विदेश संबंधों के बारे में संक्षिप्त विवरण
विदेशों के साथ संबंध विस्तार से
भारत-यूरोपीय संघ
- यूरोपीय संघ-भारत के संबंधों की शुरूआत 1960 के दशक के प्रारंभ में हुई । भारत, ईईई (तत्कालीन) के साथ सबसे पहले राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले देशों में था । यूरोपीय संघ और भारत के बीच हस्ताक्षरित 1994 के समझौते ने, द्विपक्षीय संबंधों को व्यापार और आर्थिक
सहयोग के स्तर से ऊपर उठाया । 1993 में हस्ताक्षरित संयुक्त राजनैतिक वक्तव्य के साथ इसने, वार्षिक मंत्रिस्तरीय बैठकों और व्यापक राजनैतिक संवाद का द्वार खोल दिया । तब से विभिन्न स्तरों पर और नियमित अंतराल पर संवाद किया जाता है ।
- लिस्बन में जून, 2000 में संपन्न, भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक, इस संबंध के विकास में नया मोड़ था । इसमें वार्षिक शिखर बैठकों के आयोजन का निर्णय लिया गया था । तब से 4 शिखर स्तरीय संपर्क हो चुके हैं और 8 नवंबर, 2004 को हेग में संपन्न 5वीं शिखर बैठक थी ।
भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में गुणात्मक विकास हुआ है जो पहले कभी व्यापार और आर्थिक संबंध होते थे । इनमें अब पारस्परिक संपर्क के सभी क्षेत्र शामिल हैं । हेग में संपन्न 5वीं शिखर बैठक, एक उल्लेखनीय बैठक थी क्योंकि इसमें ‘सामरिक भागीदारी’ के लिए यूरोपीय संघ
ने अपने संबंधों को उन्नत बनाने का प्रस्ताव पारित किया था ।
- यूरोपीय संघ जिसकी केवल 5 दूसरे देशों (अमेरिका, कनाडा, रूस, जापान और चीन) के साथ सामरिक भागीदारी है, भारत को अन्य विश्व शक्तियों की तरह एक क्षेत्रीय और वैश्विक नेता के रूप में महत्व देता है ।
- सन् 2000 से यूरोपीय संघ के साथ भारत के संपर्कों की बारंबारता और घनिष्ठता में गुणात्मक वृद्धि हुई है । यूरोपीय आयोग ने किए जा रहे सभी विभिन्न क्रियाकलापों में और नई पहल शुरू करने में अधिक से अधिक सामंजस्य और एकाग्रता के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपने
व्यापक विचार व्यक्त करते हुए व्यापक कम्यूनिकेशन तैयार की है, जिसमें भारत के साथ सामरिक भागीदारी की जा सकेगी । यह दस्तावेज, क्षेत्र दर क्षेत्र यह जांच करता है कि वर्तमान क्रियाकलापों को कैसे सुचारू बनाया जा सकता है और नए कार्य कैसे शुरू किए जा सकते हैं
। इनके कार्यान्वयन के पश्चात् राजनैतिक से बहुपक्षीय, आर्थिक से विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शैक्षिक, सांस्कृतिक और सिविल सोसाइटी के क्षेत्र में संपूर्ण आदान-प्रदान की पूर्ण शृंखला, मजबूत और अधिक प्रगाढ़ संबंधों का आधार होगी ।
- यूरोपीय संघ (25 राष्ट्रों के समूह के रूप में) भारत का विशालतम निर्यात केंद्र है तथा कुल निर्यात में इसका हिस्सा 24 % से अधिक है । सन् 2003 में भारत, यूरोपीय संघ के लिए 19वां सबसे बड़ा निर्यातकर्ता देश था और यूरोपीय संघ के कुल निर्यात में इसका हिस्सा
1.35 % था । दूसरी ओर भारत, यूरोपीय संघ के उत्पादों का 16वां सबसे बड़ा आयातकर्ता देश था और यूरोपीय संघ के वैश्विक निर्यात में इसका हिस्सा 1.46 % था । सन् 2003 में यूरोपीय संघ के लिए भारत का निर्यात 13.30 बिलियन यूरो और निर्यात 14.20 बिलियन यूरो था [1] ।
यूरोपीय संघ, भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के विशालतम स्रोतों में से है । तथापि, यूरोपीय संघ के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का वर्तमान स्तर, संभावना से काफी कम है । 1991 से 2003 की अवधि में, यूरोपीय संघ-15 के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अनुमोदन, लगभग 15 बिलियन
अमरीकी डालर रहे हैं । यूरोस्टेट डाटा के अनुसार, कुल संचित प्रवाह लगभग 6.2 बिलियन यूरो (5.6 बिलियन अमरीकी डालर) है । प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए यूरोपीय संघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देश ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड और इनके बाद फ्रांस, इटली और बेल्जियम हैं
।
- 5वीं भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक, यूरोपीय संघ की नीदरलैंड की अध्यक्षता में 8 नवंबर, 2004 को हेग में हुई थी । भारतीय प्रतिनिधमंडल का नेतृत्व प्रधानमंत्री ने किया था । इसमें विदेश मंत्री श्री नटवर सिंह, वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री कमल नाथ और तत्कालीन
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वर्गीय श्री जे एन दीक्षित शामिल थे । यूरोपीय संघ का नेतृत्व, यूरोपीय परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर नीदरलैंड के प्रधानमंत्री जन-पीटर बल्केनेंडे ने किया था और इसमें यूरोपीय आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष श्री रोमानो प्रोदी,
यूरोपीय संघ की साझा विदेश और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि श्री जेवियर सोलान और तत्कालीन यूरोपीय व्यापार आयुक्त श्री पास्कल लेमी शामिल थे ।
- यह शिखर बैठक, भारत-यूरोपीय संघ की सामरिक भागीदारी की शुरूआत को देखते हुए भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में ऐतिहासिक घटना थी । यूरोपीय आयोग ने जून, 2004 में एक व्यापक कम्यूनिकेशन प्रस्तुत किया था । भारत ने अगस्त, 2004 में यूरोपीय आयोग के दस्तावेज पर प्रारंभिक
किंतु व्यापक प्रतिक्रिया प्रस्तुत की थी जिसमें इसने अपनी ओर से कुछ नई पहलों का सुझाव देने के अलावा, यूरोपीय आयोग के दस्तावेज के सकारात्मक अभिमुखीकरण और इसमें उल्लिखित अनेक प्रस्तावों का स्वागत किया था । इन दस्तावेजों के आधार पर, विभिन्न क्षेत्रों में
संबंधों को आगे बढ़ाने और उन्हें प्रगाढ़ बनाने के लिए यूरोपीय संघ और भारत, इस समय संयुक्त कार्य योजना तैयार कर रहे हैं । अगले वर्ष, नई दिल्ली में छठी भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक में संयुक्त राजनैतिक घोषणा के रूप में यह संयुक्त कार्य योजना पारित की जाएगी
।
- विगत की भांति, इस शिखर बैठक के अंत में एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य पारित किया गया था, जो पारस्परिक चिंता के विभिन्न मुद्दों पर हमारी साझा अवधारणा प्रदर्शित करता है । संयुक्त प्रेस वक्तव्य के साथ संलग्न, सांस्कृतिक सहयोग संबंधी संयुक्त घोषणा, विद्वानों
और छात्रों की पारस्परिक यात्राओं तथा कला और स्मारकों के संरक्षण और मरम्मत कार्यों में तकनीक और जानकारी बांटने के साथ-साथ संस्कृति में अधिक से अधिक सहयोग की व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत करती है ।
- इस शिखर बैठक में, निरस्त्रीकरण और अप्रसार संबंधी संवाद को मजबूत बनाने, संयुक्त राष्ट्र सुधारों के बारे में विचार विमर्श बढ़ाने, आतंकवाद से लड़ने में संयुक्त प्रयासों को मजबूत बनाने तथा दोनों पक्षों के बीच संसदीय और सिविल सोसाइटी संपर्क बढ़ाने पर सहमति
हुई । यूरोपीय संघ ने, अपने पड़ोस में संकट की स्थिति से निपटने में भारत की भूमिका की सराहना की तथा पाकिस्तान के साथ संयुक्त संवाद आगे बढ़ाने के भारत के दृढ़ निश्चय का स्वागत किया । ऐसे मुद्दों के समाधान पर सहमति हुई जिनसे व्यापार और निवेश संबंध बढ़ाने
में सहायता मिलेगी । ऊर्जा मामलों में सहयोग पर विचार विमर्श के लिए ऊर्जा पैनल की स्थापना और पर्यावरण संबंधी मसलों और सहयोग की संभावना पर विचार विमर्श के लिए पर्यावरण मंच जिसमें व्यवसाय और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि शामिल होंगे, के गठन का निर्णय, विशेष महत्व
के दो प्रस्ताव थे । गैलीलियो सेटेलाइट नेवीगेशन प्रोजेक्ट में भारत की भागीदारी को अंतिम रूप देने के लिए, समझौते की रूपरेखा पर हस्ताक्षर करने के लिए यूरोपीय संघ के साथ वार्ता जारी रखने पर भी सहमति हुई । भारत ने, परमाणु फ्यूजन से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए
इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर में भागीदारी की अपनी इच्छा दोहराई ।
- प्रधानमंत्री ने भारत और यूरोप के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के चुनिंदा समूह – ‘भारत-यूरोपीय संघ व्यवसाय गोलमेज’ के साथ भी संपर्क किया । यह एक नई पहल थी जो बढ़ते व्यापार और निवेश में पारस्परिक रुचि दर्शाती है ।
द्विपक्षीय समझौते
द्विपक्षीय निवेश संरक्षण : भारत ने यूरोपीय संघ के 25 सदस्य राष्ट्रों में से 16 के साथ, द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ।
दोहरा कराधान परिवर्जन : भारत के यूरोपीय संघ के 25 सदस्य राष्ट्रों में से 18 के साथ दोहरा कराधान परिवर्जन समझौते (डीटीएए) हैं । लिथुवानिया, इस्टोनिया, लात्विया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया के साथ डीटीएए पर हस्ताक्षर करने के लिए वार्ता उन्नत
स्तरों पर है ।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौता : भारत और यूरोपीय संघ ने सन् 2001 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं । यह समझौता, भारत के साथ सहयोग में इच्छुक यूरोपीय संघ की कंपनियों और अनुसंधान संस्थाओं के
लिए स्थायी और सुरक्षित आईपीआर सुनिश्चित करता है । पारस्परिक विचार विमर्श और विचारों के आदान-प्रदान के लिए समझौते के तहत गठित, संचालन समिति की पहली बैठक 4-5 मार्च, 2004 को ब्रुसेल्स में हुई जिसमें सहयोग कार्यक्रम तैयार किया गया ।
सूचना प्रौद्योगिकी : भारत और यूरोपीय संघ ने, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए, संयुक्त संकल्पना वक्तव्य पर हस्ताक्षर किए हैं । यह संकल्पना वक्तव्य, नवंबर, 2001 में दिल्ली में संपन्न, भारत-यूरोपीय संघ
की शिखर बैठक में जारी किया गया था । यह विनियामक पद्धति, विनियामक और उद्योग पहल में पारस्परिक सहयोग तथा द्विपक्षीय हित के विशेष मामलों/ परियोजनाओं पर विचारों के आदान-प्रदान की रूपरेखा प्रदान करता है ।
सीमा शुल्क : भारत और यूरोपीय संघ ने, धोखेबाजी, कर परिवर्जन तथा इस क्षेत्र में अन्य आर्थिक अपराध रोकने में पारस्परिक सहयोग और सहायता हेतु एक रूपरेखा तैयार करने के लिए सीमा शुल्क सहयोग समझौता किया है । इस समझौते पर नवंबर, 2003 में दिल्ली
में भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक में आद्यक्षर किए गए थे और बाद में 2004 में ब्रुसेल्स में इस पर हस्ताक्षर किए गए ।
7 जनवरी, 2005
[1] इसमें सेवाओं में व्यापार का मूल्य शामिल नहीं है, जिसके लिए कोई आंकड़े प्रकाशित नहीं किए जाते । सन् 2002 के लिए (2003 के लिए अभी प्राप्त किए जाने हैं) ऐसे व्यापार के लिए यूरोस्टेट से अलग से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर, सन् 2002 में यूरोपीय संघ के पक्ष
में 322 मिलियन यूरो का अधिशेष था । भारत ने 2.4 मिलियन यूरो मूल्य की सेवाओं का निर्यात किया जबकि यूरोपीय संघ ने भारत को 2.7 मिलियन यूरो मूल्य की सेवाओं का निर्यात किया था । ऐसे अनुमान के लिए प्रयुक्त सेवाओं के वर्ग, सेवाओं के लेन-देन के लिए अंतर्राष्ट्रीय
मुद्रा कोष शेष भुगतान मैनुअल वर्गीकरण के अनुसार हैं ।