मीडिया सेंटर

सौर की अगली सरहद

दिसम्बर 10, 2011

फोर्ब्स : यूसीलिया वैंग

यूरोप इस वर्ष का विशालतम् सौर ऊर्जा बाजार रहा है परन्‍तु इसने इस वर्ष कुछ प्रकाश बिन्‍दु को भारत को हस्‍तांतरित किया है क्‍योंकि भारत अमेरिकी उत्‍पादकों के लिए एक नयी सरहद बन गयी है।

जी टी एम द्वारा किये गये अनुसंधान के अनुसार भारत के सौर विद्युत उत्पादन को इस वर्ष के अंत तक 141 मेगावाट तक पहुँचना चाहिए। यह मात्रा जर्मनी और इटली द्वारा प्रतिवर्ष लगाये जा रहे गीगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्रों को देखते हुए बहुत ऊँची प्रतीत नहीं हो रही है परन्‍तु भारत के पास दो वर्ष पूर्व तक सौर ऊर्जा बाजार की चर्चा तक नहीं थी। इसके पश्‍चात गुजरात प्रान्‍त आया जिसने वर्ष 2009 में एक सौर प्रोत्‍साहन कार्यक्रम का शुभारम्‍भ किया। राष्‍ट्रीय सरकार ने वर्ष 2010 में उसका अनुकरण करते हुए अपना स्‍वयं का सौर कार्यक्रम शुरु किया था।

राष्‍ट्रीय सरकार बहुत बड़ा सोच रखती है इसने एक बहुत ही महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य वर्ष, 2022 तक 20 गीगावाट विद्युत ग्रिड से जुड़े और साथ ही साथ दो गीगावाट ऑंफ-ग्रिड सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए रखा था।

"हम उल्‍लेखनीय वृद्धि देखते हैं और (भारत) एक बहुत बड़ी मात्रा वाले बाजार के रूप मे विकसित होगा'' भारत के बीच सेतु का काम करने वाली एक परामर्शदात्री कंपनी जिसने जी एम टी के साथ रिपोर्ट बनाने का काम किया था के प्रबंध निदेशक श्री तोबियास इंगलेमेइयर ने कहा था। इंगलेमेइयर जिसने बृहस्‍पतिवार को एक गोष्ठी में इस रिपोर्ट पर वार्ता की थी, उन्होंने कहा था कि भारत को वर्ष, 2016 तक प्रतिवर्ष 3 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा का उत्‍पादन शुरू करना चाहिए।

सौर ऊर्जा संवर्धन एक ऐसे देश के लिए बहुत महत्‍व रखता है जो ऊर्जा का भूखा है और जिसके लिए ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन में कमी लाना आवश्‍यक है। ‘‘वर्ल्ड एनर्जी आउटलूट 2011'' के अंतर्राष्‍ट्रीय ऊर्जा अभिकरण के अनुसार भारत के 25 प्रतिशत आवासि‍यों की पहुँच बिजली तक नहीं है जिसका अर्थ यह है कि 288.8 मिलियन आवासी लोग रात के अंधेरे में प्रकाश नहीं जलाते हैं।

यह देश, विश्‍व के उन सर्वोच्‍च तीन उत्‍पादक देशों में से एक है जो ग्रीन हाउस गैस का उत्‍सर्जन करते हैं। संयुक्‍त राज्‍य ऊर्जा सूचना प्रशासन के अनुसार भारत की 80 प्रतिशत ऊर्जा उन ऊर्जा संयंत्रों से आती है जो कोयला और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्‍म ईंधन जलाते हैं।

भारत एक ऐसे समय में बूमिंग सौर ऊर्जा बाजार बनने जा रहा है जब यूरोप में विकास की गति मंद पड़ गयी है। दुर्बल वित्‍तीय बाजारों द्वारा यूरोप में परियोजना विकसित करने वालों को संयंत्र लगाने के लिए धन जुटाना और अधिक कठिन हो गया है। इटली और जर्मनी के सर्वोच्‍च दो बाजारों में सौर ऊर्जा के‍ लिए रियायतों में परिवर्तन से इस वर्ष के प्रारम्‍भ में अनिश्चितता खड़ी हो गयी है और इसके कारण विकासकर्ताओं को अपनी पूरी हुई परियोजनाओं को रोकना पड़ रहा है। कुल मिलाकर वैश्विक सौर ऊर्जा बाजार वर्ष, 2011 में 23.8 गीगावाट सौर ऊर्जा की वृद्धि होगी जो वर्ष, 2010 के 17.7 गीगावाट की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक होगा, आई एच एस आईसपली ने कहा था।

तुलनात्‍मक रूप से वर्ष, 2009 की तुलना में वर्ष, 2010 में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्‍थापना दो गुनी हो गयी है।

भारत की राष्‍ट्रीय सौर ऊर्जा नीति के लिए आवश्‍यक है कि वह परियोजना विकसित करने वालों को आदेश दें कि वे मूल्‍यों को निर्धारित करें जिसकी भुगतान सौर ऊर्जा की उपादेयता के लिए की जायेगी। प्रान्‍तीय नीतियां अलग अलग हैं गुजरात प्रान्‍त की नीति में सरकार जिन सौर विद्युत कंपनियों की स्थापना कर रही है, जिसकी बिजली का मूल्य परम्परागत ऊर्जा के लिए भुगतान किए जा रहे मूल्य की अपेक्षा अधिक है और इससे विकासकों को अच्छा लाभ मिलना चाहिए।

नीतियां ही यद्यपि अकेली नहीं हैं जो सौर ऊर्जा उत्‍पादन में उछाल लायेंगी। संयुक्‍त राज्‍य सरकार भारत में सौर ऊर्जा की परियोजनाओं का वित्‍तीय पोषण करने की अपनी भूमिका निभा रही है। संयुक्‍त राज्‍य के निर्यात- आयात बैंक उदाहरण के लिए उन कंपनियां को ऋण प्रदान करते हैं अथवा ऋण की गारंटी लेते हैं जो अमेरिका में निर्मित सौर पैनलों और अन्‍य उपकरणों को क्रय करती हैं और जहाज द्वारा उन्‍हें विदेश भेजती हैं। बैंक ने सात ऋणों अथवा ऋणों की गारंटी की घोषणा की है जो कुल 180.1 मिलियन अमरीकी डॉलर राशि की हैं जिन्‍हें अभी तक वर्ष की भारत से जुड़ी परियोजनाओं और उन उत्‍पादकों को प्रदान किया गया है जो इससे लाभांवित हैं जिनमें फस्‍ट सोलर, एबाउण्‍ड सोलर और मायासोल इत्‍यादि शामिल हैं।

प्रथम सौर ऊर्जा परियोजना ने बिक्री के समझौते के खुलासे की शुरूआत भारत में आधारित परियोजनाओं के लिए दिसम्बर 2010 में की थी। उसी ग्रीष्‍म ऋतु में इसने वर्ष, 2011 के लिए भारत के द्वारा भेजे जाने वाले जहाजी खेप के 100 मेगावाट से बढ़ाकर लगभग 200 मेगावाट किये जाने की भविष्‍यवाणी की थी। कंपनी के पास बड़े अवसर हैं जो उसे अनेक प्रतिद्वंद्वियों से बचा लेते हैं : राष्‍ट्रीय सौर ऊर्जा नीति में यह नियम का एक विषय नहीं है जिसकी आवश्‍यकता भारत में निर्मित सौर सेलों के उपयोग में किया जाय, यह नियम मात्र सिलीकॉंन सौर सेलों पर लागू होता है जबकि आज बाजार में अधिकॉंशत: सामान्‍य प्रकार के सेल हैं। प्रथम सौर पैनल में लगे सेल कैडमियम-टेलूराइड से बने हैं।

एबाउण्ड सोलर और मियासोल दोनों उद्यम, जो प्रारम्भिक काल के समर्थक हैं वे भी सिलीकॉंन सोलर का उपयोग नहीं करते हैं। एबाउण्‍ड सोलर कैडमियम टेलूराइड सौर पैनल बनाते हैं जबकि मियासोल अपने सौर सेल बनाने के लिए तांबे, इंड्यूम, गलियूम और सेलेन्‍यूम का उपयोग करता है।

सरकार, भारत में सौर उत्‍पादन उद्योग की स्‍थापना में घरेलू सेलों का उपयोग करने के लिए शासनादेश देती है। देश के पास टाटा बी पी सोलर और मोजर बेयर जैसे सिलीकाँन सौर सेल और पैनल निर्माता पहले से ही विद्यमान हैं परन्‍तु इसके पास इनकी उतनी संख्‍या नहीं है जितनी चीन के पास है। विश्‍व के सर्वोच्‍चतम् 10 सोलर सेल और पैनल निर्माता चीन, संयुक्‍त राज्‍य, ताईवान, जापान और जर्मनी में आधारित हैं। टाटा बी पी सोलर बहरहाल टाटा पावर और बी पी सोलर के बीच एक संयुक्‍त उद्यम है और यह उत्‍पादक तथा परियोजना विकासकर्ता दोनों की भूमिका निभाता है।

भारत क्या एक जोरदार सौर उत्‍पादक उद्योग विकसित करेगा यह एक बहुत बड़ा प्रश्‍न है। एक समय इस देश की चाहत एक चिप उत्‍पादक केन्‍द्र बनने की थी परन्‍तु यह आगे नहीं बढ़ सका था।

श्री इंगलेमेइर ने कहा था "भारत के लिए एक उल्‍लेखनीय सौर ऊर्जा बाजार बनने का अवसर इसके एक सशक्‍त उत्‍पादक आधार बनने के अवसर की अपेक्षा अधिक है।''

(व्‍यक्‍त किये गये उपरोक्‍त विचार लेखक के व्‍यक्तिगत विचार हैं)

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