चुनौतियां अलग-अलग फोरम की हैं और कुछ ठोस कार्य करने की समान इच्छा संबंधी हैं।

समीर सरन: धन्यवाद, मंत्री महोदय। अब मैं अपना अगला सवाल मंत्री मारिसे पायने से पूछना चाहूंगा। क्या यह नई व्यवस्था ठीक वैसी ही है, जैसा मंत्री महोदय ने एक महत्वाकांक्षी एजेंडा तय किया है जिसके लिए हम एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं, जिसमें हम पहले से ही भाग ले रहे हैं और इसमें भागीदारी कर रहे हैं। लेकिन इसको लेकर संदेह होता है कि क्या इस तरह के एकतरफा बातचीत से जमीनी स्तर पर कोई ठोस बदलाव हो सकता है। क्या आपके हिस्सा से ऑस्ट्रेलिया का इस साझेदारी का कोई भौतिक उद्देश्य है, आप इस त्रिपक्षीय साझेदारी में किस प्रकार की महत्वाकांक्षा और एजेंडा लागू करना चाहते हैं?

मारिसे पायने: धन्यवाद, समीर और मैं अपने मित्र, डॉ. जयशंकर और जीन-यवेस ले ड्रियन को धन्यवाद देती हूं और भारत न आ पाने के लिए माफी चाहती हूं। तीसरी रायसीना वार्ता में शामिल होना मेरे लिए बेहद खुशी की बात है और मैं रायसीना वार्ता को अंतरराष्ट्रीय बहस और जुड़ाव के इतने महत्वपूर्ण बिंदु पर लाने हेतु विदेश मंत्रालय और ओआरएफ दोनों को बधाई देती हूं कि, जिसमें हम अलग अलग तरीके से अपने साझा उद्देश्यों को हासिल करने का प्रयास करते हैं। समीर और जय को उनके नेतृत्व के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। समीर, मेरे हिसाब से ऑस्ट्रेलिया का ऐसे संघ को लेकर दृष्टिकोण बेहद व्यावहारिक है, जिसपर हम आज रात बात कर रहे हैं। जब हम उन परिस्थितियों की बात करते हैं जिसमें हम आज हैं, इसका सबसे विशिष्ट उदाहरण कोविड-19 है, तो हमारा ध्यान हमारे देशों में महामारी की प्रतिक्रिया एवं सुधार पर होता है, और फिर हम उन कई देशों पर भी ध्यान देते हैं, जिनके साथ हम जुड़े हुए हैं और जिन्हें हम सहायता प्रदान करते हैं।

हम सब इसमें एक साथ हैं, चाहे बात टीके की हो या टीका वितरण पर ध्यान केंद्रित करने की, चाहे आर्थिक चुनौती की बात हो, जिसका सामना इंडो पैसिफिक में कई, विशेष रूप से विकासशील देश कर रहे हैं। जैसा कि जीन-यवेस ने कहा, समुद्री सुरक्षा को लेकर हमारे बीच एक साथ मिलकर काम करने के लिए बहुत ही व्यावहारिक संबंध हैं। और ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और भारत इसके बहुत ही ठोस उदाहरण हैं, जहां हम उदाहरण के लिए व्यापक इंडो-पैसिफिक और पैसिफिक में ही फ्रांस की व्यवस्था के माध्यम से, चक्रवात, और ज्वालामुखी जैसी मौसमी घटनाओं के संदर्भ में तत्काल मानवीय प्रतिक्रिया के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम इसपर विशेष ध्यान साझा करते हैं। और प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रोन और प्रधानमंत्री मॉरिसन ने हमारे साझा महासागरों की स्थिरता से जुड़े इन मुद्दों पर चर्चा की है। उनके बीच आपदाओं के प्रति हमारे लचीलापन और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर भी चर्चाएं हुई हैं।

और हमारे तीनों राष्ट्रों जैसी मान्यताएं और हमारे जैसे मजबूत लोकतंत्रों में हमारे विचारों को साझा करने और क्षेत्रीय बहुपक्षीय संस्थानों पर मौजूदा दबावों पर प्रतिक्रियाएं साझा करने की क्षमता है। वर्तमान में, रणनीतिक प्रतियोगिता जिसे हम हर रोज देखते हैं, जिनके आधार पर हम सभी अलग-अलग तरीकों से जुड़े हुए हैं, और इतने दशकों से अपने संबंधों को जारी रखे हुए हैं। यह बेहद व्यावहारिक दृष्टिकोण है, लेकिन साथ ही साथ यह बहुत लचीला भी होना चाहिए। और मुझे लगता है कि कोविड-19 ने जवाबदेही, लचीलेपन, इस तरह की घटनाओं से निपटने हेतु एकजुट होने की जरुरत को सामने लाया है, जिसमें हम व्यावहारिक रूप से एक साथ जुड़ सकते हैं उसकर खुली चर्चा कर सकते हैं।

डॉ. एस. जयशंकर: समीर मैं आपकी बात नहीं मिल सुन पा रहा हूं। आपने शायद विडियो म्यूट कर रखा है। क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं?

मारिसे पायने: समीर हम आपको नहीं सुन पा रहे हैं।

डॉ. एस. जयशंकर: मारिसे मैं आपको सुन पा रहा हूँ, लेकिन समीर की बात सुनाई नहीं दे रही है। शायद हम तीनों विदेश मंत्रियों को आपस में ही बातचीत जारी रखनी चाहिए।

मारिसे पायने: ठीक है, डॉ. एस. जयशंकर अब आपकी बारी है। तो अब आप अपनी बात रख सकते हैं। जबतक वो आवाज की समस्या को ठीक करते हैं, आप व्यवस्था को लेकर अपनी और भारत की धारणाओं की बात कर सकते हैं।

डॉ. एस. जयशंकर: ज़रूर, ठीक है। सबसे पहले, आप दोनों को देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। अच्छा होता अगर हम यह चर्चा एक साथ बैठकर किसी कमरे में कर रहे होते। मैं, आप दोनों की कही हुई बातों के संबंध में ही अपनी बात कहना चाहूंगा। इसलिए मैं इसे कई भागों में कहना चाहता हूं। पहला, हमें अभी से बहुपक्षवाद की आवश्यकता क्यों है। और दूसरा, इंडो-पैसिफिक क्या है? मेरे हिसाब से हमें बहुपक्षवाद की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि अगर आप अभी के बहुपक्षवाद को देखे, जो इसका उच्चतम स्तर है, तो यह वैसा परिणाम देने में विफल रहा है जैसा यह पहले दिया करता था। अगर आप औपचारिक समझौते पर आधारित संरचनाओं को देखें, और आप दोनों ही सुरक्षा गठबंधनों के सदस्य हैं, तो यह भी वैसा नहीं है जैसा पहले हुआ करता था। और किसी अकेले राष्ट्र और द्विपक्षीय संबंधों की शक्ति फिर से कमजोर हो गई है, जितना पहले हुआ करती थी। तो मेरा कहना यह है कि एक मायने में, एक प्रकार का अंतर या कमी है, जो उभरी है, जहाँ बहुपक्षवाद में कमी आई है, शक्तियाँ वैसी नहीं रहीं जो वे हुआ करती थीं, द्विपक्षीय वितरण वह नहीं रहा जो कभी हुआ करता था। तो इसके लिए ऐसे देशों की जरुरत है जो एक-दूसरे के साथ सहज हों, जो एक-दूसरे के साथ काम करने में लाभ देखते हों और जो खुलकर एक साथ काम करके दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं। तो हम तीनों आज इस विषय पर बात कर रहे हैं, मारिसे, आप और मैं क्वाड में एक साथ हैं। मुझे लगता है कि दुनिया उन देशों के समूहों की ओर बढ़ रही है, जो एक साथ काम करना चाहते हैं, आप उन्हें उत्साही देशों के गठबंधन, अभिसरण, क्षेत्रीय गठबंधन या संयोजन कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि दुनिया इसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

अब, इंडो पैसिफिक से जुड़े सवाल पर आते हैं, इंडो-पैसिफिक क्यों जरुरी है? सबसे पहले तो, अगर आप जानना चाहते हैं कि मैं इंडो पैसिफिक के बारे में क्या सोचता हूं, तो आपको मेरी पुस्तक खरीदनी चाहिए और पढ़नी चाहिए। इसमें सभी जवाब दिए गए हैं। लेकिन आपमें से जिन लोगों ने इसे नहीं पढ़ा है, उनके लिए मैं इसका सार बता देता हूं। मुझे लगता है कि इंडो-पैसिफिक का अस्तित्व ऐतिहासिक है। यह एक निर्बाध दुनिया को संदर्भित करता है और अगर आप भारतीय या अरब के बीच और आसियान से होते हुए वियतनाम में यहां तक​कि चीन के पूर्वी तट तक के आर्थिक व्यापार, सांस्कृतिक प्रभाव को देखें तो यह हमेशा से मौजूद था। या अगर आप दूसरे तरीके से देखें, तो यह इंडोनेशिया से अफ्रीका के पूर्वी तट तक ऐतिहासिक रुप से मौजूद था। तो सवाल यहा है कि, यह सहजता क्यों खत्म हो गई, इसकी कुछ वजह शाही काल के साम्राज्य थे, लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह द्वितीय विश्व युद्ध की राजनीति थी और इस वास्तविकता यह है कि, हमने इसे एशिया प्रशांत और हिंद महासागर के रूप में अलग-अलग कर दिया। और आज वैश्वीकरण, पुनर्संतुलन और बहुध्रुवीयता के कारण ऐसा हो रहा है, क्योंकि यहां तक कि सबसे महत्वपूर्ण शक्ति यानि संयुक्त राज्य अमेरिका भी अब दूसरे देशों के साथ इस तरह से काम करने हेतु तैयार है जिसके लिए वह पहले नहीं था, हम एक साथ आ रहे हैं, जहां हम इससे एक बहुत अलग तरीके से निपट रहे हैं। इसलिए, इस तरह से इंडो पैसिफिक का इतिहास दोहराया जा रहा है, यह अधिक समकालीन दुनिया को दर्शाता है, यह शीत युद्ध पर नियंत्रण पा रही है, न कि इसे मजबूत कर रही है। इसलिए, मैं उम्मीद करूंगा कि जो भी देश समकालीन विदेशी नीतियों अपनाना चाहते हैं, वे इसे इसी तरह से देखें।

समीर सरन: बहुत अच्छा, क्या अब आप सभी मुझे सुना सकते हैं?

डॉ. एस. जयशंकर: हां, हम आपकी बात सुन सकते हैं, लेकिन आपको देख नहीं पा रहें। लेकिन कोई बात नहीं, कृपया आगे बढ़ें।

समीर सरन: आप शायद अब मुझे देख भी सकते हैं, लेकिन डॉ. जयशंकर मैं अब आपसे कुछ वैसा ही पूछना चाहता था जिसका जबाव आपने अभी दिया है, लेकिन शायद थोड़े अधिक सीधे शब्दों में। आपका देश नाटो का हिस्सा है, ये पी5 देश हैं। अभी यहां दो अध्यक्ष मौजूद हैं जो कथित रूप से एशियाई नाटो से हैं। आपके देशों की इतिहास, आकांक्षाएं, और लोगों के रूप में यात्राएं अलग-अलग हैं, यह बहुपक्षीय व्यवस्था आपको भारत के विदेश मंत्री के रूप में, ऐसी सहुलियत कैसे देता है, जिसमें आप इतना सामन्जस्य बनाना चाहते हैं?

डॉ. एस. जयशंकर: इस पैनल चर्चा की तैयारी करते हुए, मैंने क्वाड की उन सभी बैठकों को देखा, जिनमें हमने भाग लिया है, और मारिसे और मैं उनमें से तीन में मंत्री स्तर पर शामिल हुए हैं, मैं उनमें से कुछ में तब शामिल हुआ हूं, जब मैं विदेश सचिव हुआ करता था। इसलिए मैं आपको उन 10 विषयों की जानकारी देना चाहूंगा, जिनपर हमने पिछले कुछ वर्षों में क्वाड में चर्चा की है। वैक्सीन सहयोग, उच्च शिक्षा और छात्रों का एक-दूसरे के देशों में आवागमन, जलवायु कार्रवाई, एचएडीआर, उभरती हुई प्रौद्योगिकी, लचीली आपूर्ति श्रृंखला, अर्धचालक, विघटन, प्रतिवाद, आतंक से मुकाबला और समुद्री सुरक्षा। अब, इसी सूची से आपको पता चल जाएगा, कि हमारी सोच क्या है, और हम क्या करना चाहते हैं, और इसका उद्देश्य क्या है। और जब मैं क्वाड की बात करता हूं, तो मुझे पूरा यकीन है कि जब हमारे बीच त्रिपक्षीय बैठक होगी, जो इस बार नहीं हो रही, तो हम तीनों इन्हीं विषयों पर चर्चा करेंगे। तो हमारे साथ आने का उद्देश्य वास्तव में बिल्कुल साफ है, यानि हमारा राष्ट्रीय लाभ, हमारा क्षेत्रीय लाभ और वैश्विक लाभ हेतु काम करने के तरीके खोजना है। इसलिए ऐसा सोचना की हमारे एक साथ आने का उद्देश्य किसी प्रकार का खतरा है या दूसरे देशों को किसी प्रकार का संदेश देना है, बेवजह है। यहां मैं नाटो के एक सदस्य को देख रहा हूं, एक सहयोगी को देख रहा हूं, वे जानते हैं कि इसका क्या मतलब है। मेरा राजनीतिक इतिहास बहुत अलग है। इसलिए मुझे पता है कि मैं क्या कर सकता हूं और मुझे क्या नहीं करना है। और मैं बेहद स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि, नाटो जैसा शब्दों का इस तरह से इस्तेमाल करना, एक तरह का माइंड गेम है, जो लोग खेल रहे हैं। अन्य लोगों के पास इसे रोकने का वीटो नहीं है कि मैं किस बारे में चर्चा करने जा रहा हूं, किसके साथ मैं चर्चा करने जा रहा हूं, मैं दुनिया में कितना योगदान करने जा रहा हूं। यह आपकी पसंद है और इस प्रकार की नाटो मानसिकता कभी भी भारतीय नहीं रही है। अगर ऐसा पहले एशिया में रहा भी है, तो मुझे लगता है कि यह अन्य देशों और क्षेत्रों में है, न कि हमारे यहां।

समीर सरन: अब मैरा अगला सवाल फ्रांस के मंत्री से है। महोदय, आपके नजरिए से, चूंकि आपने इस क्षेत्र में होने वाली प्रभावशाली गतिविधियों का पहले ही उल्लेख कर दिया है, तो क्या आपको लगता है कि हमें ठोस प्रगति हेतु एक समूह के रूप में आगे बढ़ना चाहिए? क्या आपको लगता है कि हमें ऐसा मानव विकास के क्षेत्र में, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में करना चाहिए? या आपको लगता है कि यह एक राजनीतिक समूह है जो भविष्य में मानदंडों के साथ आने की कोशिश कर रहा है?

जीन-यवेस ले ड्रियन: सबसे पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि, मैं अपने मित्र, मंत्री जयशंकर द्वारा कही गई बातों से पूरी तरह सहमत हूं। हम एक साथ मिलकर इसलिए काम करना चाहते हैं, क्योंकि हम साथ मिलकर अधिक सक्षम हैं और हमारे हित समान हैं। और क्योंकि हमारी चिंताएं समान हैं और क्योंकि हमारे यहां लोकतंत्र हैं और क्योंकि हम कानून के शासन का पालन करते हैं। यह सभी बातें हमारे जीन में है। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, हम साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और हम ऐसा बहुत ही व्यावहारिक तरीके से कर रहे हैं। और आप क्वाड को लेकर आपकी टिप्पणी के संदर्भ में कहना चाहूंगा कि हम किसी भी प्रकार के सैन्य संस्थान या इस तरह के प्रारूप में नहीं हैं। हालांकि, इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मुक्त आवागमन और सुरक्षा, व्यापार की सुरक्षा, यही वजह है कि हम सुरक्षा की गारंटी हेतु कुछ संयुक्त पहलों में जुड़े हुए हैं। भारत के साथ हम कुछ निगरानी गश्ती भी करते हैं, उदाहरण के लिए और रीयूनियन द्वीप के तट पर। ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारी खुफिया साझेदारी संबंधी कई पहल हैं; हमने अपने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों की साझेदारी में कुछ समुद्री निगरानी मिशन भी शुरू किए हैं। कुल मिलाकर, पैसिफिक के लिए, सुरक्षा, पैसिफिक (शांतिप्रद) हो सकती है। हम यही चाहते हैं और इसे लेकर बहुत दृढ़ हैं। यह कहा जा रहा है कि, हम सभी ब्लू इकोनॉमी का बेहद सक्रिय रुप से समर्थन कर रहे हैं, अगर इस क्षेत्र की नियती और मूल्य को संरक्षित रखने का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था, ऊर्जा संसाधनों, मछली पकड़ने के संसाधनों के संदर्भ में, अनुसंधान और नवाचार उद्देश्यों के संदर्भ में हमारे पास सब कुछ होगा। इसलिए संक्षेप में, हम सभी के पास पर्यावरणीय चुनौती के क्षेत्र में अनुभव है, और जरुरत को पूरा करने हेतु सौर ऊर्जा, या समुद्री ऊर्जा के आधार पर मजबूत नवीकरणीय ऊर्जा है और यह हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है, जिनमें कार्बोनेट हाइड्रोजन पर जारी पहल भी शामिल हैं, यह हमारे संयुक्त भविष्य का हिस्सा है। और मैं इसके साथ-साथ मानवीय सहायता को भी जोड़ना चाहूंगा, जिस पर हम जब भी कहीं कोई आपदा होती है, और समुद्री वातावरण में प्रदूषण एवं विशेष रूप से प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में नियमित रूप से एक साथ काम करते हैं। ठोस कार्रवाई, हमें एकजुट करती है और जिसकी निगरानी भी की जा सकती है।

जीन-यवेस ले ड्रियन: सबसे पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि, मैं अपने मित्र, मंत्री जयशंकर द्वारा कही गई बातों से पूरी तरह सहमत हूं। हम एक साथ मिलकर इसलिए काम करना चाहते हैं, क्योंकि हम साथ मिलकर अधिक सक्षम हैं और हमारे हित समान हैं। और क्योंकि हमारी चिंताएं समान हैं और क्योंकि हमारे यहां लोकतंत्र हैं और क्योंकि हम कानून के शासन का पालन करते हैं। यह सभी बातें हमारे जीन में है। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, हम साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और हम ऐसा बहुत ही व्यावहारिक तरीके से कर रहे हैं। और आप क्वाड को लेकर आपकी टिप्पणी के संदर्भ में कहना चाहूंगा कि हम किसी भी प्रकार के सैन्य संस्थान या इस तरह के प्रारूप में नहीं हैं। हालांकि, इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मुक्त आवागमन और सुरक्षा, व्यापार की सुरक्षा, यही वजह है कि हम सुरक्षा की गारंटी हेतु कुछ संयुक्त पहलों में जुड़े हुए हैं। भारत के साथ हम कुछ निगरानी गश्ती भी करते हैं, उदाहरण के लिए और रीयूनियन द्वीप के तट पर। ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारी खुफिया साझेदारी संबंधी कई पहल हैं; हमने अपने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों की साझेदारी में कुछ समुद्री निगरानी मिशन भी शुरू किए हैं। कुल मिलाकर, पैसिफिक के लिए, सुरक्षा, पैसिफिक (शांतिप्रद) हो सकती है। हम यही चाहते हैं और इसे लेकर बहुत दृढ़ हैं। यह कहा जा रहा है कि, हम सभी ब्लू इकोनॉमी का बेहद सक्रिय रुप से समर्थन कर रहे हैं, अगर इस क्षेत्र की नियती और मूल्य को संरक्षित रखने का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था, ऊर्जा संसाधनों, मछली पकड़ने के संसाधनों के संदर्भ में, अनुसंधान और नवाचार उद्देश्यों के संदर्भ में हमारे पास सब कुछ होगा। इसलिए संक्षेप में, हम सभी के पास पर्यावरणीय चुनौती के क्षेत्र में अनुभव है, और जरुरत को पूरा करने हेतु सौर ऊर्जा, या समुद्री ऊर्जा के आधार पर मजबूत नवीकरणीय ऊर्जा है और यह हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है, जिनमें कार्बोनेट हाइड्रोजन पर जारी पहल भी शामिल हैं, यह हमारे संयुक्त भविष्य का हिस्सा है। और मैं इसके साथ-साथ मानवीय सहायता को भी जोड़ना चाहूंगा, जिस पर हम जब भी कहीं कोई आपदा होती है, और समुद्री वातावरण में प्रदूषण एवं विशेष रूप से प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में नियमित रूप से एक साथ काम करते हैं। ठोस कार्रवाई, हमें एकजुट करती है और जिसकी निगरानी भी की जा सकती है।

समीर सरन: बहुत-बहुत धन्यवाद, मंत्री जी। अब मैं फिर से मारिसे पायने से कुछ सवाल पूछना चाहूंगा। मैं आपसे ऐसा सवाल पूछने जा रहा हूं, जिसे किसी ने कुछ समय पहले ही हमें भेजा है। अनिरबन चक्रवर्ती ने आपसे पूछा है कि, "हम ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 2023 में आयोजित होने वाले फीफा महिला विश्व कप से इंडो पैसिफिक में लोगों से लोगों के जुड़ाव को कैसे मजबूत कर सकते हैं? क्या ऑस्ट्रेलिया खेल को कूटनीति साधन के रूप में इस्तेमाल करने में कोई भूमिका निभा सकता है?" मैं इस सवाल में कुछ और भी विषय जोड़ना चाहूंगा। क्या आपको लगता है कि इस समय भारत और ऑस्ट्रेलिया फ्रेंच को क्रिकेट खेलना सिखा सकते हैं? और यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें बहुपक्षीय सहयोग भी हो सकता है। यह सवाल आपके लिए है। और दूसरा सवाल श्री जयशंकर और आप के लिए यह है कि क्या यह समूह म्यांमार में जो हो रहा है, उसपर कोई प्रतिक्रिया दे सकता है? चूंकि वह एक ऐसा देश हैं जो दुनिया के हमारे क्षेत्र में है, तो क्या एक साथ काम करते हुए म्यांमार में जो हो रहा है, उसपर सामूहिक कार्रवाई करने की कोई संभावना है? ये दो सवाल मारिसे पायने से पूछे गए हैं, इसलिए मैंने उन्हें आपके सामने रखा है।

मारिसे पायने: धन्यवाद, समीर। लोगों-से-लोगों के जुड़ाव से संबंधित सवाल बेहद महत्वपूर्ण है और इसकी शुरुआत सबसे ऊपर से होती है, वास्तव में, समकक्षों से, बहुत ठोस संबंधों के साथ जैसे कि हम तीनों साझा करते हैं, न सिर्फ व्यक्तिगत रूप में, बल्कि हमारे देश, हमारे अधिकारी स्तर पर भी, जो बेहद प्रभावी ढंग से एक साथ काम करते हैं, और उन रिश्तों के मूल्य तथा महत्व को दर्शाता है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में, लोगों-से-लोगों का जुड़ाव खेल के माध्यम से अधिक होता है। आपका सवाल बिल्कुल जायज है। और फीफा महिला विश्व कप के ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में होने का मतलब है कि फ्रांस, भारत और ऑस्ट्रेलिया सभी एक साथ आ सकते हैं, वो भी किसी को क्रिकेट सिखाने की कोशिश किए बिना। और मुझे फ्रांसीसी भाषा आती है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे आउट, स्लिप और गुगली व बाउंड्री जैसे शब्दों को समझ पाएंगे। इसलिए, इसके लिए हमने फुटबॉल को चुना है। ऑस्ट्रेलिया का खेल कूटनीति कार्यक्रम काफी मजबूत है। यह हमारा जुनून है, और यह विशेष रूप से प्रशांत में बेहद मजबूत है। लेकिन हमारे बीच एक अन्य साझा हित, रग्बी है, जिसमें लड़कियां हिस्सा लेती हैं, विशेष रूप से गैर-पारंपरिक खेलों में आगे बढ़ती हैं। साइकिलिंग और नेटबॉल में भी हमारी गहरी दिलचस्पी है। इसलिए, मुझे लगता है कि महिला विश्व कप के माध्यम से इस क्षेत्र में जुड़ाव बढ़ाने का यह बहुत अच्छा अवसर है। और अगले हफ्ते सिडनी में होने वाली फुटबॉल फेडरेशन, ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारी बैठक इसके लिए महत्वपूर्ण है, और यह महिला विश्व कप की विरासत कैसी होनी चाहिए, इसपर बहुत अधिक केंद्रित है। जय मुझे नहीं लगता कि यह कभी बंद होगा, और मैं क्रिकेट पर पूरी तरह से प्रतिस्पर्धी हूं। मुझे यह भी लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा में जुड़ाव की क्षमता को भी कम करके आंका नहीं जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा में साझा भागीदारी की क्षमता काफी अधिक, चाहे वह ऑस्ट्रेलिया के छात्रों का इस क्षेत्र में, या फ्रांस जैसे देशों में, या भारत और फ्रांस के छात्रों का ऑस्ट्रेलिया आने का अवसर देने की बात हो। हम जानते हैं कि कोविड-19 और यात्रा व आवागमन पर प्रतिबंध के कारण इसमें बाधा आई है। लेकिन, जब मैं उन छात्रों से बात करती हूं जो ऑस्ट्रेलिया में न्यू कोलंबो प्लान का हिस्सा हैं, जिनका कार्य इस क्षेत्र में जाना और प्रशांत एवं दक्षिण पूर्व एशिया पर अध्ययन करना है, वे न्यू कोलंबो प्लान के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और उन देशों के लिए भी जिनमें वे अध्ययन करते हैं, अच्छे राजदूत की भूमिका निभाते हैं। और वे जीवन भर के लिए, पीढ़ियों और वास्तव में, भविष्य के लिए जुड़ाव बनाते हैं। इसलिए मैं इस तरह के जुड़ाव का भी दृढ़ता से समर्थन करूंगी। कोविड ने लोगों-से-लोगों के जुड़ाव की हमारी क्षमता को प्रतिबंधित किया है, लेकिन हमने इसके लिए वर्चुअल तरीके ढूंढ लिए हैं। समीर जैसा कि आपने आज यहां इस रायसीना चर्चा में देखा है, और हमें इस अवसर का अधिक लाभ उठाना चाहिए।

म्यांमार से जुड़े सवाल पर, यह हमारे उन दोस्तों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण और दुखद स्थिति है जो म्यांमार में लोकतांत्रिक बदलाव हेतु काफी लंबे समय से काम कर रहे थे। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का हल ढूढ़ने में आसियान के साथ मिलकर काम करने की जरुरत को लेकर ऑस्ट्रेलिया का दृष्टिकोण बेहद स्पष्ट हैं। आसियान हमारे इंडो पैसिफिक क्षेत्र के लिए सबसे अहम है। इसकी केंद्रीयता ऑस्ट्रेलिया के लिए मौलिक है, और म्यांमार आसियान का एक प्रमुख सदस्य है। हालांकि, हिंसा के मामलों का बढ़ना और मौतों की बढ़ती संख्या बेहद चिंताजनक है। और इसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने अपने विकास सहायता कार्यक्रम में कुछ बदलाव किए हैं, विशेष रूप से सैन्य जुड़ाव के संबंध में। हालांकि, मैं आगामी कुछ सप्ताह में आसियान नेताओं की बैठक करने का पुरजोर समर्थन करती हूं। यह अगले हफ्ते की शुरुआत में होगी। और मुझे उम्मीद है कि इससे हिंसा को खत्म करने, नागरिकों के खिलाफ सशस्त्र बल के उपयोग के संदर्भ में म्यांमार पर, और म्यांमार के भविष्य को लेकर बेहद सीमित विकल्प देने वाले वार्ताकारों पर दबाव पड़ेगा। हाल के महीनों में जो कुछ हुआ है, उस पर हम सभी की चिंताएं और विचार एक जैसे ही हैं।

समीर सरन: धन्यवाद। विदेश मंत्री जयशंकर जी, शैलजा द्वारा पूछा गया सवाल…

डॉ. एस. जयशंकर: मारिसे की तरह ही मैं खेल, शिक्षा और म्यांमार से जुड़े सवाल का इसी क्रम में जवाब देना चाहूंगा। खेलों में, आपको कभी मालूम नहीं होता कि आपको अच्छी प्रतिभाएं कहाँ मिलेगी और ऐसी प्रतिभाओं को व्यवस्थित कैसे किया जा सकता है। अगर, आप आईपीएल की ही बात करें तो, जब आईपीएल की शुरुआत हुई थी, तो पहले आईपीएल सीज़न का सबसे महान खिलाड़ी डर्क नेनिस नामक एक डच तेज गेंदबाज को माना जाता था। शायद आपको वह याद हों, हालांकि, मुझे पता है कि मारिसे कहने वाली हैं कि वो ऑस्ट्रेलियाई हैं। सही न? लेकिन, मुझे लगता है, उनके पास दो देशों के पासपोर्ट थे। जब आप कहते हैं कि वह डच हैं, तो यह बहुत अच्छा लगता है। लेकिन, अफगानिस्तान को देखें तो, अफगानों ने खेलों को कैसे अपनाया और आज जब आप राशिद खान को देखते हैं, तो यह अविश्वसनीय है कि वे कितने आगे बढ़ चुके हैं। इसलिए मैं खेल को राष्ट्रों के बीच जुड़ाव के लिए महत्वपूर्ण मानता हूं। मैं भारत को अन्य खेलों में भी उतना ही आगे बढ़ता हुए देखना चाहूंगा जितना कि वह क्रिकेट में है। और हम ऐसा कर रहे हैं। आप आज देखें तो हमने बैडमिंटन में सफलता हासिल की है, टेनिस, जिसका कि फ्रांस में आविष्कार किया गया था, एक ऐसा खेल है जहां हमने बिते कुछ समय में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। इसलिए मुझे लगता है कि यह हमारी समृद्धि, हमारे उत्थान, हमारे विकास का हिस्सा है और सरकार खुद इसे प्रोत्साहित कर रही है। हमारे यहाँ "खेलो इंडिया" और "फिट इंडिया" नाम से कुछ कार्यक्रम हैं। ये ऐसे क्षण हैं जहाँ हमने कोशिश की; मंत्रियों ने इसमें कुछ अंतर लाने की कोशिश की है।

शिक्षा की बात करें तो, आज शिक्षा ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारे संबंधों का केंद्र है। और मुझे यह कहते हुए बेहद खुशी हो रही है कि यह फ्रांस के साथ अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। मैं फ्रेंच हमारे लिए पूरक की तरह है, क्योंकि उन्होंने छात्रों को फ्रांस में पढ़ाई करने के दौरान खुद बेहतर बनाने की क्षमता प्रदान की है। इसलिए, हम फ्रांस को यूरोप में दूसरों के लिए एक उदाहरण मानते हैं, क्या वो हमारे लिए कुछ ऐसा नहीं कर सकते? इसलिए, जब हमारी त्रिपक्षीय वार्ता होगी, तो हम तीनों के बीच शिक्षा पर भी चर्चा होगी। जब म्यांमार की बात आती है, तो हम सभी एक लोकतांत्रिक देश हैं, जहां हमारी स्थिति कई मायनों में में एक जैसी ही है। क्योंकि हम अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित हैं और म्यांमार के साथ हमारे संबंध में विविधता है, हमारी स्थिति में भी विविधता है। इसलिए हमने इसपर द्विपक्षीय रूप से विचार किया है, यानि हमारी सीमाएं साझा हैं और हम म्यांमार में सभी पक्षों के साथ बहुत गहनता से जुड़े हुए हैं। मैं आपको बताना चाहूंगा, वे इस संदर्भ में क्या कर रहे हैं, इसके लिए हम आसियान से लगातार संपर्क में हैं, और संभवतः ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस भी ऐसा ही कर रहे होंगे। तो यह ऐसा मुद्दा है जिसपर हम सभी को एक साथ आने के तरीके खोजने होंगे और इसका हल तलाशने के लिए एक साथ मिलकर काम करने होंगे।

समीर सरन: आपके लिए एक और सवाल है। यह दर्शकों द्वारा पूछा गया है। उन्होंने पूछा है कि चूंकि इस क्षेत्र में क्वाड की उपस्थिति और गठन बहुत बड़ा है, वह इसे विंड टरबाइन कहते हैं। क्या आप मानते हैं कि विंड चाइम जैसा कोई अन्य समूह भी बनने वाला है? आप ऐसी बहुपक्षीय व्यवस्था का गठन कैसे करेंगे जिसका प्रभाव क्वाड की वजह से फीका न हो? शायद वह यही सवाल पूछना चाहते हैं।

डॉ. एस. जयशंकर: देखिए, मैं कहना चाहूंगा कि अगर कोई ऐसी व्यवस्था है, जो वास्तव में विंड टरबाइन है, जैसा कि आपने कहा, तो वह आसियान और आसियान से संबंधित प्लेटफ़ॉर्म है। क्योंकि अगर आप पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को देखें, तो यह बेहद उल्लेखनीय प्लेटफ़ॉर्म है। जहां एशिया, अमेरिका, कनाडा, रूस, यूरोप जैसे लगभग सभी देश इस प्लेटफ़ॉर्म पर हैं। इसलिए, किसी संगठन की केंद्रीयता या प्लेटफ़ॉर्म या तंत्र के समूह के संदर्भ में, मुझे लगता है कि आसियान के क्षेत्रों में क्या हो रहा है, इसके लिए आसियान ही केंद्रीय होगा और इसपर कोई संदेह नहीं है। मैं आसियान और क्वाड को लेकर आपको भ्रमित नहीं करूँगा। यह सेब और संतरे की तुलना करने जैसा है, मुझे लगता है कि क्वाड का उद्देश्य अलग है, क्योंकि इसमें चार ऐसे देश हैं, जो एक-दूसरे के साथ बेहद सहज हैं, जो बहुत सारे मुद्दों पर एक-दूसरे से सहमत हैं, जो बहुत सारे मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं, जिसने से कुछ का जिक्र मैंने किया है। लेकिन, अगर आप आसियान में हुए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को देखें तो, हमारे बीच भारत में प्रशांत महासागरों की पहल है। और मुझे बेहद खुशी हुई कि मंत्री ले ड्रियन ने इस बात पुष्टि की कि फ्रांस समुद्री संसाधनों के स्तंभ का नेतृत्व करने हेतु सहमत हो गया है। इससे पहले, ऑस्ट्रेलिया ने हमें बताया था कि वे समुद्री पारिस्थितिकी स्तंभ का नेतृत्व करेंगे, और जापान व्यापार एवं कनेक्टिविटी स्तंभ का नेतृत्व करने हेतु सहमत हो गया है। ये सभी आज के उदाहरण हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंध कैसे अलग-अलग तरीके से संचालित किए जा रहे हैं लेकिन जैसा कि मैंने कहा, बेहद सरलता और अधिक कल्पना के साथ ऐसा किया जा रहा है, और मुझे लगता है कि कूटनीति का भविष्य यही है।

जीन-यवेस ले ड्रियन: मैं यहां पर कुछ कहना चाहूंगा।

समीर सरन: ली ड्रियन जी, मैं थोड़ी देर में आपसे ही कुछ सवाल पूछने वाला हूं, आप अपनी बात भी रख सकते हैं। लेकिन ऋषि नाम के एक सज्जन ने भी आपसे एक सवाल पूछा है, और वह कहते हैं कि दक्षिणी क्वाड नामक एक अन्य क्वाड भी है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और न्यूजीलैंड सहयोगी हैं, इस समूह की स्थिति क्या है? भारत के संदर्भ में उस समूह में क्या हो रहा है? क्या इसमें कुछ प्रगति हुई है? और आप अपनी बात भी रख सकते हैं, जो आप विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा कही गई बातों के सदंर्भ में कहना चाहते हैं।

जीन-यवेस ले ड्रियन: सबसे पहले, मैं म्यांमार पर कुछ कहना चाहूंगा। हम यूरोप में इसको लेकर चर्चा करते हैं। हम श्रीमती आंग सान सू की के साथ एकजुटता हैं, सरकार के साथ एकजुटता हैं, जिसका चुनाव पूरी तरह तय प्रक्रिया से हुआ था, और तख्तापलट से बनी सरकार के व्यवहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है, और उनकी हिंसक कार्रवाई को लेकर भी विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। कहा जा रहा है, यूरोप ने कुछ उपाय किए। यूरोपीय संघ के 27 सदस्यों ने सैन्य सरकार के मुख्य अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाये हैं। उन्हें यूरोप आने की मनाही है। यूरोप में उनके पास जो भी सामान या संपत्ति है, उन्हें जब्त कर लिया गया है। और हमने उन कंपनियों, व्यवसायों के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाने का भी फैसला किया जिनका उद्देश्य केवल सेना के उन सदस्यों को लाभ देना है। और, हमने सरकार को दी जाने वाली सहायता को खत्म कर दिया है। मेरा मानना है कि यह एशिया के दक्षिण पूर्व में लोकतंत्र पर एक गंभीर हमला है। और हमें अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए रखने की जरूरत है।

मारिसे और जयशंकर द्वारा खेल और शिक्षा पर कहीं गई बातों के संदर्भ में भी मैं कुछ कहना चाहूंगा। साइकिलिंग पर ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारे संबंध काफी लंबे समय से हैं। कुछ समय तक ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी फ्रांस में जीतते रहे और कैडेल इवांस यहां बहुत लोकप्रिय हैं। जहाँ तक प्रशिक्षण और शिक्षा से जुड़े मुद्दों सवाल है, यह हम तीनों की प्राथमिकता है। हमारे भारतीय सहयोगी ने फ्रांस में भारतीय छात्रों के लिए कुछ प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने की इच्छा जताई, ताकि वे फ्रेंच सीख सकें। और हमारा लक्ष्य फ्रांस में 20,000 भारतीय छात्रों को पढ़ाई करने की सुविधा देना है क्योंकि इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है, और दोनों देशों के बीच जुड़ाव स्थायी बनते हैं। और जब ऑस्ट्रेलिया के साथ हमने अपने संबंधों की शुरुआत की, तो यह शिक्षा पर अधिक केन्द्रित था और साथ ही इसमें सिडनी भी शामिल था। मैंने क्वैड से जुड़ा सवाल सुना, लेकिन मैं इसे ठीक से समझ नहीं सका।

समीर सरन: कोई बात नहीं, हमारे पास समय की कमी है। हमारे पास बस दो मिनट का समय बचा है। मैं सवाल पूछने वाले सदस्य को बता दूंगा हम उनके सवाल का अगली बार जवाब देना का प्रयास करेंगे। लेकिन, अभी हम मारिसे पायने जी और फिर मंत्री जयशंकर से उनके विचार जानेंगे और उसके बाद हम इस बैठक को समाप्त करेंगे। सबसे पहले महोदया आप अपनी बात कहें।

मारिसे पायने: इस तरह की बैठक का आयोजन करने और इस महत्वपूर्ण रायसीना संवाद 2021 में शामिल होने का अवसर देने के लिए समीर और मेरे दोनों सहयोगियों को धन्यवाद। यह बताना चाहूंगी कि मैं ऑस्ट्रेलिया में देर रात तक और सुबह के समय, अपना ज्यादातर समय ला टूर डे फ्रांस और आईपीएल क्रिकेट देखते हुए बिताया है। इसलिए मैं कह सकती हूं कि इन दोनों को ऑस्ट्रेलिया में काफी पसंद किया जाता है। समीर, मैं कहना चाहूंगी कि इस चर्चा के दौरान इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि ऑस्ट्रेलिया भी भारत और फ्रांस की तरह ही इंडो पैसिफिक को एक खुला, समावेशी, लचीला क्षेत्र बनाना चाहता है, जिसके हम मजबूत और रचनात्मक योगदानकर्ता हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण संदेश है। ऑस्ट्रेलिया का दृष्टिकोण हमेशा से साझेदारी का एक नेटवर्क तैयार करना और उसे बनाए रखना रहा है, चाहे वे द्विपक्षीय हों या क्षेत्रीय, बहुपक्षीय या बहुपक्षीय और छोटे व लचीले समूहों हों, जैसे कि विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, भारत, फ्रांस के संबंध हैं। हमारा मानना है कि ये एक नई और लचीली साझेदारी है जो मौजूदा संस्थानों और गठजोड़ों एवं रिश्तों का मुकाबला नहीं कर सकती, लेकिन मेरे विचार में यह हमारे संबंधों को गहरा बनाती है। इसलिए एक साथ काम करते हुए, हमारे पास उन चुनौतियों का व्यावहारिक हल तलाशने हेतु साथ मिलकर काम करने का अवसर है, जिनका सामना हम अभी कर रहे हैं और जो लंबे समय से बनी हुई हैं और अधिक रणनीतिक हैं। रायसीना संवाद में शामिल होने का निमंत्रण देने हेतु धन्यवाद, मैं इसके आगामी आयोजन में व्यक्तिगत रुप से भाग लेने का हर संभव प्रयास करूंगी और इसके लिए तत्पर हूं। धन्यवाद।

समीर सरन: धन्यवाद मंत्री जी। अब इस पैनल में भारतीय विदेश मंत्री अपनी समापन टिप्पणी करेंगे।

डॉ. एस. जयशंकर: सबसे पहले, मैं अपने दोनों सहयोगियों को धन्यवाद देना चाहूंगा। यह बातचीत काफी सार्थक रही। और आपने मुझसे भावी रास्ते के बारे में पूछा? मुझे लगता है कि आगे बढ़ने का एक तरीका अपनी त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन करना है। मैं इसे लेकर तत्पर हूं। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि, इंडो-पैसिफिक इस बात का स्पष्ट संदेश है कि भारत मलक्का जलडमरूमध्य और अदन की खाड़ी के बीच ही स्थिर नहीं रहेगा, हमारी रुचियां, हमारी गतिविधियां, हमारा प्रभुत्व आज इससे परे हैं। जब हम बड़े कैनवास की बात करते हैं, तो हमारा ध्यान ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस की ओर जाता है। ऐतिहासिक, भौतिक और सांस्कृतिक रूप से, फ्रांस इस कैनवास का हिस्सा है, और हमारे बीच कई गतिविधियां और परियोजनाएं हैं, जिस पर हम एक साथ काम कर सकते हैं। इस साझेदारी की शायद सबसे महत्वपूर्ण विशेषचा सहज ज्ञान युक्त सहुलियत है, जो समाजों के रूप में, राजनीति के रूप में, अर्थव्यवस्थाओं के रूप में हमारे दोनों देशों के बीच मौजूद है। इसलिए मैं इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि आज आपने पैनल में जो देखा, वह कल कूटनीति में नज़र आएगा, जिसमें तीनों देश मिलकर काम करेंगे। और मैं चाहूंगा कि आने वाले वर्षों में यह बढ़ता रहे और मैं इस संबंध में अपने दोनों सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने को लेकर उत्सुक हूं।

समीर सरन: इस चर्चा के समापन में यह बेहद अच्छी टिप्पणी रही। तीन देश भविष्य में एक साथ काम करने को लेकर दृढ़ संकल्पित हैं, ताकि लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके और इंडो-पैसिफिक के दौर में और आने वाले दशकों में सहयोग का एक नया आधार तैयार किया जा सके। डिजिटल रूप से हमारे साथ जुड़ने के लिए मैं सभी मंत्रियों को धन्यवाद देता हूं। मैं कुछ समय तक तकनीकी खराबी के कारण बैठक में शामिल न हो पाने के लिए दर्शकों से माफी मांगता हूं। यह डिजिटल युग का नुकसान है। लेकिन, बैठक अच्छी तरह से पूरी हुई। और हमारे साथ जुड़ने के लिए एक बार फिर से मैं सभी मंत्रियों को धन्यवाद देता हूं। मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं और मैं फ्रांस के मंत्री को दिल्ली में सफल प्रवास की शुभकामना देता हूं। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, और रायसीना संवाद में होने वाली आगामी बातचीत के लिए हमारे साथ बने रहें।

अस्वीकरण: यह फ्रांस के यूरोप और विदेश मामलों के मंत्री श्री जीन-यवेस ले ड्रियन द्वारा कई गईं टिप्पणियों का अनुमानित अनुवाद है। मूल टिप्पणी फ्रेंच भाषा में की गई थी।

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