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संसाधन क्षमता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था पर यूरोपीय संघ-भारत की संयुक्त घोषणा

जुलाई 15, 2020

भारत गणराज्य और यूरोपीय संघ समान पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करते हैं और उनसे सफलतापूर्वक निपटने के लिए एक साथ काम करने को महत्वपूर्ण मानते हैं। 6 अक्टूबर 2017 को यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन में अपनाए गए संयुक्त वक्तव्य में, प्रमुख रूप से "आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के सामंजस्य" की महत्वाकांक्षा का उल्लेख किया गया था।

उस संबंध में, दोनों पक्ष मानते हैं कि संसाधन क्षमता को बढ़ाना और अधिक वृत्तीय आर्थिक मॉडल की ओर बढ़ना, जो प्राथमिक संसाधन खपत को कम करता है, गैर विषैले सामग्री-चक्रों का प्रयास करता है, और द्वितीयक कच्चे माल के उपयोग को बढ़ाता है, महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से, कोविड-19 के बाद के आर्थिक सुधार प्रयासों के संदर्भ में, जो इस परिवर्तन को तेज करने का अवसर प्रदान कर सकते हैं।

यह 'सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा' और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कार्यान्वयन में योगदान करने के लिए भी आवश्यक है, जो काफी हद तक वृहद वृत्तीय अर्थव्यवस्था और संसाधन क्षमता की ओर बढ़ने पर निर्भर करता है। पर्यावरणीय क्षरण और वर्धित संसाधन खपत से आर्थिक वृद्धि (एसडीजी लक्ष्य 8.4) को अलग करना दोनों पक्षों द्वारा मजबूत कार्रवाई के बिना संभव नहीं होगा। महत्वाकांक्षी संसाधन दक्षता रणनीतियाँ और वृत्तीय अर्थव्यवस्था की नीतियाँ पेरिस समझौते के तहत दोनों पक्षों की राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रतिबद्धताओं के साथ-साथ एक अधिक स्थायी ऊर्जा प्रणाली में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।

इस संबंध में, यूरोपीय संघ और भारत दोनों द्वारा कुछ कदम पहले ही उठाए गए थे, जिनमें शामिल हैं:

- "यूरोपियन ग्रीन डील", यूरोप के लिए नई विकास रणनीति जो जलवायु और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए यूरोप की प्रतिबद्धता को निर्धारित करती है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 2050 में ग्रीनहाउस गैसों का निवल उत्सर्जन नहीं होगा और कि आर्थिक विकास को संसाधन के उपयोग से अलग किया जाएगा । कार्यक्रमों और नीतियों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें एक नई वृत्तीय अर्थव्यवस्था कार्य योजना होगी जो टिकाऊ उत्पादों, सेवाओं और व्यापार मॉडल के डिजाइन को आगे बढ़ाएगी ताकि कचरे को कम से कम किया जाए, और टेक्सटाइल, निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्लास्टिक जैसे संसाधन-गहन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। ।

- नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति) आयोग, भारत सरकार द्वारा तैयार 'संसाधन दक्षता पर रणनीति', इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए और संबद्ध मंत्रालयों में संसाधन दक्षता एजेंडा को मुख्यधारा में लाने के लिए अंतर-विभागीय समूह की स्थापना की गई, एक सक्षम संसाधन दक्षता नीति ढांचे को स्थापित करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संसाधन दक्षता सेल स्थापित किया।

अधिक संसाधन और ऊर्जा कुशल वृत्तीय अर्थव्यवस्थाओं की ओर परिवर्तन करने के लिए अनुसंधान, तकनीकी विकास और नवाचार पर और अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है और विशेष रूप से यूरोपीय संघ और भारत के बीच।

यह देखते हुए कि कम लागत और सस्ते तकनीकी समाधान, नीतियों और प्रथाओं को अधिक संसाधन कुशल और वृत्तीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक साझा दृष्टिकोण दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद है, भारतीय गणराज्य और यूरोपीय संघ के बीच निम्नलिखित समझ कायम हुई :

I. उद्देश्य

इस संयुक्त घोषणा का उद्देश्य एक भारत-यूरोपीय संघ संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था साझेदारी (इसके बाद "साझेदारी") की स्थापना करना है, जिसमें दोनों पक्षों के प्रासंगिक हितधारकों के प्रतिनिधियों, जिसमें सरकारें, व्यवसाय (स्टार्ट-अप सहित), शिक्षाविद और अनुसन्धान संस्थान शामिल हैं, को एक साथ लाना है ।

साझेदारी को निम्न को समर्थन और सुदृढ़ करना चाहिए:

1. संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था पर दोनों पक्षों के बीच बातचीत और सहयोग;

2. एजेंडा 2030 और पेरिस समझौते के ढांचे में वैश्विक प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए और संबंधित बहुपक्षीय पर्यावरणीय समझौतों (एमईए) और फोरा (जैसे संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा, जी20 संसाधन दक्षता संवाद) में साहसिक परिवर्तनकारी विकास की वकालत करने के लिए दोनों पक्षों की संबंधित क्षमता;

3. संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था पर नीतियों, रणनीतियों, प्रौद्योगिकियों, व्यापार समाधान और वित्तपोषण तंत्र का डिजाइन, योजना, कार्यान्वयन, प्रचार और प्रसार;

4. उन विषयों पर अनुसंधान और नवाचार पर सहयोग, जो संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था नीतियों के कार्यान्वयन की सुविधा और गति प्रदान करेंगे, विशेष रूप से परस्पर हित के क्षेत्रों में सहयोगात्मक अनुसंधान और संयुक्त कार्यों के माध्यम से;

5. सर्वोत्तम प्रथाओं और उपलब्ध प्रौद्योगिकियों पर रणनीतिक आदान-प्रदान - उल्लेखनीय रूप से डिजिटल - प्रमुख क्षेत्रों में वृत्तीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता पर, जिसमें भवन और निर्माण, भोजन, परिधान और वस्त्र, गतिशीलता क्षेत्र, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षेत्र, नवीकरणीय ऊर्जा, वृत्तीय व्यापार और सेवा मॉडल, स्थायी सार्वजनिक खरीद और अपशिष्ट प्रबंधन (पुन: उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण सहित), और अन्यों के साथ साथ निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट, बिजली और इलेक्ट्रॉनिक कचरे, प्लास्टिक और समुद्री कूड़े के संबंध में और जहाज रीसाइक्लिंग पर सहयोग शामिल है।

II सहयोग के क्षेत्र

दोनों पक्षों के प्रयास :

1. संसाधन दक्षता, ऊर्जा दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विचारों, नीतियों, विनियामक और मानकीकरण दृष्टिकोण, प्रबंधन प्रणाली और नीति उपकरण, शासन, सर्वोत्तम प्रथाओं, व्यापार समाधान, बाजार-पहुँच और संयुक्त अनुसंधान और नवाचार के अवसरों का आदान-प्रदान करके जारी संवादों को मजबूत करना;

2. तकनीकी जानकारी और क्षमता, सर्वोत्तम प्रथाओं, प्रौद्योगिकियों तक पहुँच और प्रसार और एक संसाधन-कुशल और वृत्तीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए, और स्थायी वित्त के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म के तहत यूरोपीय संघ भारत सहयोग पर, जहाँ प्रासंगिक हो, लीवरेजिंग द्वारा धन जुटाने पर विचारों और अनुभवों का आदान-प्रदान करने और संसाधन दक्षता, ऊर्जा दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था से संबंधित अनुसंधान और नवाचार पर संयुक्त सहयोग को प्रोत्साहित करना।

3. इन क्षेत्रों में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा किए गए कार्य पर निर्माण करना और भारत के संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था के एजेंडे में शामिल अन्य प्रासंगिक पक्षकारों के साथ समन्वय में सहयोग करना।

III. सहयोग और कार्यान्वयन के रूप


1. दोनों पक्ष सहमत समय के अनुसार आवधिक आधार पर आयोजित किए जाने वाले नीतिगत संवादों के माध्यम से साझेदारी को चलाने का प्रयास करते हैं।

2. साझेदारी का नेतृत्व, भारत के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रासंगिक भारतीय हितधारकों के सहयोग से किया जाना चाहिए और यूरोपीय संघ के लिए, यूरोपीय आयोग के सहयोग से यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल द्वारा किया जाना चाहिए।

3. एक व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए, दोनों पक्षों को इस साझेदारी में अन्य संबंधित हितधारकों / साझेदारों को, साझेदारी की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।

4. साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए, दोनों पक्ष इस साझेदारी के उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक विषयों पर अनुसंधान और नवाचार में संवाद और सहयोग को सुदृढ़ करने का इरादा रखते हैं। संबंधित गतिविधियों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर यूरोपीय संघ-भारत समझौते के ढाँचे के अनुसार संचालित होना चाहिए, जैसा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए संयुक्त संचालन समिति द्वारा, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा पर विशेष रूप से अन्य क्षेत्रीय संवादों में नीतिगत उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है ।

5. साझेदारी को एक कार्य-उन्मुख, कार्य योजना को विस्तृत रूप देना चाहिए जो उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान दे। संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था पर प्रथम संवाद के दौरान प्रारंभिक कार्य योजना पर सहमति होनी चाहिए।

6. इस साझेदारी के कार्यान्वयन की प्रगति का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाना चाहिए, दोनों पक्षों द्वारा उपयुक्त रूप से, कम से कम हर साल एक बार। भविष्य की कार्य योजनाओं के लिए इन आकलनों के परिणामों के साथ-साथ आगामी चुनौतियों और अवसरों से संबंधित क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए सहमति दी जानी चाहिए।

7. इस साझेदारी के तहत विशिष्ट परियोजना गतिविधियों को यूरोपीय संघ की इस समय चल रही और भविष्य की तकनीकी सहयोग परियोजनाओं के माध्यम से समर्थित किया जा सकता है। इसके अलावा, दोनों पक्षों को समावेशी सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा / उपलब्ध वित्तीय साधनों या उपक्रमों का उपयोग करना चाहिए और इस साझेदारी के तहत परियोजनाओं के नियोजन के लिए सभी उपलब्ध स्रोतों से अतिरिक्त धन की संभावनाओं का सक्रिय रूप से पता लगाना चाहिए।

8. इस साझेदारी के ढांचे में, दोनों पक्ष व्यापार-से-व्यापार और व्यापार-से-विज्ञान संवादों को सक्रिय रूप से समर्थन करने, और शोध और नवाचार कार्यों के नियोजन एवं मौजूदा और नई प्रौद्योगिकियों को ध्यान में रखते हुए यूरोपीय संघ और भारतीय बाजार दोनों में, वृत्तीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता को बढाने का प्रयास करते हैं।

9. साझेदारी का उद्देश्य यूरोपीय निवेश बैंक के साथ-साथ यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों की विकास एजेंसियों, वित्तीय और अन्य संबंधित संस्थानों की संसाधन दक्षता और वृत्तीय अर्थव्यवस्था से संबंधित परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए संभावित संलग्नता का पता लगाना है।

IV. वित्तीय व्यवस्थाएँ

दोनों पक्ष इस संयुक्त घोषणा और प्रस्तावित साझेदारी के अधीन की गईं सहयोग गतिविधियों से उत्पन्न अपने खर्चों को स्वयं वहन करेंगे।

V. गैर बाध्यकारी विशेषता


यह संयुक्त घोषणा किसी भी पक्ष के संबंध में घरेलू या अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कोई कानूनी या वित्तीय दायित्वों का निर्माण नहीं करती है।

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