विशिष्ट व्याख्यान

भारत की एक्ट ईस्ट नीति की जाँच-परख

  • राजदूत (सेवानिवृत्त) अनिल वाधवा

    By: राजदूत (सेवानिवृत्त) अनिल वाधवा
    Venue: डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, म.प्र.
    Date: अगस्त 23, 2019

साझा ऐतिहासिक संबंध, संस्कृति और ज्ञान दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारतीय संपर्क और संबंध का आधार रहे हैं।भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के मूल्य और संस्कृति आपस में जुड़े हैंऔर यह विभिन्न सभ्यताओं के संपर्कों पर आधारित है।तीसरी शताब्दी सेइन संपर्कों के स्पष्ट प्रमाणों को देखा जा सकता है, और ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि व्यापार, संस्कृत और भारतीय महाकाव्यों के माध्यम से परस्पर आदान-प्रदान होते थे।दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के बीच तकनीकी नवाचारों के साक्ष्य भी अच्छी तरह से प्रलेखित हैं।ये समानताएँ भारत और इस क्षेत्र के बीच सहयोग के लिए आधार प्रदान करती हैं।भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच की ये समानताएं सांस्कृतिक मूल्यों और अवधारणाओं, संरचनाओं और कलाकृतियों, मानव आवास, मौखिक या लोक विरासत, भाषा और साहित्य, पारंपरिक कला और शिल्प, वास्तुकला, प्रदर्शन कला, खेल, स्वदेशी ज्ञान पद्धतियों और प्रथाओं, मिथकों, रीति-रिवाजों और मान्यताओं, अनुष्ठानों और अन्य जीवित परंपराओं, लिखित और लोकप्रिय सांस्कृतिक विरासत में व्याप्त हैं।

दक्षिण पूर्व एशियाईसा पूर्व 200 से 15वीं शताब्दी तक भारतीय प्रभाव के अंतर्गत रहा, 15वीं शताब्दी मेंस्थानीय राजनीति द्वारा हिंदू और बौद्ध प्रभाव को अवशोषित कर लिया गया था।भारतीय उप-महाद्वीप के दक्षिण पूर्वी तट के राज्यों ने बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलाया प्रायद्वीप, कंबोडिया और वियतनाम के दक्षिण पूर्वी एशियाई राज्यों के साथ व्यापारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध स्थापित किए थे।प्रायद्वीप के दक्षिण पूर्वी तट से दूर पल्लव साम्राज्य में समुद्र पार करने पर सांस्कृतिक प्रतिबंध नहीं था।इसके कारण समुद्री मार्गों के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के साथअधिक आदान-प्रदान हुआ।भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म की मृत्यु होने के बावजूददक्षिण पूर्व एशिया के कई राज्यों में बौद्ध धर्म पनपा और नया धर्म बन गया।दक्षिण पूर्व एशिया में लगभग 1500 ईस्वी तकदक्षिण भारतीय व्यापारियों, साहसिकों, शिक्षकों और पुजारियों का काफी प्रभाव रहा।पहली ईस्वी में कंबोडिया में स्थापित होने वाला फननवास राज्य पहला हिंदू राज्य था।एक और हिंदू राज्य, चेन-लाछठी से नौंवीं शताब्दी ईस्वी तक वहाँ मौजूद था।एक खमेर राजा जयवर्मन द्वितीय (800-850ईस्वी सन्) ने मध्य कंबोडिया के अंगकोर में राजधानी बनाई, भगवान शिव के साथ अपनी पहचान स्थापित की।बारहवीं शताब्दी तक, अंगकोर साम्राज्य ने थाईलैंड में अपना विस्तार किया (द्यारावती के मोन राज्य पर विजय प्राप्त की)और पूर्व दिशा (वियतनाम) में चंपा में प्रवेश किया।छठीसे चौदहवीं शताब्दी तक, सुमात्रा और जावा के इंडोनेशियाई द्वीपों पर आधारित महान समुद्री साम्राज्यों की एक श्रृंखला विद्यमान थी।चोलों ने ग्यारहवीं शताब्दी में मलाया पर अधिकार कर लिया।निचले बर्मा में, पीयू के लोग हिंदू धर्म का पालन करते थे।मलेशिया में, पुरातत्वविदों को बुजंग घाटी की बस्ती में ईसा पूर्व 110के अवशेष और खंडहर मिले हैं, माना जाता है कि यह प्राचीन भारतीयों द्वारा प्रभावित दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे पुरानी सभ्यता है।ईसा पूर्व छठी शताब्दी तकथाईलैंड के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संपर्क का पता लगाया जा सकता है, कहा जा सकता हैतीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मेंअशोक द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को भेजे जाने के बाद से सीधे संपर्क आरंभहुए होंगे।सुखोथाई काल (1275-1350) में थाईलैंड जाने वाले भारतीय या तो स्याम से व्यापार करने के लिए आए व्यापारी थे अथवा ब्राह्मण जिन्होंने ज्योतिष विशेषज्ञों के रूप में और समारोहोंके आयोजन में सियामी राज दरबारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।अयुत्या काल (1350-1767) में तमिल व्यापारियों ने नाव से दक्षिण में प्रवेश किया।चाम्स नामकभारतीय मूल के लोगों ने दक्षिण मध्य वियतनाम में 400 ईस्वीमें हिंदू साम्राज्य चम्पा की स्थापना की।

हालाँकि भारत के दक्षिण पूर्व एशिया के साथ घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंधरहे है, लेकिन आजादी के बाद इसके आंतरिक मोड़ ने क्षेत्र में इसके प्रभाव को काफी कम कर दिया।हालाँकि1960 के दशक में दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों ने भारत को एक प्राकृतिक रणनीतिक साझेदार और संभावित सुरक्षा के एक गारंटर के रूप में देखा,गुटनिरपेक्षता के अपने सिद्धांतों के अनुरूप, भारत ने किसी भी प्रस्तावित क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था में भाग नहीं लिया।शीत युद्ध के उत्तरार्ध के वर्षों में, सोवियत संघ के साथ भारत के संबंध और वियतनाम के समर्थन ने मुख्य रूप से संयुक्त राज्य के प्रभाव में रहे क्षेत्र से भारत के राजनीतिक अलगाव को मजबूत किया।केवल पिछले तीन दशकों में भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापक रूप से जुड़ने की इच्छा प्रकट की है।

राजनीतिक स्तर पर, भारत की वर्तमान नीति इस क्षेत्र में आसियान की क्षमताओं को बढ़ावा देने, बिम्सटेक को मजबूत करने, बंगाल की खाड़ी में सहयोग और मेकांग गंगा सहयोग समूह को बढ़ावा देने, दक्षिण पूर्व एशिया और भारत-चीन के बीच अधिक पूर्व पश्चिम परिवहन संपर्क को बढ़ावा देने के लिए है।आर्थिक कारणों और सार्क की विफलता के कारण, भारत ने बीबीआईएन समूह को अपना समर्थन दिया है, जो भारत के अपने पूर्व के तत्काल पड़ोसियों के साथ संपर्क बढ़ाने काजरिया है।भारत, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान रक्षा मंत्री प्लसऔर विभिन्न सदस्यता और कई परस्पर व्याप्तियों के साथ आसियान क्षेत्रीय मंच समूह में एक सक्रिय भागीदार रहा है, जो सहयोग के राजनीतिक और सुरक्षा पहलुओं को निपटाते हैं।

भारत ने1990 के दशक की शुरुआत में, ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ की एक नई अवधारणा आरंभ की,जो देश के उत्तर-पूर्व को भारत-प्रशांत क्षेत्र के प्रवेश द्वार में बदलने और भारत के विस्तारित पड़ोस के साथ मजबूत संबंध बनाने में मदद करने के लिए बनाई गई थी।यह नीति भारत की क्रमिक सरकारों के लिए धुरी बनी रही।हालाँकि लुक ईस्ट नीति के लाभांश पर बहस की जा सकती है, मोदी सरकार ने 2014 के संसदीय चुनावों में अपनी शानदार जीत के बाद, चीन, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार के रणनीतिक स्थान पर स्थित भारत के उत्तर पूर्व के तेल समृद्ध और चाय उगाने वाले क्षेत्र के लिए पूरी तरह से अलग योजना बनाई थी। नाय पेई ताव में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए,प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन के दर्शकों से कहा कि उनकी सरकार ने भारत की लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नीति में बदलने को उच्च प्राथमिकता दी है, दर्शकों में विश्व के नेता भी शामिल थे।एक्ट ईस्ट नीति का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया और भारत-प्रशांत के अन्य देशों के साथ मजबूत व्यवसायिक और व्यापारिक संबंध बनाने के उद्देश्यों कोपूरा करना और भारत के उत्तर पूर्व स्थित राज्यों के लिए विकास के अवसर उत्पन्न करना है।इसलिए वाणिज्य, संस्कृति और संपर्कअर्थात् तीन सी भारत की वर्तमान एक्ट ईस्ट नीति के स्तंभ हैं।

भारत की एक्ट ईस्ट नीति अपने पूर्वमुखी अभिविन्यास और भारत-प्रशांत के व्यापक दृष्टिकोण के साथ संबंधों के केंद्र में है।इन वर्षों में, इस क्षेत्र के लिए भारत का दृष्टिकोण- आसियान और एआरएफ, ईएएसऔर एडीएमएम+ जैसे इसके संबंधित ढांचे के साथ जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांतद्वीपों सहित आगे के देशों के साथ व्यापक रणनीतिक जुड़ाव में बदल गया है।भारत और आसियान के बीच व्यापार और निवेश, संपर्क, ऊर्जा, संस्कृति, लोगों से लोगों के परस्पर संपर्क और समुद्री सुरक्षा सहित कई आर्थिक और रणनीतिक मुद्दों पर सहयोग बढ़ा है।2014 में यह भी कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी भारत-प्रशांत के संयुक्त दृष्टिकोण पर राष्ट्रपति ओबामा से सहमत थे- यह दर्शाता है कि जहाँ तक सुरक्षा और अर्थशास्त्र का संबंध है हिंद महासागर और प्रशांत महासागर परस्पर जुड़े हुए थे।

आसियान देशों के दस राष्ट्राध्यक्ष26 जनवरी 2018 को 25वें स्मारक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए और भारतीय गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत आये थे,जो इस ऐतिहासिक अवसर पर आसियान के नेताओं का एक अभूतपूर्व सम्मिलन था।1996 में एक संवाद साझेदार के रूप में शामिल होने और 2002 में सम्मेलन स्तर के एक साझेदारके रूप में शुरुआत करने के बाद, 2012 में, भारत आसियान का एक रणनीतिक साझेदार बन गया था। आज, भारत विभिन्न क्षेत्रों में कम से कम 30 उच्च स्तरीय संवादों में शामिल है।

भारत साझा सुरक्षा और समृद्धि के दोहरे सिद्धांतों के आधार पर एक क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था कासमर्थन करता रहा है।प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में एसएजीएआर अथवा सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) की अपनीदूरदृष्टि में इसेनिरूपित किया।सागर एक सुरक्षित और स्थिर वातावरण में सतत आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए हमारे चारों ओर के समुद्रों और महासागरों द्वारा निभाई गई भूमिका को पहचानता है।भारत,भारत-प्रशांतक्षेत्र को तेजी से संपर्कके मार्ग के रूप में देखता है - दुनिया का अधिकांश व्यापार इन महासागरों से होकर गुजरता है।भारत,भारत-प्रशांत को बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ देखने के अलावायह भी चाहता है कि यह क्षेत्र पारंपरिक और अनौपचारिक खतरों से मुक्त रहेऔर सामान तथा लोगों और विचारों की मुक्त आवाजाही की अनुमति दे।यह सुनिश्चित करने में भारत यूएनसीएलओएस सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान को महत्वपूर्ण मानता है।दक्षिण चीन सागर, तटवर्ती राष्ट्रों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है और यह सभी आसियान देशों और भारत के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।आसियान ने हमेशा समूह की केंद्रीय भूमिका के लिए भारत की सराहना की और इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेने की मांग की।भारत, ब्लू इकोनॉमी, तटीय निगरानी, अपतटीय गश्त क्षमताओं के निर्माण, हाइड्रोग्राफिक सेवाओं और बढ़ती समुद्री क्षेत्र जागरूकता के लिए सूचना साझा करने में आसियान के साथ सहयोग करना चाहेगा।समुद्री संचार की सुरक्षा में समुद्री क्षेत्र की जागरूकता और दक्षिण चीन सागर में बढ़ते नौसैनिक जहाजों पर नज़र रखने के लिए आसियान और भारत के बीच बढ़ते अभिसरण की मांग को पूरा करनामहत्वपूर्ण है।इस संदर्भ में, मलक्का जलडमरूमध्य, लम्बाक और सुंडा क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख हित है।सिंगापुर सूचना संलयन केंद्र (आईएफसी) और भारत के सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र (आईएमएसी) के बीच समुचित समुद्री क्षेत्र की जागरूकता बढ़ाने के लिए सहयोग और पनडुब्बियों के आवागमन का डेटा साझा करने में सहयोग से भारत की समुद्री निगरानी क्षमताओं का विकास होगा।इस समय भारत मलक्का जलडमरूमध्य को हमलों और समुद्री डकैतों से मुक्त रखने के साथ-साथ समुद्री मार्गों को निरापद बनाये रखने के लिए आसियान के साथ एक नियमित बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास करता है।

विगत वर्षों मेंआसियान एक गतिशील समूह के रूप में उभरा है, इसके साथ गहरे आर्थिक एकीकरण की आवश्यकता है।पूरा आसियान साथ मिलकर3.8 ट्रिलियन डॉलर के कुल सकल घरेलू उत्पाद और1.85 बिलियन लोगों का समूह है।पिछले 18 वर्षों में आसियान के साथ भारत के व्यापार और निवेश का प्रक्षेपवक्र ऊपर की ओर बढ़ा है।आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका भारत के कुल व्यापार में10.6% हिस्सा है।वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार 81.33 अरब अमरीकी डॉलर का हैऔर आसियान के लिए भारत कानिर्यात इसके कुल निर्यात का 11.28% है।आसियान ने अप्रैल 2000 से मार्च 2018 के बीच भारत में 68.91 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश किया है और भारत ने 2007 से 2015 के बीच आसियान में 36.67 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश किया है।सामानों के व्यापार में आसियान-भारत एफटीए लागू हो गया है, जबकि कंबोडिया जैसे कुछ आसियान देशों को अभी भी सेवाओं के समझौते में आसियान भारत के व्यापार की पुष्टि करना बाकी है।इसके अलावा, भारत और आसियान के साथ-साथ अन्य 5 आसियान साझेदार - चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान - क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) वार्ता में धीमी प्रगति कर रहे हैं।पेशेवरों की आवाजाही पर नियमों में ढील देने की भारत की मांग को इन देशों से उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली हैऔर भारत लक्षित वस्तुओं के लिए अपना बाजार खोलने में अनिच्छुक है।हालाँकि, भारत और आसियान ने आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता और पारस्परिक रूप से लाभप्रद क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को तेजी से पूरा करने के लिए उच्चतम स्तर पर प्रतिबद्धतास्वीकार की है।आसियान देशों से उच्च आयात शुल्क और बाधाओं का सामना करने के कारणकृषि उत्पादों के निर्यात में भी गिरावट आई है।2012 में 100 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया गया था जिसे पूरा करना कठिनप्रतीत हो रहा है।

भारत और आसियान के बीच माल और सेवाओं की आवाजाही की लागत में कटौती करने के लिएजमीन, समुद्र और हवा के माध्यम से कनेक्टिविटी में सुधार करना आर्थिक संबंधों में सुधार का एक प्रमुख पहलू है।भारत, म्यांमार के रास्ते,भारत कोऔर थाईलैंड से जोड़ने वाले त्रिपक्षीय राजमार्ग के निर्माण और लाओस, कंबोडिया और वियतनाम तक इसके विस्तार को गति देने के लिए अच्छा प्रयास करेगा।इस राजमार्ग का संरेखण, भारत-म्यांमार के सीमावर्ती शहर मोरेह से शुरू होगा और म्यांमार के तमू, कालेवा, यारगी, मोनीवा, मांडले, मीकाटिला, म्यावड्डी आदि कई शहरोंसे होकर म्यांमार-थाईलैंड की सीमा पर माई सोत मेंसमाप्त होगा और इसके बाद कनेक्टिविटी पर आसियान मास्टर प्लान के एक चार-लेन वाले राजमार्ग और काफी दिनों से प्रतिक्षित आसियान पूर्व पश्चिम गलियारेसे जुड़ेगा।2015 में प्रधानमंत्री मोदीद्वारा आसियान के साथ डिजिटल और बुनियादी ढांचा कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए 1 अरब अमरीकी डॉलरकी ऋण श्रृंखला की घोषणा की गई है।इस ऋण सुविधा के उपयोग में आने वाली बाधाओं की पहचान करना आवश्यक है। सीएमएलवी देशों में विनिर्माण केंद्र विकसित करने की दिशा में 77 मिलियन अमरीकी डॉलर की प्रतिबद्धता भी स्वीकार की गई है।इस पहल का लाभ पाने के लिए इस पर लगातार निगरानी रखना जरूरी है।त्रिपक्षीय राजमार्ग को केवल तभी बनाए रखा जा सकता है जब म्यांमार के रास्ते इस मार्ग पर माल और आर्थिक गतिविधि की पर्याप्त आवाजाही हो।इसलिए भारत को म्यांमार के साथ घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता है ताकि आर्थिक केंद्रों और उस मार्ग की गतिविधियों को विकसित किया जा सके जो काफी कठिन इलाके से गुजरता है।भारत म्यांमार में 69 पुलों की मरम्मत और इस सड़क का निर्माण कर रहा है।इन कठिनाइयों के कारण राजमार्ग के पूरा होने में लगभग 5 वर्ष की देर हो गई है और अब 2020 में इसके खुलने की आशा है।हालाँकि, भारत नेइस समय का उपयोग त्रिपक्षीय राजमार्ग के सफल उद्घाटन के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे पर काम करने के लिए किया है, जिसमें मोटर वाहन और लाइसेंसिंग समझौता, कुछ त्वरित प्रभाव वाली परियोजनाओं में म्यांमार कीमदद करनाऔर इससे भी महत्वपूर्ण बात, भारत के पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी बढ़ाने की दिशा में काम करना शामिल है।पूर्वोत्तर क्षेत्र को नई सड़क और रेल संपर्क से जोड़कर, उत्तर पूर्व में नदी नौवहन सहित बहुविध परिवहन को खोलने, कई सीमा कराधान जैसी बाधाओं को दूर करनेऔरपूर्वोत्तर केराज्यों में"हाट" या स्थानीय बाजारों जैसी आर्थिक गतिविधियों को स्थापित करने के बारे में सोचने से भारत सस्ते माल का शुद्ध आयातक बनने की बजाय इस लिंक के माध्यम से निर्यात भी कर सकता है।पूर्वोत्तर की जनसंख्या राष्ट्रीय जनसंख्या का 3.8% है, यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 8% भाग पर स्थित हैऔर 5300 किलोमीटर से अधिक लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर स्थित होने के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।भारत के पास चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा के क्षेत्र के विकास की योजना है।पूर्वोत्तर क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए हाल में कुछ निर्णय लिए गए हैं, जिनमें4000 किमी लंबी रिंग रोड से राज्यों को जोड़ना, 2020 तक सभी राज्यों की राजधानियों को जोड़ने वाली रेलवे परियोजनाओं में तेजी लाना और इन्हें 15 नए स्थलों तक पहुंचाना,म्यांमार सीमा के साथ आखिरी मील के संपर्क और बांग्लादेश के साथ रेल संपर्क को बहाल करना शामिल है।भूमि अधिग्रहण के लगभग हल हो चुके मुद्दे के साथ अबसिक्किम (रंगपो के माध्यम से) 45 किमी रेल लाइन के द्वारा पश्चिम बंगाल में सेवोक (सिलीगुड़ी के पास) से सीधे जुड़ा होगा और नागालैंड को कोहिमा के पास दीमापुर-जुबज़ा के बीच एक लिंक के माध्यम से जोड़ा जाएगा।शिलांग (मेघालय), इम्फाल (मणिपुर)और आइज़वाल (मिजोरम) को जोड़ने के लिए नईविस्तृत गेजलाइन के काम के2020 तक पूरा होने की आशा है।असम (गुवाहाटी), अरुणाचल प्रदेश (ईटानगर) और त्रिपुरा (अगरतला) की राजधानियाँ पहले से ही ब्रॉडगेज नेटवर्क से जुड़ी हुई हैं।पूर्वोत्तरक्षेत्र के लिए कुल 24 रेलवे परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इन 16 नई लाइनों में से, 2 का गेज परिवर्तन और छह का दोहरीकरण होना है।छह मार्गों पर दोहरीकरण और गेज परिवर्तन का काम पूरा हो गया है। रेलवे पूर्वोत्तरके पहाड़ी इलाकों में अपना नेटवर्क फैलाने के लिए कई पुल और सुरंग बना रही है।मणिपुर में बनाया जा रहा दुनिया का सबसे लंबा घाट पुल, मार्च 2022 तक तैयार हो जाएगा। 111 किलोमीटर लंबी नोनी-जिरबाम-तुपुल-इम्फाल लाइन पर 141 मीटर लंबे घाट पुल का निर्माण किया जा रहा है।टेलवेज भी कई अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं पर काम कर रहा है। जोगबनी-विराटनगर (नेपाल), अगरतला से अखौरा (बांग्लादेश) तक 15 नई रेलवे लाइनों का60% काम पूरा हो गया है।भारतीय रेलवे हल्दीबाड़ी (भारत)-चिलाहाटी (बांग्लादेश) का जीर्णोद्धार कर रही है, जबकि राखीपुर (भारत) से बायोल (बांग्लादेश) तक 9 किलोमीटर लाइन पर भारत के हिस्से में काम पूरा हो गया है। अंतर-क्षेत्रीयसंपर्क बढ़ाने के लिए ब्रह्मपुत्र और बराक नदी प्रणालियों के साथ 20 बंदरगाह नगर विकसित किए जाने हैं।प्रधानमंत्री मोदीने इस क्षेत्र से और इसके लिए हवाई संपर्क बढ़ाने का भी प्रस्ताव रखा है जो आसियान के साथ व्यापार संबंध बनाने में सहायता करेगा।विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए परिवहन गलियारों के साथ पूरे क्षेत्र में कम से कम 50 आर्थिक एकीकरण और विकास नोड विकसित किए जाने वाले हैं।अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर के लिए दीमापुर और कोहिमा के बीच 4-लेन वाले राजमार्ग सहित राजमार्गों और विकास योजनाओं को मंजूरी देकर सीमा क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को उन्नत किया जा रहा है।

भारत से आसियान तक के समुद्री संपर्क को कलादान बहुविध परिवहन परियोजना से मदद मिलेगी, जो कोलकाता को म्यांमार के सिटवे बंदरगाह से जोड़ेगी और नदी और भूमि मार्ग से मिजोरम तक विस्तारित की जाएगी।सबांग में बंदरगाहअवसंरचना विकसित करने के लिए हाल ही में इंडोनेशिया के साथ किया गया भारत का समझौता इसी दिशा में एक और कदम है।एन्नोर और चेन्नई के बंदरगाहों सहितभारत के पूर्वी समुद्री तटभी सीएमएलवी देशों से समुद्री संपर्क के लिए महत्वपूर्ण हैं और मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे साझेदारों के साथ ट्रांसशिपमेंट लिंक में सुधार करना आवश्यक है।म्यांमार में दावेई बंदरगाह को जोड़ने का भी प्रस्ताव है, जिसे भारत के चेन्नई बंदरगाह को थाईलैंड के साथ जोड़ने के लिए विकसित किया जा रहा है, इससे माल परिवहन की लागत और समय दोनों में कटौती होगी।इन प्रस्तावों के सफल होने के लिए, भारत और आसियान को संयुक्त उद्यमों, और संबंधित रियायतों पर ध्यान देना होगा।भारत और आसियान के बीच समुद्री परिवहन पर समझौते में इन आवश्यक क्षेत्रों को शामिल करना चाहिए।भारत और आसियान ने,भारत और आसियान के बीच समुद्री परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिए मिल कर काम करने और अधिक कुशल संबंध बनाने के लिए समुद्री बंदरगाहों, समुद्री रसद नेटवर्क और समुद्री सेवाओं के विकास में संभावित निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की प्रतिबद्धता स्वीकार की है।क्रूज़ पर्यटन में सहयोग की गुंजाइश और भारत और कुछ आसियान राज्यों के बीच वाहनों को ले जा सकने वाले पोतों की भी पहचान की गई है।कोलकाता और अंडमान द्वीपसमूह को म्यांमार और थाईलैंड के द्वीपों से जोड़ने वाला एक क्रूज त्रिकोण विकसित किया जा सकता है, इसे इंडोनेशिया और मलेशिया तक बढ़ाया जा सकता है।

स्पष्ट है किहवाई संपर्क विकसित करना आवश्यक है। भारत में प्रथमऔर द्वितीय श्रेणी केशहरों से सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया और अब इंडोनेशिया के साथ सुस्थापित उड़ाने हैं, जबकि अन्य देशों के लिए या तो सीधे लिंक की कमी है या भारत के साथ अपर्याप्त संपर्क हैं।यह पर्यटन केसाथ-साथ व्यापार के लिए भी एक बाधा है। ब्रुनेईऔर वियतनाम के लिए कुछ प्रत्यक्ष उड़ानें भी लाभदायक सिद्ध नहीं हुई हैं।इसलिए भारत और आसियान को आसियान इंडिया हवाई सेवा समझौते की दिशा में भी काम करने की आवश्यकता है, जिससे व्यापार, निवेश और पर्यटन को लाभ होगा।

भारत आसियान के साथ लोगों से लोगों को जोड़ने और सांस्कृतिक सहयोग के लिए अपनी भूमिका निभा रहा है।इसे आसियान छात्रों के लिए भारतीय छात्रवृत्तियोंतथा राजनयिकों, युवाओं, मीडिया और बुद्धिजीवियों केबीच कार्यक्रमों के आदान-प्रदान जैसी गतिविधियों से आगे बढ़ाना चाहिए।आसियान इंडिया दृष्टिकोण दस्तावेज में किए गए उल्लेखके अनुसारएक-दूसरे की अच्छी परंपराओं और विरासत को संरक्षित करने के लिए सहयोग बढ़ाया जाना चाहिए।भारत को आसियान एकीकरण योजना 2025 के साथ अपने को संरेखित करना जारी रखना चाहिए औरखाद्य व कृषि, शिक्षा, स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यटन, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन के लिए एसएमई के विकास में सहयोग बढ़ाना चाहिए।आतंकवाद भारत और आसियान दोनों के लिए एक चुनौती बना हुआ है। आसियान देशों से खुफिया जानकारी और सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ संस्थागत संबंधोंको मजबूत करनाआवश्यक है।अंग्रेजी भाषा, आईटी और सॉफ्टवेयर विकास आदि में उत्कृष्टता के भारतीय केंद्रों को एक बड़ी सफलता मिली है और इसे आगे बढ़ाना चाहिए।आसियान इंडिया कोष के लिए घोषित अतिरिक्त 50 मिलियन अमरीकी डॉलर इन गतिविधियों को संचालित करने में उपयोगी होंगे, लेकिन बड़े-टिकट की वस्तुओं को भविष्य में समय पर वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।जहाँ तक माइक्रो, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का संबंध है, आसियान और भारत इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, प्रसार, अपनाने और अनुकूलन के साथ-साथ क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता, वितरण चैनलों, वित्तपोषण सुविधाओं, नवाचारतक पहुंचऔर वैश्विक और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करने के अवसरों के साथ-साथभारत द्वारा प्रस्तावित परियोजना विकास निधि एवं त्वरित प्रभाव परियोजना निधि का उपयोग कर इस क्षेत्र में स्थिर विकास को बढ़ावा देने पर सहमत हुए हैं।

जोखिम कम करने सहित आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता में सहयोग, भारत के लिएआसियान के साथ अपने संबंधों में सफलता का एक उल्लेखनीय क्षेत्र रहा है और इसे बनाए रखना आवश्यक है।जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में आसियान के सदस्य राष्ट्रों की क्षमता बढ़ाने में विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए आसियान इंडिया ग्रीन फंड के अंतर्गत सहयोग बढ़ाना आवश्यक है।भारत और आसियान को सौर उपकरणों और प्रौद्योगिकियों में घनिष्ठ सहयोग के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में सहयोग करना चाहिए।भारत ने आसियान और भारत के बीच सहयोगी अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए 2016 में, आसियान इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड के कोष में योगदान को1 मिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ा कर 10 मिलियन अमरीकी डॉलर कर दिया है।

आसियान के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी में क्षेत्रीय संबंध को आसियान-भारत इनोवेशन प्लेटफॉर्म, आसियान इंडिया रिसर्च एंड ट्रेनिंग फेलोशिप प्रोग्राम, आसियान इंडिया कोलोबोरेटिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रोग्रामऔरआसियान प्लान ऑफ एक्शन आन साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन 2016-2025से जुड़े क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से गहरा करना होगा। इसरो ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और इसके अनुप्रयोगों के विकास में आसियान का समर्थन किया है।आसियान और भारत ने उपग्रहों के प्रक्षेपण, टेलीमेट्री ट्रैकिंग और कमांड स्टेशनों के माध्यम से उनकी निगरानी तथाक्षेत्र के समान विकास के लिए जमीन,समुद्र, वायुमंडलीय और डिजिटल संसाधन के स्थायी दोहन के लिए उपग्रह छवि डेटा के उपयोग सहित आसियान भारत अंतरिक्ष सहयोग कार्यक्रम के कार्यान्वयन के माध्यम से बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण दोहन को जारी रखने पर सहमति व्यक्त की है। आसियान के साथ दो प्रमुख अंतरिक्ष परियोजनाएं चल रही हैं- पहली में, हो ची मिन्ह शहर, वियतनाम में एक ट्रैकिंग, डेटा और रिसेप्शन/प्रोसेसिंग स्टेशन स्थापित किया जा रहा है, और दूसरी मेंइंडोनेशिया के बियाक में एक टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कंट्रोल स्टेशन का उन्नयन जारी है।भारत को भी डिजिटलीकरण, विशेष रूप से वित्तीय संरचना और ई-गवर्नेंस में आसियान के साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।भारत-आसियान संदर्भ में साइबर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। औद्योगिक जासूसीऔर उपयोगिताओं और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों पर साइबर हमलों का मुकाबला करना ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें आसियान के पास समृद्ध अनुभव है और आसियान, भारत सहकारी साइबर सुरक्षा नेटवर्क विकसित करने में मदद कर सकता है।पहला असियान इंडिया साइबर संवाद 2018 में आयोजित किया गया था। दो भारतीय पहलों- एक आसियान-भारत नवाचार मंच और डिजिटल कनेक्टिविटी के निर्माण को उनके तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुँचाया जाना चाहिए।

भारत ब्लू इकोनॉमी परियोजनाओं पर अपने क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोग करके, वितरण तकनीकों के विकास, महासागरों में जैव विविधता की कटाईऔर समुद्री खनिजों के लिए महासागर की गहराई में निरंतर खननके द्वारा इस क्षेत्र के लिए एक अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने की आशा कर रहा है - (इस संबंध में एक प्रस्ताव पहले ही बनाया जा चुका है)।भारत और आसियान ने 2018 में अपनी संयुक्त घोषणा के माध्यम से, अवैध, बिना लाइसेंस और अनियमित मछली पकड़ने, तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के नुकसान और प्रदूषण, समुद्र के अम्लीकरण, समुद्री मलबे और समुद्री वातावरण पर आक्रामक प्रजातियों सहित अपने संसाधनों के खतरों को संबोधित करने कीप्रतिबद्धतास्वीकार की है।भारत इन सभी कार्यों में, अपने सहयोगियों के विकास और सुरक्षा प्राथमिकताओं द्वारा निर्देशित है।भारत का दृष्टिकोण प्रभुत्व या संकीर्ण पारस्परिक विचारों की बजाय अन्योन्याश्रितता पर आधारित है।भारत जिम्मेदार और पारदर्शी ऋण वित्तपोषण का समर्थन करता है, जो जिम्मेदार उधार प्रथाओं से मेल खाता है।

भारत अपने भारत-प्रशांत विशेषकर दक्षिण पूर्व एशिया के पड़ोसियों के कौशल और रसद को मजबूत करके महासागर के माध्यम से समुद्री यातायात की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित कर क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में योगदान दे रहा है।भारत आसियान के साथ वर्तमान प्रक्रियाओं और प्रथाओं के अनुसार समुद्री खोज और बचाव में असियान और भारत के बीच प्रभावी समन्वय को बढ़ावा देने और समुद्र में होने वाली दुर्घटनाओं और घटनाओं को रोकने और प्रबंधित करने के लिए सहमत हुआ है, जिसमें आईसीएओ और आईएमओ आदि शामिल हैं।भारत ने कई देशों के साथ श्वेत शिपिंग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।इसके अलावा, भारतीय जहाजों ने समन्वित गश्त और ईईजेड निगरानी का भी काम किया है।भारत अपने समुद्री पड़ोसियों को, अपने सहयोगियों की ओर से साझा समुद्री क्षेत्र जागरूकता विकसित करने के लिए अपना समुद्री निगरानी नेटवर्क स्थापित करने में मदद कर रहा है।भारत के भागीदारों को इस क्षेत्र के पानी को चार्ट करने के लिए प्रदान किया गया हाइड्रोग्राफिक समर्थन,क्षेत्र में नौवहन की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक अन्य तत्व है। एक बड़े प्रशिक्षण क्षमता निर्माण प्रयास के साथ इसे संवर्धित किया गया है।हिंद महासागर के आर्थिक क्षेत्रों के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए भारत ने, 2008 में हिंद महासागर की नौसैनिक संगोष्ठी (आईओएनएस) का शुभारंभ किया, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग किया जा सके।यह संगोष्ठी नौसेना पेशेवरों के बीच सूचनाओं का प्रवाह उत्पन्न कर रही है,जिससेएचएडीआर, सूचना सुरक्षा, अंतरसंक्रियता और समुद्री सुरक्षा जैसे सामान्य हितों के क्षेत्रों में एक साझा समझ और सहकारी समाधान विकसित किया जा सके।भारत ने, 1997 में दक्षिण अफ्रीका के साथ हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) की अवधारणा विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाई।इसने हिंद महासागर केतटवर्ती राष्ट्रों कोसमुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने, मानव तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी, समुद्री प्रदूषण, आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन सहित पारंपरिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों जैसे मुद्दों पर एकजुटकरने के लिए एक मंच बनाया।इस समूह में दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राष्ट्र शामिल हैं।समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती (रिकैप) से निपटने में क्षेत्रीय सहयोग समझौते जैसे सुस्थापित तंत्र भी हैं जिसमें भारत एक साझेदार है।

हाल ही में, चीन के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव के साथ-साथ इस क्षेत्र में नौसेना की उपस्थिति लगातार बढ़ रही हैऔर यह तेजी से कब्जा करने, कुछ मामलों में सैन्यीकरण करने और दक्षिण चीन सागर में 32,000 एकड़ जमीन को पुनः प्राप्त करने में परिवर्तित हो गया है।इतिहास के आधार पर चीन की संप्रभुता के दावे और उसकी नाइन-डैश लाइन को समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) द्वारा स्थापित स्थायी मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा बिना किसी कानूनी आधार का दावामाना गया है। भारत और आसियान ने संयुक्त रूप से दक्षिण चीन सागर (डीओसी) में पक्षों के आचरण की घोषणा के पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन का आह्वान किया है और दक्षिण अफ्रीका सागर में आचार संहिता (सीओसी) केशीघ्रपूरा होने की आशा जताई है,लेकिन तथ्य यह है कि दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर चीनी कार्रवाई परमुख्य रूप से संयुक्त राज्य द्वारा मौखिक विरोध के अलावा कोई अन्य विरोध नहीं किया गया है,जो इस क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता निर्धारित करने का अधिकार रखता है।दक्षिण पूर्व एशिया के देश और सामान्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर को "बीजिंग झील" में बदलना पसंद नहीं करेगा।

मलक्का जलडमरूमध्य हिंद महासागर को दक्षिण चीन सागर से जोड़ता हैऔर भारत का40% से अधिक समुद्री व्यापार इन जलडमरूमध्योंसे होकर गुजरता है।इस क्षेत्र में भारत के ऊर्जा हित भी हैंऔर यह वियतनाम के ईईजेड के अपतटीय ब्लॉकों में दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज में शामिल है, जो चीन केनाइन-डैश लाइन के आधार पर किए गये दावों के कारण विवादित क्षेत्र है।भारत अपनी तरफ से और दूसरों के साथ संयुक्त रूप से समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रहा है पर इसकी सुरक्षा चुनौतियांबढ़रही हैं।सैन्य रणनीति पर चीन के 2015 श्वेत पत्र ने "खुले समुद्री संरक्षण" को शामिल करते हुए एक नई समुद्री रणनीति को औपचारिक रूप दिया, जिसके लिए उसके द्वारा अपने विदेशी हितों और संचार के समुद्री मार्गों की रक्षा करने के लिए अपनी नौसैनिक क्षमता को बढ़ानेका अनुमान है।चीन अतिरिक्त विमान वाहक, पनडुब्बियों के एक शक्तिशाली परमाणु-संचालित बेड़े को अनुबंधित कर रहा है और अपनी वायु शक्ति को मजबूत करने में लगा हुआ है।चीन की ऊर्जा आपूर्ति कमजोर है, इसलिए वह मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से एक वैकल्पिक आपूर्ति लाइन बनाए रखने के लिए म्यांमार के माध्यम से बंगाल की खाड़ी तक पहुंच की मांग कर रहा है।हालाँकि, यह उसकी मलक्का दुविधा को केवल आंशिक रूप से दूर कर सकता है क्योंकि चीन के लिए परिवहन की जाने वाली ऊर्जा आगे बढ़ेगी।इसलिए, पीएलए नौसेना अपने स्वयं के समुद्री मार्गो पर संचार की रक्षा के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में और अधिक जहाजों को तैनात करने के लिए बाध्य है।चीनी नौसैनिक जहाजों और पनडुब्बियों की मौजूदगी भारत के लिए नई दुविधा खड़ी करेगी।दक्षिण चीन सागर में चीन का आचरण और यूएनसीएलओएसके मध्यस्थता के स्थाई कोर्ट द्वारा उसके समुद्री दावों पर किये गये निर्णयपर, इसकी जुझारू प्रतिक्रिया एक ऐसी मिसाल है, जिसे भारत हिंद महासागर में बार-बार देखना पसंद नहीं करेगा।हालाँकि अभी तक हिंद महासागर में चीन के साथ कोई समुद्री क्षेत्रीय विवाद नहीं है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति चीन कीअवहेलना दूसरों की तरह भारत कोभी उसके व्यवहार से सावधान करती है।इसलिए भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया काभारत-प्रशांत में आसियान के साथएक रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में एक साझा हित है।इस प्रयास में इंडोनेशिया एक महत्वपूर्ण आसियान राज्य है, क्योंकि मलक्का जलडमरूमध्य के दमघोंटू बिंदु से बचने के लिए, इंडोनेशियाई जल से गुजरने वाले सुंडा और लाम्बक जलमार्ग चीनी पनडुब्बियों को हिंद महासागर में प्रवेश करने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करते हैं।आज चीन के पास प्रचुर आर्थिक संसाधनऔर बढ़ता सैन्य कौशल है।

क्षेत्र में उभरी भू-राजनीतिक स्थिति को संतुलित करने के लिए भारत को दक्षिण पूर्व एशिया में एक बड़ी भूमिका निभाते हुए देख कर आसियान को खुशी होगी।आसियान के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत के पास राजनीतिक और आर्थिक साधन हैं।भारतीय नौसेना, संयुक्त अभ्यास और यात्राओं के माध्यम से समुद्री सेतुओं का निर्माण करने के साथ-साथ संचार के समुद्री मार्गों और क्षेत्र में भारतीय हितों की रक्षा के लिएएक प्रमुख भूमिका निभा रही है।भारत मलक्का जलडमरूमध्य के मुहाने पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में नौसेना की उपस्थिति को मजबूत कर रहा है और भारतीय नौसेना यहाँ से समुद्री क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।हालाँकि, भारत के आसियान संस्थानों का समर्थन करने के बावजूद, क्षेत्रीय सुरक्षा में आसियान की एक सीमित भूमिका है,अतएव भारत ने द्विपक्षीय स्तर पर रक्षा व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया है।2003 में, सिंगापुर और भारत ने एक व्यापक रक्षा सहयोग समझौता किया, जिसने वार्षिक रक्षा नीति संवाद, संयुक्त अभ्यास, खुफिया जानकारी के साझाकरण और रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग की सुविधा प्रदान की है।सिंगापुर कीवायुसेना लंबे समय से भारतीय कलिकुंड एयरबेस का उपयोगकरती है और भारत ने सिंगापुर के उपकरणों के भंडारण और बबीना और देओलाली फायरिंग रेंज में उसके सैन्यकर्मियों के प्रशिक्षण के लिए सहमति व्यक्त की है।भारत ने,2000 में वियतनाम के साथ एक व्यापक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो खुफिया जानकारी के नियमित आदान-प्रदान, समुद्री डकैती, जंगल युद्ध रोकने के लिए संयुक्त तट रक्षक प्रशिक्षण, विद्रोह प्रतिरोध प्रशिक्षण, वियतनामी मिग विमानों की मरम्मत, वियतनामी पायलटों के प्रशिक्षण और छोटे और मध्यम हथियारों के उत्पादन के लिए भारतीय सहायता प्रदान करताकरता है।बाद में इस समझौते का नौसेना सहयोग, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता और मिसाइल सहयोग में विस्तार हुआ।जून 2011 में, वियतनाम ने घोषणा की कि वह भारतीय नौसेना को कैम रन खाड़ी के पास न्हा ट्रांग के छोटे बंदरगाह तक नियमित पहुंच प्रदान करेगा।सिंगापुर और वियतनामके साथ मजबूत रक्षा संबंध रखने के अलावा, भविष्य में भारत को इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों के साथ रक्षा संबंधबनाने और मजबूत करने में दृढ़ता से आगे बढ़ना होगा, इन देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग ने स्थिर आधार प्राप्त किया है।भारत सिंगापुर नौसेना के साथ सिम्बेक्स अभ्यास और ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के साथ ऑसिंडेक्स अभ्यास करता है। ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री, मारिज पायने के अनुसार2014 में, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने 11 प्रमुख रक्षा गतिविधियों का आयोजन किया, 2018 में यह आंकड़ा 38 तक बढ़ गया था। 1995 से, भारतीय नौसेना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भारतीय महासागर क्षेत्र की नौसेनाओं के साथ द्विवार्षिक मिलन अभ्यास आयोजित करती है।

कुल मिलाकर, इस क्षेत्र में चीनी कार्रवाइयों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया और आलोचनाहुई है।अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2017 में अपने एशिया दौरे के समय और वियतनाम में आयोजित 2017 एपीआसी शिखर सम्मेलन में स्वतंत्र और मुक्त भारत-प्रशांत(एफओआईपी) रणनीति का प्रस्ताव रखा।इसने भारत-प्रशांत में स्थानों को समन्वयित करने के लिए चतुष्कोण के अनौपचारिक समूह के पुनरुद्धार का भी नेतृत्व किया है –इससमूह में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।चतुष्कोणके सदस्यों ने कभी भी विशेष रूप से यह नहीं कहा कि चतुष्कोणकिसी देश को लक्षित करता हैऔर शांगरी-ला में प्रधानमंत्री मोदीद्वारा यह कहकर कि वेकानून के शासन के आधार पर एक समावेशी भारत-प्रशांत चाहते हैं, इस बात को स्पष्ट किया गया था।दक्षिण पूर्व एशिया में नए सुरक्षा प्रतिमान के केंद्र में इस क्षेत्रऔर इसकी क्षमताओं के साथ जुड़ने में अमेरिका की रुचि है।चीन और अमेरिका की क्षमताओं के बीच उन क्षेत्रों में अंतर है जो भविष्य के निर्धारक होंगी, नागरिक और सैन्य उपयोग में कृत्रिम बुद्धि, रोबोटिक्स और नई प्रौद्योगिकियां संकीर्ण हो रही प्रतीत होती हैं।परिस्थितियों में चतुष्कोण, या समान सोच रखने वाले अन्य देशों की ताकत को एकजुटकरने वाले कुछ अन्य तंत्रोंको, क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था बनाए रखने की सर्वोत्तमआशा के रूप में देखा जाता है।ट्रम्प प्रशासन द्वारा परिभाषित स्वतंत्र और खुली भारत-प्रशांतरणनीति की पृष्ठभूमि में, यह विश्वास है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में विश्व व्यवस्था के मुक्त और दमनकारी दृष्टिकोण के बीच एक भू-राजनीतिक प्रतियोगिता हो रही है।जापान में यहसोच है कि जापान अमेरिकी सुरक्षा गठबंधन एशिया में राष्ट्रीय सुरक्षा की आधारशिला है औरनई चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए स्वतंत्र और खुली भारत-प्रशांतरणनीति क्षेत्र के व्यापक और साझा मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।इसकी सफलता के लिए, इसे चतुष्कोण के अन्य सदस्यों के साथ साझेदारी में लागू किया जाना चाहिए। चीन के कारण विषमताओंकेबढ़नेसे भारत-प्रशांत क्षेत्रमें छोटे राज्यों ने चीन के खिलाफ बचाव की तैयारी करनी शुरू कर दी है।संयुक्त राज्य अमेरिका में कई टिप्पणीकारों ने यह विचार व्यक्त किया है कि आसियान को आगे आने की आवश्यकता हैऔर वे यह बताते हैं कि अगर आसियानइसक्षेत्र में विकसित होने वाली नीतियों के लिए केंद्रीय बना रहनाचाहता है तोवह किस तरह से व्यापक भारत-प्रशांत अवधारणा और नियमों पर आधारित व्यवस्थामेंशामिल हो सकता है।इंडोनेशिया द्वारा आसियान की ओर से, चतुष्कोण और भारत-प्रशांतअवधारणा के लिए आसियान की प्रतिक्रिया को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया था।

भारत-प्रशांतकी इस आसियान दृष्टि को हाल ही में अर्थात् जून 2019 में अपनाया गया है। वास्तव में ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, भारत और जापान जैसे देशों ने भी भारत-प्रशांतक्षेत्र में सहयोग के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण और रणनीति अपनाई थी, इसलिए आसियान के इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे कुछ देश नहीं चाहते थे कि दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र को दरकिनार किया जाए और उन्हें इस नए भू-राजनीतिक निर्माण से अलग छोड़ दिया जाए।आसियान की दृष्टि में आसियान की केंद्रीयता की परिकल्पना की गई है, इसका उद्देश्य संवाद और भारत-प्रशांत सहयोग के कार्यान्वयन के लिए किसी नए तंत्र का निर्माण करना न होकर,पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन जैसी एशिया की वर्तमाननेतृत्व प्रणाली जैसे मंचों को मजबूत करना है।इसके अलावा, आसियान की दृष्टि अंतर्राष्ट्रीय कानून, खुलेपन, पारदर्शिता, समावेशिता के नियमों पर आधारित हैऔर यह क्षेत्र में आर्थिक भागीदारी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता स्वीकार करती है।इस संबंध में भारत-प्रशांत के अन्य देशों को संलग्न करने के लिए सहयोग के चार क्षेत्रों - समुद्री सहयोग, संपर्क, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों 2030 और आर्थिक विकास को आगे रखा गया है।

भारत दूरदर्शिता के साथ इस क्षेत्र से संपर्क करता है।मई 2018 में शांगरी-ला संवाद में बोलते हुए, प्रधानमंत्री मोदीने एक स्वतंत्र और समावेशी भारत-प्रशांतकी अवधारणा पर प्रकाश डाला।यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँदुनिया के सबसे बड़े और सबसे छोटे देश सामंजस्य के साथ सह-अस्तित्व मेंरहते आए हैं।यह सामंजस्य आर्थिक सांस्कृतिक वैचारिक और सभ्यतागत समानता के कारण बना हुआ है।यह सामूहिक दृष्टिकोण इस क्षेत्र को अपनी पूर्ण क्षमता तक विकसित करने के लिए आवश्यक है।उन्होंने कहा कि क्षेत्रमात्र एक विकास इंजन नहीं हो सकता,इसे विचारों और प्रतिबद्धताओं का समुदाय होना चाहिए।भारत क्षेत्र के देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है जो एक समावेश आधारित व्यवस्था, नौवहन की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत समानता, विवादों के शांतिपूर्ण समाधानऔर वैश्वीकरण के लाभों के समान वितरण के लिए काम कर रहे हैं।

चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई योजनाओं ने कुछ राष्ट्रों को अर्थशास्त्र के गैरकानूनी सिद्धांतों के कारण ऋण जाल में फंसा दिया है,जो मेजबान देश के लिए अनुपयुक्त हैं लेकिन चीनी भू राजनीतिक दृष्टि के लिए काम करते हैं,जिसका एक विकल्प आवश्यक है।जापान ने घोषणा की है कि वह एशिया में पाँच वर्ष की अवधि के लिए 2015 में बनाए गए 110अरब अमरीकी डॉलर के कोष को बढ़ाकर 200अरब अमरीकी डॉलर तक ले जाएगा जो उसी अवधि के लिए होगा।इसके अतिरिक्त जापान के रियायती येन ऋण को 2015 से दोगुना कर 1 ट्रिलियन येन कर दिया गया है।यह आर्थिक और सामाजिक परियोजनाओं के लिए बाजार की तुलना में अधिक अनुकूल शर्तों पर बड़ी मात्रा में वित्तपोषण प्रदान करता है।आसियान में जापानी एफडीआई बढ़ रहा हैऔर एडीबी इस क्षेत्र में कई परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रहा है।जेआईसीए की मदद से, एडीबी ने 2016 में एशिया के निजी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के कोष (एलईएपी) का निर्माण किया, ताकि यह गैर-सरकारी परियोजनाओं के लिए, जो सार्वजनिक निजी भागीदारी से लेकर संयुक्त उद्यम और बिजली वित्त तक हो सकते हैं, धन का लाभ उठा सके और उसका पूरक बन सके।ऊर्जा, जल, परिवहन और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है।जापान,स्वयं या एडीबी के माध्यम से पूर्व पश्चिम आर्थिक गलियारे जैसी कुछ कनेक्टिविटी परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, यह परियोजनावियतनाम में दा नांग बंदरगाह को लाओस के माध्यम से उत्तर पूर्व थाईलैंड से जोड़ती है।एक दक्षिणी आर्थिक गलियारा कंबोडिया के माध्यम से बैंकॉक को हो ची मिन्ह शहर से जोड़ता है।यदि भारत और जापान आसियान में एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकते हैं और एक-दूसरे की क्षमताओं का उपयोग कर सकते हैंतो इसके प्रभाव घातीय हो सकते हैं।यदि भारत और जापान दोनों आसियान देशों में एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकते हैं, तो उन्हें रेल, सड़क, राजमार्ग, बंदरगाहों में उनके निवेश का अच्छा उपयोग किये जाने का विश्वास हो सकता हैऔर विशेष आर्थिक क्षेत्रों, विनिर्माण और व्यापारिक केंद्रों से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ मिल सकता है। भारत, सीमा शुल्क और जोखिम प्रबंधन के लिए अपने आला क्षेत्र आईटी का उपयोग कर सकता है।भारत और जापान खतरेके शमन औरलीड समय को कम करने के लिए अन्य सरकारों या वहाँ के निजी क्षेत्र को भागीदार बना सकते हैं।भारत और जापान अफ्रीका में भी काम कर सकते हैं। एशिया प्रशांत विकास गलियारे में चीनी बीआरआईका सामना करने की क्षमता है क्योंकि यह जापान से दक्षिण पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया से अफ्रीका की ओर जाता है।इन प्रयासों को तेजकरने की जरूरत है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य देशों द्वारा भी चीनी के बीआरआईप्रवचन का मुकाबला करने के लिए कदम उठाए गए हैं।नवंबर 2018 में, अमेरिकी सीनेट ने निवेश के बेहतर उपयोग से विकास (या बीयूआईएलडी अधिनियम) को पारित करने के लिए अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से हाथ मिलाया, यह एक द्विदलीय विधेयक है जो एक नई अमेरिकी विकास एजेंसी- यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन (यूएसआईडीएफसी) का गठन कर रहा है।इस वर्ष के अंत तक यह एजेंसी काम करने लगेगी।अमेरिकी विकास वित्त पहल (डीएफआई) अमेरिका की विदेश नीति के लक्ष्यों और अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने के साथ-साथ विकासशील देशों कीमदद करेगा।नया यूएसआईडीएफसीआमतौर पर निजी क्षेत्र के निवेश के लिए निम्न और निम्नतर आय वाले देशों में "भीड़" की तलाश करेगा।एजेंसी राष्ट्रीय सुरक्षा और विकासात्मक कारणों से देश के अविकसित हिस्से में ऊपरी मध्यम आय वाले देशों में भी काम कर सकती है।अमेरिका की वर्तमानडीएफआई, -ओपीआईसी- 1971 में बनाई गई थी, डीएफआईक्षेत्र की नई वित्तीय प्रतिबद्धताएं 2002 के 10 अरब अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2014 में 70 अरब अमरीकी डॉलर हो गई हैं।नया यूएसआईडीएफसीचीन के उत्थान की एक प्रतिक्रिया है।सचिव पोम्पेओ ने कहा "बीयूआईएलडी अमेरिकी सरकार की विकास वित्त क्षमता को मजबूत करता है और राज्य-निर्देशित निवेश और हमारी विदेश नीति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक बेहतर विकल्प प्रदान करता है”।यूएसआईडीएफसी राज्य ऋण देने के लिएचीन के बड़े राज्य के मॉडल से कुछ अलग प्रदान करता है- यह एक निजी क्षेत्र सेबाजार-आधारित समाधान प्रदान करता है।इसके अलावा, चीनी वित्तपोषण छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) को ऋण देने का समर्थन नहीं करता है।बीयूआईएलडीअधिनियम ने यूएसआईडीएफसीके लिए 60 अरब अमरीकी डॉलर का वित्त पोषण प्रदान करने का वादा किया है।2018 के अंतिम दिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कानून में एशिया रिएश्योरेंस इनिशिएटिव एक्ट (एआरआईए) पर हस्ताक्षर किए, जो‘‘भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सुरक्षा, आर्थिक हितों और मूल्यों को बढ़ाने के लिए एक बहुमुखी रणनीति स्थापित करता है”।यह पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में गतिविधियों की एक श्रृंखला के लिए अगले 5 वर्षों तक प्रति वर्ष 1.5 अरब अमरीकी डॉलर का विनियोजन करता है।यह अधिनियम एशिया मेंअमेरिका केनेटवर्क संबंधों के पदानुक्रम को मान्यता देता है, जिसमें जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे सभी संधि सहयोगी शामिल हैं।इसके अलावा इन संबंधोंमें भारत जैसे रणनीतिक साझेदार और सिंगापुर, इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम जैसे सुरक्षा साझेदार भी शामिल हैं। इस विधेयक में अमेरिकी राष्ट्रपति से "राजनयिक रणनीति विकसित करने" का भी आह्वान किया गया है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलकर पूर्वी चीन सागर और सभी देशों को लाभ पहुंचाने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली पर आधारित नियमों के समर्थन में दक्षिण चीन सागर सहित भारत-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त समुद्री प्रशिक्षण का आयोजनऔर नौवहन संचालन की स्वतंत्रता बनाये रखना शामिल है।

नवंबर 2018 में, ऑस्ट्रेलिया ने प्रशांत क्षेत्र में 1.38 अरबअमरीकी डॉलर की बुनियादी ढांचा पहल करने की प्रतिबद्धता स्वीकार की।यह पहल प्रशांत के लिए ऑस्ट्रेलियाईबुनियादी ढांचावित्तपोषण सुविधा स्थापित करेगी।इसके अलावा, यह ऑस्ट्रेलिया की एक्सपोर्ट फाइनेंसिंग एजेंसी ईएफआईसी कीआवश्यकता परउपयोग करने योग्य पूंजी,1 अरब अमरीकी डॉलर की अतिरिक्त राशि देगा।यह उच्च प्राथमिकता वाले बुनियादी ढांचे के विकास का समर्थन करने के लिए ऋण के साथ संयुक्त अनुदान का उपयोग करेगा।प्रत्येक प्रशांत द्वीप राज्य के लिए वार्षिक, परिचक्रण के आधार पर भारत की200,000 डॉलर की सहायताऔर लघु और मध्यम उद्यम विकास की सहायता में इसके लगातार अनुदान, विकास और बाढ़ राहत परियोजनाओं के लिए सहायता केसाथ-साथ पापुआ न्यू गिनी में 2018 के अंत में बुनियादी ढांचा संबंधी सड़क परियोजनाओं के वित्तपोषण के उद्देश्य से भारतीय एक्जिम बैंक की100 मिलियन अमरीकी डॉलर के ऋण को अंतिम रूप देने वाला समझौतासभी बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोत हैं।चीनी कंपनी हुवाई के एक प्रस्ताव के विकल्प के रूप में, जिसे इन देशों द्वारा साइबर सुरक्षा खतरे के रूप में देखा जाता है,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान पापुआ न्यू गिनी के लिए एक घरेलू इंटरनेट केबल प्रस्ताव पर सहयोग कर रहे है। आशा है कि भविष्य में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पापुआ न्यू गिनी जैसे देशों में सड़क निर्माण जैसी अपनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी आगे बढ़ाएगा, जिसे हाल ही में चीन द्वारा संबंध बढ़ानेके एक कार्य के रूप में देखा गया है।भारत, भविष्य में, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीप और वानुअतु के चार मलेनेसियन राज्यों से बनेमलेनेसियन स्पीयरहेड ग्रुप (एमएसजी) के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की कोशिश कर सकता है। इंडोनेशिया एक सहयोगी सदस्य है।2018 में, भारत और इंडोनेशिया ने एक संयुक्त बयान जारी किया जिसमें भारत-प्रशांत में सहयोग पर जोर दिया गया था।

इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की बीयूआईएलडी अधिनियम और एआरआईएजैसी पहलों की घोषणाओं के बावजूद, चीनी वित्त पोषित परियोजनाओं के लालच के कारण कंबोडिया लाओस, म्यांमार, थाईलैंडजैसे आसियान देशों की भेद्यता और चीनी आर्थिक प्रणाली में उनके गहरे समावेश की काफी संभावना है।इसलिए, भारत की एक्ट ईस्ट नीति को क्षेत्रीय स्थिति, सार्क के अचल होने और भारत की अपने पूर्व के देशों के साथ अपने संबंधों से आर्थिक लाभ प्राप्त करनेऔर अपनेपूर्वोत्तर क्षेत्रको विकसित करने की इच्छाओं के परिणाम के रूप में देखना सरल होगा। भारत की एक्ट ईस्ट नीति में अब एक रणनीतिक आयाम जोड़ा गया है। भविष्य में, भारत को आसियान के साथ अपनी कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करने में फुर्ती और तेजीलानी होगी, इसे मजबूत रक्षा, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक संबंधों को विकसित करना होगा और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ अन्योन्याश्रितता उत्पन्न करनी होगी।इसे अपने पड़ोस को सुरक्षित रखने, अपने समुद्री संचार को खुला रखनेऔर अपने निजी आर्थिक विकास के लिए एक स्थिर और शांतिपूर्ण बाहरी वातावरण सुनिश्चित करने के लिए, अपने पड़ोसी देशों के साथ काम करने की आवश्यकता होगी, जो इसके 1.25 अरब लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है।दक्षिण पूर्व एशिया भविष्य की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देगाऔर "एशियाई शताब्दी" का वाहक होगा। यह आवश्यक है कि भारत इस विकासशील कहानी का एक अनिवार्य हिस्सा रहे।