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विदेश मंत्री का ली मोंडे को दिया गया साक्षात्कार

नवम्बर 15, 2019

प्रश्न : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पिछली बैठक के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि यह "चीनी और भारतीय पक्ष को साथ मिलकर काम करना" साझे हित में था। चीन और भारत के बीच कौन से मुद्दे साझे हैं?

मानव जाति के इतिहास में, हमारे दोनों देश बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं, और आज वे एक बार फिर से विश्व मामलों में अपनी जगह ले रहे हैं। यह एक बहुत सुदृढ़ समानता है। क्योंकि जब हम दुनिया के पुनर्संतुलन के बारे में बात करते हैं, तो यह अक्सर एशिया का और एशिया के भीतर का पुनर्संतुलन होता है, यह मुख्य रूप से भारत और चीन की बीच का पुनर्संतुलन है। इस तथ्य का कि हम दोनों विकास कर रहे हैं, भले ही हमारे पास अलग-अलग संस्थाएं और शासन-प्रणालियाँ हैं, यह अर्थ है कि अपने हितों की रक्षा करने में हमारी समान रुचि है। जी-20 इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है। 2009 तक, केवल जी-7 या जी-8 ही मौजूद था, जिसमें मुख्यतः यूरोपीय और पश्चिमी वर्चस्व था। भारत और चीन विचार-विमर्श की वैश्विक प्रक्रियाओं के विस्तार में रुचि रखते हैं। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) भी कुछ हद तक इस भूमिका को निभाते हैं। शेष विश्व उस पर उतना ध्यान नहीं दे रहा है जितना उसे देना चाहिए।

प्रश्न: लेकिन चीन और भारत एक समान तरीके से आगे नहीं बढ़ रहे हैं...।

न तो समान तरीके से, और न ही समान गति से। दोनों ही की अपनी चुनौतियां हैं। दुनिया में पश्चिम का अत्यधिक वर्चस्व था - इस पर 1945 में पश्चिम पूरी तरह से हावी था, और इसके बाद से यह धीरे-धीरे बदला है। हालांकि यह आज भी वही स्थिति है: विश्व के विभिन्न देशों के लिए विश्व को अधिक समावेशी बनाने में चीन और भारत की समान रुचि है।

प्रश्न: क्या चीन भारत का प्रतिद्वंद्वी है?

विश्व मामलों में, हम प्रतियोगिता और सहयोग का एक बहुत ही दिलचस्प मिश्रण देखते हैं। प्रतियोगिता इसलिए क्योंकि प्रत्येक देश, एक साझे स्थान में, अपने लिए सबसे अच्छा विकल्प तलाशता है। लेकिन अगर वहां केवल शुद्ध प्रतिस्पर्धा विद्यमान है, तो कोई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था नहीं है। अतः हर कोई सहयोग करता है ताकि एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था विद्यमान हो सके। हम सहयोग और प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन पाते हैं। चीन के मामले में, हम पड़ोसी देश हैं, हम एक-दूसरे को लंबे समय से जानते हैं। हमने अलग-अलग विकल्प बनाए हैं, लेकिन हमारे क्षेत्र में, हम बहुत अधिक आदेशात्मक नहीं हैं...वस्तुतः, प्रत्येक देश अपने मॉडल के गुणों पर विश्वास करता है, लेकिन इसे स्पष्ट कहना हमारी संस्कृति में नहीं है। हमें एक-आयामी दृष्टिकोण रखने से बचना होगा, वास्तविक जीवन अधिक जटिल है! हम दो महान देश हैं और अच्छे रिश्ते रखना हमारे साझे हित में है।

प्रश्न: श्री मोदी की छवि एक राष्ट्रवादी नेता की है। क्या इस छवि को आप स्वीकार करते हैं?

प्रत्येक देश में राष्ट्रवाद की एक अलग समझ है, एक अलग इतिहास है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, यह एक अलगाववादी अर्थ है। एशिया में, कम से कम भारत में, राष्ट्रवाद एक सकारात्मक शब्द है। राष्ट्रवादी उपनिवेशवाद के, पश्चिम के वर्चस्व के खिलाफ खिलाफ खड़े हो गए हैं । सांस्कृतिक विश्वास की पहचान को पुनःस्थापित करने के लिए बहुत कुछ किया जाना है। अतः हाँ, हमारे देश में राष्ट्रवाद की भावना विद्यमान है। हमारे लोग सोचते हैं कि देश अच्छा काम कर रहा है; न केवल हमें बेहतर माना जाता है, बल्कि हम दुनिया के लिए और अधिक कर सकते हैं। भारत में, एक अच्छा राष्ट्रवादी एक अंतर्राष्ट्रीयवादी है, इसमें विरोधाभास नहीं है। समस्या यह है कि आप अपनी अवधारणाओं को हम पर लागू करते हैं।

प्रश्न: लेकिन क्या यह राष्ट्रवाद मुस्लिम अल्पसंख्यक के साथ तनाव उत्पन्न नहीं करता है?


जी नहीं। यह मेरा देश है जो मेरी राष्ट्रीयता को परिभाषित करता है, न कि मेरे धर्म या मेरी जाति या मेरी भाषा को। यहाँ यूरोप में, भाषा, धर्म और राष्ट्रीयता के बीच संबंध काफी मजबूत है। राष्ट्र की अवधारणा अलग है। भारत में, हम प्राकृतिक, भाषाई, जातीय और धार्मिक विविधता के साथ एक सभ्यता-राज्य के रूप में रहते हैं। हमने कभी एकरूपता को आवश्यकता या आकांक्षा नहीं माना है।

दुनिया में कुछ ही स्थान हैं जहाँ आप इतने सारे लोगों को देखेंगे जिनमें मध्य कई विश्वास सह-अस्तित्व में हैं। यूरोप में विविधता के बारे में एक अलग समझ और सोच है। आप अपने प्रिज्म के माध्यम से हमें देखने का प्रयास करते हैं, आप हमें एक ऐसा व्यवहार देते हैं जो आप स्वयं अपनाते हैं। लेकिन हम आप तो नहीं हैं!

इसके अलावा, भारत में लोकतंत्र और शैक्षिक मानकों की प्रगति के साथ, अनेक और लोग राजनीतिक बहस में भाग ले रहे हैं। आज भारत में राजनीति कम पाश्चात्य, कम अभिजात्य है। हम वास्तविक भारत की ओर, एक शैली की ओर बढ़ रहे हैं जो भारतीय संस्कृति में गहनता से निहित है। यह अच्छी बात है। हालांकि पश्चिमी दुनिया इसे राष्ट्रवाद के रूप में देखती है, लेकिन ऐसा नहीं है।

प्रश्न: कश्मीर 5 अगस्त से दुनिया से कट गया है। ऐसा कब तक चलता रहेगा?

मैं इसे "कटना" नहीं कहूंगा। जब अगस्त में सुधारों की घोषणा की गई थी, तो कट्टरपंथी और अलगाववादी तत्वों की ओर से हिंसक प्रतिक्रियाओं के खतरे के कारण सावधानी बरती गई थी। इन प्रतिबंधों को उत्तरोत्तर उठा लिया गया है, और जैसे-जैसे स्थिति सामान्य होती गई, टेलीफोन और मोबाइल लाइनें बहाल करा दी गई हैं, अब दुकानें खुली हुई हैं और सेब की फसल पर काम चल रहा है। स्थिति फिर से सामान्य होती जा रही है।

प्रश्न: क्या विदेशी पत्रकार वहां जा पाएंगे?


मैं एक निश्चित समय-सीमा की बात नहीं कर सकता, लेकिन जैसे ही वहां स्थिति सुरक्षित होती है, वे वहां जा सकते हैं। हम उन लोगों द्वारा समस्याओं को भड़काने के लिए वहां उनकी उपस्थिति नहीं चाहते हैं जो यह दिखने के लिए कि वहां अशांति है, इसका लाभ उठा सकते हैं।प्रश्न: पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने हाल ही में भारत के साथ संबंधों को "शून्य के करीब" के रूप में वर्णित किया है। क्या आपका मूल्यांकन भी यही है?

कई वर्षों से यह संबंध मुश्किल भरा रहा है, मुख्यतः इसलिए क्योंकि पाकिस्तान ने एक बड़ा आतंकवादी उद्योग विकसित किया है और वह भारत में हमले करने के लिए आतंकवादी भेजता है। पाकिस्तान खुद इस स्थिति से इनकार नहीं करता है। अब आप ही मुझे बताएं: कौन सा देश एक ऐसे पड़ोसी देश के साथ बातचीत और वार्तालाप करने के लिए तैयार होगा जो उसके खिलाफ खुलेआम आतंकवाद का अभ्यास करता है? यदि ऐसा आपके किसी पड़ोसी ने किया होता, तो क्या आप, अर्थात फ्रांस, यह दिखावा कर पाएंगे कि सब कुछ ठीक है? हमें ऐसी कार्यवाहियों की आवश्यकता है जो सहयोग करने की वास्तविक इच्छा को प्रदर्शित कर सकें। उदाहरण के लिए, आतंकवादी गतिविधियों के लिए वांछित ऐसे अनेक भारतीय हैं, जो पाकिस्तान में रह रहे हैं। हम पाकिस्तान से कह रहे हैं: उन्हें हमारे हवाले करो।

प्रश्न: डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी नीति ने परा-अटलांटिक संबंधों को काफी बदल दिया है। आप इसे कैसे देखते हैं?

यहां एक महत्वपूर्ण अंतर विद्यमान है: यूरोप एक गठबंधन प्रणाली को अपनाए हुए है। अमेरिका में होने वाले परिवर्तनों का गठबंधन प्रणाली पर प्रभाव पड़ा - न केवल यूरोप पर, बल्कि जापान पर भी। हम गठबंधन की व्यवस्था में कभी नहीं रहे। हम अपने बलबूते पर ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों से निपटने का प्रयास करते रहे हैं। हमारी मानसिकता हमें अप्रत्याशित स्थिति से बेहतर तरीके से निपटने में समर्थ बनाती है। ये परिवर्तन केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही नहीं हैं, एशिया में भी कई बदलाव हुए हैं, चीन, भारत, आसियान का अभ्युदय। हम एक पूरी तरह से अलग दुनिया में हैं। हम 1945 के बाद के द्विध्रुवीय विश्व और 1992 के बाद के अमेरिकी दुनिया को आदर्श मानते हैं। लेकिन आप जरा विश्व के इतिहास को देखें। चीजें बदलती हैं, कोई भी स्थिति चिरस्थायी नहीं है। यह दुनिया अलग होगी, शक्ति और अधिक बिखरेंगी, अधिक कर्ता होंगे...।

प्रश्न: क्या आप यह देखते हैं कि यूरोप इन कर्ताओं में से एक बन रहा है?

यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष (उर्सुला वॉन डेर लेयेन) को उम्मीद है यूरोप अधिक-से-अधिक भू-राजनीतिक भूमिका निभाएगा। यह एक यूरोपीय आकांक्षा प्रतीत होती है। हम इसके पक्ष में हैं। हम एक गहन लोकतांत्रिक देश हैं। हम परामर्श, विविधता और बहुलवाद पर विश्वास करते हैं - घर पर और दुनिया भर में भी। और एक लोकतांत्रिक विश्व में, यूरोप की एक बड़ी भूमिका होनी चाहिए।

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