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विदेश मंत्री का आम्ब्रोसेट्टी फोरम में संबोधन

सितम्बर 04, 2020

1. मुझे बहुत ही खुशी है आप सभी से इस दोपहर को भारत में और सुबह इटली में भेंट करते हुए। इस सत्र को विशेष तौर पर ‘कोविड-19 महामारी के बाद की दुनिया’ पर समर्पित किया गया है। आइए देखें कि एक भारतीय परिप्रेक्ष्य में किस तरह इस वाइरस के बाद हम अपने जीवन में सामन्जस्य बिठा पाएंगे।

2. मैं वहां से शुरूआत करूंगा कि हमने अभी तक भारत में क्या किया है और अभी हम क्या कर रहे हैं। आज तक, भारत में 3.9 मिलियन मामले दर्ज किए जा चुके हैं। शुरुआती तौर पर यात्रा प्रतिबंध और लॉकडाउन लगाने के माध्यम से, हमें प्रतिक्रिया देने के लिए मूल्यवान समय प्राप्त किया। एक देश जहां व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण नहीं बनाए जाते थे, आज 109 निर्माता हैं। एन -95 मास्क पहले केवल दो कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे थे; अब दस बनाती हैं। 25 उद्यम वर्तमान में वेंटिलेटर का उत्पादन कर रहे हैं, पहले कोई नहीं बनाता था। दवाओं के हमारे उत्पादन - विशेष रूप से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल - को बड़े पैमाने पर विस्तारित किया गया है। 1.6 मिलियन आइसोलेशन विस्तरों के साथ 17,000 से अधिक समर्पित कोविड सुविधाएं स्थापित की गईं। लगभग 7000 केंद्रों में 1.1 मिलियन लोगों का रोजाना परीक्षण किया जा रहा है। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए बड़े पैमाने पर डिजिटल उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। भारत के लिए इसका मतलब यह था कि हर चार में से तीन से अधिक संक्रमित व्यक्ति ठीक हुए हैं। और मृत्युदर सौ व्यक्तियों में से डेढ़ पर रुकी रही, और इसे और भी नीचे आना चाहिए। हम केवल अपनी ही देखभाल नहीं कर रहे हैं; कई विकासशील दुनिया को अनुदान के रूप में चिकित्सा आपूर्ति को हमारे द्वारा 150 देशों में भेजा गया। यह रिपोर्ट कार्ड है दुनिया की लगभग एक-छठे हिस्से के मानवजाति की।

3. इस महामारी से मानवीय गतिविधियों में सबसे अधिक प्रभाव यात्रा क्षेत्र पर पड़ा है। लेकिन जो लोग जहां कहीं भी थे, इस गर्मी की सबसे तात्कालिक आवश्यकता उन लोगों की घर वापसी थी। और चुनौती का पैमाना वास्तव में रेखांकित करता है कि हम सभी वास्तव में कितने भूमंडलीकृत हैं। लगभग 1.3 मिलियन भारतीयों को विशेष उड़ानों के माध्यम से और सड़क और समुद्र मार्ग के द्वारा प्रत्यावर्तित किया गया था। और भारत से, 113 देशों में 100,000 से अधिक विदेशी वापस भेजे गए। यह सब इन कठिन परिस्थितियों में भी शामिल विभिन्न लोगों के असाधारण प्रयासों से संभव हुआ है। मैं इस बात पर जोर देता हूं कि जैसे-जैसे दुनिया सामान्य स्थिति में आएगी, वैसे-वैसे वह दिन जरूर आएगा, जब ये मांगे उठेंगी। और हम मानकीकृत प्रक्रियाओं पर अधिक वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करके उस प्रक्रिया को गति दे सकते हैं, चाहे परीक्षण परिणामों पर परीक्षण और स्वीकृति की बात हो, क्वारेंटाइन प्रक्रियाओं पर, या आवाजाही और पारगमन प्रोटोकॉल की बात हो। विदेश मंत्रियों की जी-20 बैठक में कल हमने जो प्रस्ताव पेश किए थे, उनमें ये भी शामिल थे।

4. कोविड-19 के बाद की दुनिया कैसे अलग होगी? इसमें से कुछ स्पष्ट रूप से हमारी जीवन शैली और मानसिकता में बस जाएंगे। लगभग सार्वभौमिक रूप से, हम सभी पहले से बहुत अधिक डिजीटल होंगे। चाहे अधिक संपन्न हों, जो अधिक डिजिटल रूप से काम कर रहे हैं और खरीदारी कर रहे हैं, या अधिक असुरक्षित लोग जिनके लिए यह वस्तुतः एक जीवन रेखा रही है, हममें से कोई भी इससे अप्रभावित नहीं है। दूसरा एक सबसे बड़ा बदलाव होगा कि लोगों को अपनी शासन प्रणालियों से अलग-अलग अपेक्षाएं होंगी। इस महामारी ने सबसे नाटकीय तरीके से स्वास्थ्य सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। इसने लचीले और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं के महत्व को भी हमारे सामने लाया है, जिस पर संकट के समय में भी हम निर्भर हो सकते हैं। रणनीतिक स्वायत्तता का एक नया अर्थ सामने आया है। जहां तक सामूहिक आर्थिक संभावनाओं का संबंध है, प्रत्येक समाज स्पष्ट रूप से अपनी राष्ट्रीय रणनीति के अनुरूप प्रतिक्रिया देगा। और भारत के लिए, इसका अर्थ है रोजगार-केन्द्रित आर्थिक सुधारों पर ध्यान देना। वास्तव में, इन कारकों के संयोजन ने एक आत्मनिभर भारत के आह्वान में योगदान दिया है, एक ऐसा भारत जो अधिक से अधिक स्व-निर्भर हो।

5. महामारी भले ही कितनी दर्दनाक रही हो, यदि हम इसे नहीं पहचान सकते, तो हम ईमानदार नहीं हैं, क्योंकि इससे पहले भी दुनिया मुश्किल में थी। राष्ट्रों के बीच और उनके भीतर उत्पन्न अंतर लाभों के लिए वैश्वीकरण स्पष्ट तनाव में था। इसलिए यह नहीं हो सकता है कि इस अनुपात की महामारी का प्रभाव दुनिया द्वारा आसानी से भुला दिया जाएगा। और न ही वास्तव में यह होना चाहिए, क्योंकि सीखने के लिए हमारे पास सबक हैं, और सुधार किए जाने के लिए सुधार हैं। इसकी शुरूआती बिंदु वैश्वीकरण की हमारी अच्छी समझ है; यह अस्तित्व की एक अविभाज्यता है, केवल लेन-देन का समुच्चय मात्र नहीं। और अगर इसे अच्छी तरह से काम करना है, तो इसे राष्ट्रों के बीच एक वास्तविक साझेदारी होना चाहिए, न कि कुछ लोगों के हितों को दूसरों पर थोपा जाना। इस तरह के विश्वासों का स्वाभाविक रूप से परीक्षण किया जाएगा, ख़ासकर व्यापार, प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी और अन्य आजीविका गतिविधियों के क्षेत्रों में।

6. वैश्वीकरण की बेहतर सराहना के लिए एक बहुसंख्या के सापेक्ष, बहुपक्षवाद के प्रति भी अधिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए। और वहां फिर से हमें बुनियादी बातों को सही करने की आवश्यकता है। यदि वैश्विक निर्णय सबसे अधिक आबादी वाले देशों और कई महाद्वीपों को छोड़ देता है, तो यह केवल इसकी विश्वसनीयता की कीमत पर हो सकता है। और दुख की बात है कि महामारी ने नेतृत्व की कमी को तब उजागर किया जब दुनिया का परीक्षण किया जा रहा था। इसलिए, आज की जरूरत वैश्विक अच्छाई के लिए अधिक से अधिक योगदान को प्रोत्साहित करना है, चाहे वह टीके बनाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने या सुरक्षा को बढ़ावा देने में हो। यह केवल सही काम करने के लिए ही नहीं है; बल्कि यही कार्रवाई का एकमात्र समझदार तरीका है। और ऐसा करने के लिए, वैश्विक संस्थानों को सुधारने की आवश्यकता है, संयुक्त राष्ट्र और इसकी सुरक्षा परिषद से लेकर डब्ल्यूएचओ तक। इसलिए, सुधारित बहुपक्षवाद को हमारा मंत्र बनना चाहिए।

7. एक दशक से पूर्व, दुनिया को वास्तव में वैश्विक अनुपात के एक वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है। इसने यूरोप को विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित किया, भले ही इसने दूसरों को भी प्रभावित किया हो। कई मायनों में, आज यह अधिक व्यापक परिमाण की चुनौती है, इसके लिए अधिक व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। उनमें से कई प्रौद्योगिकी संचालित होंगी, डिजिटल रूप से अनुकूल और अनिवार्य रूप से हरित भी। यूरोप का निश्चित रूप से उस परिदृश्य में एक और अधिक महत्वपूर्ण स्थान होगा और इसके परिणामस्वरूप, भारत जैसे देशों के लिए यह अधिक महत्व का भागीदार होगा। आखिरकार, हम भी समाधान के लिए एक समानांतर खोज में लगे होंगे। स्पष्ट रूप से, उस समय विभिन्न आजीविका विकल्पों और आर्थिक साधनों के लिए सहयोग के अधिक समकालीन रूपों की आवश्यकता होगी। निश्चित रूप से, विश्वसनीय प्रतिभा और साझी रचनात्मकता ज्ञान अर्थव्यवस्था के और भी अधिक मजबूत कारक बनने जा रहे हैं। यह संभावना अनिवार्य रूप से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए हमारे संबंधित दृष्टिकोण को नया आकार देगी।

8. भारत आज व्यापक तौर पर बदलाव और सुधार की कवायद में लगा हुआ है। इसमें स्वास्थ्य सेवा, आवास, बुनियादी ढांचे और पानी से लेकर शिक्षा, कौशल और सामाजिक लाभ शामिल हैं। यह उन पहलों की एक श्रृंखला द्वारा समर्थित है जो जीवन को आसान बनाने और डिजिटल क्षमताओं को बढ़ावा देता है, और साथ ही व्यापार करना आसान बनाता है। प्रगति और आधुनिकता की इस खोज में, हम स्वाभाविक रूप से ऐसे वैश्विक सहयोग की तलाश कर रहे हैं, जो समान मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित हों। भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी से अपेक्षाएं हमेशा उच्च रही हैं; कोविड के बाद की दुनिया तो केवल इन मुद्दो को और अधिक दमदार बनाती है।

नई दिल्ली
सितंबर 04, 2020

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