खलीज टाइम्स
भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र का सूर्य चमक रहा है। अधिकाधिक स्वदेशी एवं विदेशी कंपनियां देश में सौर ऊर्जा उद्यम स्थापित करने की दौड़ में लगी हैं, जिसको भारत में सौर पी वी उद्योग में तेजी से संलिप्त होने के अवसर प्रलोभित कर रहे हैं। सरकार ने अनुभव किया था कि
वातावरण परिवर्तित हो रहा है और तेल के मूल्यों में आये ज्वार ने भारत की आयातित परम्परागत ईंधन पर निर्भरता कम कर दी है और सौर ऊर्जा का एक प्राथमिकता के रूप में संवर्धन कर रहा है।
राष्ट्रीय सौर मिशन ने गत वर्ष, 20,000 मेगावाट अतिरिक्त सौर क्षमता के लक्ष्य का शुभारम्भ किया था जिसे चरणबद्ध ढंग से 2022 में प्राप्त किया जायेगा। प्रौद्योगिकी प्रगति और अर्थ व्यवस्थाओं के पैमाने के अनुसार आशा है कि सौर ऊर्जा आर्थिक रूप से साध्य हो सकती
है। वैश्विक आर्थिक संकट से मांग में कमी आयी है और विस्तार की लागत को कम कर दिया है।
अवसर का बोध होते ही इस क्षेत्र में विदेशी पूँजी का भी कुछ विदेशी कंपनियों के रूप में प्रवाह शुरु हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम और एशियाई विकास बैंक ने भारत में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ऋण देना शुरु कर दिया है। इसी बीच 150 से अधिक कंपनियों ने 20
मेगावाट तक की विशाल सौर फोटोवोल्टिक ऊर्जा परियोजनाओं के विकास में रुचि व्यक्त की है। टाटा पावर, रिलायंस पावर और लैनको इनफ्राटेक आदि ने पहले ही सौर ऊर्जा परियोजनाओं को एक उल्लेखनीय तरीके से विकसित करना शुरु कर दिया है। कुछ अन्य ऊर्जा उत्पादक कंपनियों
की महात्वाकांक्षी योजनाओं में ओरियन्ट ग्रीन पावर, आस्टोनफील्ड, जे एस डब्लू एनर्जी और अजुर पावर आदि सम्मिलित हैं।
यहां तक कि सौर ऊर्जा पैनल उत्पादक कंपनियां जैसे मोजर बेयर और सोलर सेमीकंडेक्टर आदि ने ऊर्जा उत्पादन की दिशा में समन्वित रूप से कदम बढ़ाया है। ढांचागत कंपनियां जैसे कंसालीडेटेड कंसट्रेक्शन कंसोर्टियम और पुंज लायड, पी एस यू जैसे एन टी पी सी, भारतीय तेल
निगम और कर्नाटक ऊर्जा कार्पोरेशन आदि ने भी सौर ऊर्जा के बैण्डवैगन में छलांग लगायी है।
सौर ऊर्जा उत्पादकों द्वारा सौर विकिरण के विश्वसनीय ऑंकड़ों के अभाव का सामना किया जा रहा है। इस प्रकार के ऑंकड़ों के अभाव में एक परियोजना से लाभांशों का सही मूल्यांकन कर पाना अत्यधिक कठिन हो गया है जिसके कारण प्रौद्योगिकी का चयन और वित्तीय पोषण प्रभावित
होता है।
राष्ट्रीय सौर प्रणाली भारत में सौर पी वी के उत्पादन के लिए सौर ऊर्जा परियोजनाओं में (विशेष रूप से पी वी कोष्ठिका और मापक) स्वदेशी घटकों के उपयोग को प्रोत्साहन दिये जाने के आदेश का आग्रही है। इस स्थानीय अवयव की आवश्यकता, टाटा बी पी सोलर, इण्डो सोलर, सोलर
सेमीकंडेक्टर, वेबसोल एवं मोजर बेयर तथा अन्य जैसी कंपनियों के लिए एक वरदान सिद्ध हुई है परन्तु उत्पादकों के लिए विशेष रूप से चीन से प्राप्त हो रही अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा एक प्रमुख चुनौती है। अनेकों ढांचागत कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में ई पी सी खिलाड़ी
के रूप में प्रवेश किया है।
लार्सन एण्ड टूब्रो इस क्षेत्र में एक दिग्गज कंपनी है और आज इसकी सौर पी वी परियोजना जो पाइपलाइन में है वह लगभग 200 मेगावाट के क्षमता की है। अन्य ढांचागत कंपनियों में लैंको और पी वी उत्पादक कंपनियां जैसे एक्स एल एनर्जी, मोजर बेयर और राजकीय स्वामित्व
की भेल और ई आई एल आदि भी ई पी सी सेवा प्रदाताओं में सम्मिलित हो गयीं हैं।
र्इ पी सी खिलाड़ियों का रुख परियोजना विकास के एक हिस्से पर अधिकॉंश जोखिम को उनके ऊपर अर्थात ई पी सी सेवा प्रदाताओं पर हस्तांतरित करने पर मत भिन्नता रखते हैं। वे अपने ग्राहकों से लागत कम करने के लिए अनवरत दबाव का भी सामना कर रहे हैं। दीर्घकालिक सफलतापूर्ण
संचालन को सुनिश्चित करने के लिए ई पी सी को उनके द्वारा प्रदान की जा रही सेवा की गुणवत्ता और लागत के बीच भली-भॉंति संतुलन बनाये रखना होगा।
भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र का सार एक तीव्र विकास के अंतराल पर टिका हुआ है क्योंकि केन्द्र और प्रान्तीय सरकारें राष्ट्रीय सौर मिशन के बारे में अत्याधिक गंभीर हो रही है। कंपनियां जो सौर ऊर्जा उत्पादन और सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए पी ई सी सेवाओं के लिए एक
अच्छे निवेश का अवसर प्रदान करते हैं क्योंकि उन्हें अपेक्षाकृत कम जोखिम का सामना करना पड़ता है और उनमें वृद्धि की अच्छी संभावनायें संनिहित हैं। निवेशकों को यद्यपि सौर ऊर्जा उपकरणों के उत्पादकों के बारे में सावधान रहना चाहिए। इन कंपनियों का राजस्व और लाभांश
वृद्धि पूरी तरह से सरकार के नीतियों और वैश्विक रुख पर निर्भर होगी और इन दोनों का पूर्वानुमान परिवर्तनीय है।
(व्यक्त किये गये उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)